Thursday, July 31, 2014

डाक-मुंशी के पुत्र रहे प्रेमचन्द ने लिखी साहित्य-जगत में नई इबारत

हिन्दी साहित्य के इतिहास में उपन्यास सम्राट के रूप में अपनी पहचान बना चुके प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था. वह एक कुशल लेखक, जिम्मेदार संपादक और संवेदशील रचनाकार थे. प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई, 1880 को वाराणसी से लगभग चार मील दूर लमही नामक ग्राम में हुआ था. इनका संबंध एक गरीब कायस्थ परिवार से था. इनकी माता का नाम आनन्दी देवी था. इनके पिता अजायब राय श्रीवास्तव डाकमुंशी के रूप में कार्य करते थे.ऐसे में प्रेमचंद का डाक-परिवार से अटूट सम्बन्ध था.

जब प्रेमचंद के पिता गोरखपुर में डाकमुंशी के पद पर कार्य कर रहे थे उसी समय गोरखपुर में रहते हुए ही उन्होंने अपनी पहली रचना लिखी. यह रचना एक अविवाहित मामा से सम्बंधित थी जिसका प्रेम एक छोटी जाति की स्त्री से हो गया था. वास्तव में कहानी के मामा कोई और नहीं प्रेमचंद के अपने मामा थे, जो प्रेमचंद को उपन्यासों पर समय बर्बाद करने के लिए निरन्तर डांटते रहते थे. मामा से बदला लेने के लिए ही प्रेमचंद ने उनकी प्रेम-कहानी को रचना में उतारा. हालांकि प्रेमचंद की यह प्रथम रचना उपलब्ध नहीं है, क्योंकि उनके मामा ने क्रुद्ध होकर पांडुलिपि को अग्नि को समर्पित कर दिया था.

प्रेमचंद की एक कहानी, ‘कज़ाकी’, उनकी अपनी बाल-स्मृतियों पर आधारित है। कज़ाकी डाक-विभाग का हरकारा था और बड़ी लम्बी-लम्बी यात्राएँ करता था। वह बालक प्रेमचंद के लिए सदैव अपने साथ कुछ सौगात लाता था। कहानी में वह बच्चे के लिये हिरन का छौना लाता है और डाकघर में देरी से पहुँचने के कारण नौकरी से अलग कर दिया जाता है। हिरन के बच्चे के पीछे दौड़ते-दौड़ते वह अति विलम्ब से डाक घर लौटा था। कज़ाकी का व्यक्तित्व अतिशय मानवीयता में डूबा है। वह शालीनता और आत्मसम्मान का पुतला है, किन्तु मानवीय करुणा से उसका हृदय भरा है।

प्रेमचंद बचपन से ही काफी खुद्दार रहे. 1920 का दौर... गाँधी जी के रूप में इस देश ने एक ऐसा नेतृत्व पा लिया था, जो सत्य के आग्रह पर जोर देकर स्वतन्त्रता हासिल करना चाहता था। ऐसे ही समय में गोरखपुर में एक अंग्रेज स्कूल इंस्पेक्टर जब जीप से गुजर रहा था तो अकस्मात एक घर के सामने आराम कुर्सी पर लेटे, अखबार पढ़ रहे एक अध्यापक को देखकर जीप रूकवा ली और बडे़ रौब से अपने अर्दली से उस अध्यापक को बुलाने को कहा । पास आने पर उसी रौब से उसने पूछा-‘‘तुम बडे़ मगरूर हो। तुम्हारा अफसर तुम्हारे दरवाजे के सामने से निकल जाता है और तुम उसे सलाम भी नहीं करते।’’ उस अध्यापक ने जवाब दिया-‘‘मैं जब स्कूल में रहता हूँ तब मैं नौकर हूँ, बाद में अपने घर का बादशाह हूँ।’’अपने घर का बादशाह यह शख्सियत कोई और नहीं, वरन् उपन्यास सम्राट प्रेमचंद थे, जो उस समय गोरखपुर में गवर्नमेन्ट नार्मल स्कूल में सहायक अध्यापक के पद पर कार्यरत थे।

प्रेमचंद बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे. उनकी रचनाओं में तत्कालीन इतिहास की झलक साफ दिखाई देती है. यद्यपि प्रेमचंद के कालखण्ड में भारत कई प्रकार की प्रथाओं और रिवाजों, जो समाज को छोटे-बड़े और ऊंच-नीच जैसे वर्गों में विभाजित करती है, से परिपूर्ण था इसीलिए उनकी रचनाओं में भी इनकी उपस्थिति प्रमुख रूप से शामिल होती है. प्रेमचंद का बचपन बेहद गरीबी और दयनीय हालातों में बीता. मां का चल बसना और सौतेली मां का बुरा व्यवहार उनके मन में बैठ गए थे. वह भावनाओं और पैसे के महत्व को समझते थे. इसीलिए कहीं ना कहीं उनकी रचनाएं इन्हीं मानवीय भावनाओं को आधार मे रखकर लिखे जाते थे. उन्होंने अपनी रचनाओं में जन साधारण की भावनाओं, परिस्थितियों और उनकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण किया था. उनकी कृतियाँ भारत के सर्वाधिक विशाल और विस्तृत वर्ग की कृतियाँ हैं. इसके अलावा प्रेमचंद ने लियो टॉल्सटॉय जैसे प्रसिद्ध रचनाकारों के कृतियों का अनुवाद भी किया जो काफी लोकप्रिय रहा.



प्रेमचंद जी के पिता अजायब राय डाक-कर्मचारी थे, अत: प्रेमचंद जी अपने ही परिवार के हुए।   डाक-परिवार अपने ऐसे सपूतों पर गर्व करता है व उनका पुनीत स्मरण करता है। प्रेमचंद की स्मृति में भारतीय डाक विभाग की ओर से 31 जुलाई, 1980 को उनकी जन्मशती के अवसर पर 30 पैसे मूल्य का एक डाक टिकट भी जारी किया गया.

प्रेमचन्द का साहित्य और सामाजिक विमर्श आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं और उनकी रचनाओं के पात्र आज भी समाज में कहीं-न-कहीं जिंदा हैं। आधुनिक साहित्य के स्थापित मठाधीशों के नारी-विमर्श एवं दलित-विमर्श जैसे तकिया-कलामों के बाद भी अंततः लोग इनके सूत्र किसी न किसी रूप में पे्रमचन्द की रचनाओं में ढूंँढते नजर आते हंै। प्रेमचन्द जब अपनी रचनाओं में समाज के उपेक्षित व शोषित वर्ग को प्रतिनिधित्व देेते हैं तो निश्चिततः इस माध्यम से वे एक युद्ध लड़ते हैं और गहरी नींद सोये इस वर्ग को जगाने का उपक्रम करते हैं। राष्ट्र आज भी उन्हीं समस्याओं से जूझ रहा है जिन्हें प्रेमचन्द ने काफी पहले रेखांकित कर दिया था। चाहे वह जातिवाद या सांप्रदायिकता का जहर हो, चाहे कर्ज की गिरफ्त में आकर आत्महत्या करता किसान हो, चाहे नारी की पीड़ा हो, चाहे शोषण और समाजिक भेद-भाव हो। इन बुराईयों के आज भी मौजूद होने का एक कारण यह है कि राजनैतिक सत्तालोलुपता के समांतर हर तरह के सामाजिक, धार्मिक व सांस्कृतिक आन्दोलन की दिशा नेतृत्वकर्ताओं को केंद्र-बिंदु बनाकर लड़ी गयी जिससे मूल भावनाओं के विपरीत आंदोलन गुटों में तब्दील हो गये एवं व्यापक व सक्रिय सामाजिक परिवर्तन की आकांक्षा कुछ लोगों की सत्तालोलुपता की भेंट चढ़ गयी।  

(मुंशी प्रेमचंद को पढ़ते हुए हम  सब बड़े हो  गए।  उनकी रचनाओं से बड़ी  आत्मीयता महसूस होती है।  ऐसा लगता है जैसे इन रचनाओं के  पात्र हमारे आस-पास ही मौजूद हैं। पिछले दिनों बनारस गया तो मुंशी प्रेमचंद की जन्मस्थली लमही भी जाने का सु-अवसर प्राप्त हुआ। मुंशी प्रेमचंद स्मारक लमही, वाराणसी के पुस्तकालय हेतु हमने अपनी पुस्तक '16 आने 16 लोग' भी भेंट की, संयोगवश इसमें एक लेख प्रेमचंद के कृतित्व पर भी शामिल है।) 

-कृष्ण कुमार यादव
निदेशक डाक सेवाएं, 
इलाहाबाद परिक्षेत्र, इलाहाबाद -211001 


Friday, July 25, 2014

President inaugurated the Rashtrapati Bhavan Post Office in new building


The President of India, Mr. Pranab Mukherjee inaugurated the  Rashtrapati Bhavan Post Office in  new building  on 24 July, 2014.The  Post Office was relocated from a heritage building as part of measures to implement the Comprehensive Conservation Management Plan for the President's Estate.


The Rashtrapati Bhavan Post Office started functioning as Viceroy's Camp Post Office at Shimla on June 10, 1904. In 1948, it was renamed as Governor-General Post Office and in 1950; it was again renamed as President-Camp Post Office. Finally On December 7, 1950 it got its present name ie.The Rashtrapati Bhavan Post Office.This Post Office caters to the needs of President's Secretariat as well as residents of the President's Estate.


Thursday, July 24, 2014

राष्‍ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी द्वारा राष्‍ट्रपति भवन डाकघर के नए भवन का उद्घाटन


डाकघरों की पूरे विश्व में एक समृद्ध परंपरा है। देश-दुनिया के हर कोने में डाकघर अपनी सेवाओं से लोगों से जुड़े हुए हैं। भारत के राष्ट्रपति भवन में भी डाक घर आरम्भ से ही स्थापित है और अपनी सेवाएं दे रहा है।  इसी क्रम में  भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने 24 जुलाई 2014 को  नए भवन में राष्ट्रपति भवन डाकघर की राष्ट्रपति एस्टेट शाखा का उद्घाटन किया। डाकघर को राष्ट्रपति एस्टेट के व्यापक संरक्षण प्रबंधन योजना के तहत एक हिस्से के रूप में एतिहासिक इमारत से दूसरी जगह स्थापित किया गया।


गौरतलब है कि राष्ट्रपति भवन डाकघर ने 10 जून, 1904 को शिमला में वायसराय शिविर डाकघर के रूप में कार्य करना शुरू कर दिया था। वर्ष 1948 में, राष्ट्रपति भवन डाकघर का नाम गवर्नर जनरल पोस्ट ऑफिस कर दिया गया था।  वर्ष 1950 में इसे फिर से राष्ट्रपति शिविर डाकघर के रूप में नाम दिया गया था।  अंत में, 7 दिसंबर 1950 को, यह राष्ट्रपति भवन डाकघर नामित किया गया। यह डाकघर राष्ट्रपति के सचिवालयों के साथ राष्ट्रपति एस्टेट के निवासियों की जरूरतों को भी पूरा करता है।

( चित्र में : राष्‍ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी 24 जुलाई, 2014 को राष्‍ट्रपति संपदा स्थित राष्‍ट्रपति भवन डाकघर के नए भवन का उद्घाटन करते हुए। इस अवसर पर साथ में केंद्रीय संचार, सूचना तकनीक तथा विधि एवं न्‍याय मंत्री श्री रवि शंकर प्रसाद भी उपस्थित रहे।)

Monday, July 14, 2014

Now, get ‘Prasad’ of Kashi Vishwanath and Mahakaleshwar Jyotirling by Speed Post in this Savan


On the eve of Savan, you will have a reason to be happy. If due to any reason you are unable to visit ‘Bholenath’, there’s no need to worry. Dept. of Posts will deliver his ‘Prasad’ at your home. 

Mr. Krishna Kumar Yadav, Director Postal Services, Allahabad Region said that Varanasi is called as the City of Lord Shiva, and Kashi Vishvnath Mandir is a prime religious attraction for devotees. As per an agreement between Kashi Vishwanath Mandir Trust and Department of Posts, ‘Prasad’ of Kashi Vishwanath Mandir will be made available at the home through Speed Post. Under this scheme Devotees will have to send a Money Order of Rs. 60/- to Senior Supdt. of Post offices, Varanasi (East) Dn., in return he will get ‘Bhabhuti’ of the Mandir, ‘Rudraksh’, A laminated photo of Lord Shiva and Shiv Chalisha as ‘Prasad’ send by Kashi Vishwanath Mandir Trust.

Director Mr. Krishna Kumar Yadav further added that other than Kashi Vishwanath Mandir, ‘Prasad’ of renowned Shri Mahakaleshwar Jyotirling Mandir, Ujjain can also be ordered by post. To avail this facility a person will have to send a Money order of Rs. 201/- to Prashashak, Shri Mahakaleshwar Mandir Prabandhan Committee and in return ‘Prasad’ will be sent it through Speed Post. It contains 200 gms. of Dry Fruit, 200 gmsLaddu, ‘Bhabhuti’ and a photo of Lord Shri Mahakaleshwar.

Mr. Yadav told that these ‘Prasads’ are send to the customers in water proof envelopes through Speed Post to ensure their safety and purity in transmission. So now receive Prasad of ‘BholeJi’ at your home with his blessings at this Savan.





( Hindustan Times, 14 July 2014)

Sunday, July 13, 2014

स्पीड पोस्ट से सावन में घर बैठे पायें बाबा विश्वनाथ और महाकाल का प्रसाद

सावन का महीना आरम्भ हो चुका है।  सावन में बाबा भोलेनाथ की पूजा और उनके प्रसाद की बड़ी महिमा है। अक्सर लोगों की इच्छा होती है कि काश घर बैठे ही उन्हें बाबा का प्रसाद मिल सके। ऐसे में डाक विभाग ने इस बात के प्रबन्ध किये हैं कि देश के किसी भी कोने में बैठे शिवभक्त काशी विश्वनाथ मंदिर, बनारस और महाकालेश्वर मंदिर, उज्जैन का प्रसाद घर बैठे ग्रहण कर सकें। 

इस संबंध में जानकारी देते हुए इलाहाबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएँ कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि डाक विभाग और काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट के बीच चल रहे एक एग्रीमेण्ट के तहत काशी विश्वनाथ मंदिर का प्रसाद स्पीड पोस्ट द्वारा लोगों को उपलब्ध कराया जा रहा है। इसके तहत साठ रूपये का मनीआर्डर प्रवर डाक अधीक्षक, वाराणसी (पूर्वी) के नाम भेजना होता है और बदले में वहाँ से काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट के सौजन्य से मंदिर की भभूति, रूद्राक्ष, भगवान शिव की लेमिनेटेड फोटो और शिव चालीसा प्रेषक के पास प्रसाद रूप में भेज दिया जाता है। 

निदेशक श्री कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि काशी विश्वनाथ मंदिर के अलावा उज्जैन के प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का प्रसाद भी डाक द्वारा मंगाया जा सकता है। इसके लिए प्रशासक, श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबन्धन कमेटी, उज्जैन को 201 रूपये का मनीआर्डर करना पड़ेगा और इसके बदले में वहाँ से स्पीड पोस्ट द्वारा प्रसाद भेज दिया जाता है। इस प्रसाद में 200 ग्राम ड्राई फ्रूट, 200 ग्राम लड्डू, भभूति और भगवान श्री महाकालेश्वर जी का चित्र शामिल है। 

डाक निदेशक श्री यादव ने बताया कि इस प्रसाद को प्रेषक के पास एक वाटर प्रूफ लिफाफे में स्पीड पोस्ट द्वारा भेजा जाता है, ताकि पारगमन में यह सुरक्षित और शुद्ध बना रहे। उन्होंने कहा कि भगवान शिव के इन  सर्वप्रमुख ज्योतिर्लिंग के दर्शन की कामना समस्त विश्व में भक्तों की होती है, लेकिन सभी के लिए यहाँ पहुँचकर भगवत आराधना करना संभव नहीं हो पाता और इसी बात को ध्यान में रखते हुए डाक विभाग के माध्यम से भक्तों को शिव का सानिध्य प्रदान करने की व्यवस्था की गई है।  


Friday, July 11, 2014

डाकघरों में उमड़ी प्रशिक्षु शिक्षक भर्ती (टीईटी) अभ्यर्थियों की भीड़

 डाकघरों  के माध्यम से टीईटी (प्रशिक्षु शिक्षक भर्ती) के प्रत्यावेदनों को भेजने के लिये अभ्यर्थियों की भीड उमड रही है। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में टीईटी (प्रशिक्षु शिक्षक भर्ती) अभ्यर्थियों को ऑनलाइन संशोधन का प्रत्यावेदन भरने के बाद उसकी फोटो कॉपी डाक से या फिर खुद संबंधित डायट पर जमा करना है। कई जिलों में आवेदन करने के कारण अभ्यर्थी अपना प्रत्यावेदन स्पीड पोस्ट से भेज रहे हैं। एक-एक अभ्यर्थी 20 से लेकर 40 स्पीड पोस्ट बुक कर रहे हैं। ऐसे में डाकघरों में अभ्यर्थियों की भारी भीड़ उमड़ रही है। आवेदकों  की सुविधा हेतु काउंटर्स की संख्या बढ़वाने से लेकर कार्य-समय तक डाकघरों में बढ़ा दिया गया है।  गौरतलब है कि अभ्यर्थियों को गलती सुधरवाने के लिए अपना प्रत्यावेदन 15 जुलाई तक संबंधित डायट केंद्रों पर भेजना है। 

इसके मद्देनजर इलाहाबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवायें  कृष्ण कुमार यादव ने स्थिति की समीक्षा की और इलाहाबाद परिक्षेत्र के सभी प्रधान डाकघरों में अतिरिक्त काउन्टर खोले जाने के निर्देश दिये। चूँकि एक-एक अभ्यर्थी औसतन 20 से 40 तक स्पीड पोस्ट एक साथ बुक करा रहेे हैं, ऐसे में अभ्यर्थियों की डाकघरों में स्पीड पोस्ट व रजिस्ट्री बुकिंग के लिये बढती भीड को देखते हुए डाक विभाग ने काउन्टर आवर्स के दौरान पुलिस विभाग को पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था मुहैया कराने के लिये भी कहा है। श्री यादव ने कहा कि आवेदक अपने प्रत्यावेदन भेजने के लिये  किसी भी डाकघर से स्पीड पोस्ट बुक करा सकते हैं।  

डाक निदेशक  कृष्ण कुमार यादव ने आवेदकों से यह भी अपील की है कि मात्र प्रधान डाकघरों की बजाय अन्य उप डाकघरों से भी स्पीड पोस्ट एवं रजिस्ट्री की बुकिंग करायें। उन्होंने स्पष्ट किया कि प्रधान डाकघर ही नहीं बल्कि अन्य उपडाकघरों में बुक की गयी स्पीड पोस्ट डाक भी उसी दिन बिना किसी देरी के रेल डाक सेवा को भेज दी जाती है ताकि अगले गंतव्य के लिए वह रवाना हो सके। 

निदेशक श्री कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि आवेदकों को असुविधा न हो, इसके लिये सिविल लाइन्स स्थित इलाहाबाद प्रधान डाकघर में स्पीड पोस्ट व रजिस्ट्री बुकिंग के लिये 7  काउन्टर खोले गये हैं, जिसमें से एक सिर्फ महिलाओं के लिये है। ये काउन्टर सुबह 08 .00 बजे से शाम 9 .00 बजे तक कार्य करेंगे। अकेले इलाहाबाद में पिछले तीन दिनों में एक लाख से ज्यादा स्पीड पोस्ट बुक किये जा चुके हैं। जहाॅंँ सामान्य दिनों में शहर के डाकघरों में स्पीड पोस्ट की काउन्टर पर औसतन बुकिंग प्रतिदिन 5,000 होती है, वहीं 11  जुलाई को 60,000 से ज्यादा स्पीड पोस्ट बुक किये गये। आने वाले दिनों में इसकी और भी बढने की सम्भावना है। 

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समाज में शिक्षक का स्थान बड़ा ऊँचा है, पर शिक्षक बनने से पहले उन्हें तमाम अनुभवों से गुजरना पड़ता  है। इस समय उत्तर प्रदेश के पोस्ट ऑफिसेज में टीईटी (प्रशिक्षु शिक्षक भर्ती) अभ्यर्थी ऑनलाइन संशोधन का प्रत्यावेदन भरने के बाद उसकी फोटो कॉपी स्पीड पोस्ट से भेज रहे हैं।  एक-एक अभ्यर्थी 20 से लेकर 40 स्पीड पोस्ट बुक कर रहे हैं। ऐसे में डाकघरों में अभ्यर्थियों की भारी भीड़ उमड़ रही है। इन अभ्यर्थियों में से ही कुछेक 'भावी शिक्षक' बनेंगे !!


नारी-सशक्तीकरण समय की जरुरत है।  इसका सबसे सशक्त माध्यम सेवाओं में उनकी भागीदारी है। अपने भारत में शिक्षा व्यवस्था में काफी महिलाएं कार्यरत हैं। उत्तर प्रदेश में तमाम ऐसे प्राइमरी स्कूल मिल जायेंगे, जहाँ सारा दारोमदार शिक्षिकाओं पर ही है। ऐसे में डाकघरों  के माध्यम से प्रशिक्षुु शिक्षक चयन (बीटीसी) के प्रत्यावेदनों को भेजने के लिये महिला अभ्यर्थियों की भी काफी भीड उमड रही है।