Sunday, April 18, 2010

पत्रों का घटता चलन एक गंभीर सांस्कृतिक खतरा- महाश्वेता देवी


भारतीय डाक विभाग के 150 वर्ष पूरे होने पर ‘भारतीय डाक : सदियों का सफरनामा’ नामक पुस्तक लिखकर चर्चा में आए अरविंद कुमार सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं. अरविन्द जी से जब पहली बार मेरी बातचीत हुई थी तो वे हरिभूमि से जुड़े हुए थे, फ़िलहाल रेल मंत्रालय की मैग्जीन ‘भारतीय रेल’ के संपादकीय सलाहकार के रूप में दिल्ली में कार्यरत हैं। ‘भारतीय डाक : सदियों का सफरनामा’ पुस्तक में जिस आत्मीयता के साथ उन्होंने डाक से जुड़े विभिन्न पहलुओं की चर्चा की है, वह काबिले-तारीफ है. यहाँ तक कि दैनिक पत्र हिंदुस्तान में प्रत्येक रविवार को लिखे जाने वाले अपने स्तम्भ 'परख' में इसकी चर्चा मशहूर लेखिका और सोशल एक्टिविस्ट महाश्वेता देवी ने "अविराम चलने वाली यात्रा'' शीर्षक से की. (2 अगस्त, 2009). इसे हम यहाँ साभार प्रस्तुत कर रहे हैं !!

(यहाँ यह उल्लेख करना जरुरी है कि महाश्वेता देवी ने भी अपने आरंभिक वर्षों में डाक विभाग में नौकरी की थी)

8 comments:

  1. बात सही है..आभार.

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  2. जी मैंने भी पढ़िए थी ........बात बिल्कुल सही है और लोगों को प्रयास करना चाहिए की कुछ परिजनों को पत्र लिखें और लौटती डाक से उनके खत की भी प्रतीक्षा करें .

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  3. आपकी इस सुन्दर पोस्ट की चर्चा यहाँ भी तो है!
    http://charchamanch.blogspot.com/2010/04/blog-post_19.html

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  4. अब तो मैं भी पत्र लिखूंगी...

    ________________
    'पाखी की दुनिया' में इस बार माउन्ट हैरियट की सैर करना न भूलें !!

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  5. Patron ki duniya hoti khub nirali..

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  6. 'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर हम प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटे रचनाओं को प्रस्तुत करेंगे.जो रचनाकार इसमें भागीदारी चाहते हैं,वे अपनी 2 मौलिक रचनाएँ, जीवन वृत्त, फोटोग्राफ भेज सकते हैं. रचनाएँ व जीवन वृत्त यूनिकोड फॉण्ट में ही हों. hindi.literature@yahoo.com

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  7. बेहतरीन विश्लेषण. इस ओर सोचने की जरुरत है.

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