Thursday, April 2, 2009

एस. एम. एस.



अब नहीं लिखते वो ख़त 
करने लगे हैं एस. एम.एस. 
तोड़-मरोड़ कर लिखे शब्दों के साथ 
करते हैं खुशी का इजहार 
मिटा देता है हर नया एस.एम. एस. 
पिछले एस.एम. एस. का वजूद 
एस.एम. एस. के साथ ही 
शब्द छोटे होते गए 
भावनाएं सिमटती गई 
खो गई सहेज कर रखने की परम्परा 
लघु होता गया सब कुछ 
रिश्तों की क़द्र का अहसास भी !! 

(युवा रचनाकार आकांक्षा जी की यह कविता ''दैनिक जागरण'' के साहित्यिक 'पुनर्नवा' पृष्ठ पर 29 सितम्बर 2006 को प्रकाशित हुयी थी. एस.एम.एस. के बहाने दरकती भावनाओं पर यह कविता बखूबी प्रकाश डालती है. इसे हम यहाँ पर साभार प्रकाशित कर रहे हैं। आकांक्षा जी की अन्य रचनाएँ आप उनके ब्लॉग "शब्द-शिखर" http://shabdshikhar.blogspot.com/ पर पढ़ सकते हैं.)

5 comments:

  1. SMS कविता अज के समाज का चेहरा दिखाती है. यह सही है की SMS के साथ ही भावनाएं भी सिमटती गयीं और रिश्ते भी..पर इलेक्ट्रॉनिक दौर में भावनाओं का कितना मोल बचा है, यह भी एक बहस का विषय है?

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  2. खतों की बात ही कुछ और है...मेल और समस सूचना दे सकते हैं, संवेदना और भाव नहीं.

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  3. लघु होता गया सब कुछ
    रिश्तों की क़द्र का अहसास भी।
    ....बहुत सच लिखा आपने. उम्दा कविता और संजीदगी से भरे भाव.

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  4. मानवीय भावनाओं को छूती अति-सुन्दर छोटी सी, पर प्यारी कविता.

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  5. मिटा देता है हर नया एस. एम. एस.
    पिछले एस. एम. एस. का वजूद
    एस. एम. एस. के साथ ही
    शब्द छोटे होते गए
    भावनाएं सिमटती गई
    खो गई सहेज कर रखने की परम्परा.......Behad bariki se likhi kavita hai..Badhai !!

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