Monday, October 22, 2012

मुक्तक


मुद्दतों से है भले कंटकों में जिन्दगी
मुझको रूमानी करे रूत गुलाबी आज भी
जोहते ही जोहते इक ज़माना हो गया
डाकिया लाया नहीं खत ज़वाबी आज भी।

यहाँ तक सिर्फ आने में ज़माना बीत जायेगा
उन्हें इक फूल जाने में ज़माना बीत जायेगा
पता करते कि आयी है हमारे प्यार की चिट्ठी
हमें तो डाकख़ाने में ज़माना बीत जायेगा।

किसी ने ख़त मुझे लिक्खा नहीं है
कि चिट्ठी डाकिया देता नहीं है
वो वादा लौटने का कर गये हैं
मगर ऐसा मुझे लगता नहीं है।

कोई मौका नहीं है आशिकी का
गो मौसम आशिकाना लग रहा है
गया है मेरा ख़त, आना है उनका
इसी में इक जमाना लग रहा है।


 -केशव शरण

(केशव शरण का नाम हिंदी-साहित्य में किसी परिचय का मोहताज़ नहीं है. देश की प्राय: अधिकतर प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होने वाले केशव शरण भारतीय डाक विभाग में कार्यरत हैं और सम्प्रति बनारस में पोस्टमास्टर के पद पर कार्यरत हैं. उनसे संपर्क का पता- एस 2/564 सिकरौल, वाराणसी -221002. मो.बा.- 9415295137)

Thursday, October 18, 2012

चिट्ठी: सच या बहाना

मेरी चिट्ठी
उन्हें नहीं मिली
जाने वे सच कह रहे हैं
या कर रहे हैं बहाना

अगर वे सच कह रहे हैं तो
मुझे खुशी है
मैं शुक्रगुजार हूँ डाकखाने का
हालांकि, मुझे एतबार नहीं है
कि उनके नाम लिखी
मेरी चिट्ठी को
डाकखाना गायब करेगा

अगर वह बहाना बना रहे हैं तो
फिर गंभीर बात है
गंभीर बात है कि
मेरी अगंभीर बातें
उन तक पहुँच गयीं।


- केशव शरण

(केशव शरण का नाम हिंदी-साहित्य में किसी परिचय का मोहताज़ नहीं है. देश की प्राय: अधिकतर प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होने वाले केशव शरण भारतीय डाक विभाग में कार्यरत हैं और सम्प्रति बनारस में पोस्टमास्टर के पद पर कार्यरत हैं. उनसे संपर्क का पता- एस 2/564 सिकरौल, वाराणसी -221002. मो.बा.- 9415295137)

Tuesday, October 16, 2012

Postal dept's insurance & saving plans hailed at mela


ALLAHABAD: National Postal Week which began on Monday, October, 15, was celebrated as Postal Life Insurance day. On the occasion, a grand postal life insurance mela was organised in government/semi government offices of Allahabad region. The mela was inaugurated by Director Postal services, Allahabad Region Krishna Kumar Yadav.
 
Addressing the gathering on the occasion, Yadav said Postal Department was serving the public also with savings bank and postal life insurance schemes. Postal life insurance was started with effect from 1 February 1, 1984 for Central Government/State Government officials, Defence personnel, officials of Govt institutions, municipal corporation and boards, government universities, employees of nationalised banks, additional bodies of State Banks of India and Reserve Bank, operational units under Central/State government, UTI, IDBI and employees of state insurance corporation.
 
There are six schemes of Postal Life Insurance such as Suraksha, Santosh, Suvidha, Yugal Suraksha, Sumangal and Children's policy. Rural-Postal Life lnsurance Schemes for the benefit of villagers are called Gram Santosh, Gram Suraksha, Gram Suvidha, Gram Sumangal, Gram Priya and Children's policy. The minimum and maximum age limit of the postal life insurance scheme is fixed between 19 and 55 years, respectively whereas maximum age limit for the Sumangal scheme which matures in 15 years and 20 years are 45 and 40 years, respectively.
 
Discussing benefits of the postal life insurance, he said Government was bound for 100 per cent security of investor's investment, relaxation in Income Tax under section 88, low premium and high bonus, loan benefit on the policies, deposit of premium at any post office in the country and rebate of 1 per cent & 2 per cent on advance premium of 6 months and 12 months, respectively.
 
Yadav said Postal Department had earned more than Rs 2-crore business on the occasion and 150 persons were insured in different schemes of Postal life insurance. Postal department will organise more melas in coming days, he promised.
 

Monday, October 15, 2012

’राष्ट्रीय डाक सप्ताह’ के तहत डाक जीवन बीमा मेलों का आयोजन

राष्ट्रीय डाक सप्ताह के तहत 15 अक्टूबर 2012 को डाक जीवन बीमा दिवस के रूप में मनाया गया। इस दौरान इलाहाबाद परिक्षेत्र के अंतर्गत विभिन्न महत्वपूर्ण सरकारी/अर्द्धसरकारी कार्यालयों में डाक जीवन बीमा मेले का आयोजन किया गया, जिसका शुभारंभ इलाहाबाद प्रधान डाकघर में श्री कृष्ण कुमार यादव, निदेशक डाक सेवायें, इलाहाबाद परिक्षेत्र ने किया।

 इस अवसर पर निदेशक श्री यादव ने बताया कि डाक विभाग पत्रों के वितरण के   साथ-साथ जीवन बीमा के क्षेत्र में भी एक लम्बे समय से कार्यरत रहा है। 1 फरवरी 1884 को आरंभ डाक जीवन बीमा के तहत वर्तमान में केन्द्र व राज्य सरकारों के कर्मचारी, रक्षा कर्मी, सरकारी निकाय द्वारा स्थापित संस्थाओं, सरकार द्वारा स्थापित विश्वविद्यालयों के कर्मचारी, राष्ट्रीयकृत बैंक, एसबीआई की सहायक इकाइयों व रिजर्व बैंक कर्मचारी, केंन्द्र व राज्य सरकारी के अधीन संचालित इकाइयों, निगमों व बोर्डों के कर्मी, यूटीआई, आई डीबीआई जैसे सरकारी नियंत्रण वाले वित्तीय संस्थानों के कर्मी, राज्य बीमा निगम के कर्मचारी पात्र हैं। डाक जीवन बीमा में 6 योजनायें-सुरक्षा, संतोष, सुविधा, युगल सुरक्षा, सुमंगल व चिल्डेªन पालिसी हैं एवं ग्रामीण अंचल में निवास करने वाले निवासियों के लिए ग्रामीण डाक जीवन बीमा के अंतर्गत-ग्राम संतोष, ग्राम सुरक्षा, ग्राम सुविधा, ग्राम सुमंगल, ग्राम प्रिया, एवं चिल्डेªन पाॅलिसी है। उन्होंने आगे बताया कि  बीमा प्रस्तावक की आयु सीमा 19 वर्ष से 55 वर्ष की नियत है, जो कि 15 वर्षीय एवं 20 वर्षीय सुमंगल योजना के लिए अधिकतम सीमा क्रमशः 45 वर्ष एवं 40 वर्ष है।

 डाक जीवन बीमा के अन्तर्गत लाभों की चर्चा करते हुए श्री कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि निवेश की सुरक्षा पर सरकार की गांरटी, धारा 88 के तहत आयकर में छूट, कम प्रीमियम और अधिक बोनस, पाॅलिसी पर लोन की सुविधा, देश के किसी भी डाकघर में प्रीमियम जमा करने की सुविधा और 6 महीने के अग्रिम प्रीमियम पर 1 फीसदी की छूट, 12 माह अग्रिम जमा पर 2 फीसदी की छूट दी जाती है। विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि जमा प्रीमियम पर किसी तरह का किसी प्रकार के एजेन्ट कमीशन का भार प्रस्तावक पर नहीं पड़ता है।
 
 डाक-निदेशक श्री कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि इस दौरान इलाहाबाद परिक्षेत्र में 3 करोड़ रू से अधिक का डाक जीवन बीमा व्यवसाय हुआ और 300 से अधिक लोगों ने अपना बीमा कराया। आने वाले दिनों में भी डाक विभाग के द्वारा मेलों का आयोजन किया जायेगा ।
 

Tuesday, October 9, 2012

'विश्व डाक दिवस' पर उत्कृष्टता हेतु सम्मान

भारतीय डाक विभाग द्वारा 'विश्व डाक दिवस' पर होटल मिलन पैलेस, सिविल लाइन्स में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। प्रवर डाक अधीक्षक, इलाहाबाद मंडल द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम का उद्घाटन मुख्य अतिथि के रूप में श्री अशोक कुमार गुप्ता, पोस्टमास्टर जनरल इलाहाबाद परिक्षेत्र ने किया, जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री कृष्ण कुमार यादव, निदेशक डाक सेवायें, इलाहाबाद परिक्षेत्र ने किया। कार्यक्रम में जहाँ तमाम डाक सेवाओं के बारे में विस्तार से बताया गया वहीं अधिकाधिक राजस्व देने वाले संस्थानों एवं उत्कृष्ट कार्य करने वाले अधिकारियों एवं कर्मचारियों को सम्मानित किया गया।

इस अवसर पर पोस्टमास्टर जनरल श्री अशोक कुमार गुप्ता ने अपने संबोधन में कहा कि व्यवसायिकता के इस दौर में बिना स्वस्थ्य प्रतिस्पर्धा के कोई भी संगठन उन्नति नहीं कर सकता और डाक विभाग भी इस क्षेत्र में तमाम नये कदम उठा रहा है। डाक विभाग जहाँ नित् नई सेवायें लागू कर रहा है, वहीं विभाग ने अपनी परम्परागत छवि को प्रतिस्पर्धा के तहत कारपोरेट इमेज में भी तब्दील करने का प्रयास किया है।

निदेशक डाक सेवायें श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि डाक विभाग अपने ग्राहकों की सेवा के लिए प्रतिबद्ध है और इसके लिए लोगों से संवाद कायम करना बेहद जरूरी है। इस परिप्रेक्ष्य में प्रोजेक्ट एरो के तहत जहांँ विभाग ने कोर सेक्टर पर ध्यान दिया है वहीं स्टाफ को ग्राहकों से अच्छे व्यवहार हेतु भी प्रशिक्षित किया जा रहा है। श्री यादव ने कहा कि एक तरफ विभिन्न कारपोरेट एवं सरकारी व अद्र्व सरकारी विभागों की आवश्यकतानुसार तमाम सेवायें आरम्भ की गई हैं, वहीं बुक नाउ-पे लेटर, बल्क मेल पर छूट, फ्री पिकअप जैसी स्कीमों के तहत डाक सेवाओं को और आकर्षक बनाया गया है। इस अवसर पर डाक सेवाओं से संबंधित कारपोरेट कस्टमर मीट/बिजनेस मीट का भी आयोजन हुआ । विभिन्न प्रीमियम सेवाओं मसलन- स्पीड पोस्ट, एक्सप्रेस पार्सल पोस्ट, बिजनेस पोस्ट, बिल मेल सर्विस, डायरेक्ट पोस्ट, मीडिया पोस्ट, ई-पोस्ट, ई-पेमेण्ट, लाजिस्टिक पोस्ट, फ्री पोस्ट, डाक जीवन बीमा, बचत बैंक सेवायें, फिलेटली इत्यादि के संबंध में जानकरी दी गई।

विश्व डाक दिवस के अवसर पर उन संस्थानों के प्रतिनिधियों का भी सम्मान किया गया, जो कि डाक विभाग को अधिकाधिक व्यवसाय देते हैं। इनमें श्री बी बी सिंह, सचिव, लोक सेवा आयोग, उत्तर प्रदेश, श्री जे पी गर्ग, निदेशक, कर्मचारी चयन आयोग, श्री आर मीना, सदस्य सचिव, रेलवे भर्ती बोर्ड, उत्तर मध्य रेलवे, श्री राम मूर्ति यादव, उप मुख्य कार्मिक अधिकारी, रेलवे भर्ती सेल, इलाहाबाद को पोस्टमास्टर जनरल द्वारा सम्मानित किया गया। इसके अलावा इलाहाबाद परिक्षेत्र में विभिन्न सेवाओं उत्कृष्ट कार्य करने हेतु भी सम्मानित किया गया। इनमें श्री राम नारायन, प्रवर अधीक्षक डाकघर, इलाहाबाद को अधिकतम राजस्व अर्जन हेतु, श्री टी बी सिंह, सीनियर पोस्टमास्टर इलाहाबाद प्रधान डाकघर को अन्तर्राष्ट्रीय धन अंतरण सेवा हेतु, श्री पी के पाठक, डाक निरीक्षक, सैदपुर, गाजीपुर को सर्वश्रेष्ठ डाक जीवन बीमा व्यवसाय हेतु, श्री राम चन्द्र शुक्ल शाखा डाकपाल डेज मेडिकल (टीएसएल उपडाकघर) इलाहाबाद, को ग्रामीण डाक जीवन बीमा हेतु, श्री रजनीश कुमार, मार्केटिंग एक्जीक्यूटिव, इलाहाबाद मंडल को सर्वश्रेष्ठ मार्केटिंग हेतु एवं श्री नन्द लाल, पोस्टमैन, प्रधान डाकघर, इलाहाबाद को सर्वश्रेष्ठ डाकिया हेतु सम्मानित किया गया।

इस अवसर पर उपस्थित जनों का स्वागत श्री राम नारायन, प्रवर अधीक्षक डाकघर, इलाहाबाद, आभार ज्ञापन श्री रहमतुल्लाह एवं कार्यक्रम का संचालन श्री राम नाथ यादव सहायक निदेशक, कार्यालय पोस्टमास्टर जनरल, इलाहाबाद द्वारा किया गया।

Monday, October 8, 2012

Postal department to celebrate National Postal Week

ALLAHABAD: The postal deprtment will observe the World Post Day and 'National Postal Week. Presently various new techniques are invented in Information and Communication revolution but the department of posts has maintained its existence for the distribution and sale of various organisations through its vast network and exchange of new techniques from time to time.
 
Director Postal Services, Allahabad Region Krishna Kumar Yadav, said the World Post Day is celebrated every year on October 9. It marks the establishment of the Universal Postal Union (UPU) in 1874 in the Swiss capital, Bern. It was declared World Post Day by the UPU Congress held in Tokyo, Japan, in 1969.
 
He said that in Allahabad Postal Region and its postal divisions are also celebrating the World Post Day and National Postal Week from October 9 to 15. A programme has been organised by the Department of Posts on the occasion of World Post Day on Tuesday, wherein institutions providing the excellent business revenue to the department will be honoured.
 
During National Postal Week October 10 (Savings Bank Day), October 11 (Mail Day), October 12 (Philately Day) October 13 (Business Development Day) and October 15 (Postal Life Insurance Day) will be organised. Yadav said during this ceremony efforts will not only be made to popularize and revenue realization of the Postal Services but customer meet, visit of post offices by school students, letter writing, quiz for the promotion of hobbies in respect of philately in the youth, savings bank and Postal Life Insurance Melas and honouring of personnel/institutions for providing the best revenue to the department will also be held.
 

यूँ आरंभ हुआ 9 अक्तूबर को 'विश्व डाक दिवस' मनाने का चलन..

’हरकारों’ से लेकर ’कम्प्यूटर’ तक डाक विभाग ने एक लम्बा सफर तय किया है। वर्तमान में सूचना एवं संचार क्रान्ति के चलते तमाम नवीन तकनीकों का आविष्कार हुआ है, पर डाक-विभाग ने समय के साथ नव-तकनीक के प्रवर्तन, अपनी सेवाओं में विविधता एवं अपने व्यापक नेटवर्क के चलते विभिन्न संगठनों के उत्पादों व सेवाओं के वितरण एवं बिक्री हेतु उनसे गठजोड़ करके अपनी निरन्तरता कायम रखी है।

पूरी दुनिया में 9 अक्टूबर को विश्व डाक दिवस के रूप में मनाया जाता है। 9 अक्टूबर 1874 को 'यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन' के गठन हेतु बर्न, स्विटजरलैण्ड में 22 देशों ने एक संधि पर हस्ताक्षर किया था, इसी कारण 9 अक्टूबर को कालान्तर में ‘‘विश्व डाक दिवस‘‘ के रूप में मनाना आरम्भ किया गया। यह संधि 1 जुलाई 1875 को अस्तित्व में आयी, जिसके तहत विभिन्न देशों के मध्य डाक का आदान-प्रदान करने संबंधी रेगुलेसन्स शामिल थे। कालान्तर में 1 अप्रैल 1879 को जनरल पोस्टल यूनियन का नाम परिवर्तित कर यूनीवर्सल पोस्टल यूनियन कर दिया गया। यूनीवर्सल पोस्टल यूनियन का सदस्य बनने वाला भारत प्रथम एशियाई राष्ट्र था, जो कि 1 जुलाई 1876 को इसका सदस्य बना। जनसंख्या और अन्तर्राष्ट्रीय मेल ट्रैफिक के आधार पर उस समय सदस्य राष्ट्रों की 6 श्रेणियां थीं और भारत आरम्भ से ही प्रथम श्रेणी का सदस्य रहा। 1947 में यूनीवर्सल पोस्टल यूनियन, संयुक्त राष्ट्र संघ की एक विशिष्ट एजेंसी बन गई।

वर्ष 1969 में टोकियो, जापान में सम्पन्न यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन, कांग्रेस में सर्वप्रथम 9 अक्टूबर को विश्व डाक दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गयी। यह भी गौरतलब है की विश्व डाक संघ के गठन से पूर्व दुनिया में एक मात्र अन्तर्राष्ट्रीय संगठन रेड क्रास सोसाइटी (1870) था।


- कृष्ण कुमार यादव, निदेशक डाक सेवाएँ, इलाहाबाद परिक्षेत्र, इलाहाबाद.

Saturday, October 6, 2012

डाक सेवाओं में अग्रणी रहा है इलाहाबाद : घोड़ागाड़ी से डाक सेवा, रेलवे डाक सेवा और हवाई डाक सेवा का आरंभ इलाहाबाद में


संचार के क्षेत्र में डाक सेवाओं का प्रमुख स्थान रहा है और इसमें भी इलाहाबाद अग्रणी रहा है। कई सेवाओं को आरंभ करने का श्री इलाहाबाद की धरा को ही जाता है.घोड़ागाड़ी से डाक सेवा, रेलवे डाक सेवा और हवाई डाक सेवा जैसी महत्वपूर्ण सेवाओं का आरंभ इलाहाबाद से ही हुआ है.

6 मई 1840 को ब्रिटेन में विश्व के प्रथम डाक टिकट जारी होने के अगले वर्ष 1841 में इलाहाबाद और कानपुर के मध्य घोड़ा गाड़ी द्वारा डाक सेवा आरम्भ की गई। इलाहाबाद के एक धनी व्यापारी लाला ठंठीमल, जिनका व्यवसाय कानपुर तक विस्तृत था को इस घोड़ा गाड़ी डाक सेवा को आरम्भ करने का श्रेय दिया जाता है, जिन पर अंग्रेजों ने भी अपना भरोसा दिखाया।
जी0टी0 रोड बनने के बाद उसके रास्ते भी पालकी और घोड़ा गाड़ी से डाक आती थी, जिसमें एक घोड़ा 7 किलोमीटर का सफर तय करता था। आधा तोला वजन का एक पैसा किराया तुरन्त भुगतान करना होता था। इलाहाबाद से बिठूर तक डाक का आवागमन गंगा नदी के रास्ते से होता था। डाक हरकारे जंगल से होकर गुजरते थे इसलिए सुरक्षा के लिहाज से कमर में घंटी और हाथ में भाला लिए रहते थे। सन् 1850 में लाला ठंठीमल ने कुछ अंग्रेजों के साथ मिलकर ‘इनलैण्ड ट्रांजिट कम्पनी’ की स्थापना की और इलाहाबाद के बाद कलकत्ता से कानपुर के मध्य घोड़ा गाड़ी डाक व्यवस्थित रूप से आरम्भ किया। अगले वर्षों में इसका विस्तार मेरठ, दिल्ली, आगरा, लखनऊ, बनारस इत्यादि प्रमुख शहरों में भी किया गया। इलाहाबाद की अवस्थिति इन शहरों के मध्य में होने के कारण डाक सेवाओं के विस्तार के लिहाज से इसका महत्वपूर्ण स्थान था। इस प्रकार लाला ठंठीमल को भारत में डाक व्यवस्था में प्रथम कम्पनी स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है। 1854 में डाक सेवाओं के एकीकृत विभाग में तब्दील होने पर इनलैण्ड ट्रांजिट कम्पनी’ का विलय भी इसमें कर दिया गया।

रेलवे डाक सेवा का उदभव भी इलाहाबाद में ही हुआ माना जाता है। रेल सेवा के आरम्भ होने के बाद इलाहाबाद और कानपुर के बीच अखिल भारतीय स्तर पर प्रथम बार रेलवे सार्टिंग सेक्शन की स्थापना 1 मई 1864 को की गई, जो कि कालान्तर में रेलवे डाक सेवा में तब्दील हो गया। आरम्भ में कानपुर की रेलवे डाक सेवा इलाहाबाद से संचालित होती थी, पर 30 अगस्त 1972 को पोस्टमास्टर जनरल, उत्तर प्रदेश के एक आदेश द्वारा ‘ए’ मण्डल इलाहाबाद को विभक्त कर ‘के0पी0’ मण्डल कानपुर का गठन किया गया।

सामरिक रूप से महत्वपूर्ण होने के कारण ब्रिटिश शासन काल से ही अंग्रेजों ने इलाहाबाद में भी संचार साधनों की प्रमुखता पर जोर दिया। इनमें डाक सेवायें सर्वप्रमुख थीं। डाक सेवा का विचार सबसे पहले ब्रिटेन में और हवाई जहाज का विचार सबसे पहले अमेरिका में राइट बंधुओं ने दिया वहीं चिट्ठियों ने विश्व में सबसे पहले भारत में हवाई उड़ान भरी।

 इलाहाबाद को यह भी सौभाग्य प्राप्त है कि प्रथम हवाई डाक सेवा यहीं से आरम्भ हुई। यह ऐतिहासिक घटना लगभग 100 वर्ष पूर्व 18 फरवरी 1911 को इलाहाबाद में हुई। संयोग से उस साल कुंभ का मेला भी लगा था। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार उस दिन एक लाख से अधिक लोगों ने इस घटना को देखा था जब एक विशेष विमान ने शाम को साढ़े पांच बजे यमुना नदी के किनारों से उड़ान भरी और वह नदी को पार करता हुआ 15 किलोमीटर का सफर तय कर नैनी जंक्शन के नजदीक उतरा जो इलाहाबाद के बाहरी इलाके में सेंट्रल जेल के नजदीक था। आयोजन स्थल एक कृषि एवं व्यापार मेला था जो नदी के किनारे लगा था और उसका नाम ‘यूपी एक्जीबिशन’ था। इस प्रदर्शनी में दो उड़ान मशीनों का प्रदर्शन किया गया था। विमान का आयात कुछ ब्रिटिश अधिकारियों ने किया था। इसके कलपुर्जे अलग अलग थे जिन्हें आम लोगों की मौजूदगी में प्रदर्शनी स्थल पर जोड़ा गया। आंकड़ों के अनुसार कर्नल वाई विंधाम ने पहली बार हवाई मार्ग से कुछ मेल बैग भेजने के लिए डाक अधिकारियों से संपर्क किया जिस पर उस समय के डाक प्रमुख ने अपनी सहर्ष स्वीकृति दे दी। मेल बैग पर ‘पहली हवाई डाक’ और ‘उत्तर प्रदेश प्रदर्शनी, इलाहाबाद’ लिखा था। इस पर एक विमान का भी चित्र प्रकाशित किया गया था। इस पर पारंपरिक काली स्याही की जगह मैजेंटा स्याही का उपयोग किया गया था। आयोजक इसके वजन को लेकर बहुत चिंतित थे, जो आसानी से विमान में ले जाया जा सके। प्रत्येक पत्र के वजन को लेकर भी प्रतिबंध लगाया गया था और सावधानीपूर्वक की गई गणना के बाद सिर्फ 6,500 पत्रों को ले जाने की अनुमति दी गई थी। विमान को अपने गंतव्य तक पहुंचने में 13 मिनट का समय लगा। विमान को फ्रेंच पायलट मोनसियर हेनरी पिक्वेट ने उड़ाया।
- कृष्ण कुमार यादव, 
निदेशक डाक सेवाएँ, 
इलाहाबाद परिक्षेत्र, इलाहाबाद.

Friday, October 5, 2012

दो चिट्ठियां...


जीवन की पहली चिट्ठी

मैंने
अपने जीवन की
जो पहली चिट्ठी लिखी
उसे मैं पत्र पेटिका में नहीं डाक सकता था
उसका डाकिया मुझे खुद बनना पड़ा
लेकिन मैं दुनिया का सबसे बे-शऊर डाकिया साबित हुआ
कि उसे हाथ में देने की बजाय
फेंककर पलायित हुआ।


जीवन का आखिरी पत्र

अक्सर
मोबाइल पर
इन्टरनेट पर
सन्देश लिखते हुए
मैं सोचने लगता हूँ कि
मैंने कब लिखा था आखिरी पत्र
अपने जीवन का
और गया था उसे पोस्ट करने
डाकघर.

लगता है
काफी समय गुजर गया है
क्योंकि मुझे कुछ याद नहीं है
यह भी नहीं
कि किसे लिखा था।

- केशव शरण


(केशव शरण का नाम हिंदी-साहित्य में किसी परिचय का मोहताज़ नहीं है. देश की प्राय: अधिकतर प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होने वाले केशव शरण भारतीय डाक विभाग में कार्यरत हैं और सम्प्रति बनारस में पोस्टमास्टर के पद पर कार्यरत हैं. उनसे संपर्क का पता- एस 2/564 सिकरौल, वाराणसी -221002. मो.बा.- 9415295137)

Wednesday, October 3, 2012

जब नील आर्मस्ट्रांग ने डाकघर जाकर लिफाफों पर लगवाई मुहर


डाक-लिफाफे हम अक्सर इस्तेमाल करते हैं, पर कभी उनके मूल्य के बारे में नहीं सोचते. कई बार यह इतने मूल्यवान हो जाते हैं कि आने वाली पीढियां इन्हें सहेज कर रखना चाहती हैं. ऐसा ही कुछेक वाकया प्रसिद्ध चाँद-यात्री नील आर्मस्ट्रांग के साथ भी हुआ. चाँद पर जाने के लिए उड़ान भरने से पहले नील आर्मस्ट्रांग ने सैकड़ों लिफाफों पर हस्ताक्षर कर अपने परिवार को दिया था। उन्होंने सोचा था कि यदि इस अंतरिक्ष यात्रा के दौरान उनकी मौत हो जाती है तो उनका परिवार इन लिफाफों की नीलामी से अर्जित धनराशि से अपना गुजारा कर लेगा। गौरतलब है कि नील आर्मस्ट्रांग धरती के इकलौते उपग्रह पर कदम रखने वाले पहले इनसान थे। हल ही में 25 अगस्त, 2012 को को 82 साल की उम्र में उनका निधन हो गया था।

वस्तुत: नील आर्मस्ट्रांग अंतरिक्ष यात्रा के पहले अपना जीवन बीमा कराना चाहते थे, ताकि किसी भी प्रकार कि अनहोनी से उन्हें धन-सुरक्षा मिल सके । लेकिन उस समय उनका वेतन सिर्फ 17 हजार डाॅलर था, जबकि बीमा का प्रीमियम 50 हजार डाॅलर था। ऐसे में उन्होंने अंतरिक्ष कार्यक्रम के चित्रों वाले सैकड़ो लिफाफों पर हस्ताक्षर करने का नायाब तरीका निकला। उन्होंने अपने साथ जा रहे माइकल कोलिंस और बज एल्ड्रिन से भी इन लिफाफों पर हस्ताक्षर करा लिए थे। वस्तुत: तीनों अंतरिक्ष यात्री चाहते थे कि उनके हस्ताक्षर वाले लिफाफों को ऊंची रकम मिले। इसीलिए तीनो ने खुद डाकघर जाकर इन लिफाफों पर मुहर लगवाई और उन्हें पैक कर दोस्तों को भेजा। इन लिफाफों पर उन खास तारीखों की मुहर लगवाई गई, जो इतिहास में दर्ज होने वाली थीं।

Tuesday, October 2, 2012

गाँधी जी की समृद्ध विरासत के पहरुए डाक-टिकट


विश्व पटल पर महात्मा गाँधी सिर्फ एक नाम नहीं अपितु शान्ति और अहिंसा का प्रतीक है। महात्मा गाँधी के पूर्व भी शान्ति और अहिंसा की अवधारणा फलित थी, परन्तु उन्होंने जिस प्रकार सत्याग्रह एवं शान्ति व अहिंसा के रास्तों पर चलते हुये अंगे्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया, उसका कोई दूसरा उदाहरण विश्व इतिहास में देखने को नहीं मिलता। तभी तो प्रख्यात वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था कि -‘‘हजार साल बाद आने वाली नस्लें इस बात पर मुश्किल से विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस से बना ऐसा कोई इन्सान धरती पर कभी आया था।’’ संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 2007 से गाँधी जयन्ती को ‘विश्व अहिंसा दिवस’ के रूप में मनाये जाने की घोषणा करके शान्ति व अहिंसा के पुजारी महात्मा गाँधी के विचारों की प्रासंगिकता को एक बार पुनः सिद्ध कर दिया है।


महात्मा गाँधी दुनिया के सर्वाधिक लोकप्रिय राजनेताओं और व्यक्तित्व में से हैं। यही कारण है कि प्राय: अधिकतर देशों ने उनके सम्मान में डाक-टिकट जारी किये हैं। देश विदेश के टिकटों में देखें तो गांधी का पूरा जीवन चरित्र पाया जा सकता है। सामान्यतः डाक टिकट एक छोटा सा काग़ज़ का टुकड़ा दिखता है, पर इसका महत्त्व और कीमत दोनों ही इससे काफ़ी ज़्यादा है। डाक टिकट वास्तव में एक नन्हा राजदूत है, जो विभिन्न देशों का भ्रमण करता है एवम् उन्हें अपनी सभ्यता, संस्कृति और विरासत से अवगत कराता है। यह किसी भी राष्ट्र के लोगों, उनकी आस्था व दर्शन, ऐतिहासिकता, संस्कृति, विरासत एवं उनकी आकांक्षाओं व आशाओं का प्रतीक है। ऐसे में डाक-टिकटों पर स्थान पाना गौरव की बात है। यह जानकर कोई आश्चर्य नहीं होगा कि डाक टिकटों की दुनिया में गांधी सबसे ज़्यादा दिखने वाले भारतीय हैं तथा भारत में सर्वाधिक बार डाक-टिकटों पर स्थान पाने वालों में गाँधी जी प्रथम हैं। यहाँ तक कि आज़ाद भारत में वे प्रथम व्यक्ति थे, जिन पर डाक टिकट जारी हुआ। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी अहिंसा के बूते पर आजादी दिलाने में भले ही भारत के हीरो हैं लेकिन डाक टिकटों के मामले में वह विश्व के 104 देशों में सबसे बड़े हीरो हैं। विश्व में अकेले गांधी ही ऐसे लोकप्रिय नेता हैं जिन पर इतने अधिक डाक टिकट जारी होना एक रिकार्ड है। भारत में गांधी जी के डाक टिकट जारी होने से पहले 13 जनवरी 1948 से 18 जनवरी 1948 के बीच जिन दिनों गांधी दंगों को रोकने के लिए उपवास पर बैठे हुए थे, उन दिनों डाक व्यवस्था को प्रचार का माध्यम बना कर दिल्ली और कलकत्ता के डाकघरों से सांप्रदायिक दंगों को रोकने का संदेश मुहरों पर अंकित कर दिया जाने लगा था।

बहुत कम लोगों को पता होगा कि भारत को ग़ुलामी के शिकंजे में कसने वाले ब्रिटेन ने जब पहली दफ़ा किसी महापुरुष पर डाक टिकट निकाला तो वह महात्मा गांधी ही थे। इससे पहले ब्रिटेन में डाक टिकट पर केवल राजा या रानी के ही चित्र छापे जाते थे। गांधी जी पर डाक टिकट जारी करने का फैसला सबसे पहले साल 1948 में लिया गया। बापू श्रृंखला के इन चारों डाक टिकटों को साल 2 अक्टूबर, 1949 में गांधी जी की 80वीं वर्षगांठ पर जारी करने का फैसला लिया गया था, हालांकि इन डाक टिकटों को जारी करने की योजना जनवरी से ही चल रही थी, जब गांधी जी जीवित थे। लेकिन इससे पहले कि टिकटें जारी हो पातीं, 30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी जी की हत्या कर दी गई। तब इन टिकटों को गांधी जी को सम्मान देने के लिए चार विभिन्न दरों की मुद्राओं में विक्रय हेतु राष्ट्र की प्रथम स्वतंत्रता वर्षगाँठ पर 15 अगस्त, 1948 को जारी किया गया। इनके मूल्य डेढ़ आना, साढ़े तीन आना और 12 आना रखा गया था। इन टिकटों की ख़ास बात यह है कि बापू के हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में नाम लिखे हुए सिर्फ़ ये ही टिकट आज तक उपलब्ध हैं। गांधी जी के साथ ‘बा’ यानी कस्तूरबा गांधी को भी उन डाक टिकटों में जगह दी गई है। प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ही पहल करते हुए इन चारों डाक टिकटों पर बापू को डिज़ाइन का हिस्सा बनाया था। इस पूरे घटनाक्रम में दिलचस्प बात यह थी कि ज़िंदगी भर ‘स्वदेशी’ को तवज्जो देने वाले गांधी जी को सम्मानित करने के लिए जारी किए गए इन डाक टिकटों की छपाई स्विट्जरलैंड में हुई थी। इसके बाद से लेकर आज तक किसी भी भारतीय डाक टिकट की छपाई विदेश में नहीं हुई। इनमें से दस रुपए वाली टिकट आम व्यक्ति की पहुंच से बाहर थी। स्वतन्त्रता के बाद सन् 1948 में महात्मा गाँधी पर डेढ़ आना, साढे़ तीन आना, बारह आना और दस रुपये के मूल्यों में जारी डाक टिकटों पर तत्कालीन गर्वनर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने गवर्नमेण्ट हाउस में सरकारी काम में प्रयुक्त करने हेतु ‘सर्विस’ शब्द छपवा दिया था, जिसकी आलोचना के बाद किसी की स्मृति में जारी डाक टिकटों के ऊपर ‘सर्विस’ नहीं छापा जाता। उन टिकटों को तुरन्त नष्ट कर दिया गया। पर इन दो-तीन दिनों में जारी 'सर्विस' छपे चार डाक टिकटों के सेट का मूल्य दुर्लभता के चलते आज तीन लाख रुपये से अधिक है। यह विश्व की बहुत दुर्लभ टिकटें हैं। इनमें से कुछ टिकटें कुछ गणमान्य व्यक्तियों को उपहार के रूप में दे दी गईं, और कुछ दिल्ली के 'राष्ट्रीय डाक टिकट संग्रहालय' को दे दी गईं। इनमें से अधिकतम आठ प्रतियाँ निजी हाथों में हैं, जिनके कारण वे बहुत दुर्लभ और कीमती हो गईं। इनमें से एक टिकट 5 अक्तूबर 2007 को स्विट्ज़रलैण्ड में डेविड फेल्डमैन कंपनी द्वारा की नीलामी में 38,000 यूरो में बिकी।

  डाक-टिकट पर पहले गाँधी जी के लिए बापू शब्द का प्रयोग हुआ था, मगर बाद की टिकटों पर महात्मा गाँधी लिखा जाने लगा। कई देशों ने महात्मा गांधी की जन्म शताब्दी, 125वीं जयंती व भारत की 50वीं स्वतंत्रता वर्षगाँठ पर कई प्रकार के अलग-अलग मूल्यों के डाक टिकट व डाक सामग्रियाँ समय–समय पर जारी की हैं। शांति के मसीहा व सहस्त्राब्दि के नायक के रूप में भी अनेक देशों ने, गांधी जी के चित्रों को आधार बनाकर डाक टिकट व अन्य डाक सामग्रियाँ जारी की हैं। कई देशों ने महात्मा गांधी पर डाक टिकट ही नहीं बल्कि मिनीएचर और सोविनियर शीट्स जारी की। आज इस बात की हैरानी है कि दुनिया के अधिकांश देशों ने बापू पर टिकट जारी कर उन्हें सम्मान दिया, लेकिन पाकिस्तान ने नहीं। शांति के इस दूत की उपेक्षा की ही शायद वजह है कि पाकिस्तान में कभी भी शांति बहाल नहीं हुई।

  भारतवर्ष से बाहर के देशों में लगभग 100 से भी अधिक ने गांधी जी के जीवन से जुडे विभिन्न पहलुओं को केंद्र में रखते हुए उनके जीवन पर आधारित विभिन्न डाक सामग्रियाँ व डाक–टिकट जारी किए हैं। इन देशों में विश्व के सभी महाद्वीपों के देश शामिल हैं। भारत के अतिरिक्त संयुक्त राज्य अमरीका वह पहला देश है जिसने महात्मा गांधी के सम्मानस्वरूप सबसे पहले डाक टिकट जारी किए। अमेरिका ने 26 जनवरी, 1961 को महात्मा गांधी पर डाक टिकट जारी किए थे। अमेरिका ने यह टिकट 'चैंपियंस ऑफ़ लिबर्टी सीरीज' के तहत जारी किए थे। संयुक्त राज्य अमरीका के इन टिकटों पर अंकित चित्र भी एक भारतीय चित्रकार 'आर.एल. लेखी' द्वारा उपलब्ध कराए गए और इन्हें दो विभिन्न मुद्राओं में विक्रय के लिए जारी किया गया। चार सेंट और आठ सेंट के मूल्य के इन दो डाक टिकटों की 12,00,00,000 और 4,00,00,000 प्रतियाँ जारी की गई थीं। यह भी एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि आज तक महात्मा गांधी के सम्मानस्वरूप जारी किए गए टिकटों की इतनी बडी संख्या पहले कभी प्रकाशित नहीं की गई। कांगो नामक अफ़्रीकी गणराज्य द्वारा जारी डाक टिकट किसी भी अफ़्रीकी देश द्वारा गांधी जी के स्मृतिस्वरूप जारी किया गया पहला डाक टिकट था। विश्व के सभी देशों में, भारत और संयुक्त राज्य अमरीका के बाद, महात्मा गांधी पर टिकट जारी करने वाला वह तीसरा गणराज्य था।

  राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर सर्वाधिक डाक टिकट उनके जन्म शताब्दी वर्ष 1969 में जारी हुए थे। उस वर्ष विश्व के 40 देशों ने उन पर 70 से अधिक डाक टिकट जारी किए थे। गांधी पर साउथ अफ्रीका ने सात, एसेडला ने नौ, भूटान ने 10, यूएसए व डोमिनिका ने छह-छह, ब्राजील, ग्रेट ब्रिटेन, सोमालिया व तनजानिया ने तीन-तीन, जर्मनी व जाम्बिया ने चार-चार और रूस ने दो डाक टिकट जारी किए।  'ब्रिटेन' द्वारा जारी किया गया एक टिकट किसी भी विदेशी व्यक्ति पर जारी किया गया ब्रिटेन का पहला डाक टिकट था। ब्रिटेन सरकार द्वारा गांधी जी को यह सम्मान देने पर वहां के संसद में काफ़ी हो हल्ला भी हुआ था। ब्रिटेन के कुछ सांसदों को सरकार का यह फैसला ज़रा भी अच्छा नहीं लगा था। उन्होंने कहा कि जिस आदमी के कारण भारत में ब्रिटेन साम्राज्य का अंत हुआ उसे सम्मान देने का क्या मतलब है? लेकिन इन सबके बाद भी भारतीय मूल के ब्रिटिश नागरिक 'बिमन मलिक' ने गांधी जी पर डाक टिकट डिजाइन किया, जिसे ब्रिटिश सरकार ने जारी किया था। साल 1972 में कोलकाता में गांधी जी पर जारी किए गए डाक टिकटों की एक अंतर्राष्ट्रीय टिकटों की प्रदर्शनी में इसी टिकट को सबसे बेहतरीन टिकट का पुरस्कार मिला था। इसके साथ ही एक प्रथम दिवस कवर भी जारी किया गया था, जिस पर लाल रंग से 'चरखे' की आकृति बनाई गई थी।

मॉरिशस ने 1969 में गांधी जी की स्वर्ण जयंती के अवसर पर 6 टिकटों की एक सुन्दर सामूहिका जारी की थी। इन टिकटों में गांधी जी की छ: विभिन्न मुद्राओं को लिया गया है। मॉरिशस में समूह के रूप में जारी किया जाने वाला यह पहला टिकट था। 6 टिकटों के इस सामूहिक टिकट के हाशिये पर पेंसिल से भारत के ग्रामीण परिवेश के अनेक सुंदर दृश्य और सांस्कृतिक व राजनीतिक महत्त्व के छोटे-बडे अनेक दृश्यों को बड़ी सुंदरता के साथ अंकित किया गया है। 1896 में उनके जोहान्सबर्ग के कार्यालय में खींचे गए एक चित्र को 'भारत, दक्षिण अफ़्रीका, गुयाना, मार्शल द्वीप और स्कॉटलैंड' सहित कई देशों ने अपने डाक टिकटों का विषय बनाया है। मार्शल द्वीप के इस टिकट में गांधी जी को वहाँ के मजदूरों के हितों के लिए आंदोलन करते हुए दिखाया गया है। रूस अपने बड़े आकार के सुंदर डाक टिकटों के कारण पूरे विश्व में जाना जाता है। उज़बेकिस्तान सरकार की ओर से जारी किए गए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से संबंधित 25 डाक टिकटों की सीरीज को भी शामिल किया है, जिनमें महात्मा गांधी के बचपन से लेकर उनके जीवन से संबंधित विभिन्न महत्त्वपूर्ण घटनाओं को चित्रों के माध्यम से दर्शाया गया है। इसी तरह के 'सेंटा आईसलैंड' नामक देश के द्वारा जारी किये चार डाक टिकटों का सेट भी गांधी संग्रहालय में अभी शामिल हुआ है। इसमें रिफ़्लैक्शन तकनीक के द्वारा महात्मा गांधी का चित्र एक कोण से तथा दूसरे कोण से महात्मा गांधी के साजो-सामान को अंकित किया गया है। तुर्क़मेनिस्तान 1997 में एक टिकट जारी किया जिसमें भारत की भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी दिखाया गया है। टिकट के कलाकार ने इंदिरा जी को महात्मा गांधी की पुत्री समझ कर इस टिकट में साथ–साथ दिखाया। बाद में पता चलने पर भी टिकट को वैसे ही रहने दिया गया। यह टिकट भारत की स्वतंत्रता के 50 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में प्रकाशित किया गया था।

गांबिया के टिकट में गांधी जी को उनकी सुप्रसिद्ध गांधी टोपी में देखा जा सकता है। यह विश्व का एकमात्र ऐसा टिकट है जिसमें गांधी जी ने यह टोपी पहनी है। इस प्रकार डाक टिकटों के बारे में जान कर संपूर्ण विश्व में महात्मा गांधी के प्रति सम्मान व आदर के भाव को आसानी से समझा जा सकता है। भूटान द्वारा जारी प्लास्टिक का डाक टिकट, माइक्रोनेसिया का 'लीडर ऑफ़ ट्वैल्थ सेंचुरी डाक टिकट', मानवाधिकार घोषणा की चालीसवीं वर्षगाँठ पर डोमेनिका का गाँधी टिकट, जिसमें गाँधी जी को 'मार्टिन लूथर किंग, एल्बर्ट आइंस्टीन और रूज़वेल्ट के साथ दिखाया गया है। दक्षिण अमेरिका का 10 टिकटों का सेट जिसमें नेहरू, गाँधी और पटेल शामिल हैं। 1979 में भारत में जारी किया गये डाक-टिकट में बापू को बच्चे से स्नेह करते हुए दर्शाया गया है। यह चित्र महात्मा गांधी का बच्चों के प्रति प्रेम को दर्शाता है।साल 1978 में गांधी जी की 30वीं पुण्य तिथि के अवसर पर 'माली' (पश्चिमी अफ़्रीका) ने डाक टिकट जारी किया। इसके 10 साल बाद 1988 में श्रीलंका ने भी गांधी जी पर डाक टिकट जारी किया।

कई देशों ने उनकी 50वीं पुण्यतिथि पर भी डाक टिकट जारी किए। 20 जुलाई 1997 को शिकागो सरकार ने एक पोस्टमार्क भी जारी किया। यह तीसरा मौक़ा था जब गांधी जी के नाम पर अमेरिका में पोस्टमार्क जारी किया गया। साल 1972 में ब्राजील और 1978, 1986 में जर्मनी ने भी गांधी जी पर डाक टिकट जारी किए थे।भारत की स्वतंत्रता की 50वीं वर्षगांठ के मौक़े पर गांधी जी फिर से डाक टिकटों पर छा गए। इस मौक़े पर तुर्क़मेनिस्तान, वेनेज़ुएला, भूटान और क्यूबा ने भारत को सम्मानित करने के लिए गांधी जी पर डाक टिकट जारी किए। ऐश्वर्या राय के साथ महात्मा गांधी का कोई मेल हो सकता है यह सोचना अटपटा लगता है, लेकिन सन् 2008 में दक्षिण अफ्रीका के द्वीपीय देश गिनी ने गांधी जी पर जो डाक टिकट जारी किया है, उसकी मिनियेचर शीट में पृष्ठभूमि में ऐश्वर्या राय है और आमुख पर महात्मा गांधी पं. जवाहर लाल नेहरू से बतियाते दिख रहे है। महात्मा गांधी का एक और विचित्र प्रस्तुतीकरण अफ़्रीका महाद्वीप के ही देश बरुंडी ने किया। यहां की सरकार ने 2007 में महात्मा गांधी पर डाक टिकट जारी करने का निश्चय किया। इसके लिए जो मिनियेचर शीट बनाई गई उसमें परिवार सहित गांधी जी को दिखाने के चक्कर में महात्मा गांधी के साथ इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और राहुल गांधी के चित्र शामिल किये गये है।


अब तक 104 देश गांधी जी पर 300 से अधिक डाक टिकट व स्पेशल कवर निकाल चुके हैं। भारत में गांधी जी पर 1948 में पाँच, 1969 में चार, 1973 में नेहरू जी के साथ, 1979 में एक बच्ची के साथ, 1980 में डांडी मार्च पर एक डाक टिकट जारी हुआ था। इसके बाद 1992 में भारत छोड़ो आंदोलन पर दो, 1995 में भारत-दक्षिण अफ्रीका पर दो, 1998 में महात्मा गांधी के 50वें निर्वाण दिवस पर चार और 2001 में महात्मा गांधी मिलिनियम पर दो डाक टिकट जारी किए गए। इनके अलावा अब तक 15 सामान्य डाक टिकट व 200 से अधिक विशेष आवरण भी जारी हो चुके हैं।
 
  (आज गाँधी जयंती है. महात्मा गाँधी जी के सिद्धांतों और आदर्शों से प्रभावित होकर दुनिया के अधिकतर राष्ट्रों ने उन पर स्मारक डाक-टिकट जारी किये हैं. यहाँ तक कि भारत में भी सबसे ज्यादा डाक-टिकट व्यक्तित्व के रूप में गाँधी जी पर ही जारी हुए हैं ...जयंती पर शत-शत नमन !!)
 
-- कृष्ण कुमार यादव