Thursday, October 22, 2009
2009 ईसा पूर्व में लिखा गया दुनिया का पहला पत्र
हममें से हर किसी ने अपने जीवन में किसी न किसी रूप में पत्र लिखा होगा। पत्रों का अपना एक भरा-पूरा संसार है। दुनिया की तमाम मशहूर शख्सियतों ने पत्र लिखे हैं- फिर चाहे वह नेपोलियन हों, अब्राहम लिंकन, क्रामवेल, बिस्मार्क या बर्नाड शा हों। महात्मा गाँधी तो रोज पत्र लिखा करते थे. अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा को आज भी रोज ४०,०० से ज्यादा पत्र प्राप्त होते हैं.आज ये पत्र एक धरोहर बन चुके हैं। ऐसे में यह जानना अचरज भरा लगेगा कि दुनिया का सबसे पुराना पत्र बेबीलोन के खंडहरों से मिला था, जो कि मूलत: एक प्रेम-पत्र था. बेबीलोन की किसी युवती का प्रेमी अपनी भावनाओं को समेटकर उससे जब अपने दिल की बात कहने बेबीलोन तक पहुँचा तो वह युवती तब तक वहां से जा चुकी थी। वह प्रेमी युवक अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पाया और उसने वहीं मिट्टी के फर्श पर खोदते हुए लिखा- ''मैं तुमसे मिलने आया था, तुम नहीं मिली।'' यह छोटा सा संदेश विरह की जिस भावना से लिखा गया था, उसमें कितनी तड़प शामिल थी। इसका अंदाजा सिर्फ वह युवती ही लगा सकती थी जिसके लिये इसे लिखा गया। भावनाओं से ओत-प्रोत यह पत्र 2009 ईसा पूर्व का है और आज हम वर्ष 2009 में जी रहे हैं. ...तो आइये पत्रों के इस सफर का स्वागत करते हैं और अपने किसी को एक खूबसूरत पत्र लिखते हैं !!
Monday, October 12, 2009
यादगार के तौर पर चिट्ठियाँ
21वीं सदी में संचार माध्यमों की बढ़ती उपयोगिता ने बहुत सारी चीजों को प्रभावित किया है। जाहिर है कि मोबाइल के आने के बाद से हिंदी साहित्य में जिस विधा का अस्तित्व लगभग समाप्त हो चला है वह पत्र है। हर नये साल की शुरूआत में जब भी साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं में लेखा-जोखा प्रकाशित होता है तो उसमें कहानी, कविता, उपन्यास विषयों में तो पुस्तकों की भरमार होती है लेकिन पत्र, संस्मरण, साक्षात्कार, आत्मकथा की पुस्तकों की संख्या इस कदर कम होती है कि उसे उंगलियों पर गिना जा सकता है। संचार माध्यमों के विशेषकर मोबाइल के आम आदमी के हाथों में पहुँचने से पहले की बात की जाए तो निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि अपने सुख और दुःख व्यक्त करने का सबसे सशक्त माध्यम हमारे समाज में चिट्ठियां रही हैं। एक समय में परिवार से दूर रह रहा व्यक्ति अपनी पत्नी और पुत्र-पुत्रियों से चिट्ठियों के माध्यम से संवाद कायम किया करता था।
आधुनिक भारत के निर्माता पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा अपनी बेटी इंदिरा गांधी को लिखी गई चिट्ठियों की चर्चा आज भी की जाती है। चिट्ठी आज भी संवाद भावनाओं को व्यक्त करने का सशक्त जरिया मानी जाती है। आज भी मेरे पास माँ की लिखी गई चिट्ठियां हैं जो सिर्फ परिवार तक सीमित न होकर गाँव जंवार और बाग बगीचों को भी खबर देने वाली रही हैं। इस बीच मोबाइल का आगमन क्या हुआ कि लोग बेहद कम कीमत पर दूर बैठे अपने परिजनों से बातचीत करने लगे लेकिन इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि धीरे-धीरे पूरा समाज चिट्ठियां लिखने और भेजने से कतराने लगा। एक समय आज से करीब 20 साल पहले पोस्टमैन की आवाज सुनने के लिए गाँव की स्त्रियां और पुरूष बाट जोहते थे। पोस्टमैन न सिर्फ चिट्ठियां लाता था बल्कि मनीआर्डर और नौकरी की खबर भी। यह सच भी है कि जब हम 30 सेकेंड के भीतर ही अपने प्रियजनों की सुमधुर आवाज सुन सकते हैं तो चिट्ठी लिखकर पोस्ट आफिस में डालने और उसका जवाब आने का इंतजार कौन करे? एक समय में कबूतर भी चिट्ठियां ले जाने का काम किया करते थे और कई फिल्मों में ऐसे दृश्य दिखाए भी गए हैं जिसमें कबूतर पत्र लिखने वाले की प्रेमिका को उसके जज्बातों से लबरेज चिट्ठी पहुँचा दिया करता था। आज से पहले किसी बड़े कथाकार की एक कहानी छपने पर सौ दो सौ पत्र आते थे जबकि आज वे एक पोस्टकार्ड के लिए तरसते हैं। जाहिर है कि यह ई-मेल, मोबाइल, एसएमएस के आगमन के कारण हुआ है। इसके बावजूद हमें मौका मिलने पर परिजनों को चिट्ठियां लिखना चाहिए क्योंकि ऐसी चिट्ठियां यादगार के तौर पर भी रखी जा सकती हैं। इस तरह हम एक मरती हुई विधा को बचा सकेंगे।
(साभार: इण्डिया न्यूज, 3-9 अक्टूबर, 09 में अशोक मिश्र)
आधुनिक भारत के निर्माता पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा अपनी बेटी इंदिरा गांधी को लिखी गई चिट्ठियों की चर्चा आज भी की जाती है। चिट्ठी आज भी संवाद भावनाओं को व्यक्त करने का सशक्त जरिया मानी जाती है। आज भी मेरे पास माँ की लिखी गई चिट्ठियां हैं जो सिर्फ परिवार तक सीमित न होकर गाँव जंवार और बाग बगीचों को भी खबर देने वाली रही हैं। इस बीच मोबाइल का आगमन क्या हुआ कि लोग बेहद कम कीमत पर दूर बैठे अपने परिजनों से बातचीत करने लगे लेकिन इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि धीरे-धीरे पूरा समाज चिट्ठियां लिखने और भेजने से कतराने लगा। एक समय आज से करीब 20 साल पहले पोस्टमैन की आवाज सुनने के लिए गाँव की स्त्रियां और पुरूष बाट जोहते थे। पोस्टमैन न सिर्फ चिट्ठियां लाता था बल्कि मनीआर्डर और नौकरी की खबर भी। यह सच भी है कि जब हम 30 सेकेंड के भीतर ही अपने प्रियजनों की सुमधुर आवाज सुन सकते हैं तो चिट्ठी लिखकर पोस्ट आफिस में डालने और उसका जवाब आने का इंतजार कौन करे? एक समय में कबूतर भी चिट्ठियां ले जाने का काम किया करते थे और कई फिल्मों में ऐसे दृश्य दिखाए भी गए हैं जिसमें कबूतर पत्र लिखने वाले की प्रेमिका को उसके जज्बातों से लबरेज चिट्ठी पहुँचा दिया करता था। आज से पहले किसी बड़े कथाकार की एक कहानी छपने पर सौ दो सौ पत्र आते थे जबकि आज वे एक पोस्टकार्ड के लिए तरसते हैं। जाहिर है कि यह ई-मेल, मोबाइल, एसएमएस के आगमन के कारण हुआ है। इसके बावजूद हमें मौका मिलने पर परिजनों को चिट्ठियां लिखना चाहिए क्योंकि ऐसी चिट्ठियां यादगार के तौर पर भी रखी जा सकती हैं। इस तरह हम एक मरती हुई विधा को बचा सकेंगे।
(साभार: इण्डिया न्यूज, 3-9 अक्टूबर, 09 में अशोक मिश्र)
Sunday, October 11, 2009
Gandhiji writes a postcard प्रतियोगिता का आयोजन
गांधी जी को पत्रों से बहुत प्यार था। वे अक्सर अपने साथ पोस्टकार्ड लेकर चलते थे और जहाँ भी रूकते थे, लोगों को पोस्टकार्ड लिखा करते थे। डाक विभाग राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की इस खासियत के मद्देनजर राष्ट्रीय स्तर पर 'Gandhiji writes a postcard' प्रतियोगिता आयोजित कर रहा है। इसके अन्तर्गत बच्चे प्रतियोगिता पोस्टकार्ड पर एक पत्र लिखेंगे। इस हेतु वह अपने को गांधी जी मानकर पत्र लिखेंगे और यह पत्र किसी ज्वलंत तात्कालिक मुद्दे पर होना चाहिए।
प्रतियोगिता दो श्रेणियों में होगी। प्रथम, कक्षा 3 से कक्षा 5 तक और द्वितीय, कक्षा 6 से कक्षा 8 तक। इस हेतु किसी भी प्रकार का प्रवेश शुल्क नहीं देना होगा। मात्र 10 रूपये का प्रतियोगिता पोस्टकार्ड डाकघर से खरीद कर, उस पर हाथ से निबंध लिखना होगा। निबंध हिन्दी/अंग्रेजी में लिखा जा सकता है। शब्द सीमा न्यूनतम 25 शब्दों की होगी। इसके साथ प्रेषक अपना नाम, उम्र, कक्षा, स्कूल, पता व निबंध लेखन की तिथि, प्रतियोगिता पोस्टकार्ड के पीछे पते वाले भाग के बगल में लिखेगा। निबंध लिखकर पोस्टकार्ड को चीफ पोस्टमास्टर जनरल के चिन्हित पोस्ट बाक्स (उत्तर प्रदेश हेतु-पोस्ट बाक्स सं0-101,लखनऊ जी0पी0ओ0) के पते पर भेजना होगा। इस हेतु अंतिम तिथि 30 अक्टूबर 2009 है। राष्ट्रीय स्तर पर एक जनवरी 2010 को रिजल्ट घोषित कर दिये जायेंगे।
सर्वश्रेष्ठ निबंध को पुरस्कृत भी किया जायेगा। परिमण्डलीय स्तर पर प्रथम श्रेणी (कक्षा 3-5) हेतु क्रमशः आईपाड, डिजिटल कैमरा व सी0डी0 के साथ इन्साइक्लोपीडिया सेट एवं द्वितीय श्रेणी (कक्षा 6-8) हेतु क्रमशः लैपटाप, आईपाड व डिजिटल कैमरा क्रमशः प्रथम, द्वितीय व तृतीय पुरस्कार के रूप में दिये जायेंगे। इसी प्रकार राष्ट्रीय स्तर पर प्रथम श्रेणी (कक्षा 3-5) हेतु लैपटाप व सी0डी0, डिजिटल कैमरा एवं सिन्थसाइजर तथा द्वितीय श्रेणी (कक्षा 6-8) हेतु पर्सनल कम्प्यूटर, प्रिन्टर, यू0पी0एस0 व सी0डी0, हैण्डीकैम तथा म्यूजिक सिस्टम क्रमशः प्रथम, द्वितीय व तृतीय पुरस्कार के रूप में दिये जायेंगे।
प्रतियोगिता दो श्रेणियों में होगी। प्रथम, कक्षा 3 से कक्षा 5 तक और द्वितीय, कक्षा 6 से कक्षा 8 तक। इस हेतु किसी भी प्रकार का प्रवेश शुल्क नहीं देना होगा। मात्र 10 रूपये का प्रतियोगिता पोस्टकार्ड डाकघर से खरीद कर, उस पर हाथ से निबंध लिखना होगा। निबंध हिन्दी/अंग्रेजी में लिखा जा सकता है। शब्द सीमा न्यूनतम 25 शब्दों की होगी। इसके साथ प्रेषक अपना नाम, उम्र, कक्षा, स्कूल, पता व निबंध लेखन की तिथि, प्रतियोगिता पोस्टकार्ड के पीछे पते वाले भाग के बगल में लिखेगा। निबंध लिखकर पोस्टकार्ड को चीफ पोस्टमास्टर जनरल के चिन्हित पोस्ट बाक्स (उत्तर प्रदेश हेतु-पोस्ट बाक्स सं0-101,लखनऊ जी0पी0ओ0) के पते पर भेजना होगा। इस हेतु अंतिम तिथि 30 अक्टूबर 2009 है। राष्ट्रीय स्तर पर एक जनवरी 2010 को रिजल्ट घोषित कर दिये जायेंगे।
सर्वश्रेष्ठ निबंध को पुरस्कृत भी किया जायेगा। परिमण्डलीय स्तर पर प्रथम श्रेणी (कक्षा 3-5) हेतु क्रमशः आईपाड, डिजिटल कैमरा व सी0डी0 के साथ इन्साइक्लोपीडिया सेट एवं द्वितीय श्रेणी (कक्षा 6-8) हेतु क्रमशः लैपटाप, आईपाड व डिजिटल कैमरा क्रमशः प्रथम, द्वितीय व तृतीय पुरस्कार के रूप में दिये जायेंगे। इसी प्रकार राष्ट्रीय स्तर पर प्रथम श्रेणी (कक्षा 3-5) हेतु लैपटाप व सी0डी0, डिजिटल कैमरा एवं सिन्थसाइजर तथा द्वितीय श्रेणी (कक्षा 6-8) हेतु पर्सनल कम्प्यूटर, प्रिन्टर, यू0पी0एस0 व सी0डी0, हैण्डीकैम तथा म्यूजिक सिस्टम क्रमशः प्रथम, द्वितीय व तृतीय पुरस्कार के रूप में दिये जायेंगे।
Saturday, October 10, 2009
डाकिया बाबू बनवाएगा मूल्य सूचकांक
डाकिया बाबू अब राष्ट्रीय स्तर पर सटीक वास्तविक मूल्य सूचकांक तैयार करने में भी सहयोग करेगा। केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन ने इस कार्य के लिए डाक विभाग के देशव्यापी नेटवर्क का इस्तेमाल करने के लिए 25 फरवरी, 2009 को अनुबंध किया, जिसके तारतम्य में डाटा-एकत्रीकरण का कार्य डाकिया द्वारा किया जा रहा है। अनुबंध के अनुसार डाक विभाग देश भर के ग्रामीण क्षेत्रों से चयनित 1183 डाकघरों के माध्यम से उपभोक्ता वस्तुओं के मूल्यों का संकलन कर रहा है। इसके तहत ग्रामीण क्षेत्र में डाकियों के माध्यम से दो तरह के सर्वेक्षण कराये जा रहे हैं। प्रथम, जन वितरण प्रणाली के तहत प्रदान किये जाने वाले चावल, गेहूँ, गेहूँ का आटा, चीनी और केरोसीन के बी0पी0एल0 व अन्त्योदय ग्राहकांे को दिये जाने वाले मूल्यों का सर्वेक्षण। द्वितीयतः, निर्धारित गाँवों में लगने वाले बाजारों व दुकानों पर बिकने वाले सामानों के मूल्यों का सर्वेक्षण। इसमें लगभग 200 वस्तुएं शामिल हैं, मसलन अन्न एवं उसके उत्पाद, दालें, दूध एवं उसके उत्पाद, तेल एवं बसा, मीट एवं मछली, चावल, गेहूँ, मैदा, सूजी, मक्का, सब्जियों, फल, शकर एवं शहद, मसाले, चाय एवं काफी, तैयार भोजन, पान सुपाड़ी तम्बाकू, ईधन एवं प्रकाश, पहनने वाले वस्त्र एवं बिस्तर, जूते, शिक्षा इत्यादि, स्वास्थ्य क्षेत्र, मनोरंजन एवं खेलकूद, परिवहन एवं संचार, निज कार्य हेतु सामग्री, गृहस्थी के सामान इत्यादि। इसके तहत हर माह के आंकड़े लगभग 31 पेजों में भरकर एकत्र किये जाने डाकिया बाबू द्वारा एकत्र की गई इन जानकारियों को केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन की वेबसाइट पर डाकघरों द्वारा ही फीड कर दिया जा रहा है।
डाकिया बाबू द्वारा एकत्रित जरूरी उपभोक्ता वस्तुओं के दामों का विवरण हर माह डाक विभाग द्वारा केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन को उपलब्ध कराया जाता है। कहा जा रहा है कि संगठन अब इसी आधार पर वास्तविक मूल्य सूचकांक तैयार करेगा और यह सूचकांक ही सरकारी कार्य योजनाओं का आधार बनेगा। गौरतलब है कि इधर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (कन्ज्यूमर प्राइज इण्डेक्स) में मूल्य वृद्धि शून्य होने के बावजूद बाजार में सामानों के दाम काफी बढ़े नजर आ रहे हैं। ऐसे में जानकारों का मानना है कि वर्तमान में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मेट्रो व अन्य चुनिंदा शहरों के दामों के आधार पर तैयार किये जाते रहे हैं। अब ग्रामीण क्षेत्रों के खुदरा मूल्य को आधार बनाने के कारण मूल्य सूचकांक को वास्तविक बनाया जा सकेगा।
Friday, October 9, 2009
चिट्ठी में भी आ सकते हैं बम
अचानक नजर एक खबर पर आकर अटक गई। शीर्षक था- चिट्ठी में भी आ सकते हैं बम। लोग तो बाद में डरेंगे, पहले तो मुझे ही डरना था आखिर रोजमर्रा का मेरा काम ही चिट्ठियों को लाना और ले जाना है। खबर कुछ यूँ थी- ‘‘अपनों का कुशल मंगल बताने वाली चिट्ठी भी अमंगल का कारण बन सकती है। इन पर अब आतंकियों की नजर हैं। सितंबर (9/11) बीत चुका है लेकिन नवंबर (11/26) नजदीक है। ऐसे में पूरी दुनिया आतंकी हमलों को लेकर चैकस है। हाल में अमेरिका और यूरोप की बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने अपने भारतीय प्रबंधन को खास निर्देश दिए हैं, जिसमें कहा गया है कि कोई भी कर्मचारी कार्यालय के पते पर व्यक्तिगत पत्र, पार्सल या कूरियर नहीं मंगवाएगा। सुरक्षा एजेंसियों के खुलासों के बाद कंपनियों को खतरा है कि चिट्ठियों के जरिए आतंकी विस्फोटक भेज सकते हैं। नोएडा में इंग्लैंड की एक कंपनी के मानव संसाधन विभाग ने अपने कर्मचारियों को आदेश दिया है कि व्यक्तिगत पत्र व्यवहार कार्यालय के पते पर नहीं करें। ऐसे पत्र, पार्सल और कूरियर के लिए अपने घर का पता इस्तेमाल करें। वस्तुतः बहुराष्ट्रीय कंपनियों में 90 फीसदी से ज्यादा कर्मचारी भारतीय हैं। विदेशी कर्मचारियों के लिए आने वाले पत्रों की जांच हवाई अड्डों पर हो जाती है। लेकिन स्थानीय पत्रों की जांच नहीं होती।‘‘
....... आपको वह दिन तो याद होंगे जब चिट्ठियों के माध्यम से एन्थ्रेक्स को फैलाये जाने की अफवाहें हर तरफ थीं। कानपुर में तो एक बार एक व्यक्ति ने लगभग सैकड़ा चिट्ठियाँ तमाम अधिकारियों-नेताओं को भेज दी और उनमें कुछ बारूदनुमा पदार्थ था। वास्तव में यह क्या था, यह तो नहीं पता चला पर चिट्ठी जरूर बदनाम हो गई। मेरी आप सबसे यही गुजारिश है कि चिट्ठियां लोगों की संवेदनाओं से जुड़ीं होतीं हैं और कृपा करके उन्हें विस्फोटक मत बनाइये।
....... आपको वह दिन तो याद होंगे जब चिट्ठियों के माध्यम से एन्थ्रेक्स को फैलाये जाने की अफवाहें हर तरफ थीं। कानपुर में तो एक बार एक व्यक्ति ने लगभग सैकड़ा चिट्ठियाँ तमाम अधिकारियों-नेताओं को भेज दी और उनमें कुछ बारूदनुमा पदार्थ था। वास्तव में यह क्या था, यह तो नहीं पता चला पर चिट्ठी जरूर बदनाम हो गई। मेरी आप सबसे यही गुजारिश है कि चिट्ठियां लोगों की संवेदनाओं से जुड़ीं होतीं हैं और कृपा करके उन्हें विस्फोटक मत बनाइये।
Thursday, October 8, 2009
विश्व डाक दिवस की बधाईयाँ !!
डाक सेवाओं की एक पुरानी परम्परा है। दुनिया भर में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं होगा, जिसका कभी डाक सेवाओं से पाला न पड़ा हो। यह अचरज की बात है कि एक देश में पोस्ट किया हुआ पत्र दुनिया के दूसरे कोनों में आराम से पहुँच जाता है। डाक सेवाओं के संगठन रूप में उद्भव के साथ ही इस बात की जरूरत महसूस की गई कि दुनिया भर में एक ऐसा संगठन होना चाहिए, जो यह सुनिश्चित करे कि सभी देशों के मध्य पत्रों का आवागमन सहज रूप में हो सके और आवश्यकतानुसार इसके लिए नियम-कानून बनाये जा सकें।
इसी क्रम में 9 अक्टूबर 1874 को ‘‘जनरल पोस्टल यूनियन‘‘ के गठन हेतु बर्न, स्विटजरलैण्ड में 22 देशों ने एक संधि पर हस्ताक्षर किया था, इसी कारण 9 अक्टूबर को कालान्तर में ‘‘विश्व डाक दिवस‘‘ के रूप में मनाना आरम्भ किया गया। यह संधि 1 जुलाई 1875 को अस्तित्व में आयी, जिसके तहत विभिन्न देशों के मध्य डाक का आदान-प्रदान करने संबंधी रेगुलेसन्स शामिल थे। कालान्तर में 1 अप्रैल 1879 को जनरल पोस्टल यूनियन का नाम परिवर्तित कर यूनीवर्सल पोस्टल यूनियन कर दिया गया। यूनीवर्सल पोस्टल यूनियन का सदस्य बनने वाला भारत प्रथम एशियाई राष्ट्र था, जो कि 1 जुलाई 1876 को इसका सदस्य बना। जनसंख्या और अन्तर्राष्ट्रीय मेल ट्रैफिक के आधार पर उस समय सदस्य राष्ट्रों की 6 श्रेणियां थीं और भारत आरम्भ से ही प्रथम श्रेणी का सदस्य रहा। 1947 में यूनीवर्सल पोस्टल यूनियन, संयुक्त राष्ट्र संघ की एक विशिष्ट एजेंसी बन गई। यह भी एक रोचक तथ्य है कि विश्व डाक संघ के गठन से पूर्व दुनिया में एकमात्र अन्तर्राष्ट्रीय संगठन रेड क्रास सोसाइटी (1870) था।
यह भी एक अजीब इत्तिफाक है कि 1874 में ‘‘जनरल पोस्टल यूनियन‘‘ के गठन के ठीक अगले साल 1975 में भारतीय डाक पर प्रथम पुस्तक ‘‘द पोस्ट आफिस आफ इण्डिया‘‘ प्रकाशित हुई, जिसे कि बांकीपुर, पटना के एक रिटायर्ड पोस्टमास्टर आनंद गोपाल सेन ने लिखा था।
9 अक्टूबर को विश्व डाक दिवस है और इसी क्रम में पूरे सप्ताह राष्ट्रीय डाक सप्ताह (9-15 अक्टूबर) का आयोजन चलता है। इस दौरान जहाँ प्रतिदिन सेवाओं के व्यापक प्रचार-प्रसार एवं राजस्व अर्जन में वृद्धि पर जोर दिया जाता है वहीं डाक टिकटों की प्रदर्शनी, स्कूली विद्यार्थियों हेतु कार्यक्रम, कस्टमर मीट, स्कूली छात्र-छात्राओं द्वारा डाकघरों का विजिट, बचत बैंक खातों हेतु लकी ड्रा एवं उत्कृष्ट कार्य करने वाले स्टाफ तथा महत्वपूर्ण बचत अभिकर्ताओं व कारपोरेट कस्टमर्स के सम्मान जैसे तमाम कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं।
विश्व डाक दिवस की बधाईयाँ !!
इसी क्रम में 9 अक्टूबर 1874 को ‘‘जनरल पोस्टल यूनियन‘‘ के गठन हेतु बर्न, स्विटजरलैण्ड में 22 देशों ने एक संधि पर हस्ताक्षर किया था, इसी कारण 9 अक्टूबर को कालान्तर में ‘‘विश्व डाक दिवस‘‘ के रूप में मनाना आरम्भ किया गया। यह संधि 1 जुलाई 1875 को अस्तित्व में आयी, जिसके तहत विभिन्न देशों के मध्य डाक का आदान-प्रदान करने संबंधी रेगुलेसन्स शामिल थे। कालान्तर में 1 अप्रैल 1879 को जनरल पोस्टल यूनियन का नाम परिवर्तित कर यूनीवर्सल पोस्टल यूनियन कर दिया गया। यूनीवर्सल पोस्टल यूनियन का सदस्य बनने वाला भारत प्रथम एशियाई राष्ट्र था, जो कि 1 जुलाई 1876 को इसका सदस्य बना। जनसंख्या और अन्तर्राष्ट्रीय मेल ट्रैफिक के आधार पर उस समय सदस्य राष्ट्रों की 6 श्रेणियां थीं और भारत आरम्भ से ही प्रथम श्रेणी का सदस्य रहा। 1947 में यूनीवर्सल पोस्टल यूनियन, संयुक्त राष्ट्र संघ की एक विशिष्ट एजेंसी बन गई। यह भी एक रोचक तथ्य है कि विश्व डाक संघ के गठन से पूर्व दुनिया में एकमात्र अन्तर्राष्ट्रीय संगठन रेड क्रास सोसाइटी (1870) था।
यह भी एक अजीब इत्तिफाक है कि 1874 में ‘‘जनरल पोस्टल यूनियन‘‘ के गठन के ठीक अगले साल 1975 में भारतीय डाक पर प्रथम पुस्तक ‘‘द पोस्ट आफिस आफ इण्डिया‘‘ प्रकाशित हुई, जिसे कि बांकीपुर, पटना के एक रिटायर्ड पोस्टमास्टर आनंद गोपाल सेन ने लिखा था।
9 अक्टूबर को विश्व डाक दिवस है और इसी क्रम में पूरे सप्ताह राष्ट्रीय डाक सप्ताह (9-15 अक्टूबर) का आयोजन चलता है। इस दौरान जहाँ प्रतिदिन सेवाओं के व्यापक प्रचार-प्रसार एवं राजस्व अर्जन में वृद्धि पर जोर दिया जाता है वहीं डाक टिकटों की प्रदर्शनी, स्कूली विद्यार्थियों हेतु कार्यक्रम, कस्टमर मीट, स्कूली छात्र-छात्राओं द्वारा डाकघरों का विजिट, बचत बैंक खातों हेतु लकी ड्रा एवं उत्कृष्ट कार्य करने वाले स्टाफ तथा महत्वपूर्ण बचत अभिकर्ताओं व कारपोरेट कस्टमर्स के सम्मान जैसे तमाम कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं।
विश्व डाक दिवस की बधाईयाँ !!