Saturday, July 31, 2010

डाककर्मी के पुत्र थे मुंशी प्रेमचंद

1920 का दौर... गाँधी जी के रूप में इस देश ने एक ऐसा नेतृत्व पा लिया था, जो सत्य के आग्रह पर जोर देकर स्वतन्त्रता हासिल करना चाहता था। ऐसे ही समय में गोरखपुर में एक अंग्रेज स्कूल इंस्पेक्टर जब जीप से गुजर रहा था तो अकस्मात एक घर के सामने आराम कुर्सी पर लेटे, अखबार पढ़ रहे एक अध्यापक को देखकर जीप रूकवा ली और बडे़ रौब से अपने अर्दली से उस अध्यापक को बुलाने को कहा । पास आने पर उसी रौब से उसने पूछा-‘‘तुम बडे़ मगरूर हो। तुम्हारा अफसर तुम्हारे दरवाजे के सामने से निकल जाता है और तुम उसे सलाम भी नहीं करते।’’ उस अध्यापक ने जवाब दिया-‘‘मैं जब स्कूल में रहता हूँ तब मैं नौकर हूँ, बाद में अपने घर का बादशाह हूँ।’’

अपने घर का बादशाह यह शख्सियत कोई और नहीं, वरन् उपन्यास सम्राट प्रेमचंद थे, जो उस समय गोरखपुर में गवर्नमेन्ट नार्मल स्कूल में सहायक अध्यापक के पद पर कार्यरत थे। 31 जुलाई 1880 को बनारस के पास लमही में जन्मे प्रेमचन्द का असली नाम धनपत राय था। आपकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम अजायब राय था।
मुंशी प्रेमचंद जी के पिता अजायब राय डाक-कर्मचारी थे सो प्रेमचंद जी अपने ही परिवार के हुए।आज उनकी जयंती पर शत-शत नमन। डाक-परिवार अपने ऐसे सपूतों पर गर्व करता है व उनका पुनीत स्मरण करता है।


(प्रेमचंद जी पर मेरा विस्तृत आलेख साहित्याशिल्पी पर पढ़ सकते हैं)







18 comments:

संजय भास्‍कर said...

मुंशी जी को शत्-शत् नमन!”

संजय भास्‍कर said...

बेहद रोचक जानकारी है

honesty project democracy said...

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती ,शानदार....स्वर्गीय महान सामाजिक लेखक मुंशी प्रेमचंद्र जी को हार्दिक श्रधांजलि...

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

जानकारी पाकर अच्छा लगा. धन्यवाद.

समय चक्र said...

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती....मुंशी प्रेमचंद्र जी को शत्-शत् नमन...

Akanksha Yadav said...

प्रेमचंद जी की जयंती पर शानदार रचना और उनके द्वारा उठाये गए विमर्शों की गहन पड़ताल..मुंशी प्रेमचंद जी को नमन.

सुशीला पुरी said...

कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर आज उनकी अद्भुत लेखनी को नमन....,लखनऊ मे प्रगतिशील लेखक संघ के वे अध्यक्ष चुने गए थे यह मेरे शहर के लिए गौरव की बात है । लगभग 300 कहानियों और 8 उपन्यासों के द्वारा उन्होने हिन्दी साहित्य को जिस मुकाम पर पहुँचाया वह वंदनीय है । 'हंस' जैसी पत्रिका का संपादन भी उनके अद्भुत संपादन मे कई वर्षों तक चला जिसे अब राजेन्द्र यादव जी उनके ही पावन संस्कारों के साथ चला रहे हैं ।

मनोज कुमार said...

कथा सम्राट को नमन!

Rohit Singh said...

जैसा स्वभाव वैसा ही निर्भिक लेखन....कितने हैं कथनी औऱ करनी में एकरुपता रखने वाले

Bhanwar Singh said...

कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर उनकी अद्भुत लेखनी को नमन

Shahroz said...

Interesting....

KK Yadav said...

@ मनोज कुमार जी,
इस पोस्ट की चर्चा के लिए आभार...सहयोग बनाये रहें.

KK Yadav said...

आप सभी लोगों ने इस पोस्ट को पसंद किया...आभार. इसी प्रकार हौसला अफजाई करते रहें.

कविता रावत said...

bahut rochak jankari prastut ki hai aapne.. dhnayavaad

Unknown said...

प्रेमचंद की प्रासंगिकता कालजयी है...गंभीर आलेख..बधाई.

Unknown said...

प्रेमचंद की प्रासंगिकता कालजयी है...गंभीर आलेख..बधाई.

शरद कुमार said...

प्रेमचन्द जैसा साहित्यकार आज तक नहीं पैदा हुआ...बहुत सुन्दर आलेख.

Shahroz said...

प्रेमचंद को पढना मुझे अच्छा लगता है...अच्छी रिपोर्ट.