Saturday, May 9, 2009

भारतीय डाक सेवा के अधिकारी के. के. यादव पर जारी पुस्तक ‘‘बढ़ते चरण शिखर की ओर'' का पद्मश्री गिरिराज किशोर ने किया लोकार्पण

लेखन के क्षेत्र में दिनों-ब-दिन चुनौतियाँ बढ़ती जा रही हैं और इन चुनौतियों के बीच ही लेखक का व्यक्तित्व उभर कर सामने आता है। प्रशासनिक पद पर रहकर साहित्य साधना निश्चित ही दुरूह कार्य है पर इस दुरूह कार्य को भी सफलता पूर्वक कर दिखाया है भारतीय डाक सेवा के युवा प्रशासनिक अधिकारी कृष्ण कुमार यादव ने। श्री यादव की इस बात के लिए विशेष सराहना की जानी चाहिए कि जहाँ पद्य की तुलना में गद्य लिखना कहीं अधिक मुश्किल कार्य है, वहीं अब तक एक काव्य, दो निबंध-संग्रह और क्रांतियज्ञ जैसी पुस्तकें लिखकर श्री यादव अपनी सशक्त रचनाधिर्मिता का परिचय दे चुके हैं। उनका लेखन पाठकों के मन को छू जाता है और यही एक लेखक की वास्तविक सफलता होती है।

उक्त उदगार सुविख्यात साहित्यकार पद्मश्री अलंकृत गिरिराज किशोर जी ने युवा प्रशासक एवं साहित्यकार कृष्ण कुमार यादव के व्यक्तित्व-कृतित्व पर उमेश प्रकाशन, इलाहाबाद द्वारा प्रकाशित एवं पं0 दुर्गा चरण मिश्र द्वारा सम्पादित ''बढ़ते चरण शिखर की ओर: कृष्ण कुमार यादव'' नामक पुस्तक के 9 मई 2009 को ब्रह्मानन्द डिग्री कालेज, कानपुर के प्रेक्षागार में आयोजित लोकार्पण समारोह को बतौर मुख्य अतिथि सम्बोधित करते हुए व्यक्त किये। श्री किशोर ने कहा कि अल्पायु में ही श्री कुष्ण कुमार यादव ने उच्च प्रशासनिक पद की तमाम व्यस्तताओं के बीच जिस तरह साहित्य की ऊँचाइयों को भी स्पर्श किया है वह समाज और विशेषकर युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है। ऐसे युवा व्यक्तित्व पर इतनी कम उम्र में पुस्तक का प्रकाशन स्वागत योग्य है।

समारोह की अध्यक्षता अध्यक्षता कर रहे राष्ट्रभाषा प्रचार समिति उ0प्र0 के संयोजक एवं मानस संगम के प्रणेता डा0 बद्री नारायण तिवारी ने अपने सम्बोधन में कृष्ण कुमार यादव की रचनाधर्मिता को सराहा और कहा कि ‘क्लब कल्चर‘ एवं अपसंस्कृति के इस दौर में जब अधिसंख्य प्रशासनिक अधिकारी बिना प्रभावित हुए नहीं रह पाते तो ऐसे में हिन्दी-साहित्य के प्रति अटूट निष्ठा व समर्पण शुभ एवं स्वागत योग्य है। उन्होंने कहा कि यह साहित्य जगत का सौभाग्य है कि उसे श्री यादव के रूप में एक और हीरा मिल गया है। उसे सहेज कर रखना औेर आगे बढ़ाना हमारी सबकी जिम्मेदारी है। डा0 तिवारी ने कहा कि जो लोग अच्छा कार्य कर रहे हैं उन्हें आगे बढ़ाना ही होगा यह चापसूसी नहीं बल्कि हम सबका दायित्व है।

समारोह में उपस्थिति लब्धप्रतिष्ठित विद्धतजनों ने कृष्ण कुमार यादव के कृतित्व के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। डा0 सूर्य प्रसाद शुक्ल ने कहा कि श्री यादव भाव, विचार और संवेदना के कवि हैं। उनके भाव बोध में विभिन्न तन्तु परस्पर इस प्रकार संगुम्फित हैं कि इन्सानी जज्बातों की, जिन्दगी के सत्यों की पहचान हर पंक्ति-पंक्ति और शब्द-शब्द में अर्थ से भरी हुई अनुभूति की अभिव्यक्ति से अनुप्राणित हो उठी है। वरिष्ठ साहित्यकार डा0 यतीन्द्र तिवारी ने कहा कि आज के संक्रमणशील समाज में जब बाजार हमें नियमित कर रहा हो और वैश्विक बाजार हावी हो रहा हो ऐसे में कृष्ण कुमार जी की कहानियाँ प्रेम, संवेदना, मर्यादा का अहसास करा कर अपनी सांस्कृतिक चेतना के निकट ला देती है। अपने सम्बोधन में डा0 राम कृष्ण शर्मा ने कहा कि श्री यादव की सेवा आत्मज्ञापन के लिए नहीं बल्कि जन-जन के आत्मस्वरूप के सत्यापन के लिए है। इसी क्रम में भारतीय बाल कल्याण संस्थान के अध्यक्ष श्री रामनाथ महेन्द्र ने श्री यादव को बाल साहित्य का चितेरा बताया। प्रसिद्व बाल साहित्यकार डा0 राष्ट्रबन्धु ने इस बात पर प्रसन्नता जाहिर की कि श्री यादव ने साहित्य के आदिस्रोत और प्राथमिक महत्व के बाल साहित्य के प्रति लेखन निष्ठा दिखाई है। उन्होंने कहा कि अब से 20-25 साल पहले पुस्तक पूर्ण कर लेना ही बड़ी बात होती थी तब विमोचन या लोकार्पण जैसे समारोह यदा-कदा ही होते थे, आज श्री यादव की पुस्तक का लोकार्पण समारोह इस बात का प्रतीक है कि टीवी व इण्टरनेट के युग में भी हिन्दी साहित्य को एक बार फिर से सम्मान और समाज की स्वीकार्यता मिल रही है। गाजीपुर से पधारे समाजसेवी श्री राजेन्द्र प्रसाद ने कहा कि कृष्ण कुमार यादव में जो असीम उत्साह, ऊर्जा, सक्रियता और आकर्षक व्यक्तित्व का चुम्बकत्व गुण है उसे देखकर मन उल्लसित हो उठता है। इतनी कम उम्र में उन्होंने जितनी बड़ी उपलब्धियाँ हासिल की हैं वो माँ सरस्वती एवं माँ शारदा की कृपा का ही प्रतिफल हैं। बी0एन0डी0 कालेज के प्राचार्य डा0 विवेक द्विवेदी ने श्री यादव के कृतित्व को अनुकरणीय बताते हुए युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत माना। पूर्व उपसूचना निदेशक शम्भू नाथ टण्डन ने एक युवा प्रशासक और साहित्यकार पर जारी इस पुस्तक में व्यक्त विचारों के प्रसार की बात कही। इस अवसर पर संस्कृत के उद्भट विद्वान पं0 पीयूष ने श्री यादव को उनकी साहित्यिक सफलता पर बधाई व आर्शीवचन देते हुए कहा कि जब किसी कृतिकार की कृति को विद्वानों का आशीर्वाद मिल जाए स्वीकृत मिल जाए तो समझो वो निःसंदेह सफल कृतिकार है। आज श्री यादव उसी कोटि में आ खड़ हुये हैं।

समारोह के अन्त में अपने कृतित्व पर जारी पुस्तक व लब्ध प्रतिष्ठित महानुभावों के आशीर्वचनों से अभिभूत कृष्ण कुमार यादव ने आज के दिन को अपने जीवन का स्वर्णिम दिन बताया। उन्होंने कहा कि साहित्य साधक की भूमिका इसलिए भी बढ़ जाती है कि संगीत, नृत्य, शिल्प, चित्रकला, स्थापत्य इत्यादि रचनात्मक व्यापारों का संयोजन भी साहित्य में उसे करना होता है। उन्होने कहा कि पद तो जीवन में आते जाते हैं, मनुष्य का व्यक्तित्व ही उसकी विराटता का परिचायक है।

समारोह के दौरान कृष्ण कुमार यादव की साहित्यिक सेवाओं का सम्मान करते हुए विभिन्न संस्थाओं द्वारा उनका अभिनंदन एवं सम्मान किया गया। इन संस्थाओं में भारतीय बाल कल्याण संस्थान, मानस संगम, साहित्य संगम, उत्कर्ष अकादमी, मानस मण्डल, वीरांगना, मेधाश्रम, सेवा स्तम्भ, पं0 प्रताप नारायण मिश्र स्मारक समिति एवं एकेडमिक रिसर्च सोसाइटी प्रमुख हैं।

समारोह का शुभारम्भ मुख्य अतिथिगणों द्वारा माँ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन से हुआ। तत्पश्चात पुस्तक के सम्पादक श्री दुर्गा चरण मिश्र द्वारा सभी का स्वागत किया गया। इस अवसर पर कृष्ण कुमार यादव की कविता ‘माँ‘ को संगीत में ढालकर प्रवीण सिंह द्वारा अनुपम प्रस्तुति की गई तो 6 सगी अनवरी बहनों द्वारा प्रस्तुत ‘वन्दे मातरम्‘ ने सद्भाव की मिसाल पेश की। कार्यक्रम का संचालन उत्कर्ष अकादमी के निदेशक डा0 प्रदीप दीक्षित द्वारा किया गया। कार्यक्रम के अन्त में दुर्गा चरण मिश्र द्वारा उमेश प्रकाशन, इलाहाबाद की ओर से सभी को स्मृति चिन्ह भेंट किया गया। कार्यक्रम में श्रीमती आकांक्षा यादव, डा0 गीता चैहान, डा0 प्रेम कुमारी, डा0 हरीतिमा कुमार, सत्यकाम पहारिया, कमलेश द्विवेदी, आजाद कानपुरी, डा0 ओमेन्द्र कुमार, सुरेन्द्र प्रताप सिंह, अनिल खेतान, श्री एस0एस0 त्रिपाठी, सहित तमाम साहित्यकार, बुद्विजीवी, पत्रकारगण एवं गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।

आलोक चतुर्वेदी,
संपादक-साहित्य संगम
उमेश प्रकाशन, 100-लूकरगंज, इलाहाबाद

21 comments:

Amit Kumar Yadav said...

बधाई हो....इतनी कम उम्र में के.के. जी के जीवन पर पुस्तक...आश्चर्यजनक !!

Amit Kumar Yadav said...
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Prashant Pandya said...

कृष्ण कुमारजी आपके जीवन पर लीखे गये पुस्तक "बढ़ते चरण शिखर की ओर: कृष्ण कुमार यादव" के लिए बधाई |

Jeevan Jyoti said...

Nice to read news from my home town. Many congratulations! It's nice to vist ur Blog !

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World said...
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हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World said...

बेहद गौरव कि बात है कि कृष्ण कुमार जी के व्यक्तित्व-कृतित्व को सहेजती पुस्तक ‘‘बढ़ते चरण शिखर की ओर: कृष्ण कुमार यादव‘‘ का इतनी अल्पायु में प्रकाशन हुआ और सुविख्यात साहित्यकार पद्मश्री गिरिराज किशोर जैसे दिग्गज ने इसका लोकार्पण किया.गिरिराज किशोर जी की "पहली गिरमिटिया" पुस्तक तो मैंने कई बार पढ़ी है.आप जैसे युवा प्रशासक-साहित्यकार की इस उपलब्धि पर कोटिश: बधाइयाँ !!

Anonymous said...

इस उपलब्धि हेतु के.के. जी की जितनी भी बड़ाई की जाय कम होगी.

Unknown said...

के.के. यादव लिख ही नहीं रहे हैं, बल्कि खूब लिख रहे हैं. एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी होने के साथ-साथ अपनी व्यस्तताओं के बीच साहित्य के लिए समय निकलना और विभिन्न विधाओं में लिखना उनकी विलक्षण प्रतिभा का ही परिचायक है. उनके जीवन पर पुस्तक ‘‘बढ़ते चरण शिखर की ओर: कृष्ण कुमार यादव‘‘ के प्रकाशन हेतु के. के. जी को शत्-शत् बधाइयाँ. बस यूँ ही लिखते रहें, जमाना आपके पीछे होगा के.के. जी.................!

Bhanwar Singh said...

A combination of hindi,writing and administration reflects ur ideals and nice personality.I am proud of u KRISHNA JI.

Ram Shiv Murti Yadav said...

सुविख्यात साहित्यकार पद्मश्री गिरिराज किशोर ने कहा कि अल्पायु में ही कृष्ण कुमार यादव ने प्रशासन के साथ-साथ जिस तरह साहित्य में भी ऊंचाईयों को छुआ है, वह समाज और विशेषकर युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है। वे एक साहित्य साधक एवं सशक्त रचनाधर्मी के रूप में भी अपने दायित्वों का बखूबी निर्वहन कर रहे हैं। ऐसे युवा व्यक्तित्व पर इतनी कम उम्र मंे पुस्तक का प्रकाशन स्वागत योग्य है।
__________________________________
गिरिराज किशोर जी के इन शब्दों के बाद कुछ कहने की जरुरत नहीं रह जाती. आप यूँ ही उन्नति के पथ पर अग्रसर हों...शुभकामनायें.

Akanksha Yadav said...

पुस्तक का प्रकाशन कोई बड़ी चीज नहीं है पर 32 साल की आयु में कोई इतना प्रसिद्ध हो जाय कि लोग उसके व्यक्तित्व-कृतित्व पर पुस्तक लिखने/संपादित करने लगें...अचरज भरा लगता है. पर ऐसे शख्शियत के रूप में कृष्ण कुमार जी ने जो अलौलिक छटा बिखेरी है वह अभिनंदनीय है.

शरद कुमार said...

Congratulations KK Sir! It was nice to attend programme.Really I was surprised to see that in such a young age u r very popular.My best wishes are always with u Sir.

Dr. Brajesh Swaroop said...

एक तो कृष्ण जी पर पुस्तक प्रकाशन, उस पर से मशहूर साहित्यकार गिरिराज किशोर द्वारा उसका विमोचन..........इसे ही कहते हैं पूत के पांव पलने में.

SANGEE said...

Na mai koi lekhak na kavi na kalakar hun, Main ek bhawuk man ki sadharan si ensan hun.Kahna chahti hun mai bhi 4 liene unke bare me, kar dale bade-bade byankhyan, Bade-Bade logo ne jinke bare men.
Sab jinhe gul ya gulab kahte hai, hum unhen lajvab kahte hai. Mahko tum gulab ki tarah, khilo tum hijab ki tarah, raushan rahe tera jahan, hamesh aftab ki tarah. West wishes for ever.

Sangeeta Singh

Raghav said...

" vIYOGI HO GA PAHLA KAVI
AAH SE UPJA HO GA GYAN
NIKAL AAKHON SE ANSU
BAHI HO GI KAVITA ANJAN
Ek kavi lekhak hone ke nate usme vinamrata sahjta hona jaruri hai vo sub apmen maujood hai.

All the three basic element (race millu & movement) of literature is available in your literatur .
you may achieve the topest position with the grace of God.

RAGHVENDRA BAJPAI

डॉ. मनोज मिश्र said...

बहुत अच्छी जानकारी और मेरी भी बधाई .

आशा जोगळेकर said...

बधाई । यह सच है कि डाक से अब वे चिठ्ठियाँ नही आतीं जिनका हमें इंतजार हुआ करता था कभी अब तो बैंक, कंपनियों के वार्षिक विवरण आदि ही डाक से आते हैं ई मेल ने तो चिट्ठी लिखने की कला ही खत्म कर दी है । और डाकिया भी अब घर में कहाँ आता है ।

Anonymous said...
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Anonymous said...

कृष्ण कुमार जी जैसे डायनमिक ऑफिसर और साहित्य-प्रेमी के बारे में पढ़कर अच्छा लगा. आज समाज और राष्ट्र को ऐसे ही उत्साही लोगों की जरुरत है...मेरा सलाम स्वीकारें.

Gyan Dutt Pandey said...

फिलेटली पर ब्लॊग एक नई चीज है हिन्दी में।

अविनाश वाचस्पति said...

बधाई
यदि होती सर्दी तो
देते विद रजाई।