संचार के साधनों की बात होती है तो अनायास ही पोस्टकार्ड सामने आ जाता है। पोस्टकार्ड कभी कविताओं को सहेजते हैं तो कभी क्रांति की चिंगारी फ़ैलाने में भी भूमिका निभाते हैं। सत्ता के हुक्मरानों तक अपनी बात पहुँचाने का भी सजग माध्यम है पोस्टकार्ड। शादी-ब्याह, शुभकामनाओं से लेकर मौत की ख़बरों तक तो इन पोस्टकार्डों ने सहेजा है। पत्र-पत्रिकाओं को पढ़ने के बाद पोस्टकार्ड पर प्राप्त पाठकों की प्रतिक्रियायें या रेडियो के फरमाइशी गीतों को लेकर भेजे गए पोस्टकार्ड यदि अभी भी जिन्दा हैं तो उसके पीछे लोगों का प्यार ही है। दुनिया में पहला पोस्टकार्ड एक अक्तूबर 1869 को ऑस्ट्रिया में जारी किया गया था। पोस्टकार्डों की इस खूबसूरत दुनिया को 1 अक्टूबर, 2019 को 150 साल हो गए हैं। आज तमाम लोग पोस्टकार्ड को संग्रहित करने के साथ इन पर शोध भी कर रहे हैं। पोस्टकार्डों के संग्रहण और अध्ययन को अंग्रेजी में डेल्टियोलॉजी कहते हैं।
अतीत की गहराईयों में जायें तो पोस्टकार्ड का विचार सबसे पहले ऑस्ट्रियाई प्रतिनिधि कोल्बेंस्टीनर के दिमाग में आया था, जिन्होंने इसके बारे में वीनर न्योस्टॉ में सैन्य अकादमी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर डॉ. एमैनुएल हर्मेन को बताया। उन्हें यह विचार काफी आकर्षक लगा और उन्होंने 26 जनवरी 1869 को एक अखबार में इसके बारे में लेख लिखा। ऑस्ट्रिया के डाक मंत्रालय ने इस विचार पर बहुत तेजी से काम किया और पोस्टकार्ड की पहली प्रति एक अक्तूबर 1869 में जारी की गई। यहीं से पोस्टकार्ड के सफर की शुरुआत हुई। दुनिया का यह प्रथम पोस्टकार्ड पीले रंग का था। इसका आकार 122 मिलीमीटर लंबा और 85 मिलीमीटर चौड़ा था। इसके एक तरफ पता लिखने के लिए जगह छोड़ी गई थी, जबकि दूसरी तरफ संदेश लिखने के लिए खाली जगह छोड़ी गई।
आस्ट्रिया में यह पोस्टकार्ड इतना लोकप्रिय हुआ कि इसकी देखा-देखी अन्य देशों ने भी इसे अपनाने में देरी नहीं की। ऑस्ट्रिया-हंगरी में तो पहले तीन महीने के दौरान ही करीब तीन लाख पोस्टकार्ड बिक गए। ब्रिटेन ने 1872 में अपना पहला पोस्टकार्ड जारी किया तो तो पहले ही दिन 5, 75,000 पोस्टकार्ड बिक गए।
भारत की बात करें तो यहाँ पहला पोस्टकार्ड 1879 में जारी किया गया। हल्के भूरे रंग में छपे इस पहले पोस्टकार्ड की कीमत 3 पैसे थी और इस कार्ड पर ‘ईस्ट इण्डिया पोस्टकार्ड’ छपा था। बीच में ग्रेट ब्रिटेन का राजचिह्न मुद्रित था और ऊपर की तरफ दाएं कोने मे लाल-भूरे रंग में छपी ताज पहने साम्राज्ञी विक्टोरिया की मुखाकृति थी। अंदाज़-ए-बयां का यह माध्यम लोगों को इतना पसंद आया कि साल की पहली तीन तिमाही में ही लगभग 7.5 लाख रुपए के पोस्टकार्ड बेचे गए थे। पहला चित्रित पोस्टकार्ड फ्रांस ने 1889 में जारी किया था और इस पर एफिल टॉवर अंकित था।
वक्त के साथ-साथ पोस्टकार्ड में कई बदलाव हुए। सामान्यतया पोस्टकार्ड एक मोटे कागज या पतले गत्ते से बना एक आयताकार टुकड़ा होता है जिसे संदेश लिखने के लिए प्रयोग किया जाता है, साथ ही इसे बिना किसी लिफाफे में बंद किये, डाक द्वारा भेजा भी जा सकता है। पोस्टकार्ड भारत सरकार का एक ऐसा उत्पाद है जिसे आम जनता की खातिर जनहित में बेहद सस्ते दामों पर बेचा जाता है। भारत के डाकघरों में चार तरह के पोस्टकार्ड मिलते हैं - मेघदूत पोस्टकार्ड, सामान्य पोस्टकार्ड, प्रिंटेड पोस्टकार्ड और कम्पटीशन पोस्टकार्ड । ये क्रमश : 25 पैसे, 50 पैसे, 6 रूपये और 10 रूपये में उपलब्ध हैं। इन चारों पोस्टकार्ड की लंबाई 14 सेंटीमीटर और चौड़ाई 9 सेंटीमीटर होती है। भारतीय डाक विभाग की ओर से जारी सामान्य पोस्टकार्ड महज 50 पैसे में बेचे जाते हैं जबकि एक पोस्टकार्ड बनाने की लागत कहीं ज्यादा होती है। डाक विभाग की 2016-17 की रिपोर्ट के अनुसार, एक साधारण पोस्टकार्ड पर 12.15 रुपए का खर्च आता है, बदले में सरकारी खजाने में 50 पैसे ही आते हैं और यह निर्माण के कुल लागत का महज 4 फीसदी ही है। इस तरह से सरकार एक पोस्टकार्ड पर 11.75 रुपए की सब्सिडी देती है।
कम लिखे को ज़्यादा समझना की तर्ज पर पोस्टकार्ड न सिर्फ व्यक्तिगत बल्कि तमाम सामाजिक-साहित्यिक-धार्मिक-राजनैतिक आंदोलनों का गवाह रहा है। पोस्टकार्ड का खुलापन पारदर्शिता का परिचायक है तो इसकी सर्वसुलभता लोकतंत्र को मजबूती देती रही है। आज भी तमाम आंदोलनों का आरम्भ पोस्टकार्ड अभियान से ही होता है। ईमेल, एसएमएस, फेसबुक, टि्वटर और व्हाट्सएप ने संचार की परिभाषा भले ही बदल दी हो, पर पोस्टकार्ड अभी भी आम आदमी की पहचान है।
-कृष्ण कुमार यादव
निदेशक डाक सेवाएँ
लखनऊ मुख्यालय परिक्षेत्र, लखनऊ -226001
kkyadav.t@gmail.com
No comments:
Post a Comment