Sunday, March 23, 2014

जब जेल से लिखा भगत सिंह ने पिताजी को पत्र

23 मार्च : आज ही के दिन  भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने देश की आजादी की ख़ातिर हँसते-हँसते फाँसी का फंदा चूम लिया था। उनकी शहादत रंग रंग लाई और देश आजाद हुआ।  पर किसने सोचा था कि यही आजाद देश उन्हें 'शहीद' का दर्जा तक नहीं दे पाएगा। आज भी किताबों में इन्हें उग्रवादी का दर्जा ही दिया जाता है। बहरी अंग्रेज सरकार को तो उन्होंने धमाकों से दहला कर अपनी आवाज़ सुना दी, पर आज उनकी आवाज़ कौन सुनेगा ?? .... खैर, सरकारी दस्तावेजों का क्या, आम जन की निगाह में तो ये सदैव शहीद क्रन्तिकारी ही बने रहेंगे।  आज इस दिन विशेष पर उन तीन महान आत्माओं को पुण्य श्रद्धांजलि और शत-शत नमन !!

यहाँ पर अमर शहीद सरदार भगत सिंह द्वारा अपने पिता को लिखे अंतिम पत्र को  पढ़कर उनके विचारों और मनोस्थिति को समझा जा सकता है -

पूज्य पिताजी,

मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि आपने स्पेशल ट्रिब्यूनल को मेरे बचाव के लिए प्रार्थना पत्र भेजा है। यह समाचार मेरे लिए इतना दु:खदायी था कि मैं इसे शांत रहकर सह नहीं सकता। इस समाचार ने मेरे हृदय की सारी शांति समाप्त कर दी। मेरी समझ में नहीं आता कि वर्तमान स्थिति में आप इस विषय पर किस प्रकार ऐसा प्रार्थना पत्र दे सकते हैं ?

आपके बेटा होने के नाते मैं आपकी भावनाओं एवं इच्छाओं का पूरा सम्मान करता हूं। परन्तु इसके साथ ही मैं समझता हूं कि आपको मेरे साथ परामर्श किए बिना मेरे विषय में कोई प्रार्थना पत्र देने का अधिकार न था। आप जानते हैं कि राजनीतिक क्षेत्र में मेरे विचार आपसे सर्वथा भिन्न है। मैं आपकी सहमति या असहमति का विचार किए बिना ही सदैव स्वतंत्रतापूर्वक कार्य करता हूं। मैंने कभी अपने बचाव के लिए स्पष्टीकरण देने की इच्छा प्रकट नहीं की और न मैंने कभी इस पर गंभीरतापूर्वक विचार ही किया था। यह बात गलत दृष्टिकोण का परिणाम थी या मेरे पास इन कार्यों के प्रमाण में उपस्थित करने के लिए कोई तर्क न था यह एक ऐसी बात है, जिस पर इस समय विचार नहीं किया जा सकता।

आप जानते हैं कि इस मुकदमें में हम एक निश्चित नीति पर चल रहे हैं। मेरा प्रत्येक कार्य उस नीति से मेरे सिध्दांतों से एवं हमारे कार्यक्रम से सामंजस्य रहते हुए होना चाहिए। आज परिस्थिति सर्वथा भिन्न है, परन्तु यदि परिस्थिति इसके अतिरिक्त कुछ और भी होती तो मैं अंतिम व्यक्ति होता जो अपना बचाव  उपस्थित करता। इस सारे मुकदमे में मेरे सामने एक ही विचार था और वह कि यह जानते हुए भी हमारे विरुध्द भयानक आरोप पत्र लगाए गए हैं। हम उस ओर से पूर्णतया अवहेलना की वृत्ति बनाए रखें। मेरा यह दृष्टिकोण रहा है कि समस्त राजनीतिक कार्यकर्ताओं को ऐसी दशा में अदालत की अवहेलना और उपेक्षा दिखानी चाहिए और उनको जो कठोर दण्ड दिया जाए, वह उन्हें हंसते-हंसते सहना चाहिए। इस पूरे मुकदमे के बीच हमारी नीति इस सिध्दांत पर आधारित हैं। हम ऐसा करने में सफल हुए हैं या नहीं, इसका निर्णय, करना हमारा काम नहीं है। हां, हम स्वार्थपरता को छोड़कर अपना काम करते रहे हैं।

वायसराय ने लाहौर षडयंत्र केस आर्डिनेस जारी करते हुए कहा था, इस षडयंत्र के अपराधी शांति सुव्यवस्था एवं कानून को समाप्त करने का प्रयत्न कर रहे थे। इससे जो वातावरण उत्पन्न हुआ, उसने हमें यह अवसर दिया कि हम जनता के समक्ष अपनी बात को उपस्थित करें। इस बात पर विभिन्न दृष्टिकोण हो सकते हैं। मगर इतना मूल्यवान नहीं हैं, जितना आप समझते हैं। कम-से-कम मेरे लिए इस जांच का महत्व नहीं है कि इसे सिध्दांतों की अमूल्य निधि बलिदान करके बचाया जाय हमारे साथियों ने सहमति नीति अपनायी है और हम एक-दूसरे के साथ अंतिम दम तक खड़े रहेंगे। हमें इस बात की चिंता नहीं है कि हमें व्यक्तिगत रूप से इस निश्चित का कितना मूल्य चुकाना पड़ता है। 

पिताजी, मैं बड़ी चिन्ता अनुभव कर रहा हूं। मुझे डर है कि आप पर दोष लगाते हुए इससे भी अधिक इस कार्य की निन्दा करते हुये मैं कहीं सभ्यता की सीमा न लांघ जाऊं तथा मेरे शब्द अधिक कठोर न हो जाए। फिर भी मैं स्पष्ट शब्दों में इतनी बातें अवश्य कहूंगा कि कोई दूसरा व्यक्ति मेरे प्रति इस प्रकार का कार्य करता तो मैं उसे देशद्रोही से कुछ कम न समझता, परन्तु आपके लिए मैं यह बात नहीं कह सकता। बस, इतना ही कहूंगा कि यह कम कमजोरी थी, निम्न कोटि की मानसिक दुर्बलता। यह एक ऐसा समय था जब हम सबकी परीक्षा हो रही थी। पिताजी, मैं यह कहना चाहता हं कि आप इस परीक्षा में असफल रहे।

- सरदार भगत सिंह 

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