Friday, June 26, 2009

उ0 प्र0 परिमंडल डाक कैरम प्रतियोगिता संपन्न

उ0 प्र0 परिमंडल डाक कैरम प्रतियोगिता का आयोजन कानपुर जी0पी0ओ0 भवन में 24-25 जून 2009 को संपन्न हुआ। इस प्रतियोगिता में उ0 प्र0 के विभिन्न जनपदों के कुल 26 खिलाड़ियों ने भाग लिया। प्रतियोगिता का उद्घाटन कानपुर रीजन के पोस्टमास्टर जनरल श्री सीताराम मीना एवं समापन श्री कृष्ण कुमार यादव, चीफ पोस्टमास्टर कानपुर ने किया। इस अवसर पर विजेताओं को मुख्य अतिथि के रूप में चीफ पोस्टमास्टर श्री कृष्ण कुमार यादव ने पुरस्कृत किया। इसमें प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय पुरस्कार हेतु श्री मोहम्मद ओवेश (नोयडा मुख्य डाकघर), श्री के0एस0 नेगी, श्री वी0जे0 केवट (निदेशक डाक लेखा, लखनऊ) व सांत्वना पुरस्कार श्री शेखर कुमार (निदेशक डाक लेखा, लखनऊ) एवं श्री इमरान खान (नोयडा मुख्य डाकघर) को प्रदान किया गया। उ0प्र0 डाक कैरम प्रतियोगिता के विजेता अक्टूबर में भोपाल में आयोजित होने वाली अखिल भारतीय डाक कैरम प्रतियोगिता में भाग लेंगे। गौरतलब है कि पिछले वर्ष अखिल भारतीय डाक कैरम प्रतियोगिता मैसूर में आयोजित हुई थी, जिसमें उत्तर प्रदेश के मो0 ओवेस एवं इमरान खान को डबल्स में गोल्ड मेडल मिला था। इन दोनों खिलाड़ियों ने भी इस प्रतियोगिता में भाग लिया। श्री कृष्ण कुमार यादव ने अपने संबोधन में खिलाड़ियों की हौसला आफजाई करते हुए कहा कि इस तरह के खेलकूद एवं वेलफेयर संबंधी गतिविधियों को डाक विभाग सदैव से प्रोत्साहन देता रहा है जिससे कर्मचारियों के मनोबल में वृद्धि होती है।

Monday, June 22, 2009

गाँधी और नेहरू की ऐतिहासिक चिट्ठियाँ

चिट्ठियाँ-पत्रों का अपना इतिहास है। हर पत्र अपने अन्दर एक कहानी छुपाये हुए है। स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान और उसके बाद प्रतिष्ठित राजनेताओं द्वारा लिखे गये पत्र सिर्फ शब्द मात्र नहीं बल्कि इतिहास की धरोहर है। वक्त बीतने के साथ यह धरोहर बहुमूल्य होती गईं और यही कारण है कि आज इनकी नीलामी करोड़ों रूपये में होती है।

लंदन की मशहूर नीलामी संस्था क्रिस्टी 14 जुलाई, 2009 को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी एवं प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की चिट्ठियाँ, पोस्टकार्ड और कुछ कागजात नीलाम करने जा रही है। इनमें उर्दू में लिखे वो तीन पत्र भी शामिल हैं जिन्हें गाँधी जी ने इस्लाम के विद्वान और तब की मशहूर हस्ती मौलाना अब्दुल बारी को लिखे थे। इन पत्रों में हिंदू-मुस्लिम संबंध, लखनऊ में सांप्रदायिक तनाव और गाँधी व बारी के बीच दोस्ती की चर्चा है। इस नीलामी में महात्मा गाँधी के उर्दू में हस्ताक्षर वाले दो पोस्टकार्ड भी शामिल हंै। ये पोस्टकार्ड उर्दू के कवि हामिदउल्ला अफसर को भेजे गए थे। इसी क्रम में नेहरू जी के हस्ताक्षर वाले 29 पत्रों की एक श्रृंखला भी नीलाम की जाएगी। नेहरू जी के इन पत्रों में कश्मीर मुद्दा, साराभाई के राजनीतिक अभियानों, देश के विभाजन के बाद अपने घर से विस्थापित हुए मुसलमानों का पुनर्वास और दिल्ली में घरविहीन बच्चों के लिए शुरू की गई मानवीय परियोजना की चर्चा है। 3 अगस्त, 1953 को लिखे एक पत्र में नेहरू जी ने बताया है कि वह हर कीमत पर अपने निर्णय के अनुसार काम करेंगे। उन्होंने लिखा है- जो हो रहा है उसका कश्मीर में ही नहीं, पूरे भारत और पाकिस्तान में क्या परिणाम होने वाला है, इसके बारे में मैं शायद आपसे ज्यादा बेहतर ढंग से जानता हूँ। यह पत्र कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला को हटाए जाने से पहले लिखा गया है। निश्चिततः तत्कालीन इतिहास और परिवेश को सहेजे हुए ये पत्र न सिर्फ अमूल्य विरासत हैं बल्कि हमारी धरोहर भी हैं।

Tuesday, June 16, 2009

डाक टिकट संग्रहः एक लाभप्रद शौक

डाक टिकट संग्रह केवल एक शौक ही नहीं बल्कि एक ज्ञानवर्द्धक व लाभप्रद मनोरंजन भी है। सामान्यतः डाक टिकट एक छोटा सा कागज का टुकड़ा दिखता है, पर इसका महत्व और कीमत दोनों ही इससे काफी ज्यादा है। डाक टिकट किसी भी राष्ट्र की सभ्यता, संस्कृति एवं विरासत के प्रतिबिम्ब हैं जिसके माध्यम से वहाँ के इतिहास, कला, विज्ञान, व्यक्तित्व, वनस्पति, जीव-जन्तु, राजनयिक सम्बन्ध एवं जनजीवन से जुडे़ विभिन्न पहलुओं की जानकारी मिलती है। मन को मोह लेने वाली जीवन शक्ति से भरपूर डाक टिकटों का संकलन लोगों के सांस्कृतिक लगाव, विविधता एवं सुरूचिपूर्ण चयन का भी परिचायक है। रंग-बिरंगे डाक टिकटों का संग्रह करने वाले लोग जहाँ इस शौक के माध्यम से परस्पर मित्रता में बँधकर सम्बन्धों को नया आयाम देते हैं वहीं इसके व्यवहारिक पहलुओं का भी बखूबी इस्तेमाल करते हैं। मसलन रंग-बिरंगे टिकटों से जहाँ खूबसूरत ग्रीटिंग कार्ड बनाये जा सकते हैं वहीं इनकी खूबसूरती को फ्रेम में भी कैद किया जा सकता है। बचपन से ही बच्चों को फिलेटली के प्रति उत्साहित कर उनको अपनी संस्कृति, विरासत एवम् जनजीवन से जुड़े अन्य पहलुओं के बारे में मनोरंजक रूप से बताया जा सकता है।

डाक-टिकटों के संकलन का सबसे आसान तरीका ‘फिलेटलिक जमा खाता योजना’ है। जिसके तहत न्यूनतम रूपये 200/- जमा करके खाता खोला जा सकता है और भारतीय डाक विभाग देय मूल्य के बराबर रंगीन डाक टिकट, प्रथम दिवस आवरण और विवरणिका खाताधारक के पते पर हर माह बिना किसी अतिरिक्त मूल्य के पहुँचाता है। अपने किसी खास रिश्तेदार या मित्र को सरप्राइज गिट देने के लिए भी फिलेटलिक जमा खाता एक अनूठी चीज है और घर बैठे-बैठे खूबसूरत डाक-टिकट पाने वाला वह रिश्तेदार/दोस्त भी अचरज में पड़ जायेगा कि उस पर इतनी खूबसूरत मेहरबानी करने वाला शख्स कौन हो सकता है? इसके अलावा डाक विभाग वर्ष भर में जारी सभी टिकटों अथवा किसी थीम विशेष के डाक-टिकटों को समेटकर एक विशेष ‘स्टैम्प कलेक्टर्स पैक’ जारी करता है जो आज की विविधतापूर्ण दुनिया में एक अनूठा उपहार भी हो सकता है। और तो और, डाक-विभाग द्वारा सन् 1999 से प्रति वर्ष आयोजित ‘डाक टिकट डिजाइन प्रतियोगिता’ के विजेता की डिजाइन को अगले बाल-दिवस पर डाक-टिकट के रूप में जारी किया जाता है। इसी प्रकार 1998 से भारतीय डाक द्वारा आयोजित ‘डाक टिकट लोकप्रियता मतदान’ में प्रति वर्ष भाग लेकर सर्वोत्तम डाक-टिकटों का चुनाव किया जा सकता है।

फिलेटली को यूँ ही शौकों का राजा नहीं कहा जाता, वस्तुतः यह चीज ही ऐसी है। एक तरफ फिलेटली के माध्यम से अपनी सभ्यता और संस्कृति के गुजरे वक्त को आईने में देखा जा सकता है, वहीं इस नन्हें राजदूत का हाथ पकड़ कर नित नई-नई बातें भी सीखने को मिलती हैं। निश्चिततः आज के व्यस्ततम जीवन एवम् प्रतिस्पर्धात्मक युग में फिलेटली से बढ़कर कोई भी रोचक और ज्ञानवर्द्धक शौक नहीं हो सकता। व्यक्तित्व परिमार्जन के साथ-साथ यह ज्ञान के भण्डार में भी वृद्धि करता है। संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति फ्रेंकलिन डी0 रूजवेल्ट ने डाक-टिकट संग्रह के सम्बन्ध में कहा था- “The best thing about stamp collecting is that the enthusiasm which it arouses in youth increases as the years pass. It dispels boredom, enlarges our vision, broadens our knowledge and in innumerable ways enriches our life. I recommend stamp collecting because I really believe that it makes one a better citizen.”

Sunday, June 14, 2009

डाक टिकट संग्रह हेतु जरूरी बातें

आज विश्व के तमाम देशों द्वारा विभिन्न विषय वस्तुओं पर डाक टिकट जारी किये जा रहे हैं। सभी डाक टिकटों का संकलन न तो सम्भव है व न ही व्यावहारिक ही। डाक टिकट संग्रह हेतु जरूरी है कि किसी खास विषयवस्तु में या खास देश या क्षेत्र के डाक टिकट संग्रह करने में अपनी रूचि के अनुसार संग्रह किया जाय। डाक टिकट संग्रह का सबसे आसान तरीका प्राप्त पत्रों पर लगे डाक टिकट हैं, जिनकी अपने मित्रों से अदला-बदली भी की जा सकती है। आवरण पर से डाक टिकट को उखाड़ने या छीलने की कोशिश न करें, वरन् लिफाफे से टिकट वाला हिस्सा थोड़ा हाशिया देकर काट लें। डाक टिकटों को सहेज कर रखने हेतु बाजार में एलबम भी मिलते हैं। डाक टिकटों को एलबम में लगाने हेतु कब्जा व चिमटी का प्रयोग करना चाहिए। डाक टिकट के आरोपण में गोंद का प्रयोग न करें क्योंकि गोंद हमेशा के लिये आपके डाक टिकटों को क्षतिग्रस्त कर देगा। कब्जे (कार्नस) छोटे पतले कागज के बने होते हैं जिनके एक ओर गोंद लगा होता है। डाक टिकट को पकड़ने के लिए चिमटी का इस्तेमाल करें, अंगुलियों से डाक टिकट मैला हो जाने की संभावना रहती है।

डाक-टिकटों का आरोपण करने से पहले अपने संग्रह को छाँट लें। क्षतिग्रस्त टिकटों को निकाल फेंकने में संकोच नहीं करें। अच्छे डाक-टिकटों को ठण्डे पानी के बर्तन में रखें और कुछ मिनटों के बाद कागज से धीरे-धीरे अलग कर लें। भिगोते समय कुछ डाक-टिकटों पर स्याही फैल सकती है, ऐसे डाक-टिकटों को अलग से भिगोना चाहिये। छुड़ाए गये डाक-टिकटों को चिमटी से उठा लें और उन्हें साफ कागज पर मुँह के बल सूखने के लिये रख दें। जैसे-जैसे वे सूखेंगे, कभी-कभी उनमें संकुचन आता जायेगा। सूखने के बाद उन्हें एक पुस्तक में कुछ घण्टों के लिये रख दें। अपने डाक-टिकटों को छाँट लंे और जैसे आप आरोपण करना चाहते हैं वैसे ही पृष्ठों पर लगा दें। कब्जा का करीब एक तिहाई हिस्सा मोड़ लें और उसकी नोक को भिगों लें व इसे डाक-टिकट की पीठ पर जोड़ दें। डाक-टिकट पर कब्जा जड़ने के बाद कब्जे के दूसरे ओर को हल्का से भिगो दें और डाक-टिकट को पृष्ठ के उचित ‘एलबम’ के पृष्ठ ग्राफ-पेपर, जो समान छोटे-छोटे वर्गों में विभक्त होते हैं पर आप डाक-टिकटों को आसानी से अंतर पर रख सकते हैं। प्रत्येक टिकट पर एक छोटा सा विवरण भी लिखना अच्छा होगा। डाक-टिकटों के संग्रह के लिये विवरण तैयार करना इस शौक का बड़ा ही आनन्ददायी पहलू है। विवरण में डाक टिकट के जारी होने की तारीख, अवसर और कलाकार का नाम इत्यादि लिखा जा सकता है। खाका तैयार करने में यह ध्यान रखें कि पृष्ठ डाक-टिकट से या विवरण से ज्यादा भर न जाएँ । दोनों का संतुलन रहना चाहिये।

Saturday, June 13, 2009

Friday, June 12, 2009

Philately:King of hobbies & hobby of Kings


(कानपुर से प्रकाशित लाइफ स्टाइल मैगजीन में फिलेटली पर के.के. यादव का लेख साभार प्रस्तुत)

Thursday, June 11, 2009

नियत डाक टिकटों से अलग हैं स्मारक/विशेष डाक टिकट

सामान्यतः लोग डाक विभाग द्वारा जारी नियत डाक टिकटों के बारे में ही जानते हंै। ये डाक टिकट विशेष रूप से दिन-प्रतिदिन की डाक-आवश्यकताओं के लिए जारी किए जाते हैं और असीमित अवधि के लिए विक्रय हेतु रखे जाते है। पर इसके अलावा डाक विभाग किसी घटना, संस्थान, विषय-वस्तु, वनस्पति व जीव-जन्तु तथा विभूतियों के स्मरण में भी डाक टिकट भी जारी करता है, जिन्हें स्मारक/विशेष डाक टिकट कहा जाता है। सामान्यतया ये सीमित संख्या मे मुद्रित किये जाते हैं और फिलेटलिक ब्यूरो/काउन्टर/प्राधिकृत डाकघरों से सीमित अवधि के लिये ही बेचे जाते हैं। नियत डाक टिकटों के विपरीत ये केवल एक बार मुद्रित किये जाते हैं ताकि पूरे विश्व में चल रही प्रथा के अनुसार संग्रहणीय वस्तु के तौर पर इनका मूल्य सुनिश्चित हो सके। परन्तु ये वर्तमान डाक टिकटों का अतिक्रमण नहीं करते और सामान्यतया इन्हें डाक टिकट संग्राहको द्वारा अपने अपने संग्रह के लिए खरीदा जाता है। इन स्मारक/ विशेष डाक टिकटों के साथ एक ‘सूचना विवरणिका’’ एवं ‘‘प्रथम दिवस आवरण’’ के रूप में एक चित्रात्मक लिफाफा भी जारी किया जाता है। डाक टिकट संग्राहक प्रथम दिवस आवरण पर लगे डाक टिकट को उसी दिन एक विशेष मुहर से विरूपित करवाते हैं। इस मुुहर पर टिकट के जारी होने की तारीख और स्थान अंकित होता है। जहाँ नियत डाक टिकटों का मुद्रण बार-बार होता है, वहीं स्मारक/विशेष डाक टिकट सिर्फ एक बार मुद्रित होते हैं। यही कारण है कि वक्त बीतने के साथ अपनी दुर्लभता के चलते वे काफी मूल्यवान हो जाते हैं।

दुनिया का सबसे मँहगा डाक-टिकट मिला रद्दी में

विश्व का सबसे मँहगा और दुर्लभतम डाक-टिकट ब्रिटिश गुयाना द्वारा सन् 1856 में जारी किया गया एक सेण्ट का डाक-टिकट है। गुलाबी कागज पर काले रंग में छपे, विश्व में एकमात्र उपलब्ध इस डाक-टिकट को ब्रिटिश गुयाना के डेमेरैरा नामक नगर में सन् 1873 में एक अंग्रेज बालक एल.वाघान ने रद्दी में पाया और छः शिलिंग मे नील मिककिनान नामक संग्रहकर्ता को बेच दिया । अन्ततः कई हाथों से गुजरते हुए इस डाक-टिकट को न्यूयार्क की राबर्ट सैगल आक्शन गैलेरीज इन्क द्वारा सन् 1981 मे 9,35,000 अमेरिकी डालर(लगभग चार करोड़ रूपये) में नीलाम कर दिया गया। खरीददार का नाम अभी भी गुप्त रखा गया है, क्योंकि विश्व के इस दुर्लभतम डाक टिकट हेतु उसकी हत्या भी की जा सकती है।

Wednesday, June 10, 2009

भारत के पहले डाक टिकट सिंदे डाक की कीमत लाखों में

डाक टिकटों की कीमत सिर्फ लिफाफों पर लगने तक ही नहीं है वरन् वक्त के साथ अपनी दुर्लभता के चलते वे काफी मूल्यवान हो जाते हैं। भारत में प्रथमतः डाक टिकट 1 जुलाई 1852 को सिन्ध के मुख्य आयुक्त सर बर्टलेफ्र्रोरे द्वारा जारी किए गए। आधे आने के इस टिकट को सिर्फ सिंध राज्य हेतु जारी करने के कारण ‘सिंदे डाक’ कहा गया एवं मात्र बम्बई-कराची मार्ग हेतु इसका प्रयोग होता था। सिंदे डाक को एशिया में जारी प्रथम डाक टिकट एवं विश्व स्तर पर जारी प्रथम सर्कुलर डाक टिकट का स्थान प्राप्त है। 1852 में जारी इस प्रथम डाक टिकट (आधे आने का सिंदे डाक) की कीमत आज करीब ढाई लाख रूपये आंकी जाती है। कालान्तर में 1 अक्टूबर 1854 को पूरे भारत हेतु महारानी विक्टोरिया के चित्र वाले डाक टिकट जारी किये गये।

Tuesday, June 9, 2009

छपाई में त्रुटि पर हुए डाक टिकट हुए लाखों-करोड़ों के

कभी-कभी कुछ डाक टिकट डिजाइन में गड़बड़ी पाये जाने पर बाजार से वापस ले किये जाते हैं ,ऐसे में उन दुर्लभ डाक टिकटों को फिलेटलिस्ट मुँहमाँगी रकम पर खरीदने को तैयार होते हैं। भारत द्वारा 1854 में प्रथम डाक टिकट के सेट में जारी चार आने वाले लिथोग्राफ में एक शीट पर महारानी विक्टोरिया का सिर टिकटों में उल्टा छप गया, इस त्रुटि के चलते इसकी कीमत आज पाँच लाख रूपये से भी अधिक है। इस प्रकार के कुल चैदह-पन्द्रह त्रुटिपूर्ण डाक टिकट ही अब उपलब्ध हैं। इसी प्रकार स्वतन्त्रता के बाद सन् 1948 में महात्मा गाँधी पर डेढ़ आना, साढे़ तीन आना, बारह आना और दस रू0 के मूल्यों में जारी डाक टिकटों पर तत्कालीन गर्वनर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने गवर्नमेण्ट हाउस में सरकारी काम में प्रयुक्त करने हेतु ‘सर्विस’ शब्द छपवा दिया। इन आलोचनाओं के बाद कि किसी की स्मृति में जारी डाक टिकटों के ऊपर ‘सर्विस’ नहीं छापा जाता, उन टिकटों को तुरन्त नष्ट कर दिया गया। पर इन दो-तीन दिनों मे जारी सर्विस छपे चार डाक टिकटों के सेट का मूल्य आज तीन लाख रूपये से अधिक है। एक घटनाक्रम में ब्रिटेन के न्यू ब्रेंजविक राज्य के पोस्टमास्टर जनरल ने डाक टिकट पर स्वयं अपना चित्र छपवा दिया। ब्रिटेन में डाक टिकटों पर सिर्फ वहाँ के राजा और रानी के चित्र छपते हैं, ऐसे में तत्कालीन महारानी विक्टोरिया ने यह तथ्य संज्ञान में आते ही डाक टिकटों की छपाई रूकवा दी पर तब तक पचास डाक टिकट जारी होकर बिक चुके थे। फलस्वरूप दुर्लभता के चलते इन डाक टिकटों की कीमत आज लाखों में है। एक रोचक घटनाक्रम में सन् 1965 में एक सोलह वर्षीय किशोर ने गरीबी खत्म करने हेतु अमेरिका के पोस्टमास्टर जनरल को सुझाव भेजा कि कुछ डाक-टिकट जानबूझ कर गलतियों के साथ छापे जायें और उनको गरीबों को पाँच-पाँच सेण्ट में बेच दिया जाय। ये गरीब इन टिकटों को संग्रहकर्ताओं को मुँहमाँगी कीमतों पर बेचकर अपना जीवन सुधार सकेंगे।

Monday, June 8, 2009

श्रृंगार-कक्ष की दीवारों से आरम्भ हुआ डाक टिकट संग्रह का शौक

सामान्यतः डाक टिकट एक छोटा सा कागज का टुकड़ा दिखता है, पर इसका महत्व और कीमत दोनों ही इससे काफी ज्यादा है। डाक टिकट वास्तव में एक नन्हा राजदूत है, जो विभिन्न देशों का भ्रमण करता है एवम् उन्हें अपनी सभ्यता, संस्कृति और विरासत से अवगत कराता है। यह किसी भी राष्ट्र के लोगों, उनकी आस्था व दर्शन, ऐतिहासिकता, संस्कृति, विरासत एवं उनकी आकांक्षाओं व आशाओं का प्रतीक है। यह मन को मोह लेने वाली जीवन शक्ति से भरपूर है।

डाक-टिकटों के संग्रह की भी एक दिलचस्प कहानी है। उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में यूरोप में एक अंग्रेज महिला को अपने श्रृंगार-कक्ष की दीवारों को डाक टिकटों से सजाने की सूझी और इस हेतु उसने सोलह हजार डाक-टिकट परिचितों से एकत्र किए और शेष हेतु सन् 1841 में ‘टाइम्स आफ लंदन’ समाचार पत्र में विज्ञापन देकर पाठकों से इस्तेमाल किए जा चुके डाक टिकटों को भेजने की प्रार्थना की- "A young lady, being desirous of covering her dressing room with cancelled Postage stamps, has been so for encouraged in her wish by private friends as to have succeeded in collecting 16,000। These, however being insufficient, she will be greatly obliged if any good natured person who may have these (otherwise useless) little articles at their disposal, would assist her in her whimsical project। Address to E.D. Mr. Butt’s Glover, Leadenhall Street, or Mr. Marshall’s Jewaller Hackeny."

इसके बाद धीमे-धीमे पूरे विश्व में डाक-टिकटों का संग्रह एक शौक के रूप में परवान चढ़ता गया। दुनिया में डाक टिकटों का प्रथम एलबम 1862 में फ्रांस में जारी किया गया। आज विश्व में डाक-टिकटों का सबसे बड़ा संग्रह ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के पास है। भारत में भी करीब पचास लाख लोग व्यवस्थित रूप से डाक-टिकटों का संग्रह करते हैं। भारत में डाक टिकट संग्रह को बढ़ावा देने के लिए प्रथम बार सन् 1954 में प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय डाक टिकट प्रदर्शनी का आयोजन किया गया । उसके पश्चात से अनेक राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय प्रदर्शनियों का आयोजन होता रहा है। वस्तुतः इन प्रदर्शनियों के द्वारा जहाँ अनेकों समृद्ध संस्कृतियों वाले भारत राष्ट्र की गौरवशाली परम्परा को डाक टिकटों के द्वारा चित्रित करके विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक सन्देशों को प्रसारित किया जाता है, वहीं दूसरी तरफ यह विभिन्न राष्ट्रों के मध्य सद्भावना एवम् मित्रता में उत्साहजनक वृद्धि का परिचायक है। इसी परम्परा में भारतीय डाक विभाग द्वारा 1968 में डाक भवन नई दिल्ली में ‘राष्ट्रीय फिलेटली संग्रहालय’ की स्थापना की और 1969 में मुम्बई में प्रथम फिलेटलिक ब्यूरो की स्थापना की गई। डाक टिकटों के अलावा मिनिएचर शीट, सोवीनियर शीट, स्टैम्प शीटलैट, स्टैम्प बुकलैट, कलैक्टर्स पैक व थीमेटिक पैक के माध्यम से भी डाक टिकट संग्रह को रोचक बनाने का प्रयास किया गया है।

Sunday, June 7, 2009

रोलैण्ड हिल बने डाक टिकटों के जनक

जिस समय पत्रों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने का शुल्क तय किया गया और वह गंतव्य पर लिखा जाने लगा तो उन्हीं दिनों इंगलैण्ड के एक स्कूल अध्यापक रोलैण्ड हिल ने देखा कि बहुत से पत्र पाने वालों ने पत्रांे को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया और पत्रों का ढेर लगा हुआ है, जिससे कि सरकारी निधि की क्षति हो रही है। यह सब देख कर उन्होंने सन् 1837 में ‘पोस्ट आफिस रिफार्म’ नामक पत्र के माध्यम से बिना दूरी के हिसाब से डाक/टिकटों की दरों में एकरूपता लाने का सुझाव दिया। उन्होंने चिपकाए जाने वाले ‘लेबिल’ की बिक्री का सुझाव दिया ताकि लोग पत्र भेजने के पहले उसे खरीदे और पत्र पर चिपका कर अपना पत्र भेजें। इस प्रकार रोलैण्ड हिल (1795-1879) को डाक टिकटों का जनक कहा जाता है। इन्हीं के सुझाव पर 6 मई 1840 को विश्व का प्रथम डाक टिकट ‘पेनी ब्लैक’ ब्रिटेन द्वारा जारी किया गया। भारत में प्रथमतः डाक टिकट 1 जुलाई 1852 को सिन्ध के मुख्य आयुक्त सर बर्टलेफ्र्रोरे द्वारा जारी किए गए। आधे आने के इस टिकट को सिर्फ ंिसन्ध राज्य हेतु जारी करने के कारण ‘सिंदे डाक’ कहा गया एवं मात्र बम्बई-कराची मार्ग हेतु इसका प्रयोग होता था। सिंदे डाक को एशिया में जारी प्रथम डाक टिकट एवं विश्व स्तर पर जारी प्रथम सर्कुलर डाक टिकट का स्थान प्राप्त है । 1 अक्टूबर 1854 को पूरे भारत हेतु महारानी विक्टोरिया के चित्र वाले डाक टिकट जारी किये गये।

1904 में भारत में सर्वप्रथम ‘स्टैम्प बुकलेट’ जारी की गयी। 1926 में इण्डिया सिक्यूरिटी प्रेस नासिक में डाक टिकटों की छपाई आरम्भ होने पर 1931 में प्रथम चित्रात्मक डाक टिकट नई दिल्ली के उद्घाटन पर जारी किया गया। 1935 में ब्रिटिश सम्राट जाॅर्ज पंचम की रजत जयन्ती के अवसर पर प्रथम स्मारक डाक टिकट जारी किया गया। स्वतन्त्रता पश्चात 21 नवम्बर 1947 को प्रथम भारतीय डाक टिकट साढे़ तीन आने का ‘‘जयहिन्द’’ जारी किया गया। सन् 1972 से इण्डिया सिक्यूरिटी प्रेस नासिक में डाक टिकटों की बहुरंगी छपाई आरम्भ हो गयी। 21 फरवरी 1911 को विश्व की प्रथम एयरमेल सेवा भारत द्वारा इलाहाबाद से नैनी के बीच आरम्भ की गयी। राष्ट्रमण्डल देशों मे भारत पहला देश है जिसने सन् 1929 में हवाई डाक टिकट का विशेष सेट जारी किया।

Saturday, June 6, 2009

वैज्ञानिक भी मुरीद हुये डाक टिकट संकलन के

सामान्यतः फिलेटली को डाक टिकटों का संकलन कहा जाता है पर बदलते वक्त के साथ फिलेटली डाक टिकटों, प्रथम दिवस आवरण, विशेष आवरण, पोस्ट मार्क, डाक स्टेशनरी एवं डाक सेवाओं से सम्बन्धित साहित्य का व्यवस्थित संग्रह एवं अध्ययन बन गया है। रंग-बिरंगे डाक टिकटों में निहित सौन्दर्य जहाँ इसका कलात्मक पक्ष है, वहीं इसका व्यवस्थित अध्ययन इसके वैज्ञानिक पक्ष को प्रदर्शित करता है।‘‘फिलेटली’’ शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के शब्द ‘फिलोस’ व ‘एटलिया’ से हुई। ‘फिलोस’ माने किसी वस्तु से प्यार और ‘एटलिया’ माने कर से मुक्त। सन् 1864 में 24 वर्षीय फ्रांसीसी व्यक्ति जार्ज हाॅर्पिन ने ‘फिलेटली’ शब्द का इजाद किया। इससे पूर्व इस विधा को ‘टिम्बरोलाॅजी’ नाम से जाना जाता था। फ्रेंच भाषा में टिम्बर का अर्थ टिकट होता है। एडवर्ड लुइन्स पेम्बर्टन को ‘साइन्टिफिक फिलेटली’ का जनक माना जाता है। डाक टिकटों के सौन्दर्य पर मोहित होने वालों की कमी नहीं है पर प्रसिद्ध नोबेल पुरस्कार प्राप्त भौतिक विज्ञानी अर्नेस्ट रदरफोर्ड डाक टिकटों पर इतना मोहित हो गये कि, एक बार उन्होंने कहा कि - ‘सभी विज्ञान या तो भौतिक विज्ञान हैं अथवा डाक टिकट संग्रह।’ (All science is either physics or stamp collecting). रदरफोर्ड का यह कथन दर्शाता है कि डाक टिकट संग्रह सिर्फ एक शौक नहीं है वरन् व्यवस्थित ज्ञान और अध्ययन का भी विषय है।

Friday, June 5, 2009

कभी फिलेटली था राजाओं का शौक

डाक-टिकटों का संग्रह अर्थात फिलेटली मानव के लोकप्रिय शौकों में से एक रहा है। इसे अपनी व्यापकता एवं सुन्दरता के चलते ‘शौकों का राजा’ कहा जाता है। एक जमाना था कि फिलेटली को सिर्फ राजाओं का शौक माना जाता था। इंग्लैण्ड के सम्राट जार्ज पंचम इस शौक के बहुत मुरीद थे। जार्ज पंचम के फिलेटली शौक के बारे में सर हेराल्ड निकोलसन ने लिखा है कि -''For seventeen years he did nothing at all but kill animals and stick in stamps.'' यही नहीं, एक बार सम्राट जार्ज पंचम को किसी डाक टिकट विक्रेता के यहाँ से डाक टिकट खरीदते उनके रिश्तेदार ने देख लिया और इसकी शिकायत उनकी पत्नी महारानी मेरी से की। इसके उत्तर में महारानी मेरी ने कहा- ‘मुझे पता है कि मेरे पति शौक हेतु डाक टिकट खरीदते हैं और यह अच्छा भी है, क्योंकि यह शौक उन्हें अन्य बुरी प्रवृतियों से दूर रखता है।’ महारानी मेरी का यह कथन एक शौक के रूप में डाक टिकट संग्रह की अद्भुत प्रासंगिकता पर भी प्रकाश डालता है। आज भी विश्व में डाक-टिकटों का सबसे बडा संग्रह ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के पास है। इसी प्रकार आस्ट्रिया के राजकुमार चाल्र्स (1882-1922) का जब राज्याभिषेक किया जा रहा था तो उन्होंने मजाक में कहा कि - ‘‘इसकी क्या जरूरत है। बेहतर होगा कि सिंहासन पर मेरी मुखाकृति अंकित एक डाक टिकट रख दी जाये।’’ बदलते वक्त के साथ राजाओं का शौक कही जाने वाली इस विधा ने आज सामान्य जनजीवन में भी उतनी ही लोकप्रियता प्राप्त कर ली है। भारत में करीब पचास लाख लोग व्यवस्थित रूप से डाक-टिकटों का संग्रह करते हैं।

विश्व पर्यावरण दिवस पर लगायें पौधे

!!! आइये धरा की रक्षा का संकल्प लें और पर्यावरण को समृद्ध करें !!!


(विश्व पर्यावरण दिवस पर पौधा लगाते भारतीय डाक सेवा के अधिकारी के.के.यादव)