Friday, June 24, 2011

ख़त

बहुत दिनों बाद खतों को लेकर संजीदगी से लिखी कोई कविता पढ़ी. मन में उतर सी गई 'दीपिका रानी' की 'आउटलुक' में छपी यह कविता, सो अब आप से भी शेयर कर रहा हूँ-


एक दिन अचानक एक खत मिला
लिफाफे में थी
थोड़ी खुशबू
कुछ ताजी हवा
और पहली बारिश का सौंधापन

माँ के हाथों की बनी
रोटियों की गर्माहट थी उसमें
पिता की थपकियों सा सुकून
और एक शरारती सा बच्चा
झांक रहा था बार-बार

खत में थे दो हाथ
जो उठे थे दुआओं में
दो आँखें जिनमें दर्द था
जो मेरा था.
मुस्कराहट के पीछे
मेरी आँखों की उदासी को
वो आँखें समझती थीं

खत ने वो असर किया
कि मेरा दर्द
मुस्कराहट में बदल दिया
उसमें थी वो संजीवनी
जो मेरी डूबती सांसों में
जिन्दगी भर गई
और मेरे जीने का सामान कर गई

मैने सोचा, लिखूँ जवाबी खत
वही खुशबू वही गर्माहट
वही सुकून ,वही मुस्कराहट
बंद की लिफाफे में
मगर अब तक वो यहीं पड़ा है
क्या फरिश्तों का कोई पता होता है ?

-दीपिका रानी
(साभार : आउटलुक, मई 2011)

13 comments:

  1. काफी संवेदनशील कविता है, एहसासों का दृश्यात्मक वर्णन किया है आपने| पर ख़त रहा क्यों है पोस्ट क्यों नहीं करते?

    शुभकामनायें

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  2. सुन्दर रचना प्रस्तुति...आभार

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  3. पत्रों की यादें ताजा हो गईं..सुन्दर कविता..बधाई.

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  4. बहुत सुन्दर रचना पढ़वाई..आभार!!

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  5. बहुत सुन्दर रचना|

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  6. भाई कृष्ण जी, आपकी कवितायेँ अक्सर पढता रहता हूँ. समकालीन भारतीय साहित्य में भी पढ़ी थीं...बधाई. बहुत अच्छा लगता है आपकी रचनात्मकता देखकर.

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  7. IS ANMOL MOTI KO CHUNKAR HAMLOGO KO PADHANE KE LIYE DHANYBAD/////

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  8. Itani bhauk abhivyakti,panktiyo ke madhyam se adbhut,atisamvedshil.AKShukla,Chandigarh

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  9. आज अचानक नेट पर सर्फ करते हुए अपना नाम दिखा तो यह ब्लॉग खोला। देख कर अच्छा लगा कि मेरी यह कविता लोगों को पसंद आई। शुक्रिया..

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