भारत के स्क्रीन लिजेंड्स की अगर कभी लिस्ट बनाई जाएगी तो उसमें हिंदी फ़िल्मों के सदाबहार अभिनेता और निर्माता-निर्देशक देव आनंद साहब का नाम सबसे ऊपर शुमार होगा. पर बहुत काम लोगों को पता होगा कि उनके कैरियर की शुरुआत चिट्ठियों के साथ हुई थी. जी हाँ देवानंद साहब की उम्र जब बमुश्किल 20-21 साल की थी, तो 1945 में उन्हें पहला ब्रेक मिला. नहीं समझे न आप, देवानंद साहब को सेना में सेंसर ऑफ़िस में पहली नौकरी मिली. उस समय दितीय विश्व-युद्ध चल रहा था. उनका काम होता था फ़ौजियों की चिट्ठियों को सेंसर करना. सच में एक से एक बढ़कर रोमांटिक चिट्ठियाँ होती थी. एक चिट्ठी का ज़िक्र स्वयं देवानंद साहब बड़ी दिल्लगी से करते हैं, जिसमें एक मेजर ने अपनी बीवी को लिखा कि उसका मन कर रहा है कि वो इसी वक़्त नौकरी छोड़कर उसकी बाहों में चला आए. बस इसी के बाद देवानंद साहब को भी ऐसा लगा कि मैं भी नौकरी छोड़ दूँ. बस फिर छोड़ दी नौकरी, लेकिन क़िस्मत की बात है कि उसके तीसरे ही दिन उन्हें प्रभात फ़िल्म्स से बुलावा आ गया और 1947 में प्रभात बैनर की पहली फ़िल्म ‘हम एक हैं’ आई.
5 comments:
बहुत अच्छी जानकारी.
जानकारी के लिए धन्यवाद !!
चिट्ठियां बड़े काम की होती हैं भाई...कईयों का उद्धार करती हैं.
Bahut khub...dilchasp bat batai apne.
चिट्ठियां पढ़ते-पढ़ते ही देवानंद साहब इतने रोमांटिक भी हो गए...अब जाकर राज खुला.
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