1920 का दौर... गाँधी जी के रूप में इस देश ने एक ऐसा नेतृत्व पा लिया था, जो सत्य के आग्रह पर जोर देकर स्वतन्त्रता हासिल करना चाहता था। ऐसे ही समय में गोरखपुर में एक अंग्रेज स्कूल इंस्पेक्टर जब जीप से गुजर रहा था तो अकस्मात एक घर के सामने आराम कुर्सी पर लेटे, अखबार पढ़ रहे एक अध्यापक को देखकर जीप रूकवा ली और बडे़ रौब से अपने अर्दली से उस अध्यापक को बुलाने को कहा । पास आने पर उसी रौब से उसने पूछा-‘‘तुम बडे़ मगरूर हो। तुम्हारा अफसर तुम्हारे दरवाजे के सामने से निकल जाता है और तुम उसे सलाम भी नहीं करते।’’ उस अध्यापक ने जवाब दिया-‘‘मैं जब स्कूल में रहता हूँ तब मैं नौकर हूँ, बाद में अपने घर का बादशाह हूँ।’’
अपने घर का बादशाह यह शख्सियत कोई और नहीं, वरन् उपन्यास सम्राट प्रेमचंद थे, जो उस समय गोरखपुर में गवर्नमेन्ट नार्मल स्कूल में सहायक अध्यापक के पद पर कार्यरत थे। 31 जुलाई 1880 को बनारस के पास लमही में जन्मे प्रेमचन्द का असली नाम धनपत राय था। आपकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम अजायब राय था।
मुंशी प्रेमचंद जी के पिता अजायब राय डाक-कर्मचारी थे सो प्रेमचंद जी अपने ही परिवार के हुए।आज उनकी जयंती पर शत-शत नमन। डाक-परिवार अपने ऐसे सपूतों पर गर्व करता है व उनका पुनीत स्मरण करता है।
मुंशी प्रेमचंद जी के पिता अजायब राय डाक-कर्मचारी थे सो प्रेमचंद जी अपने ही परिवार के हुए।आज उनकी जयंती पर शत-शत नमन। डाक-परिवार अपने ऐसे सपूतों पर गर्व करता है व उनका पुनीत स्मरण करता है।
(प्रेमचंद जी पर मेरा विस्तृत आलेख साहित्याशिल्पी पर पढ़ सकते हैं)
मुंशी जी को शत्-शत् नमन!”
ReplyDeleteबेहद रोचक जानकारी है
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुती ,शानदार....स्वर्गीय महान सामाजिक लेखक मुंशी प्रेमचंद्र जी को हार्दिक श्रधांजलि...
ReplyDeleteजानकारी पाकर अच्छा लगा. धन्यवाद.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुती....मुंशी प्रेमचंद्र जी को शत्-शत् नमन...
ReplyDeleteप्रेमचंद जी की जयंती पर शानदार रचना और उनके द्वारा उठाये गए विमर्शों की गहन पड़ताल..मुंशी प्रेमचंद जी को नमन.
ReplyDeleteकथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर आज उनकी अद्भुत लेखनी को नमन....,लखनऊ मे प्रगतिशील लेखक संघ के वे अध्यक्ष चुने गए थे यह मेरे शहर के लिए गौरव की बात है । लगभग 300 कहानियों और 8 उपन्यासों के द्वारा उन्होने हिन्दी साहित्य को जिस मुकाम पर पहुँचाया वह वंदनीय है । 'हंस' जैसी पत्रिका का संपादन भी उनके अद्भुत संपादन मे कई वर्षों तक चला जिसे अब राजेन्द्र यादव जी उनके ही पावन संस्कारों के साथ चला रहे हैं ।
ReplyDeleteकथा सम्राट को नमन!
ReplyDeleteजैसा स्वभाव वैसा ही निर्भिक लेखन....कितने हैं कथनी औऱ करनी में एकरुपता रखने वाले
ReplyDeleteकथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर उनकी अद्भुत लेखनी को नमन
ReplyDeleteInteresting....
ReplyDelete@ मनोज कुमार जी,
ReplyDeleteइस पोस्ट की चर्चा के लिए आभार...सहयोग बनाये रहें.
आप सभी लोगों ने इस पोस्ट को पसंद किया...आभार. इसी प्रकार हौसला अफजाई करते रहें.
ReplyDeletebahut rochak jankari prastut ki hai aapne.. dhnayavaad
ReplyDeleteप्रेमचंद की प्रासंगिकता कालजयी है...गंभीर आलेख..बधाई.
ReplyDeleteप्रेमचंद की प्रासंगिकता कालजयी है...गंभीर आलेख..बधाई.
ReplyDeleteप्रेमचन्द जैसा साहित्यकार आज तक नहीं पैदा हुआ...बहुत सुन्दर आलेख.
ReplyDeleteप्रेमचंद को पढना मुझे अच्छा लगता है...अच्छी रिपोर्ट.
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