Monday, December 14, 2009

अब डाकिया चिठ्ठी नहीं लाता ???

अब चिठ्ठी नहीं आती ! कॉलेज में था - बाबा का चिठ्ठी आता था , माँ और बहन का भी आता था ! चिठ्ठी मिलते ही - कई बार पढ़ता था - घर से दूर था ! फिर चिठ्ठी को तकिया के नीचे या सिरहाने के नीचे रख देता - फिर कभी मौका मिलता तो दुबारा पढ़ लेता ! बाबू जी को चिठ्ठी लिखने की आदत नहीं थी सो वो केवल पैसा ही भेजते थे ! किसी दिन डाकिये ने अगर किसी दोस्त का चिठ्ठी हमें पकडा देता तो हम दोस्त को खोज उसको चिठ्ठी सौंप देते ! बड़ा ही सकून मिलता !
मुझे चिठ्ठी लिखने की आदत हो गयी थी - लम्बा लम्बा और भावनात्मक ! बाबा , दादी , माँ - बाबू जी , बहन सब को लिखा करता था ! और फिर कई सप्ताह तक चिठ्ठी का इंतज़ार ! धीरे धीरे चिठ्ठी की जगह बाबू जी के द्वारा भेजे हुए "ड्राफ्ट" का इंतज़ार होने लगा ! और फोन भी थोडा सस्ता होने लगा ! अब धीरे धीरे बाबू जी को फ़ोन करने लगा - END MONEY - SEND MONEY !
कभी प्रेम पत्र नहीं लिखा - आज तक अफ़सोस है ! पर शादी ठीक होने के बाद - पत्नी को पत्र लिखा - जिन्दगी की कल्पना थी - अब हकीकत कितना दूर है !
अब ईमेल आता है - अनजान लोगों का ! जिनसे कभी मिला नहीं - कभी जाना नहीं - जबरदस्ती का एक रिश्ता - जिसमे खुशबू नहीं , कोई इंतज़ार नहीं ! फ़ोन पर कई बार दिल की बात नहीं कह पाते हैं लोग फिर क्यों न चिठ्ठी का सहारा लिया जाए !

रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !
(साभार-दालान)

5 comments:

  1. सही में अब चिट्टियां पढ़े लिखे वर्षों बीत गये………

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  2. वह नाज़ुक डोर थी,शब्द दिल को छूते थे.....
    चिट्ठी ? कैसी चिट्ठी ?
    -मोबाइल युग है !
    खैर ,चिट्ठी जब आती थी
    या भेजी जाती थी ,
    तो सुन्दर पन्ने की तलाश होती थी ,
    और शब्द मन को छूकर आँखों से छलक जाते थे
    ......नशा था - शब्दों को पिरोने का !
    .......अब सबके हाथ में मोबाइल है
    ............पर लोग औपचारिक हो चले हैं !
    ......मेसेज करते नहीं ,
    मेसेज पढ़ने में दिल नहीं लगता ,
    या टाइम नहीं होता !
    फ़ोन करने में पैसे !
    उठाने में कुफ्ती !
    जितनी सुविधाएं उतनी दूरियां

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  3. चिट्ठियों की तो बात ही निराली है.

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  4. डाकिया बाबू को क्यों दोष, कोई चिट्ठी लिखे तो लाये न डाकिया.

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  5. डाकिया बाबू को क्यों दोष, कोई चिट्ठी लिखे तो लाये न डाकिया.

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