मेरी स्मृति में
अब भी दौड़ते हैं
शेरशाह सूरी के घोड़े
घोड़ों की पीठ पर सवार जांबाज
जांबाज की पीठ पर कसा चमढ़े का थैला
चमढ़े के थैलों में भरी ढ़ेर सारी चिट्ठियां
जमीन पर सरपट दौड़ते ये घोड़े
जंगल-पहाड़-बीहड़ों को लांघते
नदी-तालाब-नालों को फांदते
जा पहुंचते है उस गांव में
जहाँ एक प्रेमिका न जाने कब से
बैठी है एक पत्र पाने के इंतजार में
पत्र पाते ही खिल जाता है
उसका मुरझाया हुआ चेहरा
बहने लगती है एक नदी
हरहराकर उसकी देह में
घोड़ों को वापिस लौटता देख
पूछती है मुमताजमहल
अपनी प्रिय सहेली से
ये घोड़े फिर कब लौटेंगे?
गोवर्धन यादव
103, कावेरी नगर, छिन्दवाड़ा (म0प्र0)
वाह,बढियां.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर. कई बार इतिहास के तले सुन्दर गीत निकल कर आते हैं. गोवर्धन जी को बधाई.
ReplyDeleteबहुत सुंदर विम्ब .....पत्रों की महत्ता आज भी है .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चित्र गीत!
ReplyDeleteपत्र पाते ही खिल जाता है
ReplyDeleteउसका मुरझाया हुआ चेहरा
बहने लगती है एक नदी
हरहराकर उसकी देह में
...सुन्दर, सार्थक भावपूर्ण रचना. बधाई.
सुन्दर, सार्थक भावपूर्ण रचना. बधाई.
ReplyDeleteबढ़िया है...
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"पाखी की दुनिया" में इस बार पोर्टब्लेयर के खूबसूरत म्यूजियम की सैर
सुन्दर, सार्थक भावपूर्ण रचना. बधाई.
ReplyDeleteपत्रों की महत्ता तो कभी नहीं ख़त्म होगी. और तब तक डाकिया बाबू आपको ऐसे ही सुन्दर रचनाएँ पढाता रहेगा.
ReplyDeleteGovardhan ji ko badhai..
ReplyDeleteyadav ji गोवर्धन यादव ji
ReplyDeleteka mob no de
kyo ki hum bhi chindwara ja rahe hai...
mera nanihal hai chindwara
hum unse milege wakt mila to