Sunday, March 21, 2010

शेरशाह सूरी के घोड़े

मेरी स्मृति में
अब भी दौड़ते हैं
शेरशाह सूरी के घोड़े

घोड़ों की पीठ पर सवार जांबाज
जांबाज की पीठ पर कसा चमढ़े का थैला
चमढ़े के थैलों में भरी ढ़ेर सारी चिट्ठियां

जमीन पर सरपट दौड़ते ये घोड़े
जंगल-पहाड़-बीहड़ों को लांघते
नदी-तालाब-नालों को फांदते

जा पहुंचते है उस गांव में
जहाँ एक प्रेमिका न जाने कब से
बैठी है एक पत्र पाने के इंतजार में

पत्र पाते ही खिल जाता है
उसका मुरझाया हुआ चेहरा
बहने लगती है एक नदी
हरहराकर उसकी देह में

घोड़ों को वापिस लौटता देख
पूछती है मुमताजमहल
अपनी प्रिय सहेली से
ये घोड़े फिर कब लौटेंगे?

गोवर्धन यादव
103, कावेरी नगर, छिन्दवाड़ा (म0प्र0)

11 comments:

  1. बहुत सुन्दर. कई बार इतिहास के तले सुन्दर गीत निकल कर आते हैं. गोवर्धन जी को बधाई.

    ReplyDelete
  2. बहुत सुंदर विम्ब .....पत्रों की महत्ता आज भी है .

    ReplyDelete
  3. पत्र पाते ही खिल जाता है
    उसका मुरझाया हुआ चेहरा
    बहने लगती है एक नदी
    हरहराकर उसकी देह में
    ...सुन्दर, सार्थक भावपूर्ण रचना. बधाई.

    ReplyDelete
  4. सुन्दर, सार्थक भावपूर्ण रचना. बधाई.

    ReplyDelete
  5. बढ़िया है...

    ----------------------
    "पाखी की दुनिया" में इस बार पोर्टब्लेयर के खूबसूरत म्यूजियम की सैर

    ReplyDelete
  6. सुन्दर, सार्थक भावपूर्ण रचना. बधाई.

    ReplyDelete
  7. पत्रों की महत्ता तो कभी नहीं ख़त्म होगी. और तब तक डाकिया बाबू आपको ऐसे ही सुन्दर रचनाएँ पढाता रहेगा.

    ReplyDelete
  8. yadav ji गोवर्धन यादव ji
    ka mob no de
    kyo ki hum bhi chindwara ja rahe hai...

    mera nanihal hai chindwara
    hum unse milege wakt mila to

    ReplyDelete