Friday, November 25, 2011

हर खत तेरे नाम लिखूंगा…


सुबह लिखूंगा, शाम लिखूंगा

हर खत तेरे नाम लिखूंगा।

प्‍यारे न्‍यारे गंगनांगन को,

मैं अपना पैगाम लिखूंगा।



हवा चलेगी जब इठला कर,

मैं पंक्षी बन इतराऊंगा,

बादरा जब-जब बरसेंगे मैं,

मेघ मल्‍हारें बन जाऊंगा,

धरती ओढ़े धानी चुनरिया,

जब-जब खुल के लहरायेगी,

उसकी चुनर के पल्‍लू पर,

मैं तेरा सम्‍मान लिखूंगा।

हर खत तेरे नाम लिखूंगा।

सुबह लिखूंगा, शाम लिखूंगा।



जीत लिखूंगा, हार लिखूंगा,

प्‍यारा सा एक गीत लिखूंगा,

अपने इस सूनेपन को मैं,

नित नूतन मधुमास लिखूंगा,

तेरे अधरों की कोमलता,

देगी एक एहसास नया,

तेरे इस आलिंगन को मैं,

खुशियों की शाम लिखूंगा।

हर खत तेरे नाम लिखूंगा।

सुबह लिखूंगा, शाम लिखूंगा।



प्रीत लिखूंगा, मीत लिखूंगा

और ऐसा संगीत लिखूंगा,

जिसकी धुन पर तुम थिरकोगी,

महकोगी तुम चंदन जैसे,

तेर पायल की छनछन पर,

नदी बहेगी बहके-बहके,

तेरी प्रेम कल्‍पना को मैं,

अपना विश्‍वास लिखूंगा।

हर खत तेरे नाम लिखूंगा।

सुबह लिखूंगा, शाम लिखूंगा।



सुबह लिखूंगा, शाम लिखूंगा

हर खत तेरे नाम लिखूंगा।

प्‍यारे न्‍यारे गंगनांगन को,

मैं अपना पैगाम लिखूंगा।

-आदित्य शुक्ल : अपनी बात

Thursday, November 17, 2011

डाक विभाग जारी करेगा प्रीपेड स्मार्ट कार्ड

नई दिल्ली। जल्दी ही आप डाक विभाग के प्रीपेड स्मार्ट कार्ड के जरिये खरीदारी और बिलों का भुगतान कर सकेंगे। डाक विभाग इस साल 'व्हाइट लाइन' नाम से यह कार्ड पेश करेगा। यह बैंक के डेबिट कार्ड जैसा होगा। इसका इस्तेमाल डाक सेवाओं के अलावा स्टोर्स पर बिल का भुगतान करने और इंटरनेट पर खरीदारी जैसे कामों के लिए किया जा सकेगा। आइटी और संचार मंत्री कपिल सिब्बल ने यह जानकारी दी।

डाकघरों के जरिये जारी होने वाले इस कार्ड में एक हजार रुपये लेकर 50 हजार रुपये तक डलवा सकते हैं। इसका इस्तेमाल डाकघर के अतिरिक्त उन एटीएम पर भी किया जा सकेगा, जहां मास्टर कार्ड स्वीकार्य हैं। सिब्बल ने कहा कि डाक विभाग रिजर्व बैंक से मंजूरी मिलने का इंतजार कर रहा है। अनुमति मिलते के बाद 15 मई, 2011 तक विभाग प्रीपेड कार्ड लांच कर देगा।

विभाग ने इस परियोजना के लिए एचएसबीसी, आइसीआइसीआइ और आइडीबीआइ बैंक के साथ साझेदारी की है।


साभार : जागरण

Saturday, November 12, 2011

डाक टिकटों और लिफाफों के संग्राहक



बचपन में डाक टिकटें इकट्ठी करने का शौक तो हम में से बहुत लोगों को रहा होगा पर इस शौक को आगे बढ़ाने का रास्ता हममें से बहुत कम लोगों को मिला होगा। आज दुनिया की बहुत सी पुरानी और दुर्लभ डाक टिकटें और लिफाफे पेशेवर संग्रहकों द्वारा बहुत ऊंची कीमत पर खरीदी और बेची जा रही हैं। भारत भी इस विषय में पीछे नहीं है। हाल ही में जीनेवा की एक नीलामी में 1948 में भारत में गांधी जी पर जारी की गई एक डेढ आने की टिकट के साथ भेजा गया एक लिफाफा लगभग साढे पांच हज़ार यूरो में बिका जबकि इसका अनुमान दो हज़ार यूरो लगाया गया था। इस नीलामी में साढे तीन हज़ार यूरो तक बोली लगाई जर्मनी में रह रहे एक भारतीय डाक टिकट संग्रहक, राजेश वर्मा ने। स्टुट्टगार्ट निवासी राजेश वर्मा को हालांकि बचपन से डाक टिकटें इकट्ठी करने का शौक रहा है, पर 1981 में पटना में पढ़ाई खत्म करने के बाद जर्मनी आने के बाद यह शौक दोबारा पालने में उन्हें दो तीन साल लग गए। यहां उन्होंने देखा कि इस क्षेत्र में अनेक संस्थाएं सक्रिय हैं, जिनकी नियमित रूप से बैठकें आयोजित होती हैं, बहुत सारे व्यापार मेले आयोजित होते हैं जिनमें टिकटों, लिफाफों की अदला बदली, ख़रीद बेच और नीलामी होती है। एक मित्र ने उन्हें गांधी जी पर आधारित डाक टिकटें और लिफाफे संग्रहित करने की सलाह दी। आज उनके पास दुनिया भर के देशों द्वारा गांधी जी पर जारी की गई सैंकड़ों डाक टिकटों और उनके साथ भेजे गए लिफाफों का संग्रह है, जैसे बेल्जियम, भूटान, कैमरून, माल्टा, सीरिया, यमन, साइप्रस, ब्राजील, मॉरीशस, उरुग्वे, सोमालिया, पनामा, वेनेजुएला, माली, एंटीगुआ और बारबुडा, त्रिनिदाद और टोबैगो, ग्रेनेडा, आयरलैण्ड, इंग्लैण्ड, यूनान, हंगरी, कज़ाकस्तान, मेसेडोनिया, टोगो, दक्षिण अफ्रीका, सूरीनाम, संयुक्त अरब गणराज्य, जर्मनी, कांगो, सेनेगल, मैक्सिको, चाड, मॉरिटानिया, नाइजीरिया, गैबॉन निकारागुआ, जिब्राल्टर, सैन मैरिनो आदि। इन डाक टिकटों के अलावा वर्मा जी के पास गांधी जी की टिकटों के साथ उपयोग किए गए लिफाफों का भी अद्भुत संग्रह है। कुछ दुर्लभ लिफाफे तो सचमुच आम व्यक्तियों द्वारा दूसरे देशों में डाक द्वारा भेजे जाने पर दुनिया की सैर करने के बाद उनके हाथ में आए हैं। राजेश वर्मा जी का कहना है कि यहां डाक टिकटों के संग्रह के लिए अच्छी एल्बमें और बहुत सारा सामान भी मिलता है। कम नमी के कारण यहां वर्षों तक भी टिकटें नई लगती हैं, जबकि भारत में नमी अधिक होने के कारण कुछ वर्षों बाद टिकटें पीली पड़नी शुरू हो जाती हैं। उन्होंने डाक टिकटों और लिफाफों के अपने संग्रह को कई देशों में प्रदर्शित किया है। वे फरवरी 2011 में भारतीय एयर-मेल की सौ वीं सालगिरह के मौके पर दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित की जा रही विश्व डाक टिकट प्रदर्शनी में हिस्सा लेने भी जा रहे हैं।

15 अगस्त 1948 को पहले स्वतन्त्र दिवस के मौके पर महात्मा गांधी जी के चित्र के साथ डेढ आना, साढे तीन आना, बारह आना और दस रुपए की चार डाक टिकटों के चार सेट जारी किए गए थे। हालांकि इन डाक टिकटों को जारी करने की योजना जनवरी से ही चल रही थी जब गांधी जी जीवित थे। पर इससे पहले कि टिकटें जारी हो पातीं, गांधी जी की हत्या कर दी गई। ये डाक टिकटें स्विट्ज़ेलैण्ड में मुद्रित की गईं थी। यह भाग्य की विडंबना ही है कि गांधी जी, जिन्होंने जीवन भर स्वदेशी के आदर्श तले काम किया, उन पर आधारित पहली डाक टिकट विदेश में मुद्रित की गई। इनमें से दस रुपए वाली टिकट आम व्यक्ति की पहुंच से बाहर थी। ये पहली और आख़िरी डाक टिकटें हैं जिन पर उर्दू में बापू लिखा हुआ है। यह नेहरू जी की सलाह पर किया गया था। उस समय के गवर्नर जनरल के आदेश पर केवल सरकारी उपयोग के लिए इनमें से दस रुपए वाली टिकटों की सौ अतिरिक्त प्रतियां छापी गईं थी जिन पर 'service' लिखा होता है। यह विश्व की बहुत दुर्लभ टिकटें हैं। इनमें से कुछ टिकटें कुछ गणमान्य व्यक्तियों को उपहार के रूप में दे दी गईं, और कुछ दिल्ली के राष्ट्रीय डाक टिकट संग्रहालय को दे दी गईं। इनमें से अधिकतम आठ प्रतियां निजी हाथों हैं, जिनके कारण वे बहुत दुर्लभ और कीमती हो गईं। इनमें से एक टिकट 5 अक्तूबर 2007 को स्विट्ज़रलैण्ड में डेविड फेल्डमैन कंपनी द्वारा की नीलामी में 38,000 यूरो में बिकी।

-साभार : बसेरा (जर्मनी की हिन्दी पत्रिका )

Monday, November 7, 2011

ख़त तुम्हारा


ख़त मिला तुम्हारा,
पते बगैर पहुँचा मुझ तक ,
हवाएं जानती हैं खूब,
तुम्हारे ख़त लाना मुझ तक,

चली दिल से तुम्हारे,
वो मेरे घर के रास्ते,
उन्हें पता है, तुम्हारे ख़त
होते बस मेरे वास्ते,

नाम भी न लिखा अपना,
फिर भी मैं जान गया,
तुम्हारी हिना की खुशबू से,
ये ख़त पहचान गया,

कोई तहरीर नहीं इसमें,
पर मैं सब जानता हूँ,
तुम्हारे अश्कों की लिखावट,
खूब पहचानता हूँ,

मुझे मालूम है न आयेंगे,
कभी ख़त आज के बाद,
तुम्हें मालूम है न लिखोगी,
कोई ख़त आज के बाद,

तुम्हें पता है, मैं मजबूरियां,
तुम्हारी जानता हूँ,
न होना परेशां कभी तुम,
मैं ये मानता हूँ,

कि तुम्हें शिकवा नहीं मुझसे,
मैं तुमसे नाराज़ नहीं
हम वो एहसास हैं जो ,
ख़त के मोहताज नहीं

- योगेश शर्मा

Wednesday, November 2, 2011

डाक-टिकटों से जुडी कुछ रोचक बातें

डाक-टिकट भला किसे नहीं अच्छे लगते. याद कीजिये बचपन के वो दिन, जब अनायास ही लिफाफों से टिकट निकालकर सुरक्षित रख लेते थे. न जाने कितने देशों की रंग-बिरंगी डाक टिकटें, अभी भी कहीं-न-कहीं सुरक्षित हैं. आज जब करोड़ों में डाक-टिकटों की नीलामी होती है तो दुर्लभ डाक टिकटों की ऐतिहासिकता और मोल पता चलता है. आज तो यह सिर्फ शौक ही नहीं, बल्कि व्यवसाय का रूप भी धारण कर चुका है.डाक-टिकटों का संग्रह विश्व की सबसे लोकप्रिय रुचियों में से एक है। इसके द्वारा प्राप्त ज्ञान हमें मनोरंजन के माध्यम से मिलता है, इसलिए यह है शिक्षा का मनोरंजक साधन।

डाक-टिकट संग्रह का शौक हर उम्र के लोगों में रहा है। बचपन में ज्ञान एवं मनोरंजन, वयस्कों में आनंद और तनावमुक्ति तथा बडी उम्र में दिमाग को सक्रियता प्रदान करने वाला इससे रोचक कोई शौक नहीं। 1940-50 तक डाक-टिकटों के शौक ने देश-विदेश के लोगों को मिलाना शुरू कर दिया था। टिकट इकट्ठा करने के लिए लोग पत्र-मित्र बनाते थे, अपने देश के डाक-टिकटों को दूसरे देश के मित्रों को भेजते थे और दूसरे देश के डाक टिकट मंगवाते थे। पत्र-मित्रता के इस शौक से डाक-टिकटों का आदान-प्रदान तो होता ही था, लोग विभिन्न देशों के विषय में अनेक ऐसी नई-नई बातें भी जानते थे, जो किताबों में नहीं लिखी होती थीं।

ब्रिटेन की महिलाओं में अपनी रानी विक्टोरिया के चित्रवाले डाक टिकट इकज्ञ करने का जुनून था। वे ही बनी डाक टिकट संग्रह करने वाले शौक की जननी। महात्मा गांधी दुनिया के अकेले ऐसे शख्स हैं, जिन्हें विश्व के 80 देशों ने अपने डाक टिकट पर जगह दी। अब तक 250 से ज्यादा डाक टिकट बापू के नाम से जारी किए जा चुके हैं। अंतरराष्ट्रीय डाक टिकट प्रदर्शनी-इंडिपेक्स 2011 में पहली बार डाक विभाग ने खादी के कपड़े पर गांधी जी की फोटो छपा विशेष डाक टिकट भी जारी किया .


जानिए डाक-टिकटों से जुडी कुछ रोचक बातें-

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ई-मेल और एसएमएस के दौर में डाक टिकटों की जरूरत भले ही कम हो गई हो, लेकिन उनका महत्व नहीं घटा है। डाक टिकट में दर्ज होती है हमारी राष्ट्रीय, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान। पुराने डाक टिकट बन जाते हैं हमारी विरासत, जिनकी बोली लगती है लाखों-करोडों में।

डाक -टिकट का इतिहास तकरीबन 171 साल पुराना है। विश्व का पहला डाक टिकट 1 मई 1840 को ग्रेट ब्रिटेन में जारी किया गया । इंग्लैंड में वर्ष 1840 में डाक-टिकट बेचने की व्यवस्था शुरू की गई। 1840 में ही सबसे पहले जगह-जगह लेटर-बॉक्स भी टांगे जाने लगे।

द पेनी ब्लैक
यह ब्रिटेन का डाक टिकट है। दुनिया का ऐसा पहला डाक टिकट, जिसे चिपकाया जा सकता था। यह 1 मई, 1840 को जारी हुआ था। यह अन्य डाक टिकटों की तरह दुर्लभ तो नहीं, पर मूल्यवान जरूर है। जो टिकट अभी इस्तेमाल में नहीं लाया गया, उसकी वर्तमान कीमत है तकरीबन 3 हजार डॉलर।

सिंदे डाक टिकट
भारत में पहला डाक-टिकट 1 जुलाई, 1852 को सिंध प्रांत में जारी किया गया, जो केवल उसी प्रांत में उपयोग के लिए सीमित था। ये एशिया के पहले डाक-टिकट तो थे ही, विश्व के पहले गोलाकार डाक टिकट भी थे।

द थ्री स्कीलिंग येलो
यह डाक टिकट है स्वीडन का। इसे वर्ष 1855 में छापा गया। नाम के अनुरूप इसका रंग पीला है। आज केवल एक डाक टिकट ही बचा है। इसकी वर्तमान कीमत है तकरीबन 11.6 करोड रुपये।

गुयाना का टिकटयह है ब्रिटिश उपनिवेश गुयाना का डाक टिकट। इसकी छपाई में काफी घटिया किस्म के कागज का इस्तेमाल हुआ। मैजेंटा रंग पर काले रंग का यह डाक टिकट भी है बेहद दुर्लभ। वर्ष 1980 में जब इसकी नीलामी हुई थी, तब इसकी बोली लगी 9 लाख 35 हजार डॉलर की।

हवाईयन मिशनरीज
ये हैं हवाई साम्राज्य के पहले डाक टिकट। इनकी छपाई हुई थी वर्ष 1951 में। वह भी काफी पतले कागज पर। इसलिए इनकी गुणवत्ता बेहद खराब है। आज कुछ ही टिकट सुरक्षित बचे हैं। इनमें से एक जो उपयोग में नहीं आ सका था, वह बिका था तकरीबन 7 लाख 60 हजार डॉलर में।

मॉरीशस के डाक टिकट
ये हैं मॉरीशस के पहले दो डाक टिकट। इनमें से एक डाक टिकट जारी होने के बाद उपयोग में नहीं आ पाया। 1993 में डेविड फेल्डमैन ने इन टिकटों की नीलामी की। इनमें से पहला नारंगी रंग वाला डाक टिकट बिका था तकरीबन 1 लाख 72 हजार 260डॉलर में, वहीं दूसरे टिकट को बेचा गया 1 लाख 48 हजार, 850 डॉलर में।

द इनवर्टेड जेनी
यह डाक टिकट अमेरिका का है। गलत ढंग से छपाई होने की वजह से इस टिकट को दुर्लभ के साथ-साथ बेहद मूल्यवान भी माना जाता है। जब-जब भी इसकी नीलामी हुई, तो बोली लाखों डॉलर में लगी। जैसे 2005 के अक्टूबर माह में इसकी ढाई लाख डॉलर की बोली लगी, तो नवंबर 2007 में यह 977 लाख डॉलर से भी ज्यादा में बिका।

अपनी फोटो वाले टिकट
अमेरिका और इंग्लैंड में अपनी फोटो डाक टिकट पर छपवाने की लोकप्रिय योजना स्माइली की तरह भारत में भी इंदिपेक्स -2011 के दौरान पहल की गई. इसके तहत महज 10 मिनट में कोई भी व्यक्ति अपनी फोटो डाक टिकट पर छपवा सकता है. शुल्क देना होगा 150 रुपये।

सोने के डाक-टिकट
सोने के डाक-टिकट की बात सुनकर बड़ा ताज्जुब होता है। भारतीय डाक विभाग ने 25 स्वर्ण डाक टिकटों का एक संग्रहणीय सेट जारी किया है। इसके लिए राष्ट्रीय फिलेटलिक म्यूजियम (नई दिल्ली) के संकलन से 25 ऐतिहासिक व विशिष्ट डाक टिकट इतिहासकारों व डाक टिकट विशेषज्ञों द्वारा विशेष रूप से भारत की अलौकिक कहानी का वर्णन करने के लिए चुने गए हैं, ताकि भारत की सभ्यता और संस्कृति से जुड़ी धरोहरों की जानकारी दी जा सके और महापुरूषों को सच्ची श्रद्धांजलि।सोने के इन डाक टिकटों को जारी करने के लिए डाक विभाग ने लंदन के हाॅलमार्क ग्रुप को अधिकृत किया है। हाॅलमार्क ग्रुप द्वारा हर चुनी हुई कृति के अनुरूप विश्व प्रसिद्ध कलाकारों द्वारा समान आकार व रूप के मूल टिकट के अनुरूप ही ठोस चांदी में डाक टिकट ढाले गये हैं और उन पर 24 कैरेट सोने की परत चढ़ायी गयी है। ‘‘प्राइड आफ इण्डिया‘‘ नाम से जारी किये गए ये डाक टिकट डायमण्ड कट वाले छिद्र के साथ 2.2 मि0मी0 मोटा है। 25 डाक टिकटों का यह पूरा सेट 1.5 लाख रूपये का है यानि हर डाक टिकट की कीमत 6,000 रूपये है। इन डाक टिकटों के पीछे भारतीय डाक और हाॅलमार्क का लोगो है।

खुशबूदार डाक टिकट
भारतीय डाक विभाग ने चंदन, गुलाब और जूही की खुशबू वाले डाक टिकट भी जारी किये हैं. भारतीय इतिहास में पहली बार 13 दिसम्बर 2006 को डाक विभाग ने खुशबूदार डाक टिकट जारी किये। चंदन की खुशबू वाले इस डाक टिकट को तैयार करने के लिए इसमें इंग्लैण्ड से आयातित चंदन की खुशबू वाली एक इंक की परत चढ़ाई गई, जिसकी खुशबू लगभग एक साल तक बरकरार रहेगी। चंदन की खुशबू वाले डाक टिकट के बाद 7 फरवरी 2007 को वसन्त पर्व की मादकता के बीच वैलेन्टाईन डे से कुछ दिन पहले ही डाक विभाग ने गुलाब की खुशबू वाले चार डाक टिकट जारी किये। इसके बाद जूही की खुशबू वाले दो डाक टिकट 26 अप्रैल 2008 को डाक विभाग द्वारा जारी किये गये हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि वर्ष 1840 में ब्रिटेन में विश्व का प्रथम डाक टिकट जारी होने के बाद मात्र चार देशों ने ही खुशबूदार डाक टिकट जारी किए। इनमें स्विटजरलैण्ड, थाईलैण्ड व न्यूजीलैण्ड ने क्रमशः चाॅकलेट, गुलाब व जैस्मीन की खुशबू वाले डाक टिकट जारी किए हैं, तो भूटान ने भी खुशबूदार डाक टिकट जारी किए हैं। अब भारत इस श्रेणी में पाँचवां देश बन गया है, जिसने चंदन की खूशबू वाला विश्व का प्रथम डाक टिकट एवं गुलाब व जूही की खूशबू वाले विश्व के द्वितीय डाक टिकट जारी किये हैं।

-कृष्ण कुमार यादव