Thursday, February 24, 2011

पोस्टकार्ड की दुनिया...

पोस्टकार्ड की दुनिया भी निराली है। सब कुछ खुला-खुला, कुछ भी छुपा नहीं. दूसरे शब्दों में कहें तो पारदर्शिता का सबसे सुन्दर उदहारण. दाम भी सबकी हैसियत के अन्दर. वैसे यह भी अजीब लगता है कि एक पचीस या पचास पैसे का पोस्टकार्ड इतनी कम लागत पर पूरे भारत की सैर कर लेता है. पोस्टकार्ड भी कई तरह के हो गए- साधारण पोस्टकार्ड, जवाबी पोस्टकार्ड, मेघदूत पोस्टकार्ड, प्रिंटेड पोस्टकार्ड, कम्पटीशन पोस्टकार्ड. हर पोस्टकार्ड की अपनी खूबियाँ हैं. मसलन, मेघदूत पोस्टकार्ड के एक ही हिस्से में लिखा जा सकता है, दूसरी ओर विज्ञापन होता है. तभी तो यह सबसे सस्ता अर्थात मात्र पचीस पैसे का है. कम्पटीशन पोस्टकार्ड किसी भी प्रतियोगिता सम्बन्धी जवाब के लिए प्रयुक्त होता है. अब कोई पहले भी कह ले कि पोस्टकार्ड का उतना चलन नहीं रहा, पर साहित्य की दुनिया तो इसके बिना अधूरी है. किसी पत्र-पत्रिका में कोई कविता, कहानी या लेख पसंद आया तो झट से पोस्टकार्ड पर दो लाइन लिखकर भेज दिया. कवि और लेखक भी खुश कि उनके चाहने वाले हैं और पोस्टकार्ड से ही आभार भी व्यक्त कर दिया. अब तो सुप्रीम कोर्ट भी पोस्टकार्ड द्वारा भेजी गई शिकायतों का संज्ञान लेता है. तमाम राजनैतिक दल और एन. जी. ओ. भी पोस्टकार्ड पर सन्देश लिखकर लोगों को जागरूक बनाये रखते हैं. जब भी कभी किसी मुद्दे पर आवाज़ उठानी हो तो हजारों पोस्टकार्ड पर सन्देश लिखकर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री इत्यादि के पास पोस्ट करवा देते हैं.

आज की व्यस्त भरी दुनिया में पोस्टकार्ड बड़े काम की चीज है. कोई कहेगा कि एस. एम. एस. सस्ता होता है, पर मोबाईल खरीदने का झंझट और फिर हर किसी का मोबाईल नंबर हर किसी के पास हो जरुरी भी नहीं. ई-मेल करने के लिए कम्यूटर और इंटरनेट-कनेक्शन होना चाहिए पर पोस्टकार्ड के लिए ऐसा कुछ भी नहीं. किसी को भी सुन्दर से शब्द लिखिए और टहलते-टहलते नजदीक के लेटर-बाक्स में पोस्ट कर आइये. इसी बहाने थोडा घूमना-फिरना भी हो जायेगा वरना इस ई-मेल और मोबाईल ने तो आदमी को जड़ ही बना दिया है. इंस्टेंट होने के चक्कर में न जाने कितनी बीमारियाँ व्यक्ति को घेरे जा रही हैं. कभी गुरु जी लोग बच्चों की राइटिंग देखकर उसके होनहार गुणों को पहचान लेते थे और ज्योतिषी इसी आधार पर लोगों का व्यक्तित्व भी गढ़ देते थे, पर अब तो सुलेखन बीते दिनों की बात हो गई. तो आइये न एक बार फिर से किसी को सुन्दर सा पोस्टकार्ड लिखते हैं की वह रायटिंग देखकर दूर से ही पहचान ले कि किसने यह सुन्दर सा पोस्टकार्ड भेजा है !!

7 comments:

  1. अच्छी जानकारी,आभार.

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  2. जब मोबाइल होता नहीं था, लैंडलाइन फोन एक बार खराब हो गया तो 15 दिन से पहले ठीक नहीं होता था, पीसीओ पर लंबी लाइनें होती थीं तब दिल्ली जैसे महानगर में किसी से संपर्क करने के लिये मेरे जैसे लोग पोस्टकार्ड का सहारा लेते थे। 24 घंटे में संदेश डिलीवर। अब ना तो डाकघर दिखते हैं ना लाल बक्से। वैसे भी मेरा तो ये मानना है कि सिर्फ शौक के लिये पोस्टकार्ड डालना ठीक नहीं है क्योंकि 50 पैसे के पोस्टकार्ड की लागत और हैंडलिंग चार्ज मुझे नही लगता कि डेढ़ रुपये से कम पड़ता होगा। लेकिन पोस्टकार्ड को लेकर जितनी बातें आपने लिखी हैं मैं उनसे सौ फीसदी सहमत हूं।

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  3. http://andamannicobarposts.blogspot.com/

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  4. मैं तो अभी भी पोस्टकार्ड पर मित्रों को चिट्ठियां लिखता हूँ..आनंद ही आनंद और बचत भी.

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  5. बहुत सुन्दर और समसामयिक पोस्ट...बधाई.

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