पिछली कड़ी में हमने जाना कि किस तरह 1271 के दौर में चीन के मंगोल शासक कुबलाई खान ने डाक व्यवस्था के जबर्दस्त प्रबंध किए थे। उसी कड़ी में मार्को पोलो की डायरी से कुछ और जानकारी लेते हैं। गौरतलब है कि वेनिस का मार्कोपोलो इस कालखंड में कुबलाई खान का दरबारी था और उसके नोट्स के आधार पर मॉरिस कॉलिस ने मौले और पैलियट नामक पुस्तक लिखी। इस पुस्तक का हिन्दी अनुवाद श्री उदयकांत पाठक ने किया है। पेश है पोलो का दिलचस्प वृतांत-
चौबीस घंटों में चारसौ मील !
पीकिंग और प्रान्तीय शहरों के बीच सामान्य संदेशों के लिए पच्चीस मील दूर तक के स्थान का फासला वही संदेशवाहक रोज़ाना तय करता था। पच्चीस मील के हिसाब से एक संदेशवाहक लगभग दो महीने में दक्षिणी चीन पहुंचता है और बरमा की सीमा पर युन्नान को साढे तीन महीने में। किन्तु अति आवश्यक संदेशों को पहुचाने के लिए यह गति को ई इतनी तेज न थी। ज़रूरी संदेशवाहकों के लिए अलग व्यवस्था थी। चौकियों के मध्य सिर्फ तीन मील का फासला होता था। और उनके बीच भी छोटी चौकियां होती थीं जिनमें संदेशवाहक रहा करते थे। ये संदेशवाहक ज़रूरी संदेश ले जाते । प्रत्येक आदमी अगली चौकी तक तीन मील तय करता । यह फासला इतना ही होता कि वह आधे घंटे में तय कर लेता था ताकि अगली चौकी पर पहुचकर परवाना देने में देर न लगे। संदेशवाहक की कमर में घंटियां लगी रहतीं। ज्योंही घंटियां सुनाई पड़तीं, चौकी का मुंशी दूसरे धावक को तैयार कर देता । इस तरह सरकारी परवाना इस विशाल देश के एक छोर से दूसरे छोर तक धावकों की शृंखला द्वारा ले जाया जाता।
औसतन दिन रात दोनों में ही आठ मील प्रति गंटे का हिसाब रखा जाता जिससे दक्षिणी चीन में सप्ताह भर में तथा युन्नान में बारह दिन में पहुंचना संभव हो जाता। ऐसे अवसर भी होते जब इससे भी तेज पहंचना आवश्यक होता। तब इससे भी तेज गति की आवश्यकता होती। मसलन विद्रोह हो जाने की स्थिति में। मंगोलों ने इसके लिए भी व्यवस्थाएं की ताकि तेज गति सेसंदेश पहुंचाया जा सके जितनी जल्दी आज मोटर द्वारा पहुंचाया जाता है। तीन मील वाली चौकियों पर धावकों के अलावा कुछ घोड़े भी सवारों के साथ जीन कसे तैयार रहते थे। परवाना एक चौकी से दूसरी चौकी तक हर मुमकिन उस गति से भेजा जाता जिस अधिकतम गति पर घोड़े भाग सकते। घुड़सवार घंटियां साथ लेकर चलते ताकि घोड़ा बदलने में वक्त न लगे। रात दिन आदमियों को और घोड़ों को बदलते जाने के क्रम से परवाना चौबीस घंटों में चार सौ मील का फासला तय कर लेता था यानी करीब सातसौ किलोमीटर। यह दूरी और समय आज के ज़माने के हिसाब से भी कम नहीं है।
साभार- शब्दों का सफर
Ap is blog par achhi jankari de rahe hain.
ReplyDeleteBahut achchhee aur rochak janakaree.
ReplyDeleteHemantKumar
रात दिन आदमियों को और घोड़ों को बदलते जाने के क्रम से परवाना चौबीस घंटों में चार सौ मील का फासला तय कर लेता था यानी करीब सातसौ किलोमीटर....Adbhut !!
ReplyDeleteAtit ka safar hamesha sukhad hota hai...Dilchasp jankari.
ReplyDeleteघोड़ों की टाप के साथ आज डाक-व्यवस्था कितनी ऊँचाइयों पर पहुँच गई.
ReplyDelete