Monday, September 30, 2019

पोस्टकार्ड ने पूरा किया 150 साल का सफर


संचार के साधनों की बात होती है तो अनायास ही पोस्टकार्ड सामने आ जाता है।  पोस्टकार्ड कभी कविताओं को सहेजते हैं तो कभी क्रांति की चिंगारी फ़ैलाने में भी भूमिका निभाते हैं। सत्ता के हुक्मरानों तक अपनी बात पहुँचाने का भी सजग माध्यम है पोस्टकार्ड। शादी-ब्याह, शुभकामनाओं से लेकर मौत की ख़बरों तक तो इन पोस्टकार्डों ने सहेजा है। पत्र-पत्रिकाओं को पढ़ने के बाद पोस्टकार्ड पर प्राप्त पाठकों की प्रतिक्रियायें या रेडियो के फरमाइशी गीतों को लेकर भेजे गए पोस्टकार्ड यदि अभी भी जिन्दा हैं तो उसके पीछे लोगों का प्यार ही है। दुनिया में पहला पोस्टकार्ड  एक अक्तूबर 1869 को ऑस्ट्रिया में जारी किया गया था।  पोस्टकार्डों की इस खूबसूरत दुनिया को 1 अक्टूबर, 2019  को  150 साल हो गए हैं। आज तमाम लोग पोस्टकार्ड को संग्रहित करने के साथ इन पर शोध भी कर रहे हैं।  पोस्टकार्डों के संग्रहण और अध्ययन को अंग्रेजी में डेल्टियोलॉजी कहते हैं।

अतीत की गहराईयों में जायें तो पोस्टकार्ड का विचार सबसे पहले ऑस्ट्रियाई प्रतिनिधि कोल्बेंस्टीनर के दिमाग में आया था, जिन्होंने इसके बारे में वीनर न्योस्टॉ में सैन्य अकादमी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर डॉ. एमैनुएल हर्मेन को बताया।  उन्हें यह विचार काफी आकर्षक लगा और उन्होंने 26 जनवरी 1869 को एक अखबार में इसके बारे में लेख लिखा।  ऑस्ट्रिया के डाक मंत्रालय ने इस विचार पर बहुत तेजी से काम किया और पोस्टकार्ड की पहली प्रति एक अक्तूबर 1869 में जारी की गई। यहीं से पोस्टकार्ड के सफर की शुरुआत हुई। दुनिया का यह प्रथम पोस्टकार्ड पीले रंग का था।  इसका आकार 122 मिलीमीटर लंबा और 85 मिलीमीटर चौड़ा था।  इसके एक तरफ पता लिखने के लिए जगह छोड़ी गई थी, जबकि दूसरी तरफ संदेश लिखने के लिए खाली जगह छोड़ी गई।  

आस्ट्रिया में यह पोस्टकार्ड इतना लोकप्रिय हुआ कि इसकी देखा-देखी अन्य देशों ने भी इसे अपनाने में देरी नहीं की। ऑस्ट्रिया-हंगरी में तो पहले तीन महीने के दौरान ही करीब तीन लाख पोस्टकार्ड बिक गए। ब्रिटेन ने 1872 में अपना पहला पोस्टकार्ड जारी किया तो तो पहले ही दिन 5, 75,000 पोस्टकार्ड बिक गए। 
 भारत की बात करें तो यहाँ  पहला पोस्टकार्ड 1879 में जारी किया गया।  हल्के भूरे रंग में छपे इस पहले पोस्टकार्ड की कीमत 3 पैसे थी और इस कार्ड पर ‘ईस्ट इण्डिया पोस्टकार्ड’ छपा था।  बीच में ग्रेट ब्रिटेन का राजचिह्न मुद्रित था और ऊपर की तरफ दाएं कोने मे लाल-भूरे रंग में छपी ताज पहने साम्राज्ञी विक्टोरिया की मुखाकृति थी। अंदाज़-ए-बयां का यह  माध्यम लोगों को इतना पसंद आया कि साल की पहली तीन तिमाही में ही लगभग 7.5 लाख रुपए के पोस्टकार्ड बेचे गए थे। पहला चित्रित पोस्टकार्ड फ्रांस ने 1889 में जारी किया था और इस पर एफिल टॉवर अंकित था।
 वक्त के साथ-साथ पोस्टकार्ड में कई बदलाव हुए। सामान्यतया पोस्टकार्ड एक मोटे कागज या पतले गत्ते से बना एक आयताकार टुकड़ा होता है जिसे संदेश लिखने के लिए प्रयोग किया जाता है, साथ ही इसे बिना किसी लिफाफे में बंद किये, डाक द्वारा भेजा भी जा सकता है। पोस्टकार्ड भारत सरकार का एक ऐसा उत्पाद है जिसे आम जनता की खातिर जनहित में बेहद सस्ते दामों पर बेचा जाता है। भारत के डाकघरों में चार  तरह के पोस्टकार्ड मिलते हैं - मेघदूत पोस्टकार्ड, सामान्य पोस्टकार्ड, प्रिंटेड पोस्टकार्ड और कम्पटीशन पोस्टकार्ड । ये क्रमश : 25 पैसे, 50 पैसे, 6 रूपये और 10 रूपये में उपलब्ध हैं।  इन चारों पोस्टकार्ड की लंबाई 14 सेंटीमीटर और चौड़ाई 9 सेंटीमीटर होती है। भारतीय डाक विभाग की ओर से जारी सामान्य पोस्टकार्ड महज 50 पैसे में बेचे जाते हैं जबकि एक पोस्टकार्ड बनाने की लागत कहीं ज्यादा होती है।  डाक विभाग की 2016-17 की रिपोर्ट के अनुसार, एक साधारण पोस्टकार्ड पर 12.15 रुपए का खर्च आता है, बदले में सरकारी खजाने में 50 पैसे ही आते हैं और यह निर्माण के कुल लागत का महज 4 फीसदी ही है।  इस तरह से सरकार एक पोस्टकार्ड पर 11.75 रुपए की सब्सिडी देती है। 

कम लिखे को ज़्यादा समझना की तर्ज पर पोस्टकार्ड न सिर्फ व्यक्तिगत बल्कि तमाम सामाजिक-साहित्यिक-धार्मिक-राजनैतिक आंदोलनों का गवाह रहा है।  पोस्टकार्ड का खुलापन पारदर्शिता का परिचायक है तो इसकी सर्वसुलभता लोकतंत्र को मजबूती देती रही है। आज भी तमाम आंदोलनों का आरम्भ पोस्टकार्ड अभियान से ही होता है।  ईमेल, एसएमएस, फेसबुक, टि्वटर और व्हाट्सएप ने संचार की परिभाषा भले ही बदल दी हो, पर पोस्टकार्ड अभी भी आम आदमी की पहचान है।
-कृष्ण कुमार यादव 
निदेशक डाक सेवाएँ 
लखनऊ मुख्यालय परिक्षेत्र, लखनऊ -226001 
kkyadav.t@gmail.com 


Wednesday, September 25, 2019

संयुक्त राष्ट्र में महात्मा गांधी पर डाक टिकट जारी

संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य नेताओं ने महात्मा गांधी पर संयुक्त राष्ट्र डाक टिकट का उद्घाटन किया। यह डाक टिकट एक कार्यक्रम 'समकालीन विश्व में महात्मा गांधी की प्रासंगिकता' में जारी किया गया। इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जाई इन समेत अन्य विश्व नेताओं की उपस्थिति में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में गांधी सोलर पार्क का उद्घाटन किया। 

प्रधानमंत्री मोदी ने इस अवसर  पर कहा कि गांधी जी ने उन लोगों को भी प्रेरणा दी जो उनसे कभी नहीं मिले। मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला की नीतियां और विचारधाराएं महात्मा गांधी के दृष्टिकोण पर ही आधारित थीं। उन्होंने कहा कि गांधी जी ने अपने जीवन में कभी प्रभाव पैदा करने की कोशिश नहीं की लेकिन यह प्रेरणा का स्रोत बन गया। हम ऐसे युग में रह रहे हैं जहां 'कैसे प्रभावित करें' का चलन है लेकिन गांधी जी का दृष्टिकोण 'कैसे प्रेरित करें' था।

वहीं, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने कहा कि गांधी जी एक सच्चे देशभक्त, राजनीतिज्ञ और संत थे। उन्होंने अपना जीवन मानव जाति के लिए समर्पित कर दिया। वह आशा की किरण और अंधेरे में प्रकाश की तरह थे। शेख हसीना ने कहा कि आम लोगों के प्रति गांधी जी के प्रेम और अहिंसा के आदर्शों ने तत्कालीन पाकिस्तानी नेताओं के शांतिप्रिय बंगालियों पर उत्पीड़न और अत्याचार के खिलाफ बंगबंधु शेख मुजीब के संघर्ष, असहयोग के दृष्टिकोण को आकार देने में योगदान दिया।

यह कार्यक्रम महात्मा गांधी के 150वें जयंती वर्ष को मनाने के लिए आयोजित किया गया था। जिसमें उनके विचारों और मूल्यों की आज के समय में लगातार प्रासंगिकता पर चर्चा की गई। 

Sunday, September 15, 2019

भारतीय संस्कृति को अक्षुण्ण रखने में हिंदी का महत्वपूर्ण योगदान - डाक निदेशक कृष्ण कुमार यादव

भारतीय संस्कृति को अक्षुण्ण रखने में हिंदी का बहुत बड़ा योगदान है। जरूरत इस बात की है कि हम इसके प्रचार-प्रसार और विकास के क्रम में आयोजनों से परे अपनी दैनिक दिनचर्या से भी जोड़ें। उक्त उद्गार लखनऊ मुख्यालय परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएँ एवं चर्चित साहित्यकार व् ब्लॉगर श्री कृष्ण कुमार यादव ने पोस्टमास्टर जनरल, लखनऊ  कार्यालय में "हिंदी पखवाड़ा" का शुभारम्भ करते हुए व्यक्त किये।
डाक निदेशक श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि हिंदी हमारी मातृ भाषा के साथ-साथ राजभाषा भी है और लोगों तक पहुँच स्थापित करने के लिए टेक्नॅालाजी स्तर पर इसका व्यापक प्रयोग करने की जरूरत है। आज परिवर्तन और विकास की भाषा के रूप में हिन्दी के महत्व को नये सिरे से रेखांकित किया जा रहा है।

लखनऊ जीपीओ के चीफ पोस्टमास्टर आर एन यादव ने   कहा कि हिंदी पूरे देश को जोड़ने वाली भाषा है और सरकारी कामकाज में भी इसे बहुतायत में अपनाया जाना चाहिये।

सहायक निदेशक (राजभाषा) आई के शुक्ला ने इस अवसर पर हिंदी पखवाड़ा के दौरान डाक विभाग द्वारा मनाये जाने वाले कार्यक्रमों के बारे में विस्तार से बताते हुए ज्यादा से ज्यादा लोगों से भागीदारी की अपील की। सहायक निदेशक एपी अस्थाना ने बताया कि इस दौरान हिंदी श्रुतलेखन, निबंध लेखन, टंकण प्रतियोगिता, पत्र लेखन, वाद-विवाद प्रतियोगिता, काव्य पाठ जैसी तमाम प्रतियोगिताएं आयोजित की जाएँगी।  
कार्यक्रम में  आरएन यादव, चीफ पोस्टमास्टर लखनऊ जीपीओ, जेबी दुर्गापाल, प्रवर अधीक्षक डाकघर फैजाबाद,  एचके यादव, अधीक्षक डाकघर सीतापुर,  एसके सक्सेना, अधीक्षक डाकघर, रायबरेली,  टीपी सिंह, अधीक्षक डाकघर बाराबंकी, एबी सिंह, डाक उपाधीक्षक लखनऊ सहायक डाक अधीक्षक  उमेश कुमार, सुनील कुमार, प्रियम गुप्ता,  प्रभाकर वर्मा, अखंड प्रताप सिंह सहित डाक विभाग के तमाम अधिकारी व कर्मचारी उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन विजय कुमार और आभार ज्ञापन सहायक निदेशक एपी अस्थाना ने किया।






भारतीय संस्कृति को अक्षुण्ण रखने में हिंदी का महत्वपूर्ण योगदान  - डाक निदेशक कृष्ण कुमार यादव

पोस्टमास्टर जनरल कार्यालय, लखनऊ  में हुआ हिंदी पखवाड़े का शुभारम्भ

Tuesday, September 10, 2019

जवाहर नवोदय विद्यालय, लखनऊ में राजभाषा हिंदी पर आयोजित संगोष्ठी का डाक निदेशक केके यादव ने किया शुभारम्भ

सृजन एवं अभिव्यक्ति की दृष्टि से हिंदी दुनिया की अग्रणी भाषाओं में से एक है। हिन्दी सिर्फ एक भाषा ही नहीं बल्कि हम सबकी पहचान है, यह हर हिंदुस्तानी का हृदय है। हिन्दी को राष्ट्रभाषा  किसी सत्ता ने  नहीं बनाया, बल्कि भारतीय भाषाओं और बोलियों के बीच संपर्क भाषा के रूप में जनता ने इसे चुना। उक्त उद्गार लखनऊ (मुख्यालय) परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएं और चर्चित साहित्यकार व ब्लॉगर श्री कृष्ण कुमार यादव ने 7 सितंबर 2019 को जवाहर नवोदय विद्यालय, पिपरसंड, लखनऊ में राजभाषा हिंदी पर आयोजित संगोष्ठी का शुभारम्भ करते हुए बतौर मुख्य अतिथि कहीं। कार्यक्रम का शुभारम्भ दीप-प्रज्वलन और मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण के साथ हुआ। मानस, उपमा, अनन्या और सुशील ने सस्वर कविता-वाचन के माध्यम से शमां बाँधा। 


इस अवसर पर जवाहर नवोदय विद्यालय के बच्चों ने साहित्यिक-सांस्कृतिक प्रस्तुतियों से लोगों का मन मोह लिया। डाक निदेशक कृष्ण कुमार यादव ने प्रधानाचार्य श्री जेसी गुप्ता संग विद्यालय की हस्तलिखित पत्रिका "कोशिशें" का विमोचन भी किया।




डाक निदेशक श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि हिन्दी में विश्व भाषा बनने की क्षमता है। हिन्दी आज सिर्फ साहित्य और बोलचाल की ही भाषा नहीं, बल्कि विज्ञान-प्रौद्योगिकी से लेकर संचार-क्रांति और सूचना-प्रौद्योगिकी से लेकर व्यापार की भाषा भी बनने की ओर अग्रसर है।  श्री यादव ने कहा कि डिजिटल क्रान्ति के इस युग में वेबसाइट्स, ब्लॉग और फेसबुक व टविटर जैसे  सोशल मीडिया ने तो हिन्दी का दायरा और भी बढ़ा दिया है। विश्व भर में हिन्दी बोलने वाले 50 करोड़ तो इसे समझने वालों की संख्या 80 करोड़ है।  विश्व के लगभग 150 विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जाती है, जो कि हिन्दी की बढ़ती लोकप्रियता का परिचायक है।
जवाहर नवोदय विद्यालय, पिपरसंड, लखनऊ के प्रधानाचार्य श्री जेसी गुप्ता ने कहा कि, यह हम सभी के लिए सौभाग्य का विषय है कि डाक निदेशक श्री कृष्ण कुमार यादव भी नवोदय विद्यालय के पुरा-छात्र रहे हैं और हिंदी को लेकर अपनी रचनात्मक प्रतिबद्धता व अग्रणी सोच से आपने साहित्य जगत में एक नया मुकाम बनाया है।  प्रधानाचार्य श्री जेसी गुप्ता ने कहा कि संविधान में वर्णित सभी प्रांतीय भाषाओं का पूर्ण आदर करते हुए इस विशाल बहुभाषी राष्ट्र को एक सूत्र में बांधने में भी हिन्दी की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। ऐसे में हिन्दी भाषा के प्रयोग पर हमें गर्व महसूस करना चाहिए। उप प्रधानाचार्य प्रभात मारवाह ने  कहा कि हिंदी पूरे देश को जोड़ने वाली भाषा है और सामान्य जीवन में भी इसे बहुतायत में अपनाया जाना चाहिये।
इस अवसर पर प्रधानाचार्य जेसी गुप्ता,  उप प्रधानाचार्य प्रभात मारवाह, डॉ. वाई सी द्विवेदी, कमर सुल्तान, सुधा पाठक, प्रीति तिवारी, सुमति श्रीवास्तव, पीपी शुक्ला, डॉ. मो. ताहिर सहित नवोदय विद्यालय के तमाम अध्यापकगण व विद्यार्थी  उपस्थित रहे।







जवाहर नवोदय विद्यालय, लखनऊ में राजभाषा हिंदी पर आयोजित संगोष्ठी का डाक निदेशक केके यादव ने किया शुभारम्भ 
हिन्दी में विश्व भाषा बनने की क्षमता - डाक निदेशक कृष्ण कुमार यादव 
हिन्दी सिर्फ एक भाषा ही नहीं बल्कि हम सबकी पहचान है-डाक निदेशक केके यादव 
सोशल मीडिया ने बढ़ाया हिंदी का दायरा -डाक निदेशक कृष्ण कुमार यादव 



डाक निदेशक केके यादव ने पूर्वोत्तर रेलवे, लखनऊ मण्डल में हिंदी सप्ताह का किया शुभारम्भ

हिन्दी सिर्फ एक भाषा ही नहीं बल्कि हम सबकी पहचान है, यह हर हिंदुस्तानी का हृदय है। सृजन एवं अभिव्यक्ति की दृष्टि से हिंदी दुनिया की अग्रणी भाषाओं में से एक है। उक्त उद्गार लखनऊ (मुख्यालय) परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएं और चर्चित साहित्यकार व ब्लॉगर श्री कृष्ण कुमार यादव ने पूर्वोत्तर रेलवे, लखनऊ मण्डल द्वारा आयोजित "हिंदी सप्ताह समारोह" के उद्घाटन में बतौर   मुख्य अतिथि कहीं। 
कार्यक्रम का शुभारम्भ  आधुनिक हिन्दी के जनक भारतेंदु हरिश्चंद्र के चित्र  पर माल्यार्पण के साथ हुआ। इस अवसर पर मंडल राजभाषा कार्यान्वयन समिति की बैठक के साथ-साथ विशेष हिंदी संगोष्ठी भी आयोजित हुई।

कार्यक्रम की अध्यक्षता मंडल रेल प्रबंधक श्रीमती विजयलक्ष्मी कौशिक एवं समन्वयन अपर मंडल रेल प्रबंधक श्री प्रवीण पांडेय ने किया। प्रवीण पांडेय  एक अच्छे ब्लॉगर भी हैं और "न दैन्यं न पलायनम्" नाम से ब्लॉग का संचालन भी करते हैं।

Monday, September 9, 2019

Philately Club in Schools : सनबीम स्कूल, फैज़ाबाद में फिलेटली क्लब का डाक निदेशक केके यादव ने किया उद्घाटन

डाक टिकट किसी भी राष्ट्र की सभ्यता, संस्कृति एवं विरासत के संवाहक हैं। तभी तो डाक टिकट को नन्हा राजदूत कहा जाता है। हर डाक टिकट के पीछे एक कहानी छिपी है और इससे युवा पीढ़ी को रूबरू कराने की जरूरत है। यह विचार सनबीम स्कूल, फैज़ाबाद में फिलेटली क्लब का उद्दघाटन करते हुए मुख्य अतिथि लखनऊ (मुख्यालय) परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवायें श्री कृष्ण कुमार यादव ने व्यक्त किया। 
अब इस स्कूल के विद्यार्थी डाक-टिकटों के माध्यम से भी अध्ययन कर सकेंगे और फिलेटली की दुनिया से गुजरते हुए एक नवीन दृष्टि प्राप्त कर सकेंगे। पत्रों की खूबसूरत दुनिया से रूबरू होते हुए सनबीम स्कूल के बच्चों ने डाक विभाग की "ढाई आखर" राष्ट्रीय स्तर पत्र लेखन प्रतियोगिता में भी उत्साहजनक भागीदारी की । इसके तहत "‘प्रिय बापू, आप अमर हैं" विषय पर बच्चों ने ख़त लिखकर पोस्ट किया। 
डाक निदेशक श्री कृष्ण कुमार यादव ने विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि फिलेटली को "किंग आफ हाबी व हाबी आफ किंग" के रूप में जाना जाता है, जिसमें रूचि रखने पर अनंत विषयों पर डाक टिकटों का संग्रह कर सकते हैं। सूचना एवं प्रौद्योगिकी के बदलते दौर में आज की युवा पीढ़ी सोशल मीडिया को अधिक तरजीह दे रही है ऐसे में उनकी परम्परागत संचार शैली को बरकरार रखने के लिए बच्चों को फिलेटली (डाक टिकट संग्रह) से भी जुड़ना चाहिए। इससे उनका सामान्य ज्ञान भी विकसित होगा। श्री यादव ने कहा कि वक़्त के साथ छोटा सा कागज का टुकड़ा दिखने वाले ये डाक टिकट ऐसे अमूल्य दस्तावेज बन जाते हैं, जिनकी कीमत लाखों -करोड़ों में हो जाती है।   

 सनबीम स्कूल की निदेशिका सुश्री मेघा यादव ने स्कूल में फिलेटली क्लब बनाने के लिए डाक विभाग का आभार एवं हर्ष व्यक्त करते हुए कहा कि फिलेटली क्लब से हमारे स्कूली छात्र-छात्राओं को विश्व के इतिहास को एक ही टेबल पर डाक टिकटों के माध्यम से देखने का अवसर प्राप्त होगा। 
प्रधानाचार्या सुश्री स्वाति अचरजी ने कहा कि, फिलेटली के माध्यम से  पूरे विश्व में डाक टिकट संग्रह करने वालों के ज्ञानवर्धन तथा वैश्विक स्तर पर लगने वाली डाक टिकट प्रदर्शनियों के माध्यम से छात्रों को डाक विभाग की इस धरोहर से रूबरू होकर विश्व स्तर का ज्ञान प्राप्त हो सकेगा। 
इस अवसर पर स्कूली बच्चों ने तमाम सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किये।  कार्यक्रम के आरम्भ में सनबीम स्कूल की निदेशिका सुश्री मेघा यादव और ट्रस्टी श्री बृजेश यादव ने डाक निदेशक श्री कृष्ण कुमार यादव को  पुष्प गुच्छ देकर स्वागत किया, वहीं विद्यार्थियों ने खूबसूरत पेंटिंग भेंट की।  समारोह की स्मृतिस्वरूप डाक निदेशक श्री केके यादव ने माई स्टैम्प भेंट किया। डाक विभाग के साथ-साथ स्कूल की निदेशिका सुश्री मेघा यादव, ट्रस्टी श्री बृजेश यादव, प्रधानाचार्या सुश्री स्वाति अचरजी ने बच्चों को प्रोत्साहित किया।