अतीत की वेदी पर ही वर्तमान और भविष्य की ईमारत खड़ी होती है. कभी 'काला-पानी' कहे जाने वाले अंडमान में जब अंग्रेजों ने रोस आइलैंड पर अपना मुख्यालय बनाया, तो तमाम सरकारी विभागों की भी वहाँ स्थापना हुई. उस समय डाक संचार का प्रमुख माध्यम थी, अत: रोस-द्वीप में अंग्रेजों ने एक डाकघर भी बनाया. आज भी इस डाकघर के अवशेष वहाँ देखे जा सकते हैं. पिछले दिनों जब रोस-द्वीप घूमने गया तो इस डाकघर के अवशेषों को देखकर न जाने इतिहास के कितने पन्ने मन में उमड़ गए. आज रास द्वीप पर कोई भी व्यक्ति नहीं रहता, यह INS जारवा के अधिकार में है, जो इसकी देखभाल करती है. दिन में यह पर्यटकों के लिए खुला रहता है. यहाँ पर मुक्त विचरण करते हिरन, मोर देखे जा सकते हैं, वहीँ यहाँ पर चर्च, आफिसर्स-मेस, बेकरी-शाप, मंदिर, कब्रगाह इत्यादि के अवशेष देखे जा सकते हैं. एक सुन्दर पार्क और बीच भी यहाँ पर है, जो इसे पर्यटकों के लिए और खूबसूरत बनाता है. प्रवेश द्वार पर जापानी बंकर अभी भी उन दिनों की यादें ताजा करता है, जब यहाँ दितीय विश्व युद्ध के बाद कुछेक समय तक जापानी शासन रहा था. फ़िलहाल, पोर्टब्लेयर से नाव द्वारा मात्र दस मिनट में यहाँ पहुंचा जा सकता है.
रास दीप और वहां स्थित डाक-घर के बारे में रोचक जानकारी..सुन्दर दृश्य.
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