Saturday, February 27, 2010

!! होली की शुभकामनायें !!


मानवता की हो पिचकारी.
रंग भरा हो प्यार का.
आओ सब मिलकर खेलें होली.
भीग जाये तन-मन यार का !

!! होली की शुभकामनायें !!

Thursday, February 18, 2010

डाक-विभाग से संबंधित विषयों पर हिंदी पुस्तकें लिखने पर पुरस्कार

डाक-विभाग से संबंधित विषयों पर हिंदी में मौलिक पुस्तकें लिखने पर पुरस्कार योजना आरंभ की गई है. प्रथम पुरस्कार- 20,000/- दितीय पुरस्कार-16,000/- तृतीय पुरस्कार-10,000/- अंतिम तिथि-30 सितम्बर, 2010. विस्तृत सूचना हेतु इस लिंक पर जाएँ-
http://www.indiapost.gov.in/Pdf/Hindi_Puraskar_2009.pdf

Wednesday, February 17, 2010

पत्र-मोबाइल संवाद

आज के इस संचार युग में पत्रों का वर्चस्व मोबाइलों के धुआंधार प्रवेश ने कुछ कम कर दिया है, चारों तरफ हर हाथ में मोबाइल ही मोबाइल नजर आते हैं। ऐसी ही भीड़ में एक बार पत्र की मुलाकात मोबाइल से होती है दोनों में अभिवादन के पश्चात इस तरह साक्षात्कारिक वार्तालाप होता है।

पत्र- कहो भाई क्या हाल है, आजकल हर जगह नजर आ रहे हो।

मोबाइल- ये मेरा अहो भाग्य है कि मुझे हर कोई पसन्द कर रहा है, लोग चाहे जहाँ भी रहें मुझे साथ अवश्य रखते है।

पत्र- हाँ भाई तुमने कुछ हद तक मेरी जगह भी ले ली है, अब तो प्रेमी लोग मुझे लिखने की बजाय तुम्हारा ही इस्तेमाल करते है।

मोबाइल- बोरियत यार, ये प्रेमी-प्रेमिका घंटों एक ही विषय पर बातें करते रहते है जैसे आमने-सामने बातें कर रहें हों, समय की महत्ता का ध्यान ही नही रखते.

पत्र- मुझे तो आज भी वो दिन याद है जब लोग हमेशा पहला प्यार नजरों से और उसका इजहार मुझे लिखकर किया करते थे. कुछ लोग तो आज भी यह तरीका बद्स्तूर जारी रखे हुए है।

मोबाइल- ठीक कहते हो भाई मेरा जो भी अस्तित्व हो, पर इतिहास के पन्नों में मेरा नाम कहीं नहीं मिलता है। तुम्हारा नाम तो वहाँ स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है।

पत्र- बहुत गर्व होता है खुद पर जब जानी-मानी हस्तियाँ मुझे लिखकर अपनी प्रसन्नता या आभार व्यक्त करती है और मेरे अंश को पत्रिकाओं/समाचार पत्रों में सजाकर-सवारकर छापा जाता है।

मोबाइल- अरे भाई तुम्हारा वितरण तो डाकिया भी मुझे इस्तेमाल करके करता है।

पत्र- तो इसमे आश्चर्य की क्या बात है. वह प्यार व सम्मान सहित मेरे गंतव्य तक तो मुझे पहुँचाता है। मेरी प्रतीक्षा में आज भी लोग बेचैन रहते हैं मुझे पाकर उन्हे अजीब सुख भरा अहसास होता है तुम्हारे अनावश्यक एवं असमय आने पर तो लोगों का मूड़ भी खराब हो जाता है।

मोबाइल- अरे भाई मुझे तो फिल्मों में भी लिया गया है।

पत्र- बिल्कुल फूहड गानों की तरह लिया गया है जैसे ‘‘हृवाट इज मोबाइल नम्बर करूं क्या डाइल नम्बर’’ या ‘‘मेरे पिया गये रंगून वहाँ से किया है टेलीफून’’ आदि . मुझे देखो कई फिल्मों में मैं फिल्माया गया हूँ .मैने अपनी अभिव्यक्ति से लोगों के दिलों पर अमिट छाप छोड़ी है जहाँ ‘नाम’ नामक फिल्म में पंकज जी ने इस खूबसूरती से मेरा बखान किया है ‘‘चिट्ठी आई है आई है, चिट्ठी आई है’’, वहीं प्रेमी अपनी प्रेमिका को पत्र भेजकर अपनी भावनाओं का इजहार करता है कि ‘‘मेरा प्रेम पत्र पढ़कर कहीं नाराज न होना‘‘। सरकारी महकमों में आज भी मेरा पूर्णतयः अस्तित्व है. बिना मेरे वहाँ आज भी पूर्ण कार्य सम्भव नहीं है। कोई भी वैधानिक प्रक्रिया मेरे बिना सम्भव नहीं है और तुम कुछ जगहों पर ही अपनी पैठ बना पाये हो

मोबाइल- कुछ भी कहो भाई तुम्हारा जमाना जानेवाला है।

पत्र- नहीं मोबाइल भाई तुम दूध की तरह कुछ दिन और उबल लो, तुम्हारा अस्तित्व शीघ्र ही कम पड़ने वाला है क्योंकि आये दिन मुझे लिखने वाले, पढ़ने वाले यह वार्ता करते रहते है कि जब कभी तुम्हारे माध्यम से बात करना चाहते है तो उन्हें इस प्रकार के स्वर सुनाई देते है।
- इस रूट की सभी लाइने व्यस्त हैं, कृपया थोड़ी देर बात डायल करें।
- जिस नम्बर पर आप सम्पर्क करना चाहते है, वह अभी पहुँच से बाहर है।
- जो नम्बर आपने डायल किया है उसका उत्तर नहीं मिल रहा है।
- यह नम्बर अभी व्यस्त है कृपया प्रतीक्षा करें।
या कभी-कभी डायल करने पर बिना किसी संदेश/वार्ता के ही सम्पर्क टूट जाता है। सम्पर्क टूटने के साथ ही बार-बार प्रयास कर रहे तुम्हारे धारकों के दिल के अरमान भी टुकड़ों में विखर जाते है और वह बेचारा अन्ततः कागज कलम लेकर मेरा ही रूप तैयार करके अपने प्रिय के पास मुझे भेजकर अपना संदेश प्रेषित कर देता है। तुम्हारे ऐसे रूख को देखते हुए लोग फिर मुझे सराहने लगे हें मुझे ही प्रयोग करने लगे है अतः हे मोबाइल भाई अब अपना अलाप बन्द करो।

मोबाइल बेचारा मायूस होकर ‘‘निराशा की घण्टी’’ बजाता हुआ चला जाता है।

एस0 आर0 भारती

Monday, February 15, 2010

डाकिया की वर्दी फिर से खाकी

आपको डाकिया बाबू की वर्दी याद है. आपने अक्सर डाकिया बाबू को खाकी वर्दी में ही देखा होगा. इस खाकी वर्दी को 2004 में बदलकर नीला कर दिया गया था. पर अब पुन: इसे खाकी कर दिया गया है. इस सम्बन्ध में डाक विभाग ने 9 दिसंबर, 2009 को आदेश जारी कर दिए हैं...तो अब पूर्ववत डाकिया बाबू खाकी वर्दी में ही चिट्ठियां बाँटते नज़र आयेगा !!

Tuesday, February 9, 2010

अब नहीं होता डाकिये का इंतजार


डाकिया

छोड़ दिया है उसने
लोगों के जज्बातों को सुनना

लम्बी-लम्बी सीढियाँ चढ़ने के बाद
पत्र लेकर
झट से बंद कर
दिए गए
दरवाजों की आवाज
चोट करती है उसके दिल पर

चाहता तो है वह भी
कोई खुशी के दो पल उससे बाँटे
किसी का सुख-दुःख वो बाँटे
पर उन्हें अपने से ही फुर्सत कहाँ?

समझ रखा है उन्होंने, उसे
डाक ढोने वाला हरकारा
नहीं चाहते वे उसे बताना
चिट्ठियों में छुपे गम
और खुशियों के राज

फिर वो परवाह क्यों करे?
वह भी उन्हें कागज समझ
बिखेर आता है सीढ़ियों पर

इन कागजी जज्बातों में से
अब लोग उतरकर चुनते हैं
अपनी-अपनी खुशियों
और गम के हिस्से
और कैद हो जाते हैं अपने में।

(जनसत्ता, 6 फरवरी 2010 में प्रकाशित उपरोक्त रिपोर्ट को देखकर बरबस मुझे अपनी यह कविता " डाकिया" याद आ गई. आप भी कुछ कहें !!)

कृष्ण कुमार यादव

Wednesday, February 3, 2010

अमेरिका में हिन्दू-देवी-देवताओं पर डाक टिकट

अमेरिका में एक अटलांटा आधारित कंपनी ने हिंदू देवी-देवताओं के चित्रों वाले पोस्टेज स्टांप जारी किए हैं। कंपनी का प्रमुख भारतीय मूल का एक अमेरिकी नागरिक है।
यूएसए-पोस्टेज डॉट कॉम ने ऐसे स्टांप का पहला सेट जनवरी में पेश किया। इनमें साईंबाबा, वेंकटेश्वर भगवान, माँ लक्ष्मी, मुरुगन, भगवान गणेश, शिव-पार्वती और श्री कृष्ण की तस्वीरें बनी हुई हैं। यूएस पोस्टल सर्विस (यूएसपीएस) के छह वर्ष पुराने एक नियम में धार्मिक मान्यताओं संबंधी पोस्टेज जारी करने की अनुमति दे दी गई थी। उसी के तहत अमेरिका में पहली बार ऐसे पोस्टेज स्टांप जारी किए गए हैं।यूएसपीएस के प्रवक्ता रॉय बेट्स ने कहा यह पोस्टेज स्टांप हमने जारी नहीं किए हैं, लेकिन ये अन्य स्टांप की तरह वैध हैं। हम इन्हें स्टांप नहीं बल्कि पोस्टेज कहते हैं, लेकिन इनका सामान्य स्टांप की तरह उपयोग किया जा सकता है। यूएसए-पोस्टेज डॉट कॉम के उपाध्यक्ष एनार चिलकापती ने कहा कंपनी को पहली बार ऐसे पोस्टेज जारी करने पर गर्व है, जो भारतीय समुदाय के लिए विशेष अपील करने वाले हैं।

Monday, February 1, 2010

डाकिया डाक लाया : हिंदी ब्लॉग जगत के 9 उपरत्नों में दूसरे स्थान पर

आज सुबह यूँ ही कुछ ब्लॉग की सैर करने निकला तो नज़र रवीन्द्र प्रभात जी के "परिकल्पना" पर पड़ी. कुछ देर खंगाला तो वहाँ हम भी चिट्ठी बाँचते नज़र आए. 21 दिसंबर, 2009 को प्रस्तुत वर्ष 2009 : हिंदी ब्लाग विश्लेषण श्रृंखला (क्रम-21) में रवीन्द्र जी ने हमें भी हिंदी ब्लॉग जगत के 9 उपरत्नों में दूसरे स्थान पर शामिल किया है. रवीन्द्र प्रभात जी व उन सभी स्नेही ब्लोगर्स-पाठकों का आभार जिनकी बदौलत हम आज यहाँ पर हैं !!