हिन्दी साहित्य के इतिहास में उपन्यास सम्राट के रूप में अपनी पहचान बना चुके मुंशी प्रेमचंद के पिता अजायब राय श्रीवास्तव डाकमुंशी के रूप में कार्य करते थे। ऐसे में प्रेमचंद का डाक-परिवार से अटूट सम्बन्ध था। उक्त उद्गार प्रेमचंद की जयंती पर राजस्थान पश्चिमी क्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएं और हिंदी साहित्यकार साहित्यकार कृष्ण कुमार यादव ने व्यक्त किये। डाक निदेशक श्री यादव ने कहा कि डाककर्मी के पुत्र मुंशी प्रेमचंद ने साहित्य की नई इबारत लिखी। जब प्रेमचंद के पिता गोरखपुर में डाकमुंशी के पद पर कार्य कर रहे थे उसी समय गोरखपुर में रहते हुए ही उन्होंने अपनी पहली रचना लिखी। उन्होंने कहा कि मुंशी प्रेमचंद को पढ़ते हुए हम सब बड़े हो गए। उनकी रचनाओं से बड़ी आत्मीयता महसूस होती है। ऐसा लगता है जैसे इन रचनाओं के पात्र हमारे आस-पास ही मौजूद हैं।
श्री यादव ने कहा कि प्रेमचन्द ने अपने को किसी वाद से जोड़ने की बजाय तत्कालीन समाज में व्याप्त ज्वलंत मुद्दों से जोड़ा। राष्ट्र आज भी उन्हीं समस्याओं से जूझ रहा है जिन्हें प्रेमचन्द ने काफी पहले रेखांकित कर दिया था, चाहे वह जातिवाद या साम्प्रदायिकता का जहर हो, चाहे कर्ज की गिरफ्त में आकर आत्महत्या करता किसान हो, चाहे नारी की पीड़ा हो, चाहे शोषण और समाजिक भेद-भाव हो। कृष्ण कुमार यादव ने जोर देकर कहा कि आज प्रेमचन्द की प्रासंगिकता इसलिये और भी बढ़ जाती है कि आधुनिक साहित्य के स्थापित नारी-विमर्श एवं दलित-विमर्श जैसे तकिया-कलामों के बाद भी अन्ततः लोग इनके सूत्र किसी न किसी रूप में प्रेमचन्द की रचनाओं में ढूंढते नजर आते हैं।
आज भी प्रासंगिक हैं प्रेमचंद के विमर्श : कृष्ण कुमार यादव
साहित्य से इतर भी प्रासंगिक हैं मुंशी प्रेमचंद के विचार : कृष्ण कुमार यादव
प्रेमचंद के सामाजिक व साहित्यिक विमर्श : कृष्ण कुमार यादव
मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं के पात्र हमारे आस-पास ही मौजूद - डाक निदेशक कृष्ण कुमार यादव
मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं में आत्मीयता की झलक : कृष्ण कुमार यादव