हिंदी की जानी-मानी कथाकार चित्रा मुद्गल का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है पर बहुत कम लोगों को पता है कि चित्रा मुद्गल के लेखन की शुरूआत चिट्ठियों से हुई।
उनका जन्म उत्तर प्रदेश के एक सामंती परिवार में हुआ था। उनके पिता नेवी में एक अफसर थे। रुढि़वादी विचारधारा और एक सैनिक की ठसक, दोनों ने मिलकर उन्हें कठोर बना दिया था। स्त्रियां उनके आगे अपने मुँह खोलें, उनके लिए यह असहनीय बात थी। यहाँ तक कि चित्रा की माँ भी उनसे कोई बात नहीं कह पाती थीं।
चित्रा उनके सामने विरोध प्रकट करने के लिए चिट्ठियों का सहारा लेती थीं। वे कहती हैं, ’’मैं चिट्ठियाँ लिखकर बप्पा के तकिए के नीचे रख देती थी। वे उन्हें पढ़ते, लेकिन उन्हें टुकड़े-टुकड़े करके फेंक भी देते। इतना ही नहीं, उन टुकड़ों को वे अपने जूतों से रौंदकर बाहर चले जाते। मेरे लिखने की शुरूआत यहीं से हुई। मेरी पहली कहानी डोमिन काकी स्कूल से प्रकाशित होने वाली पत्रिका में छपी थी। सफेद सेनारा मेरी पहली कहानी है, जो नवभारत टाइम्स में छपी थी। इस कहानी को खूब सराहा गया और पुरस्कृत भी हुई।’’
No comments:
Post a Comment