(कविवर सोहन लाल द्विवेदी ने भी डाकिया को अपने शब्दों में ढाला है। मार्च 1957 में प्रकाशित उनकी कविता ‘पोस्टमैन‘ वाकई एक बेहतरीन कविता है। )
किस समय किसे दोगे क्या तुम
यह नहीं किसी को कभी ज्ञान
उत्सुकता में, उत्कंठा में
देखा करता जग महान
आ गई लाटरी निर्धन की
कैसी उसकी तकदीर फिरी
हो गया खड़ा वह उच्च भवन
तोरण, झंडी सुख की फहरी
यह भाग्य और दुर्भाग्य
सभी का फल लेकर तुम जाते
कोई रोता कोई हँसता
तुम पत्र बाँटते ही जाते
इस जग का सारा रहस्य
तुम थैले में प्रतिदिन किए बंद
आते रहते हो तुम पथ में
विधि के रचते से नए छंद।
डाकिये की महत्ता का सुंदर वर्णन! कविता पुरानी जरूर है, लेकिन उत्साह भरी! धन्यवाद!
ReplyDeleteयह भाग्य और दुर्भाग्य
ReplyDeleteसभी का फल लेकर तुम जाते
कोई रोता कोई हँसता
तुम पत्र बाँटते ही जाते
....सोहन लाल जी की कविता पढ़कर दिल खुश हो गया.बरसों पहले लिखी यह कविता आज भी उतनी ही प्रासंगिक है.
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ReplyDeleteकविवर सोहन लाल द्विवेदी की कविता आपके ब्लॉग पर पढ़कर दिल प्रसन्न हो गया. बेहद सराहनीय प्रयास है.
ReplyDeleteकविवर सोहन लाल द्विवेदी की कविता आपके ब्लॉग पर पढ़कर दिल प्रसन्न हो गया. बेहद सराहनीय प्रयास है.
ReplyDeleteइस जग का सारा रहस्य
ReplyDeleteतुम थैले में प्रतिदिन किए बंद
आते रहते हो तुम पथ में
विधि के रचते से नए छंद।........
kamaal ki rachna hai