डाकिया डाक लाया
डाक लाया
ख़ुशी का पयाम कहीं दर्दनाक लाया
डाकिया डाक लाया ...
इन्दर के भतीजे की साली की सगाई है
ओ आती पूरणमासी को क़रार पाई है
मामा आपको लेने आते मगर मजबूरी है
बच्चों समेत आना आपको ज़रूरी है
दादा तो अरे रे रे रे दादा तो गुज़र गए दादी बीमार है
नाना का भी तेरहवां आते सोमवार है
छोटे को प्यार देना बड़ों को नमस्कार
मेरी मजबूरी समझो कारड को तार
शादी का संदेसा तेरा है सोमनाथ लाया
डाकिया डाक लाया ...!!
ऐ डाकिया बाबू
क्या है री
छः महीना होई गवा ख़त नहीं लिखीं
ख़त नहीं लिखीं
बोल क्या लिखूँ
बस जल्दी से आने का लिख दे
बिरह में कैसे-कैसे काटीं रतियाँ
सावन सुनाए बैरी भीगी-भीगी बतियाँ
अग्नि की जलन में जले बावरिया
ओ नौकरिया छोड़ के तू आ जाना साँवरिया
आजा रे साँवरिया आजा बैसाख आया
डाकिया डाक लाया ...!!
(पलकों की छाहों में फिल्म का एक चर्चित गाना, जिसे गुलजार जी ने लिखा और किशोर कुमार तथा वंदना शास्त्री ने स्वर दिया)
आज बेशक डाकिये का उतना महत्त्व ना हो, पर हमारी ज़िन्दगी के अनगिनत खुशनुमा लम्हों को डाकिया ही लेकर आया था..इसलिए मुझे डाकिया आज भी उतना ही पसंद है जितना ये गीत!यादें ताज़ा करने हेतु धन्यवाद..
ReplyDeleteइस गीत नें आज फिर समाँ बाँध दिया.
ReplyDeleteएक समय था जब डाकिया, पटवारी और कोटवार मिलकर ग्राम स्वराज चलाते थे। मेरे पिता जी बताते थे कि आधे गांव की डाक वो लिखते और पढ़ते थे और आधे की वो चिट्ठरसा (उर्दू में शायद यही कहा जाता है डाकिया को)। पहले डाकिये को हर घर से कुछ ना कुछ मिलता था, लेकिन शगुन की तरह। लेकिन डाकियों ने जब से हर काम के लिये बख्शीश मांगना शुरु किया उनकी कद्र कम होती गई।
ReplyDeleteअग्नि की जलन में जले बावरिया
ReplyDeleteओ नौकरिया छोड़ के तू आ जाना साँवरिया
आजा रे साँवरिया आजा बैसाख आया
डाकिया डाक लाया ...!!
...sUNDAR BOL.
चिट्ठियों को लेकर तमाम साहित्य रचा व गाने भी लिखे गए हैं, इनके बिना मानव जीवन अधूरा ही लगता है.
ReplyDeleteसुन्दर, सार्थक भावपूर्ण रचना. बधाई.
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