Friday, November 14, 2014

जब पहली बार जारी हुए बाल-दिवस पर डाक टिकट : 2014 रहा बाल दिवस डाक टिकट से अछूता

बाल दिवस को हर साल डाक विभाग डाक टिकट जारी कर यादगार बनाता है।  पर देश में इस बार 14 नवंबर को बाल दिवस के मौके पर डाक टिकट जारी नहीं किया जाएगा। वर्ष 1957 से 2013 तक लगातार 57 वर्षो से देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के जन्म दिन के अवसर पर डाक टिकट जारी होते आए हैं, लेकिन इस बार यह परम्परा टूट गई।

डाक विभाग की ओर से हर वर्ष स्कूली बच्चों की देशव्यापी चित्रकारी प्रतियोगिता आयोजित जाती है और उसके विजेता बच्चे की चित्रकारी पर बाल दिवस के अवसर पर डाक टिकट जारी किया जाता है। इस वर्ष  यह प्रतियोगिता भी नहीं आयोजित की गई ।

गौरतलब है कि वर्ष 1949 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने सभी देशों को बाल दिवस मनाने के लिए कहा और इसके लिए सभी देशों को छूट दी गई कि वे अपने सामाजिक-सांस्कृतिक माहौल के हिसाब से किसी भी दिन को बालदिवस के लिए तय करें। सभी देशों ने अपने महापुरूषों, प्रतीक चिन्हों, धर्म, नस्ल आदि से जुड़ी तिथियों पर बाल दिवस घोषित कर रखे हैं। भारत ने प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के बच्चों से विशेष प्रेम और उनकी चाचा नेहरू की छवि के चलते उन्हीं के जन्म दिवस 14 नवंबर को बाल दिवस घोषित किया।

भारत में नेहरू के जीवनकाल में ही वर्ष 1954 से इसकी शुरूआत की गई। वर्ष 1957 से बाल दिवस के अवसर पर डाक टिकट जारी करने की शुरूआत की गई और पिछले साल (2013) तक इस परंपरा का निर्वाह किया गया। देश में 1977 से 1980, 1989 से 1991  और 1996 से 2004 के बीच गैर-कांग्रेसी सरकारें रही। उस दौरान भी बाल दिवस पर चित्रकारी प्रतियोगिता और डाक टिकट जारी होने की परम्परा को बरकरार रखा गया, लेकिन यह पहला मौका है, जब यह परम्परा निभाई नहीं गई और बाल दिवस बिना डाक टिकटों के रहा।

जब जारी हुए पहली बार बाल-दिवस पर डाक टिकट : 
भारतीय डाक विभाग प्रतिवर्ष बाल-दिवस पर डाक टिकट जारी करता रहा है।  यह सिलसिला वर्ष 1957 में आरम्भ हुआ, जब  बाल दिवस पर पहली बार तीन स्मारक डाक टिकट जारी किये गये, जो बाल पोषण (8 पैसे, केला खाता बालक), बाल शिक्षा (15 पैसे, स्लेट पर लिखती लड़की) व बाल मनोरंजन (90 पैसे, मिट्टी का बना बांकुरा घोड़ा) के प्रतीक थे। 



उस समय दस हजार फोटोग्राफ्स में से चयनित शेखर बार्कर व रीता मल्होत्रा को क्रमशः बाल पोषण व बाल शिक्षा पर जारी डाक टिकटों पर अंकित किया गया। स्लेट पर लिखती लड़की रीता मल्होत्रा कानपुर की थी। ठीक पचास वर्ष बाद वर्ष 2007 में बाल दिवस पर डाक टिकट जारी होने के दौरान शेखर बार्कर व रीता मल्होत्रा को भी आमंत्रित किया गया, पर रीता मल्होत्रा को शायद खोजा न जा सका। सोशल मीडिया और नेटवर्किंग के इस दौर में शायद किसी दिन संभवत: रीता मल्होत्रा का पता भी लग सके !!

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