Sunday, July 31, 2011

डाककर्मी के पुत्र थे चर्चित हिन्दी साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद

1920 का दौर... गाँधी जी के रूप में इस देश ने एक ऐसा नेतृत्व पा लिया था, जो सत्य के आग्रह पर जोर देकर स्वतन्त्रता हासिल करना चाहता था। ऐसे ही समय में गोरखपुर में एक अंग्रेज स्कूल इंस्पेक्टर जब जीप से गुजर रहा था तो अकस्मात एक घर के सामने आराम कुर्सी पर लेटे, अखबार पढ़ रहे एक अध्यापक को देखकर जीप रूकवा ली और बडे़ रौब से अपने अर्दली से उस अध्यापक को बुलाने को कहा । पास आने पर उसी रौब से उसने पूछा-‘‘तुम बडे़ मगरूर हो। तुम्हारा अफसर तुम्हारे दरवाजे के सामने से निकल जाता है और तुम उसे सलाम भी नहीं करते।’’ उस अध्यापक ने जवाब दिया-‘‘मैं जब स्कूल में रहता हूँ तब मैं नौकर हूँ, बाद में अपने घर का बादशाह हूँ।’’


अपने घर का बादशाह यह शख्सियत कोई और नहीं, वरन् उपन्यास सम्राट प्रेमचंद थे, जो उस समय गोरखपुर में गवर्नमेन्ट नार्मल स्कूल में सहायक अध्यापक के पद पर कार्यरत थे। 31 जुलाई 1880 को बनारस के पास लमही में जन्मे प्रेमचन्द का असली नाम धनपत राय था। आपकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम अजायब राय था। प्रेमचंद जी के पिता अजायब राय डाक-कर्मचारी थे सो प्रेमचंद जी अपने ही परिवार के हुए।आज उनकी जयंती पर शत-शत नमन। डाक-परिवार अपने ऐसे सपूतों पर गर्व करता है व उनका पुनीत स्मरण करता है।

(प्रेमचंद जी पर मेरा विस्तृत आलेख साहित्याशिल्पी पर पढ़ सकते हैं)

Monday, July 18, 2011

सावन में घर बैठे डाक द्वारा काशी विश्वनाथ व महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का प्रसाद

सावन का मौसम आरंभ हो गया। इस मौसम में पूरे मास भगवान शिव की पूजा होती है। बनारस को भगवान शिव की नगरी कहा जाता है और काशी विश्वनाथ मंदिर यहाँ का प्रमुख धार्मिक स्थल है। डाक विभाग और काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट के बीच वर्ष 2006 में हुए एक एग्रीमेण्ट के तहत काशी विश्वनाथ मंदिर का प्रसाद डाक द्वारा भी लोगों को उपलब्ध कराया जा रहा है। इसके तहत साठ रूपये का मनीआर्डर प्रवर डाक अधीक्षक, बनारस (पूर्वी) के नाम भेजना होता है और बदले में वहाँ से काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट के सौजन्य से मंदिर की भभूति, रूद्राक्ष, भगवान शिव की लेमिनेटेड फोटो और शिव चालीसा प्रेषक के पास प्रसाद रूप में भेज दिया जाता है।

काशी विश्वनाथ मंदिर के अलावा उज्जैन के प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का प्रसाद भी डाक द्वारा मंगाया जा सकता है। इसके लिए प्रशासक, श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबन्धन कमेटी, उज्जैन को 151 रूपये का मनीआर्डर करना पड़ेगा और इसके बदले में वहाँ से स्पीड पोस्ट द्वारा प्रसाद भेज दिया जाता है। इस प्रसाद में 200 ग्राम ड्राई फ्रूट, 200 ग्राम लड्डू, भभूति और भगवान श्री महाकालेश्वर जी का चित्र शामिल है।



इस प्रसाद को प्रेषक के पास एक वाटर प्रूफ लिफाफे में स्पीड पोस्ट द्वारा भेजा जाता है, ताकि पारगमन में यह सुरक्षित और शुद्ध बना रहे। तो अब आप भी सावन की इस बेला पर घर बैठे भोले जी का प्रसाद ग्रहण कीजिये और मन ही मन में उनका पुनीत स्मरण कर आशीर्वाद लीजिए !!



वन्दे देव उमा पतिम् सुरगुरुम् ।
वन्दे जगत कारणम् ।
वन्दे पन्नग भूषणम्मृगधरम् ।
वन्दे पशुनाम पतिम ।
वन्दे सूर्य शशांक वन्हिनयनम् ।
वन्दे मुकन्द प्रियम् ।
वन्दे भक्तजनाश्रयन्चवर्धम् ।
वन्दे शिवम् शंकरम् ।। ।। जय शंकर ।।।।
जय भोले नाथ ।।


भगवान शिव का नमन करते हुए आपको श्रावण मास के इस पावन पर्व पर हार्दिक बधाई।

Saturday, July 16, 2011

53 साल बाद पहुँचा प्रेम-पत्र

20 फरवरी 1958 को कॉलेज में पढ़ाई के दौरान एक अमेरिकी युवती को उसके प्रेमी ने डाक से प्रेम पत्र भेजा। महिला को यह खत अब जाकर है। उनकी उम्र अब 74 साल हो चुकी है और वह दादी मां हैं।

बात 1958 की है। अमेरिकी राज्य पेनसिल्वेनिया की यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रही वोनी नाम की युवती को एक युवक ने प्रेम पत्र लिखा। प्रेमी ने खत के बाहर सिर्फ यही लिखा कि, 'लव, फॉरएवर, वोनी।' यूनिवर्सिटी के पोस्ट बॉक्स में डाले गए इस प्रेम पत्र पर 20 फरवरी 1958 को मुहर लगी लेकिन इसके बाद प्यारी भरी चिट्ठी न जाने कहां गुम हो गई।

लेकिन प्रेमी ने हार नहीं मानीं। उन्होंने यूनिवर्सिटी को चेतावनी दी कि अगर खत वोनी तक नहीं पहुंचा तो वह आधिकारिक शिकायत दर्ज कराएंगे। यूनिवर्सिटी लगातार खत को ढूंढती रही। खोजबीन के दौरान इसी हफ्ते अचानक यूनिवर्सिटी के सामने पांच दशक पुराना यह प्रेम पत्र आ गया।

स्थानीय मीडिया में इस बारे में एक रिपोर्ट भी छपी। रिपोर्ट के जरिए वोनी की एक दोस्त ने उनसे संपर्क किया और बताया कि यूनिवर्सिटी तुम्हें 53 साल पुराना खत सौंपना चाहती है। यूनिवर्सिटी की प्रवक्ता क्रिस्टीन किंडल कहती हैं, 'इस पूरी प्रक्रिया में हमारा मकसद था कि 53 साल पुराने खत को गंतव्य तक पहुंचाया जाए।'

74 साल की वोनी को अब जाकर पुराने प्रेमी का यह खत मिला है। वोनी के बाल अब सफेद हो चुके हैं। उनके कई पोते और पोती हैं। उम्र के इस पड़ाव में मिला प्रेम पत्र वोनी को भावुक कर रहा है। खत लिखने वाले के संपर्क में वह नहीं हैं लेकिन प्यार की एक पुरानी डोर जिंदा है।
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California (Pennsylvania), July 15 (AP): Much has happened in the 53 years since Vonnie sent Clark the letter, wondering why he had not called before going back to college.

They married later that year. He graduated. They had four children. They divorced. And he changed his name.

And, at last, the letter is wending its way to Clark ' that is, Muhammad Siddeeq ' who awaits its arrival with mixed emotions. "I'm curious, but I'm not sure I'd put it under the category of 'looking forward to it'," Siddeeq told the Pittsburgh Tribune-Review.

The letter, bearing four one-cent stamps postmarked February 1958 and addressed to Clark C. Moore, arrived in the mailroom at California University of Pennsylvania last week. School officials checked their files but could not figure out who Clark Moore was.

But his friends and family still lived in the area and saw media reports about the letter. They called Siddeeq, now 74 and living in Indianapolis, who had changed his name after converting to Islam.

"I never dreamed of anything like this," Siddeeq told the Washington Observer-Reporter. The letter, its stamps turned upside down as sign of love, arrived at California University of Pennsylvania on July 8, tucked inside some magazines.
Courtesy : www.telegraphindia.com – Sat, Jul 16, 2011