मशहूर लेखिका और समाजसेविका महाश्वेता देवी नहीं रहीं। बहुत कम लोगों को पता होगा कि जीवन के अपने आरंभिक दिनों में कोलकाता में उन्होंने डाक और तार विभाग में भी कार्य किया था। साहित्य अकादमी, ज्ञानपीठ अवार्ड, रेमन मैग्सेसे और पद्म विभूषण जैसे प्रतिष्ठित सम्मानों से सम्मानित महाश्वेता देवी को आदिवासी लोगों के लिए काम करने के लिए भी जाना जाता है। महाश्वेता देवी का खुद का जीवन भी झंझावतों और संघर्षों से भरा रहा। 1949 में महाश्वेता देवी को केंद्र सरकार के डिप्टी अकाउंटेंट जनरल, पोस्ट एंड टेलिग्राफ ऑफिस में अपर डिवीजन क्लर्क की नौकरी मिली, लेकिन पति मशहूर रंगकर्मी विजन भट्टाचार्य कम्युनिस्ट थे, इसलिए उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया था। इसके बाद महाश्वेता देवी ने साबुन बेचकर और ट्यूशन पढ़ाकर घर का खर्च चलाया। बाद में 1957 में स्कूल में टीचर की नौकरी लगी। बाद में वे कोलकाता यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी की लेक्चरर रहीं। 1984 में उन्होंने यहां से इस्तीफा दे दिया और लेखन में सक्रिय हो गईं।
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