Monday, October 22, 2012

मुक्तक


मुद्दतों से है भले कंटकों में जिन्दगी
मुझको रूमानी करे रूत गुलाबी आज भी
जोहते ही जोहते इक ज़माना हो गया
डाकिया लाया नहीं खत ज़वाबी आज भी।

यहाँ तक सिर्फ आने में ज़माना बीत जायेगा
उन्हें इक फूल जाने में ज़माना बीत जायेगा
पता करते कि आयी है हमारे प्यार की चिट्ठी
हमें तो डाकख़ाने में ज़माना बीत जायेगा।

किसी ने ख़त मुझे लिक्खा नहीं है
कि चिट्ठी डाकिया देता नहीं है
वो वादा लौटने का कर गये हैं
मगर ऐसा मुझे लगता नहीं है।

कोई मौका नहीं है आशिकी का
गो मौसम आशिकाना लग रहा है
गया है मेरा ख़त, आना है उनका
इसी में इक जमाना लग रहा है।


 -केशव शरण

(केशव शरण का नाम हिंदी-साहित्य में किसी परिचय का मोहताज़ नहीं है. देश की प्राय: अधिकतर प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होने वाले केशव शरण भारतीय डाक विभाग में कार्यरत हैं और सम्प्रति बनारस में पोस्टमास्टर के पद पर कार्यरत हैं. उनसे संपर्क का पता- एस 2/564 सिकरौल, वाराणसी -221002. मो.बा.- 9415295137)

1 comment:

Shahroz said...

बेहद खूबसूरत मुक्तक..केशव शरण जी को बधाइयाँ.