Sunday, January 17, 2010

डाकिया डाक लाया

डाकिया डाक लाया
डाक लाया
ख़ुशी का पयाम कहीं दर्दनाक लाया
डाकिया डाक लाया ...

इन्दर के भतीजे की साली की सगाई है
ओ आती पूरणमासी को क़रार पाई है
मामा आपको लेने आते मगर मजबूरी है
बच्चों समेत आना आपको ज़रूरी है
दादा तो अरे रे रे रे दादा तो गुज़र गए दादी बीमार है
नाना का भी तेरहवां आते सोमवार है
छोटे को प्यार देना बड़ों को नमस्कार
मेरी मजबूरी समझो कारड को तार
शादी का संदेसा तेरा है सोमनाथ लाया
डाकिया डाक लाया ...!!

ऐ डाकिया बाबू
क्या है री
छः महीना होई गवा ख़त नहीं लिखीं
ख़त नहीं लिखीं
बोल क्या लिखूँ
बस जल्दी से आने का लिख दे
बिरह में कैसे-कैसे काटीं रतियाँ
सावन सुनाए बैरी भीगी-भीगी बतियाँ
अग्नि की जलन में जले बावरिया
ओ नौकरिया छोड़ के तू आ जाना साँवरिया
आजा रे साँवरिया आजा बैसाख आया
डाकिया डाक लाया ...!!

(पलकों की छाहों में फिल्म का एक चर्चित गाना, जिसे गुलजार जी ने लिखा और किशोर कुमार तथा वंदना शास्त्री ने स्वर दिया)

6 comments:

RAJNISH PARIHAR said...

आज बेशक डाकिये का उतना महत्त्व ना हो, पर हमारी ज़िन्दगी के अनगिनत खुशनुमा लम्हों को डाकिया ही लेकर आया था..इसलिए मुझे डाकिया आज भी उतना ही पसंद है जितना ये गीत!यादें ताज़ा करने हेतु धन्यवाद..

डॉ. मनोज मिश्र said...

इस गीत नें आज फिर समाँ बाँध दिया.

पप्पू said...

एक समय था जब डाकिया, पटवारी और कोटवार मिलकर ग्राम स्वराज चलाते थे। मेरे पिता जी बताते थे कि आधे गांव की डाक वो लिखते और पढ़ते थे और आधे की वो चिट्ठरसा (उर्दू में शायद यही कहा जाता है डाकिया को)। पहले डाकिये को हर घर से कुछ ना कुछ मिलता था, लेकिन शगुन की तरह। लेकिन डाकियों ने जब से हर काम के लिये बख्शीश मांगना शुरु किया उनकी कद्र कम होती गई।

Amit Kumar Yadav said...

अग्नि की जलन में जले बावरिया
ओ नौकरिया छोड़ के तू आ जाना साँवरिया
आजा रे साँवरिया आजा बैसाख आया
डाकिया डाक लाया ...!!
...sUNDAR BOL.

Shahroz said...

चिट्ठियों को लेकर तमाम साहित्य रचा व गाने भी लिखे गए हैं, इनके बिना मानव जीवन अधूरा ही लगता है.

raghav said...

सुन्दर, सार्थक भावपूर्ण रचना. बधाई.