डाकटिकट बस कागज के टुकडे मात्र नहीं हैं, बल्कि अपने अन्दर इतिहास की तमाम विरासतों को भी सहेज कर रखे हुए हैं। पिछले दिनों प्रसिद्ध हिन्दी वेब पत्रिका " अभिव्यक्ति" पर विचरण करते समय ऐसी ही एक रोचक दास्ताँ से रूबरू होने का मौका मिला। मधुलता अरोरा जी ने " डाक टिकटों में बखानी तिरंगे की कहानी" शीर्षक से स्वतंत्रता का उत्सव बखूबी डाक टिकटों के माध्यम से प्रतिबिंबित किया है। इसे इस लिंक पर जाकर आप भी देख सकते हैं :
मधुलता अरोरा जी ने " डाक टिकटों में बखानी तिरंगे की कहानी" शीर्षक से स्वतंत्रता का उत्सव बखूबी डाक टिकटों के माध्यम से प्रतिबिंबित किया है। ...Its Nice one..Congts.
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ReplyDeleteBahut Khub...Madhulata ji ko badhai.
ReplyDeleteपढ़ा ही नहीं प्रिंट-आउट भी निकलकर रख लिया. बेहद संजीदगी से लिखा उत्तम आलेख.
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