Monday, November 7, 2011

ख़त तुम्हारा


ख़त मिला तुम्हारा,
पते बगैर पहुँचा मुझ तक ,
हवाएं जानती हैं खूब,
तुम्हारे ख़त लाना मुझ तक,

चली दिल से तुम्हारे,
वो मेरे घर के रास्ते,
उन्हें पता है, तुम्हारे ख़त
होते बस मेरे वास्ते,

नाम भी न लिखा अपना,
फिर भी मैं जान गया,
तुम्हारी हिना की खुशबू से,
ये ख़त पहचान गया,

कोई तहरीर नहीं इसमें,
पर मैं सब जानता हूँ,
तुम्हारे अश्कों की लिखावट,
खूब पहचानता हूँ,

मुझे मालूम है न आयेंगे,
कभी ख़त आज के बाद,
तुम्हें मालूम है न लिखोगी,
कोई ख़त आज के बाद,

तुम्हें पता है, मैं मजबूरियां,
तुम्हारी जानता हूँ,
न होना परेशां कभी तुम,
मैं ये मानता हूँ,

कि तुम्हें शिकवा नहीं मुझसे,
मैं तुमसे नाराज़ नहीं
हम वो एहसास हैं जो ,
ख़त के मोहताज नहीं

- योगेश शर्मा

4 comments:

  1. प्रस्तुति बेजोड़ है,रचनाकार को मेरी बधाई.

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  2. वाह...ख़त के माध्यम से कही बात सीधे दिल तक पहुंची है...लाजवाब रचना...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  3. बेहतरीन प्रस्‍तुति। खत, चिट्ठी या पाती ऐसी विषयवस्‍तु है जिस पर फिल्‍मी गीतकारों से लेकर साहित्‍यकारों तक ने खूब कलम तोड़ी है। आपने भी इस कोश में बढ़ात्‍तरी करते हुए एक बढि़या रचना पोस्‍ट कर डाली है।

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