Tuesday, October 9, 2018

विश्व डाक दिवस @ राष्ट्रीय डाक सप्ताह : पत्रों की खूबसूरत दुनिया

पत्रों की अपनी एक खूबसूरत दुनिया है।  सभ्यता के आरंभ से ही मानव किसी न किसी रूप में पत्र लिखता रहा है। कहते हैं कि दुनिया का सबसे पहला खत 2009 ईसा पूर्व बेबीलोन के खंडरों से मिला था, जो एक प्रेमी ने अपनी प्रेमिका के विरह के भाव से ओतप्रोत होकर लिखा था। भावनाओं की बयार इस कद थी कि प्रेमी ने मिट्टी के फर्श को खोदते हुए ‘मैं तुमसे मिलने आया था, पर तुम नहीं मिली’ का संदेश जाने से पहले प्रेमिका के लिए छोड़ा। इस संदेश में कितनी तड़प थी इसका अंदाजा वही लगा सकता है जिसके लिए वह लिखा गया। 

डाक विभाग एक संदेश दूसरे तक पहुंचाने का काम करता है। ईसा पूर्व आरंभ से ही मानव किसी न किसी रूप में संदेश देता रहा है। दीवारों पर चित्रकारी से लेकर मूर्तियों तक। छोटे और तेजी से संदेश पहुंचाने का सबसे पहले वाहक कबूतर बने। इनको सबसे पहले डाकिए के रूप में आज भी जाना जाता है। धीरे-धीरे  तेजी से संदेश भेजने के लिए घोड़ों का इस्तेमाल हुआ। ये रियासतों के बीच दौड़ते थे। रियासतों के बीच संदेश का आदान-प्रदान करने के लिए डाक नेटवर्क 1727 से अस्तित्व में आया। धीरे-धीरे रियासतों में डाकघर बनने लगे और इनमें एकरूपता लाने के लिए इनको जोड़ा गया। 
(Heritage Building Lucknow GPO)


ऐतिहासिक परिदृश्य-

- पहला डाकघर कोलकाता में आरंभ हुआ। इसके बाद तत्कालीन तीन प्रेसिडेंसियों कोलकाता (1774), चेन्नई (1786) और मुम्बई (1793) में जनरल पोस्ट ऑफिस स्थापित हुए। 
- 1837 में भारतीय डाकघर अधिनियम बना। 
- 1854 में अधिक व्यापक  भारतीय डाकघर अधिनियम बना। भारत के ब्रिटिश क्षेत्रों में डाक ढुलाई का एकाधिकार डाकघरों को इसी के बाद मिला। 
- वर्तमान डाक प्रणाली भारतीय डाकघर अधिनियम, 1854 के साथ अस्तित्व में आई। 
- इसी के साथ रेल डाक सेवा तथा भारत से ग्रेट ब्रिटेन और चीन तक एक समुद्री डाक सेवा प्रारंभ हुई। 
- 'एक विश्व-एक डाक प्रणाली' की अवधारणा को साकार करने हेतु 9 अक्टूबर, 1874 को 'यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन' की स्थापना बर्न, स्विटजरलैण्ड में की गई, जिससे विश्व भर में एक समान डाक व्यवस्था लागू हो सके। भारत प्रथम एशियाई राष्ट्र था, जो कि 1 जुलाई 1876 को इसका सदस्य बना। 
- इसके बाद भारतीय डाकघर अधिनियम 1898 पारित हुआ, जिसके बाद डाक सेवाओं को विनियमित किया गया। 
- वर्ष 1969 में टोकियो, जापान में सम्पन्न यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन कांग्रेस में यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन' के स्थापना दिवस को "विश्व डाक दिवस" के रूप में मनाने हेतु घोषित किया गया।  तब से पूरी दुनिया में  इस दिन को प्रतिवर्ष धूमधाम मनाया जाता है। विश्व डाक दिवस के क्रम में ही भारत में पूरे सप्ताह को राष्ट्रीय डाक सप्ताह के रूप में मनाया जाता है। 
-इस प्रकार डाक  विभाग का यह सफर तय हुआ और एक अक्टूबर, 2018 को डाक विभाग ने अपने 164 साल पूरे किए। 
कभी अंग्रेजों का थियेटर हुआ करता था हजरतगंज स्थित लखनऊ जीपीओ 
(साभार : दैनिक हिंदुस्तान, लखनऊ, 9 अक्टूबर 2018)


लाल डिब्बे जो गुमनाम गलियों से घर तक पहुंचाते थे-
डाक विभाग के लाल डिब्बे (लेटर बाक्स) बेतरतीब हमें मोहल्लों के भीतर गुमनाम गलियों से घरों तक ले जाते थे। एक समय था जब लोग कहते थे कि फलां जगह पहुंचकर तीन कदम चलकर लाल डिब्बे से दायें मुड़ते ही 10 कदम पर मेरा मकान दिखेगा। पहले डाकिए भी लोगों का पता मुंहजुबानी याद रखते थे। लेकिन, 15 अगस्त 1972 से पिन कोड सिस्टम लागू होने के बाद यह थोड़ा मुश्किल हो गया। वहीं, दादा-दादी, नाना-नानी का हाथ पकड़कर लाल डिब्बे तक जाना भी धीरे-धीरे गुम हो गया। वर्तमान में अब चिटि्ठयां ऑनलाइन जा रही है। सोशल मीडिया का प्रभाव बढ़ने से लाल डिब्बे लुप्त होते गए। 

कई महान विभूतियाँ रही हैं डाकघर में -

साइकिल से गली-गली घूमकर घंटियां बजाकर चिटि्ठयां पहुंचाने वाले इन डाक बाबू को कम मत आंकिए। कई महान हस्तियां भी डाक विभाग से जुड़ी है। जिन्होंने चिटि्ठयां बांटने से लेकर बाबू तक का काम किया। अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन पोस्टमैन थे तो ब्रिटिश  भारत के वायसराय लार्ड रीडिंग भी डाक विभाग से जुड़े थे। फिल्म निर्माता राजेंद्र सिंह बेदी से लेकर देवानंद भी डाक विभाग में काम कर चुके हैं। मुंशी प्रेमचंद के पिता डाक विभाग में क्लर्क थे। पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के पिता भी डाक-तार विभाग में  कर्मचारी थे । 

मात्र 25 से 50 पैसे में मिलने वाले पोस्टकार्ड की कितनी अहमियत है इससे ही पता चलता है कि अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह में एक डाक  को बांटने के लिए डाकिया आज भी एक आईलैंड से दूसरे आईलैंड का सफर तय करता है। डाक से भेजे जाने वाला एक-एक सन्देश बहुत अहम होता है। डाक विभाग निरंतर बदलते परिवेश के साथ अपने को ढालने का काम कर रहा है। 
कृष्ण कुमार  यादव, निदेशक डाक सेवाएं, लखनऊ (मुख्यालय) परिक्षेत्र।


विश्व डाक दिवस पर विशेष : लफ्जों में छिपे जज्बात बयां करते थे ख़त 
(साभार : दैनिक जागरण, लखनऊ, 9 अक्टूबर 2018)

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