Tuesday, June 6, 2017

डाकघर ही क्यों ?

उस गरीब रिक्शा चालक ने पाई-पाई जोड़कर बैंक में खाता खुलवाया था। बड़े जतन से ₹2000 खाते में जमा किये थे। एक साल आठ महीने बाद आज उसकी लड़की को लड़के वाले देखने आ रहे हैं । पूरी उम्मीद है कि उन्हें उसकी संस्कारी बिटिया जरूर पसन्द आयेगी। "लड़के वालों के स्वागत सत्कार में कोई कमी नहीं आनी चाहिए। अच्छे से अच्छा नाश्ता लाऊंगा, लड़के वालों को उपहार भी दूंगा, पैसे मैनें बचा रखे हैं इस दिन के लिए ,वो कब काम आएंगे, पूरे दो हजार रुपए हैं और कुछ ब्याज भी तो मिलेगा बीस महीने का" यही सोचते-सोचते एक धावक की भांति वह चला जा रहा था। दूर से ही बैंक का बोर्ड देख कर गजब की फुर्ती आ गई थी उसके पैरों में। वह जल्दी से भीतर दाखिल हुआ, तुरन्त विड्राल फार्म भरकर लाईन में लग गया। आज उसे अपने साक्षर होने पर सबसे ज्यादा गर्व हो रहा था। किसी की मान-मनौव्वल जो नहीं करनी पड़ी फार्म भरवाने के लिए। अपना नंबर आते ही उसने लपक कर फार्म और पासबुक उस छोटी सी खिड़की में प्रविष्ट करा दिए और इन्तजार करने लगा रुपए या यूं कह लें अपनी बेटी के सुनहरे दिन हाथ में आने का।

"आपके खाते में जमा रकम शून्य है, पैसे जमा कराइए नहीं तो खाता बन्द हो जाएगा"- क्लर्क की ये आवाज उसने भी सुनी पर वो पलट कर इधर उधर वाले व्यक्ति को देखने लगा कि शायद ये कथन उसके लिए कहा गया है, क्योंकि उसके अपने खाते में तो पूरे दो हजार रूपए जमा हैं ।

"मैं आप ही से कह रहा हूं रामस्वरूप जी, आपके खाते में चौदह रुपए पिचहत्तर नये पैसे हैं " 

सुनकर वो ऐसे स्तब्ध था मानो किसी ने पिघला हुआ कांच डाल दिया हो उसके कान में, "ऐसा कैसे हो सकता है बाबू जी, आप ठीक से देखिए पूरे दो हजार रूपए हैं मेरे खाते में"

इस बार क्लर्क थोडा़ मुखर हुआ, बोला-" आप दुरुस्त फरमा रहे हैं पर सरकार ने नियम बदल दिए हैं। अब आपको खाते में न्यूनतम जमाराशि ₹ 5000 रखनी होगी नहीं तो दण्डस्वरूप आपके खाते से प्रतिमाह 100 रुपए की राशि काट ली जाएगी। आपके साथ यही हुआ है रामस्वरूप जी! न्यूनतम राशि न होने से आपके खाते से भी प्रतिमाह 100 रूपया इस प्रकार 20 महीने में 2000 रुपए की कटौती की गयी है, रामस्वरूप जी"- कहकर क्लर्क उसके पीछे खड़े ग्राहक को पुकारने लगा।

संज्ञाशून्य उस गरीब को भीड़ ने कब लाईन के बाहर कर दिया उसे पता ही नहीं चला।

टूटे कदमों से वह बैंक से बाहर निकल ही रहा था कि उसे चिर परिचित आवाज सुनाई दी "राम राम भैया" 

अरे! राम राम बंशी काका !

उसने उखड़े मन से कहा ! 

बंशी काका की अनुभवी निगाहों से रामस्वरूप का दुख छुप न सका, बोले - क्या हुआ भैया? इतने दुखी क्यों हो?

क्या बताऊं काका, बड़े जतन से दो हजार रुपये बचाकर बैंक में जमा कराये थे, आज बेटी के लिये रिश्ता आनेवाला है तो सोचा थोड़ा पैसा निकाल आऊं, मेहमानों की आवभगत में काम आयेगा लेकिन....

इसके आगे उसके मुंह से बोल तो न फूटे पर हां आंखों से आंसू जरुर छलक पड़े। 

लेकिन हुआ क्या? यह तो बताओ? बंशी काका ने दिलासा देते हुए पूछा !

आंसुओं को काबू करने का प्रयास करते हुए उसने बताया कि कैसे उसके पसीने की कमाई बैंक डकार गया ! 

उसकी बात सुनकर बंशी काका के सामने अपने गांव के डाकिये की सूरत तैरने लगी ।

थोड़ा ठहर कर वे बोले- भैया पिछले साल ही मेरा डाकिया मेरे घर आया था और समझा रहा था कि आजकल डाकघर भी बैंक बन गये है। और हां यह भी बता रहा था कि डाकघर में बचत खाता खुलवाने के फायदे ही फायदे हैं जैसे कि डाकघर बचत खाता केवल पचास रुपये से खोल सकते हैं, हजारों रुपये बेलेंस रखने की बंदिश नहीं है। वह तो यह भी बता रहा था कि केवल 12 रुपये की सालाना किश्त कटती है और हमारा बीमा भी है अपने गांव के मेरे डाकघर खाते से देशभर में कहीं भी लेनदेन कर सकते हैं, डाकघर इसकी कोई फीस भी नहीं लेता है और हां, आजकल तो डाकघर बचत खाते पर एटीएम कार्ड भी फ्री मिल रहा है । बैंकों में चार पांच से ज्यादा लेनदेन कर लो तो उसका भी पैसा काट लेते हैं पर डाकघर में आप रोज लेनदेन करो तो भी एक धेला तक नहीं कटता । सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस एटीएम कार्ड से किसी भी बैंक की एटीएम मशीन से पैसा निकाल सकते हैं.... चहकते हुए बंशी काका ने रामस्वरुप का हाथ पकड़ा और कहा आओ मेरे साथ ! 

बंशी काका की बातों से रामस्वरुप प्रभावित हो चला था, वह प्रतिकार न कर सका और न ही यह पूछ पाया कि कहां चलना है?

बैंक परिसर में लगे बैंक के एटीएम में जाकर बंशी काका ने अपनी जेब से डाकघर का एटीएम कार्ड निकाला और देखते ही देखते अपने डाकघर खाते से पांच सौ रुपये निकाले और धीरे से पांच सौ की वह नोट रामस्वरूप के हाथ में थमाते हुए बोले- ये लो और जाओ, मेहमानों का खुशी-खुशी स्वागत करो ! 

"पर काका.... " वह अचकचाते हुए बोला लेकिन बंशी काका तो अपनी सायकल पर सवार हो चुके थे । वह सोचने लगा इस बार तो बंशी काका भगवान बनकर आ गये वरना इन बैंक वालों ने तो नाक कटवाने में कोई कसर ना रखी थी और जरुरी नहीं कि हर बार बंशी काका जैसा फरिश्ता मिल ही जाये। उसने निश्चय किया कि वह आज ही डाकघर में अपना बचत खाता खुलवाकर रहेगा । बड़े आत्मविश्वास से अब वह अपने घर की ओर चल दिया था....!!

1 comment:

Post said...

बेहद मार्मिक और प्रेरक पोस्ट।