Sunday, August 17, 2014

पोस्टकार्ड पर ही उकेर दिया पूरा सुंदर काण्ड

पोस्टकार्ड का नाम सुनते ही मन में चिट्ठियां तैरने लगती हैं।  इसे काम शब्दों में खुले संवाद के तौर पर देखा जाता है। आखिर,  इस पोस्टकार्ड पर कितनी लाइनें लिखी जा सकती हैं। बमुश्किल 20, 25, या अधिक से अधिक 50। इन्हें पढ़ने में पांच, सात या फिर 10 मिनट से ज्यादा नहीं लगेंगे। पर यहाँ तो इसका एक अलग ही प्रयोग हुआ और एक महिला ने  पोस्टकार्ड पर रामचरित मानस के पूरे सुंदरकांड को ही उकेर दिया । इतना ही नहीं फिर भी जगह बच गई तो हनुमान चालीसा, हनुमानाष्टक भी लिख डाला। यह अद्भुत कारनामा कर दिखाया है ज्ञानपुर (भदोही) स्थित देवनाथपुर की सुप्रिया ने। हालांकि विवाह के बाद गिनीज बुक आफ व‌र्ल्ड रिकार्ड में नाम शामिल कराने की उसकी हसरत अभी अधूरी है।

आजमगढ़ निवासी गुलाब चंद बरनवाल की पुत्री सुप्रिया शुरू से ही होनहार थी। हमेशा कुछ अलग करने की ललक उसे बचपन से ही था। स्नातक की पढ़ाई करते समय ही छोटे-छोटे अक्षरों में लिखने के अभ्यास का जुनून सवार हुआ। वह पढ़ाई के दौरान ही कई धार्मिक किताबों को कम से कम जगह में अधिक शब्दों को लिख रही थी। उसके इस हुनर को देख साथी भी दांतों तले अंगुल दबाते थे। इसी बीच उसकी शादी देवनाथपुर निवासी अंजनी कुमार से हो गई। ससुराल आने के बाद सर्व प्रथम उसने पोस्टकार्ड पर दुर्गा चालीसा लिखने का काम किया। धीरे-धीरे उसका उत्साह लिखने को लेकर बढ़ने लगा। गिनीज बुक आफ व‌र्ल्ड रिकार्ड में नाम शामिल कराने का जज्बा लेकर उसने जुलाई 2004 में एक ही पोस्टकार्ड पर सुंदरकांड सहित हनुमान चालीसा, संकटमोचन हनुमानाष्टक लिख दी। हकीकत तो यह है कि इन अक्षरों को बगैर माइक्रोस्कोप नहीं पढ़ा जा सकता है। इसके बाद उसने 10 दिन में मानस के किष्किंधाकाण्ड को भी कलमबद्ध किया है।

 बकौल सुप्रिया, शुरू से ही कुछ अलग करने का जज्बा न जाने कहां से मिल गया था। लोगों ने प्रोत्साहित भी किया। सुंदरकांड पोस्टकार्ड पर लिखने का जज्बा लोगों के उत्साह बढ़ाने से ही मिला। अब समय नहीं मिल पाता है लेकिन इन सबके बीच कुछ अलग करने की ललक में कोई कमी नहीं है।

परिवार में व्यस्तता के कारण व‌र्ल्ड रिकार्ड में नाम शामिल कराने की उसकी ख्वाहिश पूरी नहीं हो सकी। सुप्रिया को अब बच्चों की पढ़ाई आदि कार्यो में ही अधिक समय लग जाता है। पोस्टकार्ड पर छोटे-छोटे अक्षरों में लिखने के लिए एकाग्र चित व समय चाहिए। ऐसे में जो माहौल पहले था वह अब नहीं मिल पा रहा है।

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