Saturday, April 25, 2009

डाक टिकटों के दर्पण में वंशवाद के दर्शन

ब्रिटेन को डाक टिकटों का जन्मदाता माना जाता है। वहाँ पर डाक टिकटों पर सिर्फ राजा-रानी एवं उनके परिवार से जुडे़ लोगों का ही चित्र छापा जाता है। इसी प्रकार विभिन्न देशों में इस परम्परा का अनुगमन करते हुए शासकों के चित्र डाक टिकटों पर अंकित किये गये। कहना गलत नहीं होगा कि डाक टिकट तमाम शासकों के उत्थान-पतन का गवाह है जो अपने अन्दर तमाम रोमांच सहेजे रहता है। प्रस्तुत पुस्तक में ब्रिटेन, अमेरिका, सोवियत संघ एवं भारत में जारी उन तमाम डाक टिकटों का विवेचन-विश्लेषण अध्ययन का विषय बनाया गया है, जिन पर शासकों एवं उनके परिवारजनों के चित्र अंकित हैं। निश्चिततः डाक टिकटों के माध्यम से यह एक पूरे इतिहास-खण्ड का भी व्यापक विश्लेषण है। भारतीय परिप्रेक्ष्य में नेहरू-गाँधी परिवार पर जारी डाक टिकटों के साथ-साथ राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़े महापुरूषों पर जारी डाक टिकटों को भी स्थान दिया गया है। वस्तुतः ये स्मारक डाक टिकट शासकों के प्रति सदभावना प्रदर्शित करने के क्रम में जारी किए गये परन्तु बाद के वर्षो में इनमें से तमाम डाक टिकटों का विश्लेषण अन्य रूपों में भी किया गया। प्रस्तुत पुस्तक को इसी क्रम में देखा जाना चाहिए।
पुस्तक- डाक टिकटों के दर्पण में वंशवाद के दर्शन
लेखक-गोपीचंद श्रीनागर
पृष्ठ- 84, संस्करण-2004, मूल्य- 75 रूपये
प्रकाशक-वर्षा प्रकाशन, 778, मुट्ठीगंज, इलाहाबाद

4 comments:

Bhanwar Singh said...

एक पठनीय पुस्तक.

Bhanwar Singh said...

एक पठनीय पुस्तक.

Amit Kumar Yadav said...
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Amit Kumar Yadav said...

डाकिया बाबू की जय हो..खूब छा रहे हैं आजकल.