युग-युग जियो डाकिया भैया, सांझ सबेरे इहै मनाइत है.....
हम गंवई के रहवैया
पाग लपेटे, छतरी ताने, कांधे पर चमरौधा झोला,
लिए हाथ मा कलम दवाती, मेघदूत पर मानस चोला
सावन हरे न सूखे कातिक, एकै धुन से सदा चलैया......
शादी, गमी, मनौती, मेला, बारहमासी रेला पेला
पूत कमासुत की गठरी के बल पर, फैला जाल अकेला
गांव सहर के बीच तुहीं एक डोर, तुंही मरजाद रखवैया
थानेदार, तिलंगा, चैकीदार, सिपाही तहसीलन के
क्रुकअमीन गिरदावर आवत, लोटत नागिन छातिन पै
तुहैं देख कै फूलत छाती, नयन जुड़ात डाकिया भैया
युग-युग जियो डाकिया भैया.......
अनिल मोहन
7 comments:
युग-युग जियो डाकिया भैया...
....... ढेर सारी शुभकामनायें....
bahut sundar sir...
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
बेहतरीन,यही दुआ मेरी भी है.
Bahut khub...युग-युग जियो डाकिया भैया...
सावन हरे न सूखे कातिक, एकै धुन से सदा चलैया......
अति उत्तम सर ,
बहुत बहुत धन्यवाद
ट्रांस्लेत्टर कम नहीं कर रहा है.
डाकिया आया और डाक देकर चला गया..ह़ा..हा..हा..
सुन्दर कवितायें बार-बार पढने पर मजबूर कर देती हैं. आपकी कवितायें उन्ही सुन्दर कविताओं में हैं.
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