डाक टिकट संग्रह केवल एक शौक ही नहीं बल्कि एक ज्ञानवर्द्धक व लाभप्रद मनोरंजन भी है। सामान्यतः डाक टिकट एक छोटा सा कागज का टुकड़ा दिखता है, पर इसका महत्व और कीमत दोनों ही इससे काफी ज्यादा है। डाक टिकट किसी भी राष्ट्र की सभ्यता, संस्कृति एवं विरासत के प्रतिबिम्ब हैं जिसके माध्यम से वहाँ के इतिहास, कला, विज्ञान, व्यक्तित्व, वनस्पति, जीव-जन्तु, राजनयिक सम्बन्ध एवं जनजीवन से जुडे़ विभिन्न पहलुओं की जानकारी मिलती है। मन को मोह लेने वाली जीवन शक्ति से भरपूर डाक टिकटों का संकलन लोगों के सांस्कृतिक लगाव, विविधता एवं सुरूचिपूर्ण चयन का भी परिचायक है। रंग-बिरंगे डाक टिकटों का संग्रह करने वाले लोग जहाँ इस शौक के माध्यम से परस्पर मित्रता में बँधकर सम्बन्धों को नया आयाम देते हैं वहीं इसके व्यवहारिक पहलुओं का भी बखूबी इस्तेमाल करते हैं। मसलन रंग-बिरंगे टिकटों से जहाँ खूबसूरत ग्रीटिंग कार्ड बनाये जा सकते हैं वहीं इनकी खूबसूरती को फ्रेम में भी कैद किया जा सकता है। बचपन से ही बच्चों को फिलेटली के प्रति उत्साहित कर उनको अपनी संस्कृति, विरासत एवम् जनजीवन से जुड़े अन्य पहलुओं के बारे में मनोरंजक रूप से बताया जा सकता है।
डाक-टिकटों के संकलन का सबसे आसान तरीका ‘फिलेटलिक जमा खाता योजना’ है। जिसके तहत न्यूनतम रूपये 200/- जमा करके खाता खोला जा सकता है और भारतीय डाक विभाग देय मूल्य के बराबर रंगीन डाक टिकट, प्रथम दिवस आवरण और विवरणिका खाताधारक के पते पर हर माह बिना किसी अतिरिक्त मूल्य के पहुँचाता है। अपने किसी खास रिश्तेदार या मित्र को सरप्राइज गिट देने के लिए भी फिलेटलिक जमा खाता एक अनूठी चीज है और घर बैठे-बैठे खूबसूरत डाक-टिकट पाने वाला वह रिश्तेदार/दोस्त भी अचरज में पड़ जायेगा कि उस पर इतनी खूबसूरत मेहरबानी करने वाला शख्स कौन हो सकता है? इसके अलावा डाक विभाग वर्ष भर में जारी सभी टिकटों अथवा किसी थीम विशेष के डाक-टिकटों को समेटकर एक विशेष ‘स्टैम्प कलेक्टर्स पैक’ जारी करता है जो आज की विविधतापूर्ण दुनिया में एक अनूठा उपहार भी हो सकता है। और तो और, डाक-विभाग द्वारा सन् 1999 से प्रति वर्ष आयोजित ‘डाक टिकट डिजाइन प्रतियोगिता’ के विजेता की डिजाइन को अगले बाल-दिवस पर डाक-टिकट के रूप में जारी किया जाता है। इसी प्रकार 1998 से भारतीय डाक द्वारा आयोजित ‘डाक टिकट लोकप्रियता मतदान’ में प्रति वर्ष भाग लेकर सर्वोत्तम डाक-टिकटों का चुनाव किया जा सकता है।
फिलेटली को यूँ ही शौकों का राजा नहीं कहा जाता, वस्तुतः यह चीज ही ऐसी है। एक तरफ फिलेटली के माध्यम से अपनी सभ्यता और संस्कृति के गुजरे वक्त को आईने में देखा जा सकता है, वहीं इस नन्हें राजदूत का हाथ पकड़ कर नित नई-नई बातें भी सीखने को मिलती हैं। निश्चिततः आज के व्यस्ततम जीवन एवम् प्रतिस्पर्धात्मक युग में फिलेटली से बढ़कर कोई भी रोचक और ज्ञानवर्द्धक शौक नहीं हो सकता। व्यक्तित्व परिमार्जन के साथ-साथ यह ज्ञान के भण्डार में भी वृद्धि करता है। संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति फ्रेंकलिन डी0 रूजवेल्ट ने डाक-टिकट संग्रह के सम्बन्ध में कहा था- “The best thing about stamp collecting is that the enthusiasm which it arouses in youth increases as the years pass. It dispels boredom, enlarges our vision, broadens our knowledge and in innumerable ways enriches our life. I recommend stamp collecting because I really believe that it makes one a better citizen.”
Rochak jankari.
ReplyDeleteएक तरफ फिलेटली के माध्यम से अपनी सभ्यता और संस्कृति के गुजरे वक्त को आईने में देखा जा सकता है, वहीं इस नन्हें राजदूत का हाथ पकड़ कर नित नई-नई बातें भी सीखने को मिलती हैं।...Philately ko apne bakhubi focus kiya hai..badhai.
ReplyDeleteडाक-टिकटों के संकलन का सबसे आसान तरीका ‘फिलेटलिक जमा खाता योजना’ है। जिसके तहत न्यूनतम रूपये 200/- जमा करके खाता खोला जा सकता है...main to chala Post Office.
ReplyDeleteहमेशा की तरह उम्दा जानकारी दी है आपने ,धन्यवाद ज्ञानवर्धन हेतु .
ReplyDeleteडाक टिकट किसी भी राष्ट्र की सभ्यता, संस्कृति एवं विरासत के प्रतिबिम्ब हैं जिसके माध्यम से वहाँ के इतिहास, कला, विज्ञान, व्यक्तित्व, वनस्पति, जीव-जन्तु, राजनयिक सम्बन्ध एवं जनजीवन से जुडे़ विभिन्न पहलुओं की जानकारी मिलती है। ....Nice one.
ReplyDeleteएक ज्ञानवर्धक जानकारी के लिये बहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteBahut hi sundar jaankari di aapne. Ham ne bhi jo gyan arjit kiya bachpan se, in daak tikaton ke madhyam se hi. Is shoul ko protsahit kiya jaana chahiye.
ReplyDeletebahut sari jankariyan hain dak se sambandhit.Kaphi upayogi hai aapka blog.Bhavishya mein iski jaroorat rahegi.Bhaut Bahut dhanyawad.
ReplyDeleteNavnit Nirav
उम्दा जानकारी देने का आभार.
ReplyDeleteचन्द्र मोहन गुप्त
बहुत रोचक और उम्दा जानकारी!!
ReplyDeleteआपने ब्लॉग पर आने को कहा ..मैं पहले भी आई हूँ ..पर टिप्पणी नही की होगी शायद ..आप सराहनीय कार्य कर रहे हैं, जानकारी का और मेरे ब्लॉग में आने के लिए बहुत धन्यवाद.
ReplyDeleteधन्यवाद डाकिया बाबू।
ReplyDeleteआपने बहुत अच्छी जानकारी दी।
यादव जी नमस्कार...मुझे बेहद अफ़सोस है की मैं आपके ब्लॉग पर इतनी देर से पहुंचा...चलिए देर आये दुरुस्त आये...डाक टिकटों पर भी ब्लॉग हो सकता है और भी इतना सुन्दर और ज्ञान वर्धक ये यहीं आ कर जाना...इस के लिए आपकी जितनी प्रशंशा की जाए कम है...इतनी sari पठनीय सामग्री है यहाँ की एक दिन में पढना संभव नहीं, अब जब पहुँच गया हूँ यहाँ तो इत्मीनान से पढ़ कर ही jaunga....एक बार आपको इस vilakshan kaary के लिए badhaaii देता हूँ...
ReplyDeleteneeraj
Hamesha ki tarah acchi jankari...
ReplyDeleteapke blog ke baare main hindustan ke editorial main lekh bhi padha tha "ravish kumar" dwara....
...bahut pehle ki baat hai...
...badhai !!
ज्ञानवर्धक जानकारी के लिये बहुत बहुत धन्यवाद
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