Monday, June 8, 2009

श्रृंगार-कक्ष की दीवारों से आरम्भ हुआ डाक टिकट संग्रह का शौक

सामान्यतः डाक टिकट एक छोटा सा कागज का टुकड़ा दिखता है, पर इसका महत्व और कीमत दोनों ही इससे काफी ज्यादा है। डाक टिकट वास्तव में एक नन्हा राजदूत है, जो विभिन्न देशों का भ्रमण करता है एवम् उन्हें अपनी सभ्यता, संस्कृति और विरासत से अवगत कराता है। यह किसी भी राष्ट्र के लोगों, उनकी आस्था व दर्शन, ऐतिहासिकता, संस्कृति, विरासत एवं उनकी आकांक्षाओं व आशाओं का प्रतीक है। यह मन को मोह लेने वाली जीवन शक्ति से भरपूर है।

डाक-टिकटों के संग्रह की भी एक दिलचस्प कहानी है। उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में यूरोप में एक अंग्रेज महिला को अपने श्रृंगार-कक्ष की दीवारों को डाक टिकटों से सजाने की सूझी और इस हेतु उसने सोलह हजार डाक-टिकट परिचितों से एकत्र किए और शेष हेतु सन् 1841 में ‘टाइम्स आफ लंदन’ समाचार पत्र में विज्ञापन देकर पाठकों से इस्तेमाल किए जा चुके डाक टिकटों को भेजने की प्रार्थना की- "A young lady, being desirous of covering her dressing room with cancelled Postage stamps, has been so for encouraged in her wish by private friends as to have succeeded in collecting 16,000। These, however being insufficient, she will be greatly obliged if any good natured person who may have these (otherwise useless) little articles at their disposal, would assist her in her whimsical project। Address to E.D. Mr. Butt’s Glover, Leadenhall Street, or Mr. Marshall’s Jewaller Hackeny."

इसके बाद धीमे-धीमे पूरे विश्व में डाक-टिकटों का संग्रह एक शौक के रूप में परवान चढ़ता गया। दुनिया में डाक टिकटों का प्रथम एलबम 1862 में फ्रांस में जारी किया गया। आज विश्व में डाक-टिकटों का सबसे बड़ा संग्रह ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के पास है। भारत में भी करीब पचास लाख लोग व्यवस्थित रूप से डाक-टिकटों का संग्रह करते हैं। भारत में डाक टिकट संग्रह को बढ़ावा देने के लिए प्रथम बार सन् 1954 में प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय डाक टिकट प्रदर्शनी का आयोजन किया गया । उसके पश्चात से अनेक राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय प्रदर्शनियों का आयोजन होता रहा है। वस्तुतः इन प्रदर्शनियों के द्वारा जहाँ अनेकों समृद्ध संस्कृतियों वाले भारत राष्ट्र की गौरवशाली परम्परा को डाक टिकटों के द्वारा चित्रित करके विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक सन्देशों को प्रसारित किया जाता है, वहीं दूसरी तरफ यह विभिन्न राष्ट्रों के मध्य सद्भावना एवम् मित्रता में उत्साहजनक वृद्धि का परिचायक है। इसी परम्परा में भारतीय डाक विभाग द्वारा 1968 में डाक भवन नई दिल्ली में ‘राष्ट्रीय फिलेटली संग्रहालय’ की स्थापना की और 1969 में मुम्बई में प्रथम फिलेटलिक ब्यूरो की स्थापना की गई। डाक टिकटों के अलावा मिनिएचर शीट, सोवीनियर शीट, स्टैम्प शीटलैट, स्टैम्प बुकलैट, कलैक्टर्स पैक व थीमेटिक पैक के माध्यम से भी डाक टिकट संग्रह को रोचक बनाने का प्रयास किया गया है।

11 comments:

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World said...

डाक-टिकटों की अनूठी दुनिया से परिचित करने के लिए आभार...वैसे भी अब खुशबूदार डाक-टिकटों के बाद अब स्वर्ण-जडित डाक टिकट भारत में जारी किये जाने की चर्चा है.फिर कौन ना इनका मुरीद होगा.

Ram Shiv Murti Yadav said...

भारत में भी करीब पचास लाख लोग व्यवस्थित रूप से डाक-टिकटों का संग्रह करते हैं...pahli najar men vishwas nahin hota.par yah bahut hi interesting hobby hai.

Anonymous said...

बहुत सुन्दर जानकारी.के.के. जी के ब्लॉग पर पहले ही इस पोस्ट को पढ़ चुका हूँ.

Dr. Brajesh Swaroop said...

Interesting information...keep it up.

Akanksha Yadav said...

आज विश्व में डाक-टिकटों का सबसे बड़ा संग्रह ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के पास है...king of hobbies & hobby of king !!!

Amit Kumar Yadav said...

***वैलेंटाइन डे की आप सभी को बहुत-बहुत बधाइयाँ***

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World said...

प्यार भरे इस सुन्दर दिवस की शुभकामनायें !!

KK Yadav said...
This comment has been removed by the author.
www.dakbabu.blogspot.com said...

Thanks for Wishes on Valentine Day.
प्यार के इस मदनोत्सव पर याद आता है हसरत मोहानी का शेर-
लिक्खा था अपने हाथों से जो तुमने एक बार।
अब तक हमारे पास है वो यादगार खत ।।

Anonymous said...

डाक टिकटों के विषय में कई रोचक जान‍कारियां आपसे मिली। आभार। ये यात्रा जारी रखिए।

Amit Kumar Yadav said...

Nice Article on Philately.