Wednesday, January 20, 2010

चिट्ठियाँ हों इन्द्रधनुषी

जयकृष्ण राय तुषार जी इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकालत के पेशे के साथ-साथ गीत-ग़ज़ल लिखने में भी सिद्धहस्त हैं. इनकी रचनाएँ देश की तमाम चर्चित पत्र-पत्रिकाओं में स्थान पाती रहती हैं. मूलत: ग्रामीण परिवेश से ताल्लुक रखने वाले तुषार जी एक अच्छे एडवोकेट व साहित्यकार के साथ-साथ सहृदय व्यक्ति भी हैं. सीधे-सपाट शब्दों में अपनी भावनाओं को व्यक्त करने वाले वाले तुषार जी ने पिछले दिनों डाकिया पर लिखा एक गीत इस ब्लॉग के सूत्रधार और भारतीय डाक सेवा के अधिकारी कवि-ह्रदय कृष्ण कुमार यादव जी समर्पित करते हुए भेंट किया. इस खूबसूरत गीत को इस ब्लॉग के माध्यम से आप सभी के साथ शेयर कर रहा हूँ-

फोन पर
बातें न करना
चिट्ठियाँ लिखना।
हो गया
मुश्किल शहर में
डाकिया दिखना।

चिट्ठियों में
लिखे अक्षर
मुश्किलों में काम आते हैं,
हम कभी रखते
किताबों में इन्हें
कभी सीने से लगाते हैं,
चिट्ठियाँ होतीं
सुनहरे
वक्त का सपना।

इन चिट्ठियों
से भी महकते
फूल झरते हैं,
शब्द
होठों की तरह ही
बात करते हैं
यह हाल सबका
पूछतीं
हो गैर या अपना।

चिट्ठियाँ जब
फेंकता है डाकिया
चूड़ियों सी खनखनाती हैं,
तोड़ती हैं
कठिन सूनापन
स्वप्न आँखों में सजाती हैं,
याद करके
इन्हें रोना या
कभी हँसना।

वक्त पर
ये चिट्ठियाँ
हर रंग के चश्में लगाती हैं,

दिल मिले
तो ये समन्दर
सरहदों के पार जाती हैं,

चिट्ठियाँ हों
इन्द्रधनुषी
रंग भर इतना ।

-जयकृष्ण राय तुषार,63 जी/7, बेली कालोनी,
स्टेनली रोड, इलाहाबाद, मो0- 9415898913

10 comments:

  1. वक्त पर
    ये चिट्ठियाँ
    हर रंग के चश्में लगाती हैं,

    दिल मिले
    तो ये समन्दर
    सरहदों के पार जाती हैं,
    khoobsoorat rachna.

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  2. इन्द्रधनुष के सारे रंग वसंत के साथ घुल गए हैं ...
    सुन्दर गीत के लिए आभार ....

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  3. वक्त पर
    ये चिट्ठियाँ
    हर रंग के चश्में लगाती हैं,

    दिल मिले
    तो ये समन्दर
    सरहदों के पार जाती हैं,
    ....bAHUT SUNDAR GEET.

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  4. चिट्ठियाँ जब
    फेंकता है डाकिया
    चूड़ियों सी खनखनाती हैं,
    तोड़ती हैं
    कठिन सूनापन
    स्वप्न आँखों में सजाती हैं,
    याद करके
    इन्हें रोना या
    कभी हँसना।
    ___________________
    उम्दा लिखा. एक बार फिर से चिट्ठियों का इंतजार.

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  5. मनभावन चिट्ठियां ...अनुपम गीत.

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  6. आप सभी को डाकिया बाबू की चिट्ठियां भा रही हैं...सुखदायी लगता है.

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  7. फोन पर
    बातें न करना
    चिट्ठियाँ लिखना।
    हो गया
    मुश्किल शहर में
    डाकिया दिखना।

    क्या बात है?

    बेहतरीन गीत

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  8. मेरी इस रचना के प्रकाशन के लिए आभार.

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  9. आप सभी का टिप्पणियों के लिए आभारी हूँ. अपना प्यार बनाये रखें.

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