Wednesday, September 21, 2011

चिट्ठियों की दुनिया...

आपको याद है, आपने अंतिम बार कब पत्र लिखा था. वह लाल रंग का लेटर बाक्स याद है, जिसे हम बचपन में हनुमान जी का प्रतिरूप समझते थे, कि यह हमारे डाले गए पत्रों को रात में उड़कर गंतव्य स्थान तक पहुँचा देते हैं. न जाने कितनी बार स्कूल के दिनों में आपने परिजनों को रात में जागकर चिट्ठियाँ लिखी होंगीं. पर आज इंटरनेट, ई-मेल, मोबाईल ने मानो पत्रों की दुनिया ही बदल दी हो. पर चिट्ठियों में जो आत्मीयता का भाव छुपा होता है, वह अन्यत्र नहीं.

अभी एक मित्र ने बताया कि आजकल रालेगनसिद्धि डाकघर गुलजार है, जहाँ रोज अन्ना हजारे के नाम से 500-700 पत्र आ रहे हैं. फेसबुक और नेट पर किसने क्या कहा, यह अन्ना की टीम भले ही देखती हो, पर अन्ना के लिए शायद ही संभव हो पता हो? पर ये चिट्ठियाँ तो उन्हें जहाँ प्रेरित करती हैं, वहीँ इन्हें वास्तव में वे पढ़ते भी हैं. यह अलग बात है कि इन सभी का जवाब देना उनके लिए संभव नहीं है, पर चिट्ठियों की उपस्थिति उन्हें जरूर आश्वस्त करती है.

आजादी के आन्दोलन में भी चिट्ठियों का बड़ा योगदान रहा है. गाँधी जी के पास तो रोज सैकड़ों पत्र आते थे और वे व्यक्तिगत रूप से इन सभी का जवाब देते थे. महात्मा गाँधी तो पत्र लिखने में इतने सिद्धहस्त थे कि दाहिने हाथ के साथ-साथ वे बाएं हाथ से भी पत्र लिखते थे। डाक विभाग भी इतना मुस्तैद था कि मात्र 'गाँधी जी' लिखे पते के आधार पर उन्हें कहीं भी चिट्ठियाँ पहुँचा देता था. यह अनायास ही नहीं है आज भी डाक-टिकटों पर भारत में सबसे ज्यादा गाँधी जी के ही दर्शन होते हैं.

पं0 जवाहर लाल नेहरू अपनी पुत्री इन्दिरा गाँधी को जेल से भी पत्र लिखते रहे। ये पत्र सिर्फ पिता-पुत्री के रिश्तों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इनमें तात्कालिक राजनैतिक एवं सामाजिक परिवेश का भी सुन्दर चित्रण है। इन्दिरा गाँधी के व्यक्तित्व को गढ़ने में इन पत्रों का बहुत बड़ा हाथ रहा है। आज ये किताब के रूप में प्रकाशित होकर ऐतिहासिक दस्तावेज बन चुके हैं। इन्दिरा गाँधी ने इस परम्परा को जीवित रखा एवं दून में अध्ययनरत अपने बेटे राजीव गाँधी को घर की छोटी-छोटी चीजों और तात्कालिक राजनैतिक-सामाजिक परिस्थितियों के बारे में लिखती रहीं। एक पत्र में तो वे राजीव गाँधी को रीवा के महाराज से मिले सौगातों के बारे में भी बताती हैं। तमाम राजनेताओं-साहित्यकारों के पत्र समय-समय पर पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित होते रहते हैं। इनसे न सिर्फ उस व्यक्ति विशेष के संबंध में जाने-अनजाने पहलुओं का पता चलता है बल्कि तात्कालिक राजनैतिक-सामाजिक-साहित्यिक-सांस्कृतिक परिवेश के संबंध में भी बहुत सारी जानकारियाँ प्राप्त होती हैं। इसी ऐतिहासिक के कारण आज भी पत्रों की नीलामी लाखों रूपयों में होती हैं।

पत्रों को लेकर तमाम बातें कही जाती हैं. आपने वो वाली कहानी तो सुनी ही होगी, जिसमें एक किसान पैसों के लिए भगवान को पत्र लिखता है और उसका विश्वास कायम रखने के लिए पोस्टमास्टर अपने स्टाफ से पैसे एकत्र कर उसे मनीआर्डर करता है. उड़ीसा के खुर्दा जिले में एक मंदिर ऐसा भी है, जहाँ लोग ईश्वर को पत्र लिखकर अपनी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए आराधना करते हैं।

आपको पता है कि, दुनिया का सबसे पुराना ज्ञात पत्र 2009 ईसा पूर्व का बेबीलोन के खण्डहरों से मिला था, जोकि वास्तव में एक प्रेम पत्र था और मिट्टी की पटरी पर लिखा गया था। कहा जाता है कि बेबीलोन की किसी युवती का प्रेमी अपनी भावनाओं को समेटकर उससे जब अपने दिल की बात कहने बेबीलोन तक पहुँचा तो वह युवती तब तक वहाँ से जा चुकी थी। वह प्रेमी युवक अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पाया और उसने वहीं मिट्टी के फर्श पर खोदते हुए लिखा-‘‘मैं तुमसे मिलने आया था, तुम नहीं मिली।‘‘ यही दुनिया का सबसे पहला पत्र है.

कहते हैं कि पत्रों का संवेदनाओं से गहरा रिश्ता है और यही कारण है कि पत्रों से जुड़े डाक विभाग ने तमाम प्रसिद्ध विभूतियों को पल्लवित-पुष्पित किया है। अमेरिका के राष्ट्रपति रहे अब्राहम लिंकन पोस्टमैन तो भारत में पदस्थ वायसराय लार्ड रीडिंग डाक वाहक रहे। विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक व नोबेल पुरस्कार विजेता सी0वी0 रमन भारतीय डाक विभाग में अधिकारी रहे वहीं प्रसिद्ध साहित्यकार व ‘नील दर्पण‘ पुस्तक के लेखक दीनबन्धु मित्र पोस्टमास्टर थे। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लोकप्रिय तमिल उपन्यासकार पी0वी0अखिलंदम, राजनगर उपन्यास के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित अमियभूषण मजूमदार, फिल्म निर्माता व लेखक पद्मश्री राजेन्द्र सिंह बेदी, मशहूर फिल्म अभिनेता देवानन्द डाक कर्मचारी रहे हैं। उपन्यास सम्राट प्रेमचन्द जी के पिता अजायबलाल डाक विभाग में ही क्लर्क रहे। ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता मशहूर लेखिका महाश्वेता देवी ने आरम्भ में डाक-तार विभाग में काम किया था तो प्रसिद्ध बाल साहित्यकार डाॅ0 राष्ट्रबन्धु भी पोस्टमैन रहे। सुविख्यात उर्दू समीक्षक पद्मश्री शम्सुररहमान फारूकी, शायर कृष्ण बिहारी नूर, महाराष्ट्र के प्रसिद्ध किसान नेता शरद जोशी सहित तमाम विभूतियाँ डाक विभाग की गोद में अपनी सृजनात्मक-रचनात्मक काया का विस्तार पाने में सफल रहीं।

आज टेक्नालाजी के दौर में लोग पत्रों की अहमियत भूलते जा रहे हैं, पर इसी के साथ वो आत्मीयता भी गुम होती जा रही है. तभी तो पत्रों की महत्ता को देखते हुए एन0सी0ई0आर0टी0 को पहल कर कक्षा आठ के पाठ्यक्रम में ‘‘चिट्ठियों की अनोखी दुनिया‘‘ नामक अध्याय को शामिल करना पड़ा। चिट्ठियों/पत्रों को लेकर गए गए न जाने कितने गीत आज भी होंठ गुनगुना उठते हैं. तभी तो अन्तरिक्ष-प्रवास के समय सुनीता विलियम्स अपने साथ भगवद्गीता और गणेशजी की प्रतिमा के साथ-साथ पिताजी के हिन्दी में लिखे पत्र ले जाना नहीं भूलती। हसरत मोहानी ने यूँ ही नहीं लिखा था-

लिक्खा था अपने हाथों से जो तुमने एक बार।
अब तक हमारे पास है वो यादगार खत ।।

-कृष्ण कुमार यादव

14 comments:

Pallavi saxena said...

बहुत बढ़िया पोस्ट बहुत दिनों बाद कुछ लीग से हट कर और जानकारी वर्धक पोस्ट पढ़ने को मिली। शुभकामनायें और बढ़िया पोस्ट के लिए आभार कभी समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।
http://mhare-anubhav.blogspot.com/

चंदन कुमार मिश्र said...

अच्छी जानकारी। खासकर पहले पत्र पर। धन्यवाद।

Patali-The-Village said...

अच्छी जानकारी के लिए धन्यवाद|

संजय भास्‍कर said...

अच्छी जानकारी

डॉ. मनोज मिश्र said...

बहुत बढ़िया पोस्ट,मन खुश हो गया.

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

...अब ज़बरदस्ती केवल उन्हें चिठियाना पड़ता है जो कहते हैं कि नौकरी की अर्ज़ी तो हम डाक से ही लई हैं :)

Rajeysha said...

खतोकि‍ताबत तो अभी भी की जा सकती है ईमेल से ये ज्‍यादा आसान और ...लेकि‍न अब ना अपन फुर्सत में हैं ना कोई दोस्‍त ...अजनबी इंटरनेट या जाली दोस्‍तों से कि‍तना खुलें...डर लगता है भई जुर्म क्या? ये सजा क्यों है?

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है.
कृपया पधारें
चर्चामंच-645,चर्चाकार- दिलबाग विर्क

रेखा said...

बहुत सारी जानकारी दी है आपने ....

Amit Kumar Yadav said...

कोई भी आन्दोलन पत्रों के बिना अधूरा रहा है, फिर अन्ना को भला चिट्ठियां क्यों न पहुंचे. ऐतिहासिक सन्दर्भों के साथ एक महत्वपूर्ण पोस्ट..बधाई.

Amit Kumar Yadav said...

दुनिया का पहला पत्र पढ़कर तो मन भाव-विव्हल हो गया.

Akanksha Yadav said...

पत्रों की दुनिया सदैव आत्मीयता लिए होती है..सुन्दर पोस्ट.

मन-मयूर said...

सुन्दर शब्द-संयोजन, जानकारियों से परिपूर्ण..चिट्ठियां अनमोल.

SANTOSH said...

ADRNIYA YADAV JI APKA DAK VIBHAG SE SAMBANDHIT DAKIYA DAK LAYA BLOG POST PRH KAR BADI PRASNNATA HUI BAHUT ACHHA LEKH LAGA DHANYWAD