Friday, June 26, 2009
उ0 प्र0 परिमंडल डाक कैरम प्रतियोगिता संपन्न
Monday, June 22, 2009
गाँधी और नेहरू की ऐतिहासिक चिट्ठियाँ

लंदन की मशहूर नीलामी संस्था क्रिस्टी 14 जुलाई, 2009 को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी एवं प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की चिट्ठियाँ, पोस्टकार्ड और कुछ कागजात नीलाम करने जा रही है। इनमें उर्दू में लिखे वो तीन पत्र भी शामिल हैं जिन्हें गाँधी जी ने इस्लाम के विद्वान और तब की मशहूर हस्ती मौलाना अब्दुल बारी को लिखे थे। इन पत्रों में हिंदू-मुस्लिम संबंध, लखनऊ में सांप्रदायिक तनाव और गाँधी व बारी के बीच दोस्ती की चर्चा है। इस नीलामी में महात्मा गाँधी के उर्दू में हस्ताक्षर वाले दो पोस्टकार्ड भी शामिल हंै। ये पोस्टकार्ड उर्दू के कवि हामिदउल्ला अफसर को भेजे गए थे। इसी क्रम में नेहरू जी के हस्ताक्षर वाले 29 पत्रों की एक श्रृंखला भी नीलाम की जाएगी। नेहरू जी के इन पत्रों में कश्मीर मुद्दा, साराभाई के राजनीतिक अभियानों, देश के विभाजन के बाद अपने घर से विस्थापित हुए मुसलमानों का पुनर्वास और दिल्ली में घरविहीन बच्चों के लिए शुरू की गई मानवीय परियोजना की चर्चा है। 3 अगस्त, 1953 को लिखे एक पत्र में नेहरू जी ने बताया है कि वह हर कीमत पर अपने निर्णय के अनुसार काम करेंगे। उन्होंने लिखा है- जो हो रहा है उसका कश्मीर में ही नहीं, पूरे भारत और पाकिस्तान में क्या परिणाम होने वाला है, इसके बारे में मैं शायद आपसे ज्यादा बेहतर ढंग से जानता हूँ। यह पत्र कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला को हटाए जाने से पहले लिखा गया है। निश्चिततः तत्कालीन इतिहास और परिवेश को सहेजे हुए ये पत्र न सिर्फ अमूल्य विरासत हैं बल्कि हमारी धरोहर भी हैं।
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Tuesday, June 16, 2009
डाक टिकट संग्रहः एक लाभप्रद शौक

डाक-टिकटों के संकलन का सबसे आसान तरीका ‘फिलेटलिक जमा खाता योजना’ है। जिसके तहत न्यूनतम रूपये 200/- जमा करके खाता खोला जा सकता है और भारतीय डाक विभाग देय मूल्य के बराबर रंगीन डाक टिकट, प्रथम दिवस आवरण और विवरणिका खाताधारक के पते पर हर माह बिना किसी अतिरिक्त मूल्य के पहुँचाता है। अपने किसी खास रिश्तेदार या मित्र को सरप्राइज गिट देने के लिए भी फिलेटलिक जमा खाता एक अनूठी चीज है और घर बैठे-बैठे खूबसूरत डाक-टिकट पाने वाला वह रिश्तेदार/दोस्त भी अचरज में पड़ जायेगा कि उस पर इतनी खूबसूरत मेहरबानी करने वाला शख्स कौन हो सकता है? इसके अलावा डाक विभाग वर्ष भर में जारी सभी टिकटों अथवा किसी थीम विशेष के डाक-टिकटों को समेटकर एक विशेष ‘स्टैम्प कलेक्टर्स पैक’ जारी करता है जो आज की विविधतापूर्ण दुनिया में एक अनूठा उपहार भी हो सकता है। और तो और, डाक-विभाग द्वारा सन् 1999 से प्रति वर्ष आयोजित ‘डाक टिकट डिजाइन प्रतियोगिता’ के विजेता की डिजाइन को अगले बाल-दिवस पर डाक-टिकट के रूप में जारी किया जाता है। इसी प्रकार 1998 से भारतीय डाक द्वारा आयोजित ‘डाक टिकट लोकप्रियता मतदान’ में प्रति वर्ष भाग लेकर सर्वोत्तम डाक-टिकटों का चुनाव किया जा सकता है।
फिलेटली को यूँ ही शौकों का राजा नहीं कहा जाता, वस्तुतः यह चीज ही ऐसी है। एक तरफ फिलेटली के माध्यम से अपनी सभ्यता और संस्कृति के गुजरे वक्त को आईने में देखा जा सकता है, वहीं इस नन्हें राजदूत का हाथ पकड़ कर नित नई-नई बातें भी सीखने को मिलती हैं। निश्चिततः आज के व्यस्ततम जीवन एवम् प्रतिस्पर्धात्मक युग में फिलेटली से बढ़कर कोई भी रोचक और ज्ञानवर्द्धक शौक नहीं हो सकता। व्यक्तित्व परिमार्जन के साथ-साथ यह ज्ञान के भण्डार में भी वृद्धि करता है। संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति फ्रेंकलिन डी0 रूजवेल्ट ने डाक-टिकट संग्रह के सम्बन्ध में कहा था- “The best thing about stamp collecting is that the enthusiasm which it arouses in youth increases as the years pass. It dispels boredom, enlarges our vision, broadens our knowledge and in innumerable ways enriches our life. I recommend stamp collecting because I really believe that it makes one a better citizen.”
Sunday, June 14, 2009
डाक टिकट संग्रह हेतु जरूरी बातें

डाक-टिकटों का आरोपण करने से पहले अपने संग्रह को छाँट लें। क्षतिग्रस्त टिकटों को निकाल फेंकने में संकोच नहीं करें। अच्छे डाक-टिकटों को ठण्डे पानी के बर्तन में रखें और कुछ मिनटों के बाद कागज से धीरे-धीरे अलग कर लें। भिगोते समय कुछ डाक-टिकटों पर स्याही फैल सकती है, ऐसे डाक-टिकटों को अलग से भिगोना चाहिये। छुड़ाए गये डाक-टिकटों को चिमटी से उठा लें और उन्हें साफ कागज पर मुँह के बल सूखने के लिये रख दें। जैसे-जैसे वे सूखेंगे, कभी-कभी उनमें संकुचन आता जायेगा। सूखने के बाद उन्हें एक पुस्तक में कुछ घण्टों के लिये रख दें। अपने डाक-टिकटों को छाँट लंे और जैसे आप आरोपण करना चाहते हैं वैसे ही पृष्ठों पर लगा दें। कब्जा का करीब एक तिहाई हिस्सा मोड़ लें और उसकी नोक को भिगों लें व इसे डाक-टिकट की पीठ पर जोड़ दें। डाक-टिकट पर कब्जा जड़ने के बाद कब्जे के दूसरे ओर को हल्का से भिगो दें और डाक-टिकट को पृष्ठ के उचित ‘एलबम’ के पृष्ठ ग्राफ-पेपर, जो समान छोटे-छोटे वर्गों में विभक्त होते हैं पर आप डाक-टिकटों को आसानी से अंतर पर रख सकते हैं। प्रत्येक टिकट पर एक छोटा सा विवरण भी लिखना अच्छा होगा। डाक-टिकटों के संग्रह के लिये विवरण तैयार करना इस शौक का बड़ा ही आनन्ददायी पहलू है। विवरण में डाक टिकट के जारी होने की तारीख, अवसर और कलाकार का नाम इत्यादि लिखा जा सकता है। खाका तैयार करने में यह ध्यान रखें कि पृष्ठ डाक-टिकट से या विवरण से ज्यादा भर न जाएँ । दोनों का संतुलन रहना चाहिये।
Saturday, June 13, 2009
Friday, June 12, 2009
Thursday, June 11, 2009
नियत डाक टिकटों से अलग हैं स्मारक/विशेष डाक टिकट

दुनिया का सबसे मँहगा डाक-टिकट मिला रद्दी में
विश्व का सबसे मँहगा और दुर्लभतम डाक-टिकट ब्रिटिश गुयाना द्वारा सन् 1856 में जारी किया गया एक सेण्ट का डाक-टिकट है। गुलाबी कागज पर काले रंग में छपे, विश्व में एकमात्र उपलब्ध इस डाक-टिकट को ब्रिटिश गुयाना के डेमेरैरा नामक नगर में सन् 1873 में एक अंग्रेज बालक एल.वाघान ने रद्दी में पाया और छः शिलिंग मे नील मिककिनान नामक संग्रहकर्ता को बेच दिया । अन्ततः कई हाथों से गुजरते हुए इस डाक-टिकट को न्यूयार्क की राबर्ट सैगल आक्शन गैलेरीज इन्क द्वारा सन् 1981 मे 9,35,000 अमेरिकी डालर(लगभग चार करोड़ रूपये) में नीलाम कर दिया गया। खरीददार का नाम अभी भी गुप्त रखा गया है, क्योंकि विश्व के इस दुर्लभतम डाक टिकट हेतु उसकी हत्या भी की जा सकती है।
Wednesday, June 10, 2009
भारत के पहले डाक टिकट सिंदे डाक की कीमत लाखों में

Tuesday, June 9, 2009
छपाई में त्रुटि पर हुए डाक टिकट हुए लाखों-करोड़ों के

Monday, June 8, 2009
श्रृंगार-कक्ष की दीवारों से आरम्भ हुआ डाक टिकट संग्रह का शौक

डाक-टिकटों के संग्रह की भी एक दिलचस्प कहानी है। उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में यूरोप में एक अंग्रेज महिला को अपने श्रृंगार-कक्ष की दीवारों को डाक टिकटों से सजाने की सूझी और इस हेतु उसने सोलह हजार डाक-टिकट परिचितों से एकत्र किए और शेष हेतु सन् 1841 में ‘टाइम्स आफ लंदन’ समाचार पत्र में विज्ञापन देकर पाठकों से इस्तेमाल किए जा चुके डाक टिकटों को भेजने की प्रार्थना की- "A young lady, being desirous of covering her dressing room with cancelled Postage stamps, has been so for encouraged in her wish by private friends as to have succeeded in collecting 16,000। These, however being insufficient, she will be greatly obliged if any good natured person who may have these (otherwise useless) little articles at their disposal, would assist her in her whimsical project। Address to E.D. Mr. Butt’s Glover, Leadenhall Street, or Mr. Marshall’s Jewaller Hackeny."
इसके बाद धीमे-धीमे पूरे विश्व में डाक-टिकटों का संग्रह एक शौक के रूप में परवान चढ़ता गया। दुनिया में डाक टिकटों का प्रथम एलबम 1862 में फ्रांस में जारी किया गया। आज विश्व में डाक-टिकटों का सबसे बड़ा संग्रह ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के पास है। भारत में भी करीब पचास लाख लोग व्यवस्थित रूप से डाक-टिकटों का संग्रह करते हैं। भारत में डाक टिकट संग्रह को बढ़ावा देने के लिए प्रथम बार सन् 1954 में प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय डाक टिकट प्रदर्शनी का आयोजन किया गया । उसके पश्चात से अनेक राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय प्रदर्शनियों का आयोजन होता रहा है। वस्तुतः इन प्रदर्शनियों के द्वारा जहाँ अनेकों समृद्ध संस्कृतियों वाले भारत राष्ट्र की गौरवशाली परम्परा को डाक टिकटों के द्वारा चित्रित करके विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक सन्देशों को प्रसारित किया जाता है, वहीं दूसरी तरफ यह विभिन्न राष्ट्रों के मध्य सद्भावना एवम् मित्रता में उत्साहजनक वृद्धि का परिचायक है। इसी परम्परा में भारतीय डाक विभाग द्वारा 1968 में डाक भवन नई दिल्ली में ‘राष्ट्रीय फिलेटली संग्रहालय’ की स्थापना की और 1969 में मुम्बई में प्रथम फिलेटलिक ब्यूरो की स्थापना की गई। डाक टिकटों के अलावा मिनिएचर शीट, सोवीनियर शीट, स्टैम्प शीटलैट, स्टैम्प बुकलैट, कलैक्टर्स पैक व थीमेटिक पैक के माध्यम से भी डाक टिकट संग्रह को रोचक बनाने का प्रयास किया गया है।
Sunday, June 7, 2009
रोलैण्ड हिल बने डाक टिकटों के जनक
जिस समय पत्रों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने का शुल्क तय किया गया और वह गंतव्य पर लिखा जाने लगा तो उन्हीं दिनों इंगलैण्ड के एक स्कूल अध्यापक रोलैण्ड हिल ने देखा कि बहुत से पत्र पाने वालों ने पत्रांे को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया और पत्रों का ढेर लगा हुआ है, जिससे कि सरकारी निधि की क्षति हो रही है। यह सब देख कर उन्होंने सन् 1837 में ‘पोस्ट आफिस रिफार्म’ नामक पत्र के माध्यम से बिना दूरी के हिसाब से डाक/टिकटों की दरों में एकरूपता लाने का सुझाव दिया। उन्होंने चिपकाए जाने वाले ‘लेबिल’ की बिक्री का सुझाव दिया ताकि लोग पत्र भेजने के पहले उसे खरीदे और पत्र पर चिपका कर अपना पत्र भेजें। इस प्रकार रोलैण्ड हिल (1795-1879) को डाक टिकटों का जनक कहा जाता है। इन्हीं के सुझाव पर 6 मई 1840 को विश्व का प्रथम डाक टिकट ‘पेनी ब्लैक’ ब्रिटेन द्वारा जारी किया गया। भारत में प्रथमतः डाक टिकट 1 जुलाई 1852 को सिन्ध के मुख्य आयुक्त सर बर्टलेफ्र्रोरे द्वारा जारी किए गए। आधे आने के इस टिकट को सिर्फ ंिसन्ध राज्य हेतु जारी करने के कारण ‘सिंदे डाक’ कहा गया एवं मात्र बम्बई-कराची मार्ग हेतु इसका प्रयोग होता था। सिंदे डाक को एशिया में जारी प्रथम डाक टिकट एवं विश्व स्तर पर जारी प्रथम सर्कुलर डाक टिकट का स्थान प्राप्त है । 1 अक्टूबर 1854 को पूरे भारत हेतु महारानी विक्टोरिया के चित्र वाले डाक टिकट जारी किये गये।
1904 में भारत में सर्वप्रथम ‘स्टैम्प बुकलेट’ जारी की गयी। 1926 में इण्डिया सिक्यूरिटी प्रेस नासिक में डाक टिकटों की छपाई आरम्भ होने पर 1931 में प्रथम चित्रात्मक डाक टिकट नई दिल्ली के उद्घाटन पर जारी किया गया। 1935 में ब्रिटिश सम्राट जाॅर्ज पंचम की रजत जयन्ती के अवसर पर प्रथम स्मारक डाक टिकट जारी किया गया। स्वतन्त्रता पश्चात 21 नवम्बर 1947 को प्रथम भारतीय डाक टिकट साढे़ तीन आने का ‘‘जयहिन्द’’ जारी किया गया। सन् 1972 से इण्डिया सिक्यूरिटी प्रेस नासिक में डाक टिकटों की बहुरंगी छपाई आरम्भ हो गयी। 21 फरवरी 1911 को विश्व की प्रथम एयरमेल सेवा भारत द्वारा इलाहाबाद से नैनी के बीच आरम्भ की गयी। राष्ट्रमण्डल देशों मे भारत पहला देश है जिसने सन् 1929 में हवाई डाक टिकट का विशेष सेट जारी किया।
1904 में भारत में सर्वप्रथम ‘स्टैम्प बुकलेट’ जारी की गयी। 1926 में इण्डिया सिक्यूरिटी प्रेस नासिक में डाक टिकटों की छपाई आरम्भ होने पर 1931 में प्रथम चित्रात्मक डाक टिकट नई दिल्ली के उद्घाटन पर जारी किया गया। 1935 में ब्रिटिश सम्राट जाॅर्ज पंचम की रजत जयन्ती के अवसर पर प्रथम स्मारक डाक टिकट जारी किया गया। स्वतन्त्रता पश्चात 21 नवम्बर 1947 को प्रथम भारतीय डाक टिकट साढे़ तीन आने का ‘‘जयहिन्द’’ जारी किया गया। सन् 1972 से इण्डिया सिक्यूरिटी प्रेस नासिक में डाक टिकटों की बहुरंगी छपाई आरम्भ हो गयी। 21 फरवरी 1911 को विश्व की प्रथम एयरमेल सेवा भारत द्वारा इलाहाबाद से नैनी के बीच आरम्भ की गयी। राष्ट्रमण्डल देशों मे भारत पहला देश है जिसने सन् 1929 में हवाई डाक टिकट का विशेष सेट जारी किया।
Saturday, June 6, 2009
वैज्ञानिक भी मुरीद हुये डाक टिकट संकलन के
सामान्यतः फिलेटली को डाक टिकटों का संकलन कहा जाता है पर बदलते वक्त के साथ फिलेटली डाक टिकटों, प्रथम दिवस आवरण, विशेष आवरण, पोस्ट मार्क, डाक स्टेशनरी एवं डाक सेवाओं से सम्बन्धित साहित्य का व्यवस्थित संग्रह एवं अध्ययन बन गया है। रंग-बिरंगे डाक टिकटों में निहित सौन्दर्य जहाँ इसका कलात्मक पक्ष है, वहीं इसका व्यवस्थित अध्ययन इसके वैज्ञानिक पक्ष को प्रदर्शित करता है।‘‘फिलेटली’’ शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के शब्द ‘फिलोस’ व ‘एटलिया’ से हुई। ‘फिलोस’ माने किसी वस्तु से प्यार और ‘एटलिया’ माने कर से मुक्त। सन् 1864 में 24 वर्षीय फ्रांसीसी व्यक्ति जार्ज हाॅर्पिन ने ‘फिलेटली’ शब्द का इजाद किया। इससे पूर्व इस विधा को ‘टिम्बरोलाॅजी’ नाम से जाना जाता था। फ्रेंच भाषा में टिम्बर का अर्थ टिकट होता है। एडवर्ड लुइन्स पेम्बर्टन को ‘साइन्टिफिक फिलेटली’ का जनक माना जाता है। डाक टिकटों के सौन्दर्य पर मोहित होने वालों की कमी नहीं है पर प्रसिद्ध नोबेल पुरस्कार प्राप्त भौतिक विज्ञानी अर्नेस्ट रदरफोर्ड डाक टिकटों पर इतना मोहित हो गये कि, एक बार उन्होंने कहा कि - ‘सभी विज्ञान या तो भौतिक विज्ञान हैं अथवा डाक टिकट संग्रह।’ (All science is either physics or stamp collecting). रदरफोर्ड का यह कथन दर्शाता है कि डाक टिकट संग्रह सिर्फ एक शौक नहीं है वरन् व्यवस्थित ज्ञान और अध्ययन का भी विषय है।
Friday, June 5, 2009
कभी फिलेटली था राजाओं का शौक

विश्व पर्यावरण दिवस पर लगायें पौधे
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