Friday, October 28, 2011

संवाद के साथी : पोस्टकार्ड


(साभार : जनसत्ता, 1 जून, 2011 : अजयेंद्र नाथ त्रिवेदी)

Friday, October 21, 2011

डाकिया डाक लाया

सुख-दुख की धूप-छांव मानव समाज में आदि काल से ही अपने रंग-ढंग दिखाती रही है और आज भी मानव जीवन के साथ उसकी यह आंख मिचैली बदस्तूर जारी है। जब से आदमी ने संगठित समाज के रूप में अपनी विकास यात्रा का शुभारम्भ किया, ठीक तभी से उसके जीवन में समाचारों और संदेशों का महत्व बढ़ गया। यहां तक कि वनवास के समय अपहरण के उपरान्त अपनी प्राणप्रिया सीता जी के विरह में भगवान् श्रीराम भी व्याकुलता के चरम पर पहुंच कर वनप्रांतर के तृणमूल एवम् वृक्षों झाडि़यों को पकड़ पकड़ कर यह पूछने लगे कि 'हे वृक्षो लताओ, बताओ ! मेरी सीता कहां है और किस हाल में है ?' फिर भी सीता जी के विषय में कुछ भी ज्ञात न हो पाने के कारण उनकी विकलता और बढ़ने लगी । तब पवनपुत्र वीर हनुमान ने लंका की अशोक वाटिका से सीता माता का समाचार संदेश लाकर रामदूत अतुलित बलधामा होने का गौरव पाया ।

इधर मेघों के माध्यम से संदेश भिजवाने की अवधारणा कालिदास के यहां मेघदूत के रूप में ही नहीं मिलती बल्कि भारतीय सिनेमा में भी इसकी अनुगूंज सुनाई देती है -

जा रे कारे बदरा/बलम के द्वार ।
वो हैं ऐसे बुद्धू/के समझे ना प्यार ।।

आपको जरूर याद होगा वह फिल्मी गीत भी जिस में बिना पढ़ी लिखी नायिका दूर शहर चले गये अपने प्रेमी को खत लिखने के लिये डाकिया की बहुत मिन्नतें करती है, उसपर भरोसा करके अपने मन का सारा हाल उसी से लिखवाती है-

खत लिख दे सांवरियां के नाम बाबू ।
कोरे कागज पे लिख दे सलाम बाबू ।।
वो जान जाएंगें, वो मान जाएंगें -
कैसे होती है सुबह से शाम बाबू ।।

अपनी जिस प्रेम व्यथा को सारी दुनियां से छुपाती हैं, उसी में डाकिया बाबू को अपना हमराज़ बनाती हैं । यह अलग बात है कि समय के साथ वह प्रेम की जोगन अब इतनी अशिक्षित नहीं रही। अब तो बतियाने वाली डिबिया (सेलफोन) आठों याम उसकी कनपटी से सटी रहती हैं। भले ही आज ई-मेल का जमाना आ गया हो, भारतीय समाज में डाकिये का महत्व शुरू से रहा है। सभी घरों के एक ष्काॅमन मैम्बरष् के रूप में उसकी सामाजिक स्वीकृति बनी हुई है । तभी तो उर्दू के जाने माने शायर निदा फाजली ने उसके बारे में क्या खूब कहा है-

सीधा-सादा डाकिया जादू करे महान् ।
एक ही थैले में रखे आंसू और मुस्कान ।।

भारत में विज्ञापन के क्षेत्र में सम्भवतः पहला ब्राण्ड एम्बैसेडर होने का गौरव यदि किसी को प्राप्त है तो वह एकमात्र डाकिया ही है। डाकघर के लाल डिब्बे में जब आप कोई पत्र पोस्ट करते हैं कि यह पत्र, भले ही बैरंग क्यों न हो - अपने गन्तव्य तक यथाशीघ्र पहुंचेगा जरूर । फिर चाहे धूप हो या बारिश, गर्मी हो अथवा सर्दी भारतीय डाकिया ने इस विश्वास को सदा बनाये रखा है । इसी छवि को ध्यान में रखते हुए सन् 70 के दशक के अंत तक भारतीय खाद्य तेल के बाजार में एक छत्र राज करने वाले पोस्टमैन रिफाइंड आॅयल को उस उम्र के लोग भूले नहीं होंगे । तेल कम्पनी को अपनी बिक्री बढ़ाने के मकसद से अपने तेल की कनस्तरी पर छापने के लिये किसी पुलिसमैन के चित्र को नहीं अपितु पोस्टमैन को चुना। यह पोस्टमैन मार्का का ही कमाल था कि इस खाने के तेल ने हर भारतीय रसोई में कई दशकों तक धूम मचाए रखी ।

भारत के सभी विद्यालयों में लगभग बारहवीं कक्षा तक सभी भाषाओं में डाकिया पर केवल निबंध ही नहीं लिखे जाते बल्कि अनेक विद्यालय अपने सभी छात्रों को बसों में भरकर शहर के डाकघर की सैर कराने भी ले जाते हैं जहां पर बच्चों के इस कौतूहल को शांत करने की कोशिश की जाती है कि एक पत्र पेटिका में पोस्ट करने से लेकर पोस्टमैन की मार्फत दिये गये पते पर पहुंचने से पहले किन-किन प्रक्रियाओं से गुजरता है ।

भारतीय डाक विभाग और रेलवे का एक दूसरे के अस्तित्व में आने के साथ ही अटूट सम्बन्ध रहा है । यह भी अपने आप में कितना अद्भुत संयोग है कि भारतीय रेल की किसी भी रेलगाड़ी का नाम फलां रेल अथवा अमुक रेलगाड़ी बिल्कुल भी नहीं है जबकि असंख्य रेलगाडि़यों के नाम के साथ 'मेल' शब्द का मेलजोल अवश्य है जैसे कि 'पंजाब मेल', 'फ्रंटियर मेल' आदि । निश्चित रूप से रेल विभाग ने भी डाक की महिमा का ध्यान रखते हुए अपने यात्रियों को यह संदेश देना जरूरी समझा कि फलां मेल गाड़ी में डाक का डिब्बा है ।

डाक विभाग का राष्ट्रीय सुरक्षा के क्षेत्र में भी बहुत महत्वपूर्ण योगदान है । सेना डाक सेवा नाम से इसका एक बहुत विशाल एवम् अलग प्रकोष्ठ है । यह भी पूर्णतः प्रशिक्षित एवम् शस्त्र सुसज्जित स्वयं में एक पूरी फौज ही है जो पूरे देश में सुदूर जंगलों, बीहड़ बियाबानों तथा दुर्गम पहाड़ी चोटियों पर युद्ध अथवा शांतिकाल में कभी भी और कहीं भी चाहे चार सैनिकों की चैंकी ही क्यों न हो, घर से या कहीं से भी उन सैनिकों के नाम आया एक अदद पोस्टकार्ड भी सेना डाक सेवा का नौजवान उन्हें वहीं उनके निर्धारित ठिकाने पर पहुंचायेगा जरूर। बर्फानी बंकरों में तैनात हमारे वीर सिपाहियों के लिये घर से प्राप्त होने वाले पत्र कितना बड़ा सहारा होते हैं इसका अनुमान किसी वार सैनिक बेटे को लिखे उसकी माँ के इस पत्र सन्देश के द्वारा आसानी से लगाया जा सकता है जिसे अलवर के एक कवि ने अपनी ओजस्वी कविता में यूं ढाला है-

छुटकी ने राखी रख दी है इसमें बड़े गरूर से ।
और बहू ने तिलक किया है इसका निज सिंदूर से ।।
मेरी बूढ़ी छाती में भी दूध उतर आया बेटा,
और गोंद की जगह उसी से चिट्ठी को चिपकाया बेटा ।।

सेना में एक बात बहुत प्रचलित है कि कोई भी सैनिक एक समय राशन न मिले तो परेशान नहीं होता किन्तु घर से आए पत्र के लिये वह बहुत विचलित होता है । उसकी इसी बेचैनी को शांत करती है आर्मी पोस्टल सर्विस । घर से आयी चिट्ठी किसी फौजी के लिये पूरा घर होती है । चिट्ठी में उसे उसके घर की पूरी झलक मिलती है जिसे पढ़कर प्रेमपूर्वक तह करके वह जेब में रख लेता है और अगले ही पल दुश्मन पर टूट पड़ता है ।

सन् 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के समय भी डाक विभाग का काम अत्यन्त सराहनीय रहा है । अंग्रेजों ने इस स्वाधीनता आन्दोलन को ग़दर की संज्ञा दी । इस जंग-ए-आजादी में शिरकत करने के जुर्म में अंतिम मुगल सम्राट बहादुरशाह ज़फर पर चले मुकदमें की कार्यवाई बुधवार 27 जनवरी 1858 से शुरू होकर मंगलवार 9 मार्च 1858 तक कुल 21 दिन चली थी । इसमें छठे दिन की कार्यवाही मंगलवार 2 फरवरी सन् 1858 के रोज़ बहादुरशाह ज़फर के (शाही) हकीम एहसन उल्ला खाँ अदालत में बुलाये गये तथा डिप्टी जज एडवोकेट ने उनका ब्यान लिया । उन्हें क्रमशः 6 कागजों की तस्दीक करने को कहा गया । गवाह ने समुचित उत्तर दिया । कागज नम्बर 5 की बाबत अलग से जोर देकर पूछे जाने पर गवाह ने ब्यान किया, 'जी नहीं वह किसके हाथ का लिखा है, मैं नहीं पहचान सकता।' आगे पूछे जाने पर हकीम साहब ने अपनी गवाही में कहा, 'जी हाँ, मुझे मुहम्मद बख्त खाँके दफ्तर के किसी मुहर्रिर की लिखावट मालूम होती है।' कागज जिस पर 'अ' का चिन्ह था असली लिफाफा सहित जिस पर दिल्ली के डाकखाने की मुहर है, लाया गया । इससे सिद्ध होता है कि वह 25 मार्च सन् 1857 को दिल्ली के डाकखाने में डाला गया और 27 मार्च सन् 1857 की मुहर प्रकट करती है कि यह उस दिन आगरे पहुँचा । (बहादुर शाह का मुकदमा, लेखकः ख्वाजा हसन निज़ामी, पृ0 27) डाक विभाग ने अपने बाल्यकाल में जबकि उन दिनों आज जैसे यातायात के साधनों का विकट अभाव था तब भी दिल्ली से पोस्ट किये गये पत्र को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बेहद उथल पुथल भरे समय में ठीक तीसरे दिन आगरा में वितरित कर दिया। यह डाक विभाग की शैशवास्था की कार्य-कुशलता का प्रामाणिक उदाहरण है जो कि इतिहास का अटूट अंग बन चुका है । चिट्ठी पर दर्ज पोस्टमैन के 'रिमार्क' को आज भी अदालतों में पूरी मान्यता दी जाती है ।

भारतीय मुद्रा बाजार में चवन्नी भले ही दिवंगत हो गयी हो किन्तु उसके सममूल्य 25 पैसे के डाक टिकट को डाक तिलक की भांति अपने भाल पर धारण करके कोई भी समाचार पत्र कश्मीर से कन्या कुमारी तक आज भी पहुंच रहा है. सामान्य-ज्ञान के रूप में एक बेहद रोचक जानकारी यह भी है कि भारत के सम्मानित जमाकर्ताओं की बदौलत डाकघर बचत बैंक अखिल विश्व में सर्वाधिक खाते होने के कारण दुनिया का सबसे बड़ा बैंक है । डाक विभाग की कल्याणकारी सेवाओं में ब्रेल लिपि में लिखे अंध साहित्य (ब्लाइंड लिटरेचर पैकेट्स) को पूरे देश में यहां से वहां पूर्णतः निःशुल्क पहंुचाया जाता है । किसी भी राष्ट्रीय आपदा के समय प्रधानमन्त्री राहत-कोष में दिये जाने वाले अंशदान के मनिआॅर्डरों का प्रेषण भी समय समय पर शुल्क मुक्त कर दिया जाता है किन्तु इसके लिए प्रत्येक बार नये आदेशों के अंतर्गत ही ये मनिआॅर्डर कमीशन मुक्त होते हैं ।

डाक विभाग अपने सामाजिक दायित्वों के प्रति भी सदैव सजग एवम् समर्पित रहा है । 'अहर्निशं सेवामहे' तथा 'Service before self' की अवधारणा पर आधारित डाक विभाग द्वारा देश-विदेश की ख्याति प्राप्त महान् विभूतियों, ऐतिहासिक स्थलों, स्मारकों, शीर्षस्थ शिक्षा संस्थानांे, प्रमुख घटनाओं, अनेक सामाजिक चेतना से जुड़े प्रसंगों एवम् चर्चित आयोजनों पर समय-समय पर बहुरंगी डाक-टिकट जारी किये जाते हैं । डाक टिकटों का यह रंग-बिरंगा संसार डाक-टिकट संग्रहकर्ताओं के साथ साथ हर किसी का मन मोह लेता है ।

किसी जमाने में केवल डाक कर्मचारियों तक सीमित डाक जीवन बीमा सेवा न सिर्फ अन्य सभी केन्द्र अथवा राज्य सरकार एवम् सार्वजनिक प्रतिष्ठानों के कर्मचारियों तक पहुंचाई गई बल्कि इसके साथ-साथ ग्रामीण डाक जीवन बीमा पाॅलिसियां भी बहुत लोकप्रिय सिद्ध हो रही हैं । इसके अलावा स्पीड पोस्ट के बाद पंजीकृत डाक को भी नेट पर लाया जा रहा है ताकि उसकी पहुंच पर डाक विभाग के ग्राहकवृन्द घर बैठे नजर रख सकें । इसके अतिरिक्त अन्य अनेक सेवाओं की भी समयबद्धता तय की गई है और भरसक प्रयास किये जा रहे हैं कि निर्धारित मानदण्डों के अनुसार सेवाओं में व्यापक सुधार सुनिश्चित किया जा सके । इसके लिए विभाग को अपने नित्य सिकुड़ते मानव संसाधन एवम् अन्य उपलब्ध अत्यल्प स्त्रोतों में वर्तमान आवश्यकताओं के अनुरूप भारी इजाफा करना होगा तभी जाकर मानव एवम् तकनीकी तथा मशीनी क्षमता का विभाग तथा राष्ट्रहित में व्यापक उपयोग सम्भव है ।

सामाजिक जीवन में आये उतार चढ़ाव के हिसाब से कर्तव्यों में कोताही की छुटपुट खबरें डाक-विभाग के सन्दर्भ में भी भले ही कभी कभार सुनी जाती हों तो भी डाक विभाग ने अपने ढांचे व कार्यशैली में आमूल परिवर्तन करने की ठानी है जिसमें आधुनिक सूचना तकनीक का भरपूर उपयोग किया गया है ताकि डाक-विभाग अपने स्वर्णिम अतीत एवम् गौरवशाली इतिहास के बरक्स उसकी पुरानी साख और विश्वसनीयता की अक्षुण्ण रखा जा सके।

- नीतिपाल अत्रि 'सुदर्शन'
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जन्म : 1 जनवरी 1962, गांव आसन, रोहतक (हरि0)/ शिक्षा: कला एवम् शिक्षा स्नातक ।
प्रकाशन: देश की अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित । आकाशवाणी से अनेक प्रसारण ।
सम्मान: मंडल स्तरीय राजभाषा पुरस्कार ।
संप्रति: भारतीय डाक विभाग में कार्यरत (डाक अधीक्षक कार्यालय, फरीदाबाद, हरियाणा में डाक सहायक).
संपर्क: 3763 जवाहर काॅलोनी, फरीदाबाद-121005
मो0: 09711386169








Tuesday, October 11, 2011

अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में 'राष्ट्रीय डाक सप्ताह'

'विश्व डाक दिवस' (9 अक्तूबर) के साथ-साथ पूरे देश में 9-14 अक्तूबर तक चलने वाले राष्ट्रीय डाक सप्ताह का आरंभ हुआ.मुख्यभूमि के साथ-साथ सुदूर अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में भी हर्षोल्लास के साथ इसे मनाया जा रहा है. एक तरफ जहाँ डाक मेलों द्वारा लोगों को डाकघरों की सेवाओं के बारे में बताने के साथ-साथ राजस्व अर्जन पर जोर दिया जा रहा है, वहीँ नई पीढ़ी को डाक घरों से जोड़ने हेतु भी बच्चों के लिए डाक घरों का विजिट, डाक टिकट प्रदर्शनी, पत्र-लेखन, पेंटिंग और प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिताएं आयोजित की जा रही हैं. पोर्टब्लेयर में राष्ट्रीय डाक सप्ताह का उद्घाटन निदेशक डाक सेवाएं श्री कृष्ण कुमार यादव द्वारा किया गया। इस अवसर पर श्री यादव ने कहा कि डाकघर ही एक मात्र ऐसा संस्थान है जो देश के सुदूरतम कोनो को जोडता है और इस तरह ऐसे क्षेत्रों में रह रहे लोगो को तमाम सुविधा मिलना सुनिश्चित हो जाती हैं। श्री यादव ने कहा कि इन द्वीपों में सभी प्रमुख डाक सेवाएं उपलब्ध हैं, जो मुख्य भूमि में मिलती हैं।

राष्ट्रीय डाक सप्ताह के तहत अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में 10 अक्टूबर को ‘बचत बैंक दिवस‘ के रूप में मनाया गया। इस अवसर पर जहाँ बचत मेला लगाया गया, वहीं लोगों को बचत बैंक सेवाओं के बारे मे जानकारी देते हुए बचत खाते खोलने की तरफ प्रवृत्त किया गया। डाक निदेशक श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा नेटवर्क की दृष्टि से डाकघर बचत बैंक देश का सबसे बड़ा रीटेल बैंक है।
172 मिलियन से अधिक खाताधारकों के ग्राहक आधार और 1,54,000 शाखाओं के नेटवर्क के साथ डाकघर बचत बैंक देश के सभी बैंकों की कुल संख्या के दोगुने के बराबर है। द्वीप समूह के डाकघरों से बचत खाता, आवर्ती जमा, सावधि जमा, मासिक आय स्कीम, लोक भविष्य निधि, किसान विकास पत्र, राष्ट्रीय बचत पत्र और वरिष्ठ नागरिक बचत स्कीम की खुदरा बिक्री की जाती है। ज्ञातव्य है कि ये सभी जमा राशियाँ केन्द्र सरकार द्वारा राज्यों के विकास कार्यों के लिए दी जाती हैं। डाकघर की जमा योजनाओं में आकर्षक ब्याज दरें हैं। द्वीप समूह में वर्तमान में लगभग 1 लाख 8 हजार खाते चल रहे हैं और वित्तीय वर्ष 2010-11 के दौरान लगभग 67 करोड़ रूपये डाकघरों में जमा हुए। वर्तमान परिवेश में डाक विभाग वन स्टाप शाप के तहत बचत, बीमा, गैर बीमा, पेंशन प्लान इत्यादि सेवायें प्रदान कर रहा है। इनमें से कई सेवायें अन्य फर्मों के साथ अनुबंध के तहत आरम्भ की गयी हैं। मनरेगा के तहत कुशल/अर्ध-कुशल/अकुशल मजदूरों के लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने में भारत सरकार को सहयोग देते हुए डाकघर मजदूरी का भुगतान करने का माध्यम भी बन चुका है। द्वीप समूह में मनरेगा के 269 खाते संचालित है।

निदेशक श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि यह एक सुखद संकेत है कि डाक-सेवाएं नवीनतम टेक्नालाजी का अपने पक्ष में भरपूर इस्तेमाल कर रही हैं। डाकघरों की मनीआर्डर सेवा को द्रुतगामी बनाते हुए इसे “ई-मनीआर्डर“ में तब्दील कर दिया गया है। 'इंस्टेंट मनीआर्डर सेवा’ के तहत संपूर्ण भारत में आनलाइन मनी ट्रांसफर के तहत धनादेश भेजने व प्राप्त करने की सुविधा है। विदेशों में रह रहे व्यक्तियों द्वारा द्वीप समूहों में अपने परिजनों को तत्काल धन अन्तरण सुलभ कराने हेतु ’वेस्टर्न यूनियन’ के सहयोग से ’अंतर्राष्ट्रीय धन अन्तरण सेवा’ पोर्टब्लेयर, बम्बूफलाट और हैवलाक डाकघरों में उपलब्ध है। इसी क्रम में 11 अक्टूबर को 'मेल दिवस' मनाया गया जिसमें स्कूली बच्चों ने प्रधान डाकघर का दौरा किया जिसमें स्कूली बच्चों को मेल सार्टिगं, मेल वितरण,बचत बैंक, फिलैटलिक,प्रोजेक्ट एरो एंव टेक्नालॅाजी इत्यादि के बारे बताया गया। डाक निदेशक श्री यादव ने बताया कि 12 अक्टूबर को फिलैटलिक दिवस के रुप में मनाया जाएगा। जिसमें स्कूली बच्चों के लिए पत्र लेखन,प्रश्नोत्तरी एंव पेटिंग प्रतियोगिताएं आयोजित की जाएंगी। डाक विभाग के कर्मचारियों के साथ-साथ स्कूली बच्चों में भी डाक-सप्ताह के प्रति काफी उत्साह देखा जा रहा है.

Sunday, October 9, 2011

विश्व डाक दिवस : संवेदना के संवाहक पत्र

पत्रों की दुनिया बेहद निराली है। दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने तक यदि पत्र अबाध रूप से आ-जा रहे हंै तो इसके पीछे ‘यूनिवर्सल पोस्टल‘ यूनियन का बहुत बड़ा योगदान है, जिसकी स्थापना 9 अक्टूबर 1874 को स्विटजरलैंड में हुई थी। यह 9 अक्टूबर पूरी दुनिया में ‘विश्व डाक दिवस‘ के रूप में मनाया जाता है। तब से लेकर आज तक डाक-सेवाओं में वैश्विक स्तर पर तमाम क्रांतिकारी परिवर्तन आए हैं और भारत भी इन परिवर्तनों से अछूता नहीं हैं। डाक सेवाओं का इतिहास बहुत पुराना है, पर भारत में एक विभाग के रूप में इसकी स्थापना 1 अक्तूबर 1854 को लार्ड डलहौजी के काल में हुई। डाकघरों में बुनियादी डाक सेवाओं के अतिरिक्त बैंकिंग, वित्तीय व बीमा सेवाएं भी उपलब्ध हैं। एक तरफ जहाँ डाक-विभाग सार्वभौमिक सेवा दायित्व के तहत सब्सिडी आधारित विभिन्न डाक सेवाएं दे रहा है, वहीं पहाड़ी, जनजातीय व दूरस्थ अंडमान व निकोबार द्वीप समूह जैसे क्षेत्रों में भी उसी दर पर डाक सेवाएं उपलब्ध करा रहा है।

सभ्यता के आरम्भ से ही मानव किसी न किसी रूप में पत्र लिखता रहा है। दुनिया का सबसे पुराना ज्ञात पत्र 2009 ईसा पूर्व का बेबीलोन के खण्डहरों से मिला था, जो कि वास्तव में एक प्रेम पत्र था और मिट्टी की पटरी पर लिखा गया था। कहा जाता है कि बेबीलोन की किसी युवती का प्रेमी अपनी भावनाओं को समेटकर उससे जब अपने दिल की बात कहने बेबीलोन तक पहुँचा तो वह युवती तब तक वहाँ से जा चुकी थी। वह प्रेमी युवक अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पाया और उसने वहीं मिट्टी के फर्श पर खोदते हुए लिखा-‘‘मैं तुमसे मिलने आया था, तुम नहीं मिली।‘‘ यह छोटा सा संदेश विरह की जिस भावना से लिखा गया था, उसमें कितनी तड़प शामिल थी। इसका अंदाजा सिर्फ वह युवती ही लगा सकती थी जिसके लिये इसे लिख गया। भावनाओं से ओत-प्रोत यह पत्र 2009 ईसा पूर्व का है और इसी के साथ पत्रों की दुनिया ने अपना एक ऐतिहासिक सफर पूरा कर लिया है।

जब संचार के अन्य साधन न थे, तो पत्र ही संवाद का एकमात्र माध्यम था। पत्रों का काम मात्र सूचना देना ही नहीं बल्कि इनमें एक अजीब रहस्य या गोपनीयता, संग्रहणीयता, लेखन कला एवं अतीत को जानने का भाव भी छुपा होता है। पत्रों की सबसे बडी विशेषता इनका आत्मीय पक्ष है। यदि पत्र किसी खास का हुआ तो उसे छुप-छुप कर पढ़ने में एवम् संजोकर रखने तथा मौका पाते ही पुराने पत्रों के माध्यम से अतीत में लौटकर विचरण करने का आनंद ही कुछ और है। यह सही है कि संचार क्रान्ति ने चिठ्ठियों की संस्कृति को खत्म करने का प्रयास किया है और पूरी दुनिया को बहुत करीब ला दिया है। पर इसका एक पहलू यह भी है कि इसने दिलों की दूरियाँ इतनी बढ़ा दी हैं कि बिल्कुल पास में रहने वाले अपने इष्ट मित्रों और रिश्तेदारों की भी लोग खोज-खबर नहीं रखते। ऐसे में युवा पीढ़ी के अंदर संवेदनाओं को बचा पाना कठिन हो गया है। तभी तो पत्रों की महत्ता को देखते हुए एन0सी0ई0आर0टी0 को पहल कर कक्षा आठ के पाठ्यक्रम में ‘‘चिट्ठियों की अनोखी दुनिया‘‘ नामक अध्याय को शामिल करना पड़ा।

सिर्फ साधारण व्यक्ति ही नहीं बल्कि प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने भी पत्रों के अंदाज को जिया है। माक्र्स-एंजिल्स के मध्य ऐतिहासिक मित्रता का सूत्रपात पत्रों से ही हुआ। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने उस स्कूल के प्राचार्य को पत्र लिखा, जिसमें उनका पुत्र अध्ययनरत था। इस पत्र में उन्होंने प्राचार्य से अनुरोध किया था कि उनके पुत्र को वे सारी शिक्षायें दी जाय, जो कि एक बेहतर नागरिक बनने हेतु जरूरी हैं। इसमें किसी भी रूप में उनका पद आडे़ नहीं आना चाहिये। महात्मा गाँधी तो पत्र लिखने में इतने सिद्धहस्त थे कि दाहिने हाथ के साथ-साथ वे बाएं हाथ से भी पत्र लिखते थे। पं0 जवाहर लाल नेहरू अपनी पुत्री इन्दिरा गाँधी को जेल से भी पत्र लिखते रहे। ये पत्र सिर्फ पिता-पुत्री के रिश्तों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इनमें तात्कालिक राजनैतिक एवं सामाजिक परिवेश का भी सुन्दर चित्रण है। इन्दिरा गाँधी के व्यक्तित्व को गढ़ने में इन पत्रों का बहुत बड़ा हाथ रहा है। आज ये किताब के रूप में प्रकाशित होकर ऐतिहासिक दस्तावेज बन चुके हैं। इन्दिरा गाँधी ने इस परम्परा को जीवित रखा एवं दून में अध्ययनरत अपने बेटे राजीव गाँधी को घर की छोटी-छोटी चीजों और तात्कालिक राजनैतिक-सामाजिक परिस्थितियों के बारे में लिखती रहीं। एक पत्र में तो वे राजीव गाँधी को रीवा के महाराज से मिले सौगातों के बारे में भी बताती हैं। तमाम राजनेताओं-साहित्यकारों के पत्र समय-समय पर पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित होते रहते हैं। इनसे न सिर्फ उस व्यक्ति विशेष के संबंध में जाने-अनजाने पहलुओं का पता चलता है बल्कि तात्कालिक राजनैतिक-सामाजिक-साहित्यिक-सांस्कृतिक परिवेश के संबंध में भी बहुत सारी जानकारियाँ प्राप्त होती हैं। इसी ऐतिहासिक के कारण आज भी पत्रों की नीलामी लाखों रूपयों में होती हैं।

कहते हैं कि पत्रों का संवेदनाओं से गहरा रिश्ता है और यही कारण है कि पत्रों से जुड़े डाक विभाग ने तमाम प्रसिद्ध विभूतियों को पल्लवित-पुष्पित किया है। अमेरिका के राष्ट्रपति रहे अब्राहम लिंकन पोस्टमैन तो भारत में पदस्थ वायसराय लार्ड रीडिंग डाक वाहक रहे। विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक व नोबेल पुरस्कार विजेता सी0वी0 रमन भारतीय डाक विभाग में अधिकारी रहे वहीं प्रसिद्ध साहित्यकार व ‘नील दर्पण‘ पुस्तक के लेखक दीनबन्धु मित्र पोस्टमास्टर थे। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लोकप्रिय तमिल उपन्यासकार पी0वी0अखिलंदम, राजनगर उपन्यास के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित अमियभूषण मजूमदार, फिल्म निर्माता व लेखक पद्मश्री राजेन्द्र सिंह बेदी, मशहूर फिल्म अभिनेता देवानन्द डाक कर्मचारी रहे हैं। उपन्यास सम्राट प्रेमचन्द जी के पिता अजायबलाल डाक विभाग में ही क्लर्क रहे। ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता मशहूर लेखिका महाश्वेता देवी,चर्चित समालोचक एवं प्रेमचन्द-विशेषज्ञ डा. कमल किशोर गोयनका तथा प्रसिद्ध बाल साहित्यकार डा. राष्ट्रबन्धु ने आरम्भ में डाक-तार विभाग में काम किया था। सुविख्यात उर्दू समीक्षक पद्मश्री शम्सुररहमान फारूकी, शायर कृष्ण बिहारी नूर, महाराष्ट्र के प्रसिद्ध किसान नेता शरद जोशी सहित तमाम विभूतियाँ डाक विभाग की गोद में अपनी सृजनात्मक-रचनात्मक काया का विस्तार पाने में सफल रहीं।

भारतीय परिपे्रक्ष्य में इस तथ्य से इन्कार नहीं किया जा सकता कि भारत एक कृषि प्रधान एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था वाला देश है, जहाँ 70 फीसदी आबादी गाँवों में बसती है। समग्र टेनी घनत्व भले ही 70 का आंकड़ा छूने लगा हो पर ग्रामीण क्षेत्रों में यह बमुश्किल 20 से 25 फीसदी ही है। यदि हर माह 2 करोड़ नए मोबाइल उपभोक्ता पैदा हो रहे हैं तो उसी के सापेक्ष डाक विभाग प्रतिदिन दो करोड़ से ज्यादा डाक वितरित करता है। 1985 में यदि एस0एम0एस0 पत्रों के लिए चुनौती बनकर आया तो उसके अगले ही वर्ष दुतगामी ‘स्पीड पोस्ट‘ सेवा भी आरम्भ हो गई। यह एक सुखद संकेत है कि डाक-सेवाएं नवीनतम टेक्नाॅलाजी का अपने पक्ष में भरपूर इस्तेमाल कर रही हैं। ‘ई-मेल‘ के मुकाबले ‘ई-पोस्ट‘ के माध्यम से डाक विभाग ने डिजिटल डिवाइड को भी कम करने की मुहिम छेड़ी है। आखिरकार अपने देश में इंटरनेट प्रयोक्ता महज 7 फीसदी हंै। आज डाकिया सिर्फ सिर्फ पत्र नहीं बांटता बलिक घरों से पत्र इकट्ठा करने और डाक-स्टेशनरी बिक्री का भी कार्य करता है। समाज के हर सेक्टर की जरूरतों के मुताबिक डाक-विभाग ने डाक-सेवाओं का भी वर्गीकरण किया है, मसलन बल्क मेलर्स के लिए बिजनेस पोस्ट तो कम डाक दरों के लिए बिल मेल सेवा उपलब्ध है। पत्रों के प्रति क्रेज बरकरार रखने के लिए खुश्बूदार डाक-टिकट तक जारी किए गए हैं। आई0टी0 के इस दौर में चुनौतियों का सामना करने के हेतु डाक विभाग अपनी ब्रांडिंग भी कर रहा है। ‘प्रोजेक्ट एरो‘ के तहत डाकघरों का लुक बदलने से लेकर काउंटर सेवाओं, ग्राहकों के प्रति व्यवहार, सेवाओं को समयानुकूल बनाने जैसे तमाम कदम उठाए गए हैं। इस पंचवर्षीय योजना में डाक घर कोर बैंकिंग साल्यूशन के तहत एनीव्हेयर, एनी टाइम, एनीब्रांच बैंकिंग भी लागू करने जा रहा है। सिम कार्ड से लेकर रेलवे के टिकट और सोने के सिक्के तक डाकघरों के काउंटरों पर खनकने लगे हैं और इसी के साथ डाकिया डायरेक्ट पोस्ट के तहत पम्फ्लेट इत्यादि भी घर-घर जाकर बांटने लगा है। पत्रों की मनमोहक दुनिया अभी खत्म नहीं हुई है। तभी तो अन्तरिक्ष-प्रवास के समय सुनीता विलियम्स अपने साथ भगवद्गीता और गणेशजी की प्रतिमा के साथ-साथ पिताजी के हिन्दी में लिखे पत्र ले जाना नहीं भूलती। हसरत मोहानी ने यूँ ही नहीं लिखा था-

लिक्खा था अपने हाथों से जो तुमने एक बार।
अब तक हमारे पास है वो यादगार खत ।।

(विश्व डाक दिवस, 9 अक्तूबर पर आकाशवाणी, पोर्टब्लेयर से प्रसारित कृष्ण कुमार यादव, निदेशक डाक सेवाएं,अंडमान व निकोबार द्वीप समूह की वार्ता)

Saturday, October 8, 2011

विश्व डाक दिवस पर बधाईयाँ

डाक सेवाओं की एक पुरानी परम्परा है। दुनिया भर में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं होगा, जिसका कभी डाक सेवाओं से पाला न पड़ा हो। यह अचरज की बात है कि एक देश में पोस्ट किया हुआ पत्र दुनिया के दूसरे कोनों में आराम से पहुँच जाता है। डाक सेवाओं के संगठन रूप में उद्भव के साथ ही इस बात की जरूरत महसूस की गई कि दुनिया भर में एक ऐसा संगठन होना चाहिए, जो यह सुनिश्चित करे कि सभी देशों के मध्य पत्रों का आवागमन सहज रूप में हो सके और आवश्यकतानुसार इसके लिए नियम-कानून बनाये जा सकें।

इसी क्रम में 9 अक्टूबर 1874 को ‘‘जनरल पोस्टल यूनियन‘‘ के गठन हेतु बर्न, स्विटजरलैण्ड में 22 देशों ने एक संधि पर हस्ताक्षर किया था, इसी कारण 9 अक्टूबर को कालान्तर में ‘‘विश्व डाक दिवस‘‘ के रूप में मनाना आरम्भ किया गया। यह संधि 1 जुलाई 1875 को अस्तित्व में आयी, जिसके तहत विभिन्न देशों के मध्य डाक का आदान-प्रदान करने संबंधी रेगुलेसन्स शामिल थे। कालान्तर में 1 अप्रैल 1879 को जनरल पोस्टल यूनियन का नाम परिवर्तित कर यूनीवर्सल पोस्टल यूनियन कर दिया गया। यूनीवर्सल पोस्टल यूनियन का सदस्य बनने वाला भारत प्रथम एशियाई राष्ट्र था, जो कि 1 जुलाई 1876 को इसका सदस्य बना। जनसंख्या और अन्तर्राष्ट्रीय मेल ट्रैफिक के आधार पर उस समय सदस्य राष्ट्रों की 6 श्रेणियां थीं और भारत आरम्भ से ही प्रथम श्रेणी का सदस्य रहा। 1947 में यूनीवर्सल पोस्टल यूनियन, संयुक्त राष्ट्र संघ की एक विशिष्ट एजेंसी बन गई। यह भी एक रोचक तथ्य है कि विश्व डाक संघ के गठन से पूर्व दुनिया में एकमात्र अन्तर्राष्ट्रीय संगठन रेड क्रास सोसाइटी (1870) था।

कल 9 अक्टूबर को विश्व डाक दिवस है और इसी क्रम में पूरे सप्ताह राष्ट्रीय डाक सप्ताह (9-14 अक्टूबर) का आयोजन चलता है। इस दौरान जहाँ प्रतिदिन सेवाओं के व्यापक प्रचार-प्रसार एवं राजस्व अर्जन में वृद्धि पर जोर दिया जाता है वहीं डाक टिकटों की प्रदर्शनी, स्कूली विद्यार्थियों हेतु कार्यक्रम, कस्टमर मीट, स्कूली छात्र-छात्राओं द्वारा डाकघरों का विजिट, बचत बैंक खातों हेतु लकी ड्रा एवं उत्कृष्ट कार्य करने वाले स्टाफ तथा महत्वपूर्ण बचत अभिकर्ताओं व कारपोरेट कस्टमर्स के सम्मान जैसे तमाम कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं।

विश्व डाक दिवस की बधाईयाँ !!

Monday, October 3, 2011

जनसत्ता में भी 'डाकिया डाक लाया'




आज 3 अक्तूबर, 2011 को प्रतिष्ठित दैनिक समाचार पत्र 'जनसत्ता' के सम्पादकीय पृष्ठ पर समांतर स्तम्भ के तहत 'डाकिया डाक लाया' ब्लॉग पर 21 सितम्बर को प्रकाशित पोस्ट 'चिट्ठियों की दुनिया' को 'संदेश की संवेदना' शीर्षक से प्रस्तुत किया गया है. यह पोस्ट पत्रों की आत्मीय दुनिया पर आधारित है !!

इससे पहले 'डाकिया डाक लाया' ब्लॉग और इसकी प्रविष्टियों की चर्चा दैनिक हिंदुस्तान, राष्ट्रीय सहारा, राजस्थान पत्रिका, उदंती जैसी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में हो चुकी है.

गौरतलब है कि "डाकिया डाक लाया" ब्लॉग की चर्चा सबसे पहले 8 अप्रैल, 2009 को दैनिक हिंदुस्तान अख़बार में 'ब्लॉग वार्ता' के अंतर्गत की गई थी। रवीश कुमार जी ने इसे बेहद रोचक रूप में प्रस्तुत किया था. इसके बाद इसकी चर्चा 29 अप्रैल 2009 के दैनिक 'राष्ट्रीय सहारा' पत्र के परिशिष्ट 'आधी दुनिया' में 'बिन्दास ब्लाग' के तहत की गई. "प्रिंट मीडिया पर ब्लॉग चर्चा" के अनुसार इस ब्लॉग की 22 अक्तूबर की पोस्ट "2009 ईसा पूर्व में लिखा गया दुनिया का पहला पत्र'' की चर्चा 11 नवम्बर 2009 को राजस्थान पत्रिका, जयपुर संस्करण के नियमित स्तंभ 'ब्लॉग चंक' में की गई।



....ऐसे में यह जानकर अच्छा लगता है कि इस ब्लॉग को आप सभी का भरपूर प्यार व सहयोग मिल रहा है. आप सभी शुभेच्छुओं का आभार !!

Wednesday, September 21, 2011

चिट्ठियों की दुनिया...

आपको याद है, आपने अंतिम बार कब पत्र लिखा था. वह लाल रंग का लेटर बाक्स याद है, जिसे हम बचपन में हनुमान जी का प्रतिरूप समझते थे, कि यह हमारे डाले गए पत्रों को रात में उड़कर गंतव्य स्थान तक पहुँचा देते हैं. न जाने कितनी बार स्कूल के दिनों में आपने परिजनों को रात में जागकर चिट्ठियाँ लिखी होंगीं. पर आज इंटरनेट, ई-मेल, मोबाईल ने मानो पत्रों की दुनिया ही बदल दी हो. पर चिट्ठियों में जो आत्मीयता का भाव छुपा होता है, वह अन्यत्र नहीं.

अभी एक मित्र ने बताया कि आजकल रालेगनसिद्धि डाकघर गुलजार है, जहाँ रोज अन्ना हजारे के नाम से 500-700 पत्र आ रहे हैं. फेसबुक और नेट पर किसने क्या कहा, यह अन्ना की टीम भले ही देखती हो, पर अन्ना के लिए शायद ही संभव हो पता हो? पर ये चिट्ठियाँ तो उन्हें जहाँ प्रेरित करती हैं, वहीँ इन्हें वास्तव में वे पढ़ते भी हैं. यह अलग बात है कि इन सभी का जवाब देना उनके लिए संभव नहीं है, पर चिट्ठियों की उपस्थिति उन्हें जरूर आश्वस्त करती है.

आजादी के आन्दोलन में भी चिट्ठियों का बड़ा योगदान रहा है. गाँधी जी के पास तो रोज सैकड़ों पत्र आते थे और वे व्यक्तिगत रूप से इन सभी का जवाब देते थे. महात्मा गाँधी तो पत्र लिखने में इतने सिद्धहस्त थे कि दाहिने हाथ के साथ-साथ वे बाएं हाथ से भी पत्र लिखते थे। डाक विभाग भी इतना मुस्तैद था कि मात्र 'गाँधी जी' लिखे पते के आधार पर उन्हें कहीं भी चिट्ठियाँ पहुँचा देता था. यह अनायास ही नहीं है आज भी डाक-टिकटों पर भारत में सबसे ज्यादा गाँधी जी के ही दर्शन होते हैं.

पं0 जवाहर लाल नेहरू अपनी पुत्री इन्दिरा गाँधी को जेल से भी पत्र लिखते रहे। ये पत्र सिर्फ पिता-पुत्री के रिश्तों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इनमें तात्कालिक राजनैतिक एवं सामाजिक परिवेश का भी सुन्दर चित्रण है। इन्दिरा गाँधी के व्यक्तित्व को गढ़ने में इन पत्रों का बहुत बड़ा हाथ रहा है। आज ये किताब के रूप में प्रकाशित होकर ऐतिहासिक दस्तावेज बन चुके हैं। इन्दिरा गाँधी ने इस परम्परा को जीवित रखा एवं दून में अध्ययनरत अपने बेटे राजीव गाँधी को घर की छोटी-छोटी चीजों और तात्कालिक राजनैतिक-सामाजिक परिस्थितियों के बारे में लिखती रहीं। एक पत्र में तो वे राजीव गाँधी को रीवा के महाराज से मिले सौगातों के बारे में भी बताती हैं। तमाम राजनेताओं-साहित्यकारों के पत्र समय-समय पर पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित होते रहते हैं। इनसे न सिर्फ उस व्यक्ति विशेष के संबंध में जाने-अनजाने पहलुओं का पता चलता है बल्कि तात्कालिक राजनैतिक-सामाजिक-साहित्यिक-सांस्कृतिक परिवेश के संबंध में भी बहुत सारी जानकारियाँ प्राप्त होती हैं। इसी ऐतिहासिक के कारण आज भी पत्रों की नीलामी लाखों रूपयों में होती हैं।

पत्रों को लेकर तमाम बातें कही जाती हैं. आपने वो वाली कहानी तो सुनी ही होगी, जिसमें एक किसान पैसों के लिए भगवान को पत्र लिखता है और उसका विश्वास कायम रखने के लिए पोस्टमास्टर अपने स्टाफ से पैसे एकत्र कर उसे मनीआर्डर करता है. उड़ीसा के खुर्दा जिले में एक मंदिर ऐसा भी है, जहाँ लोग ईश्वर को पत्र लिखकर अपनी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए आराधना करते हैं।

आपको पता है कि, दुनिया का सबसे पुराना ज्ञात पत्र 2009 ईसा पूर्व का बेबीलोन के खण्डहरों से मिला था, जोकि वास्तव में एक प्रेम पत्र था और मिट्टी की पटरी पर लिखा गया था। कहा जाता है कि बेबीलोन की किसी युवती का प्रेमी अपनी भावनाओं को समेटकर उससे जब अपने दिल की बात कहने बेबीलोन तक पहुँचा तो वह युवती तब तक वहाँ से जा चुकी थी। वह प्रेमी युवक अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पाया और उसने वहीं मिट्टी के फर्श पर खोदते हुए लिखा-‘‘मैं तुमसे मिलने आया था, तुम नहीं मिली।‘‘ यही दुनिया का सबसे पहला पत्र है.

कहते हैं कि पत्रों का संवेदनाओं से गहरा रिश्ता है और यही कारण है कि पत्रों से जुड़े डाक विभाग ने तमाम प्रसिद्ध विभूतियों को पल्लवित-पुष्पित किया है। अमेरिका के राष्ट्रपति रहे अब्राहम लिंकन पोस्टमैन तो भारत में पदस्थ वायसराय लार्ड रीडिंग डाक वाहक रहे। विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक व नोबेल पुरस्कार विजेता सी0वी0 रमन भारतीय डाक विभाग में अधिकारी रहे वहीं प्रसिद्ध साहित्यकार व ‘नील दर्पण‘ पुस्तक के लेखक दीनबन्धु मित्र पोस्टमास्टर थे। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लोकप्रिय तमिल उपन्यासकार पी0वी0अखिलंदम, राजनगर उपन्यास के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित अमियभूषण मजूमदार, फिल्म निर्माता व लेखक पद्मश्री राजेन्द्र सिंह बेदी, मशहूर फिल्म अभिनेता देवानन्द डाक कर्मचारी रहे हैं। उपन्यास सम्राट प्रेमचन्द जी के पिता अजायबलाल डाक विभाग में ही क्लर्क रहे। ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता मशहूर लेखिका महाश्वेता देवी ने आरम्भ में डाक-तार विभाग में काम किया था तो प्रसिद्ध बाल साहित्यकार डाॅ0 राष्ट्रबन्धु भी पोस्टमैन रहे। सुविख्यात उर्दू समीक्षक पद्मश्री शम्सुररहमान फारूकी, शायर कृष्ण बिहारी नूर, महाराष्ट्र के प्रसिद्ध किसान नेता शरद जोशी सहित तमाम विभूतियाँ डाक विभाग की गोद में अपनी सृजनात्मक-रचनात्मक काया का विस्तार पाने में सफल रहीं।

आज टेक्नालाजी के दौर में लोग पत्रों की अहमियत भूलते जा रहे हैं, पर इसी के साथ वो आत्मीयता भी गुम होती जा रही है. तभी तो पत्रों की महत्ता को देखते हुए एन0सी0ई0आर0टी0 को पहल कर कक्षा आठ के पाठ्यक्रम में ‘‘चिट्ठियों की अनोखी दुनिया‘‘ नामक अध्याय को शामिल करना पड़ा। चिट्ठियों/पत्रों को लेकर गए गए न जाने कितने गीत आज भी होंठ गुनगुना उठते हैं. तभी तो अन्तरिक्ष-प्रवास के समय सुनीता विलियम्स अपने साथ भगवद्गीता और गणेशजी की प्रतिमा के साथ-साथ पिताजी के हिन्दी में लिखे पत्र ले जाना नहीं भूलती। हसरत मोहानी ने यूँ ही नहीं लिखा था-

लिक्खा था अपने हाथों से जो तुमने एक बार।
अब तक हमारे पास है वो यादगार खत ।।

-कृष्ण कुमार यादव

Thursday, September 15, 2011

निदेशक डाक सेवा, अंडमान-निकोबार कार्यालय में हिंदी-दिवस का आयोजन

अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में निदेशक डाक सेवा कार्यालय में हिन्दी-दिवस का आयोजन किया गया। चर्चित साहित्यकार और निदेशक डाक सेवाएँ श्री कृष्ण कुमार यादव ने माँ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण और पारंपरिक द्वीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। कार्यक्रम के आरंभ में अपने स्वागत भाषण में सहायक डाक अधीक्षक श्री ए. के़. प्रशान्त ने इस बात पर प्रसन्नता जाहिर किया कि निदेशक श्री कृष्ण कुमार यादव स्वयं हिन्दी के सम्मानित लेखक और साहित्यकार हैं, ऐसे में द्वीप-समूह में राजभाषा हिन्दी के प्रति लोगों को प्रवृत्त करने में उनका पूरा मार्गदर्शन मिल रहा है। हिन्दी की कार्य-योजना पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने बताया कि संविधान सभा द्वारा 14 सितंबर, 1949 को सर्वसम्मति से हिंदी को संघ की राजभाषा घोषित किया गया था, तब से हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। इस अवसर पर जोर दिया गया कि राजभाषा हिंदी अपनी मातृभाषा है, इसलिए इसका सम्मान करना चाहिए और बहुतायत में प्रयोग करना चाहिए। इस अवसर पर कार्यक्रम को संबोधित करते हुए निदेशक डाक सेवाएँ और चर्चित साहित्यकार साहित्यकार व ब्लागर श्री कृष्ण कुमार यादव ने हिन्दी को जन-जन की भाषा बनाने पर जोर दिया। अंडमान-निकोबार में हिन्दी के बढ़ते कदमों को भी उन्होंने रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि हमें हिन्दी से जुड़े आयोजनों को उनकी मूल भावना के साथ स्वीकार करना चाहिए। स्वयं डाक-विभाग में साहित्य सृजन की एक दीर्घ परम्परा रही है और यही कारण है कि तमाम मशहूर साहित्यकार इस विशाल विभाग की गोद में अपनी काया का विस्तार पाने में सफल रहे हें। इनमें प्रसिद्ध साहित्यकार व ‘नील दर्पण‘ पुस्तक के लेखक दीनबन्धु मित्र, ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लोकप्रिय तमिल उपन्यासकार पी0वी0अखिलंदम, राजनगर उपन्यास के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित अमियभूषण मजूमदार, फिल्म निर्माता व लेखक पद्मश्री राजेन्द्र सिंह बेदी, ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता मशहूर लेखिका महाश्वेता देवी, सुविख्यात उर्दू समीक्षक शम्सुररहमान फारूकी, शायर कृष्ण बिहारी नूर जैसे तमाम मूर्धन्य नाम शामिल रहे हैं। उपन्यास सम्राट प्रेमचन्द जी के पिता अजायबलाल भी डाक विभाग में ही क्लर्क रहे।

निदेशक श्री कृष्ण कुमार यादव ने अपने उद्बोधन में बदलते परिवेश में हिन्दी की भूमिका पर भी प्रकाश डाला और कहा कि- भूमण्डलीकरण के दौर में दुनिया के सबसे बडे लोकतंत्र, सर्वाधिक जनसंख्या वाले राष्ट्र और सबसे बडे़ उपभोक्ता बाजार की भाषा हिन्दी को नजर अंदाज करना अब सम्भव नहीं रहा। आज की हिन्दी ने बदलती परिस्थितियों में अपने को काफी परिवर्तित किया है। विज्ञान-प्रौद्योगिकी से लेकर तमाम विषयों पर हिन्दी की किताबें अब उपलब्ध हैं, पत्र-पत्रिकाओं का प्रचलन बढ़ा है, इण्टरनेट पर हिन्दी की बेबसाइटों और ब्लॉग में बढ़ोत्तरी हो रही है, सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की कई कम्पनियों ने हिन्दी भाषा में परियोजनाएं आरम्भ की हैं। निश्चिततः इससे हिन्दी भाषा को एक नवीन प्रतिष्ठा मिली है। मनोरंजन और समाचार उद्योग पर हिन्दी की मजबूत पकड़ ने इस भाषा में सम्प्रेषणीयता की नई शक्ति पैदा की है पर वक्त के साथ हिन्दी को वैश्विक भाषा के रूप में विकसित करने हेतु हमें भाषाई शुद्धता और कठोर व्याकरणिक अनुशासन का मोह छोड़ते हुए उसका नया विशिष्ट स्वरूप विकसित करना होगा अन्यथा यह भी संस्कृत की तरह विशिष्ट वर्ग तक ही सिमट जाएगी। श्री यादव ने जोर देकर कहा कि साहित्य का सम्बन्ध सदैव संस्कृति से रहा है और हिन्दी भारतीय संस्कृति की अस्मिता की पहचान है। निज भाषा उन्नति अहै, सब भाषन को मूल......आज वाकई इस बात को अपनाने की जरूरत है।इस अवसर पर निदेशक डाक सेवा कार्यालय के कार्यालय सहायक श्री किशोर वर्मा ने कहा कि आज हिन्दी भारत ही नहीं बल्कि विश्व भर में अपनी पताका फहरा रही है और इस क्षेत्र में सभी से रचनात्मक कदमों की आशा की जाती है। इस अवसर पर डाकघर के कर्मचारियों में हिंदी के प्रति सुरुचि जाग्रति करने के लिए दिनांक 14.9.11 से 28.9.11 तक विभिन्न प्रतियोगिताएं की जा रही हैं जैसे, श्रुतलेख, भाषण, हिन्दी टंकण, पत्र लेखन,हिन्दी निबंध, परिचर्चा। इस कार्यक्रम में प्रायः डाक विभाग के सभी कर्मचारी भाग ले रहें है।

Monday, September 5, 2011

डाकघर में वीज़ा संबंधी सेवाएं

भारतीय डाक विभाग वक़्त के साथ अपनी सेवाओं में विस्तार करता जा रहा है. अब डाकघर, वि‍‍भि‍न्‍न देशों के दूर-दराज़ के इलाकों में वीज़ा संबंधी सेवाएं उपलब्ध कराएंगे। भारतीय डाक ने इसके लि‍ए मैसर्स वीएफएस ग्‍लोबल के साथ ‍सहमति-‍पत्र पर हस्‍ताक्षर किए हैं। यह हस्ताक्षर 30 अगस्त 2011 को डाक वि‍भाग के सचि‍व और अधि‍कारि‍यों और वीएफएस ग्‍लोबल के अधि‍कारि‍यों की मौजूदगी में ‍कि‍ये गए। सहमति-‍पत्र के अनुसार उन स्‍थानों पर वीज़ा संबंधी सुवि‍धाएं उपलब्‍ध कराई जाएंगी, जहां ये सुवि‍धाएं इस समय उपलब्‍ध नहीं हैं।

शुल्‍क जमा करने, वीज़ा आवेदन पत्र देने, वीज़ा संबंधी सूचनाएं प्रदान करने और वीज़ा आवेदन प्रक्रि‍या से संबंधि‍त‍‍ अन्‍य सेवाओं के ‍लि‍ए डाकघरों के काउंटरों का उपयोग ‍कि‍या जाएगा। वीएसएफ कार्यालयों, संबद्ध दूतावासों और आवेदकों तक पासपोर्ट पहुंचाने के लि‍ए भारतीय डाक की कुरि‍यर सेवा का भी इस्‍तेमाल कि‍या ‍जाएगा। दोनों पक्ष ‍कि‍सी अन्‍य सेवा का उपयोग करने के बारे में भी ‍वि‍चार करेंगे, जो आपसी सहमति‍ की शर्तों पर भारतीय डाक वीएसएफ ग्‍लोबल के नेटवर्क के जरि‍ये उपलब्‍ध कराना चाहें। मैसर्स वीएसएफ ग्‍लोबल वीज़ा आवेदन सेवाओं के क्षेत्र में दुनि‍या भर की 35 सरकारों के साथ काम कर रहे हैं और 50 देशों में इसके 450 से अधि‍क कार्यालय हैं।

भारतीय डाक और वीएसएफ दोनों का मानना है कि‍ परस्‍पर हि‍त के कई अन्‍य क्षेत्र भी हैं और दोनों के बीच सहयोग से इन क्षेत्रों में आम जनता को लाभ पहुंचाया जा सकता है। इस समय वीज़ा संबंधी सेवाएं ज्‍यादातर बड़े शहरों में हैं और इन सेवाओं का लाभ उठाने के लि‍ए छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों से लोगों को लंबी दूरी तय करके बड़े शहरों में आना पड़ता है। सामान्‍य जानकारी की कमी भी चिंता की बात है, जि‍सके कारण गलत ‍कि‍स्‍म के लोग साधारण लोगों के साथ धोखाधड़ी करते हैं। डाकघरों के जरि‍ये वीजा संबंधी सेवाओं की व्‍यवस्‍था से काफी हद तक इस ‍स्थि‍ति‍ में सुधार आने की उम्‍मीद है।

साभार : स्वतंत्र आवाज़

Monday, August 15, 2011

स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें !!

आइये हम सभी आजादी के इस जश्न में शामिल हों और भारत को एक समृद्ध राष्ट्र बनायें.
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें !! जय हिंद !! जय भारत !!

Sunday, August 7, 2011

सामाजिक न्याय के पैरोकार बी. पी. मंडल पर डाक विभाग द्वारा जारी डाक-टिकट

मंडल कमीशन की रिपोर्ट के लागू होने के आज 21 वर्ष पूरे हो गए. सामाजिक न्याय के पैरोकार बी. पी. मंडल पर डाक विभाग द्वारा 1 जून, 2001 को डाक-टिकट (प्रथम दिवस आवरण और विवरणिका के साथ) भी जारी किया गया था-








Monday, August 1, 2011

'विश्व पत्र दिवस' के बहाने

संदेश माध्यमों ने सुस्त-रफ़्तार कबूतरों से लेकर तेज -रफ़्तार ई-मेल और एस.एम.एस. तक का सफर तय कर लिया है। इंटरनेट और सेल-फोन जैसी अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी ने भले ही फौरन पैगाम भेजने और पाने की हमारी खवाहिश पूरी कर दी हो... लेकिन रफ़्तार के चक्कर में हम कहीं न कहीं अपनी लेखनी की धार खोते जा रहे हैं।


ज़रा याद कीजिए! आपने किसी को पिछला पत्र कब लिखा था? शायद ही हम में से कोई हो, जिसे ये याद हो। अब तो पूरी एक ऐसी नई नस्ल परवान पा चुकी है जिसे खत-व-किताबत के बारे में कोई ज्ञान ही नहीं है। पत्र-लेखनी के इसी महत्व को याद करने के मकसद से ३१ जुलाई को 'विश्व पत्र दिवस' मनाया जाता है।


आमतौर पर 'डे' या विशेष दिवस मनाने का ये चलन पश्चिम से आया है लेकिन पत्र-लेखनी की शानदार रिवायत को याद करने की ये कोशिश हमारे अपने ही देश से शुरू हुई है। पत्र-दिवस मनाने के लिए 31 जुलाई का चयन करने के पीछे कोई खास वजह तो नहीं है... लेकिन इस मुहिम को छेडने वालों में से एक शरद श्रीवास्तव इसे मशहूर लेखक मुंशी प्रेम चंद को समर्पित करते हैं जिनका जन्मदिन भी 31 जुलाई ही है। वैसे ये भी माना जाता है कि इसी दिन इंग्लैंड में पहला पत्र पोस्ट हुआ था।


वैसे डाक-सेवाएं आज भी कार्यरत हैं... लेकिन अब उनका महत्व सरकारी पत्र-व्यवहार और पार्सल वगैरह भेजने तक ही सीमित रह गया है। सूचना प्रौद्योगिकी के इस दौर में लोगों ने डाकघरों का रुख करना कम कर दिया है। अब न लोगों को डाक बाबुओं का इंतजार रहता है और न ही डाकियों के पास खातों का वो अंबार रहता है। जिसे देखो बस ई-मेल, सोशल नेटवर्किंग साइट्‌स और शार्ट मेसेज सर्विस यानी एस.एम.एस. पर उल्टी-सीधी भाषा लिखने में लगा है। और ऐसा हो भी क्यों ना! आखिर इस भाग-दौड भरी ज़िन्दगी में लोगों के पास अंतर्देशीय, पोस्टकार्ड और लिफाफे डाकघर से लाने, उसपर हाथ से लिखने और पोस्ट करने की फुर्सत ही कहां है।


लेकिन जल्द पैग़ाम भेजने की चाहत में हमसे पत्राचार का वो रिवायती तरीका छूटता गया, जिससे लोग लेखनी का गुर सीखते थे। देश में ही कई मिसालें ऐसी हैं जिनके खत एक साहित्य के तौर पर याद किए जाते हैं। उनमें पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का अक्सर ज़िक्र आता है जो अपनी बेटी इंदिरा जी को जेल ही पत्र लिखकर ज्ञानवर्धक खजाना भेजते रहते थे। दूसरे मशहूर शायर मिर्ज़ा गालिब के खातों की मिसाल दी जाती है जिनके खत से ऐसा लगता है कि वो सामने बैठे किसी शख्श से गुफ्तगू कर रहे हों।


लोग पत्र लिखते थे तो उससे उसका पूरा व्यक्तित्व झलकता था। हैंड-राइटिंग के विशेषज्ञ तो आज भी लिखावट से व्यक्तित्व का अंदाज़ा लगा लेते हैं। हस्तलिखित पत्रों की सीधी, आडी, तिरछी लाइनों से उसके लिखने वालों की जेहनियत का आभास हो जाता है। खत की हैंडराइटिंग लिफाफे से खत का मजमून भांप लेने का मुहाविरा इसी लिए काफी प्रचलित है। सुदूर बैठे किसी भी व्यक्ति को खत पा जाने भर से ही उसके वतन की मिट्‌टी की खुशबू आने लगती थी। अपने नजदीकियों और करीबियों को खत लिखने और उसका जवाब आने के इंतजार की शिद्दत ही अजीब थी। फिर प्रेम-पत्र लिखने और पढने का तो दौर ही अजीब था। ऐसे खत बरसों तक लोगों की किताबों, संदूक, बक्से की शोभा बने रहते थे और ऐसे सहेज कर रखे जाते थे जैसे कोई बहुत कीमती सरमाया हो। पत्र की अहमियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मुंबईया फिल्मों में भी इसपर अनेक गाने लिखे गए हैं। 'नाम' फिल्म में तो पंकज उधास के एक कन्सर्ट में ''चिट्ठी आई है आई है चिट्ठी आई है'' गाने पर पाकिस्तानी अफताब भाई भी रोने पर मजबूर हो जाते हैं। बहरहाल पत्र-दिवस मनाने का मकसद इस खोते हुए चलन से आज की पीढी को जागरुक करना है।

साभार : अफसर, ghar ki baat

Sunday, July 31, 2011

डाककर्मी के पुत्र थे चर्चित हिन्दी साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद

1920 का दौर... गाँधी जी के रूप में इस देश ने एक ऐसा नेतृत्व पा लिया था, जो सत्य के आग्रह पर जोर देकर स्वतन्त्रता हासिल करना चाहता था। ऐसे ही समय में गोरखपुर में एक अंग्रेज स्कूल इंस्पेक्टर जब जीप से गुजर रहा था तो अकस्मात एक घर के सामने आराम कुर्सी पर लेटे, अखबार पढ़ रहे एक अध्यापक को देखकर जीप रूकवा ली और बडे़ रौब से अपने अर्दली से उस अध्यापक को बुलाने को कहा । पास आने पर उसी रौब से उसने पूछा-‘‘तुम बडे़ मगरूर हो। तुम्हारा अफसर तुम्हारे दरवाजे के सामने से निकल जाता है और तुम उसे सलाम भी नहीं करते।’’ उस अध्यापक ने जवाब दिया-‘‘मैं जब स्कूल में रहता हूँ तब मैं नौकर हूँ, बाद में अपने घर का बादशाह हूँ।’’


अपने घर का बादशाह यह शख्सियत कोई और नहीं, वरन् उपन्यास सम्राट प्रेमचंद थे, जो उस समय गोरखपुर में गवर्नमेन्ट नार्मल स्कूल में सहायक अध्यापक के पद पर कार्यरत थे। 31 जुलाई 1880 को बनारस के पास लमही में जन्मे प्रेमचन्द का असली नाम धनपत राय था। आपकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम अजायब राय था। प्रेमचंद जी के पिता अजायब राय डाक-कर्मचारी थे सो प्रेमचंद जी अपने ही परिवार के हुए।आज उनकी जयंती पर शत-शत नमन। डाक-परिवार अपने ऐसे सपूतों पर गर्व करता है व उनका पुनीत स्मरण करता है।

(प्रेमचंद जी पर मेरा विस्तृत आलेख साहित्याशिल्पी पर पढ़ सकते हैं)

Monday, July 18, 2011

सावन में घर बैठे डाक द्वारा काशी विश्वनाथ व महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का प्रसाद

सावन का मौसम आरंभ हो गया। इस मौसम में पूरे मास भगवान शिव की पूजा होती है। बनारस को भगवान शिव की नगरी कहा जाता है और काशी विश्वनाथ मंदिर यहाँ का प्रमुख धार्मिक स्थल है। डाक विभाग और काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट के बीच वर्ष 2006 में हुए एक एग्रीमेण्ट के तहत काशी विश्वनाथ मंदिर का प्रसाद डाक द्वारा भी लोगों को उपलब्ध कराया जा रहा है। इसके तहत साठ रूपये का मनीआर्डर प्रवर डाक अधीक्षक, बनारस (पूर्वी) के नाम भेजना होता है और बदले में वहाँ से काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट के सौजन्य से मंदिर की भभूति, रूद्राक्ष, भगवान शिव की लेमिनेटेड फोटो और शिव चालीसा प्रेषक के पास प्रसाद रूप में भेज दिया जाता है।

काशी विश्वनाथ मंदिर के अलावा उज्जैन के प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का प्रसाद भी डाक द्वारा मंगाया जा सकता है। इसके लिए प्रशासक, श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबन्धन कमेटी, उज्जैन को 151 रूपये का मनीआर्डर करना पड़ेगा और इसके बदले में वहाँ से स्पीड पोस्ट द्वारा प्रसाद भेज दिया जाता है। इस प्रसाद में 200 ग्राम ड्राई फ्रूट, 200 ग्राम लड्डू, भभूति और भगवान श्री महाकालेश्वर जी का चित्र शामिल है।



इस प्रसाद को प्रेषक के पास एक वाटर प्रूफ लिफाफे में स्पीड पोस्ट द्वारा भेजा जाता है, ताकि पारगमन में यह सुरक्षित और शुद्ध बना रहे। तो अब आप भी सावन की इस बेला पर घर बैठे भोले जी का प्रसाद ग्रहण कीजिये और मन ही मन में उनका पुनीत स्मरण कर आशीर्वाद लीजिए !!



वन्दे देव उमा पतिम् सुरगुरुम् ।
वन्दे जगत कारणम् ।
वन्दे पन्नग भूषणम्मृगधरम् ।
वन्दे पशुनाम पतिम ।
वन्दे सूर्य शशांक वन्हिनयनम् ।
वन्दे मुकन्द प्रियम् ।
वन्दे भक्तजनाश्रयन्चवर्धम् ।
वन्दे शिवम् शंकरम् ।। ।। जय शंकर ।।।।
जय भोले नाथ ।।


भगवान शिव का नमन करते हुए आपको श्रावण मास के इस पावन पर्व पर हार्दिक बधाई।

Saturday, July 16, 2011

53 साल बाद पहुँचा प्रेम-पत्र

20 फरवरी 1958 को कॉलेज में पढ़ाई के दौरान एक अमेरिकी युवती को उसके प्रेमी ने डाक से प्रेम पत्र भेजा। महिला को यह खत अब जाकर है। उनकी उम्र अब 74 साल हो चुकी है और वह दादी मां हैं।

बात 1958 की है। अमेरिकी राज्य पेनसिल्वेनिया की यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रही वोनी नाम की युवती को एक युवक ने प्रेम पत्र लिखा। प्रेमी ने खत के बाहर सिर्फ यही लिखा कि, 'लव, फॉरएवर, वोनी।' यूनिवर्सिटी के पोस्ट बॉक्स में डाले गए इस प्रेम पत्र पर 20 फरवरी 1958 को मुहर लगी लेकिन इसके बाद प्यारी भरी चिट्ठी न जाने कहां गुम हो गई।

लेकिन प्रेमी ने हार नहीं मानीं। उन्होंने यूनिवर्सिटी को चेतावनी दी कि अगर खत वोनी तक नहीं पहुंचा तो वह आधिकारिक शिकायत दर्ज कराएंगे। यूनिवर्सिटी लगातार खत को ढूंढती रही। खोजबीन के दौरान इसी हफ्ते अचानक यूनिवर्सिटी के सामने पांच दशक पुराना यह प्रेम पत्र आ गया।

स्थानीय मीडिया में इस बारे में एक रिपोर्ट भी छपी। रिपोर्ट के जरिए वोनी की एक दोस्त ने उनसे संपर्क किया और बताया कि यूनिवर्सिटी तुम्हें 53 साल पुराना खत सौंपना चाहती है। यूनिवर्सिटी की प्रवक्ता क्रिस्टीन किंडल कहती हैं, 'इस पूरी प्रक्रिया में हमारा मकसद था कि 53 साल पुराने खत को गंतव्य तक पहुंचाया जाए।'

74 साल की वोनी को अब जाकर पुराने प्रेमी का यह खत मिला है। वोनी के बाल अब सफेद हो चुके हैं। उनके कई पोते और पोती हैं। उम्र के इस पड़ाव में मिला प्रेम पत्र वोनी को भावुक कर रहा है। खत लिखने वाले के संपर्क में वह नहीं हैं लेकिन प्यार की एक पुरानी डोर जिंदा है।
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California (Pennsylvania), July 15 (AP): Much has happened in the 53 years since Vonnie sent Clark the letter, wondering why he had not called before going back to college.

They married later that year. He graduated. They had four children. They divorced. And he changed his name.

And, at last, the letter is wending its way to Clark ' that is, Muhammad Siddeeq ' who awaits its arrival with mixed emotions. "I'm curious, but I'm not sure I'd put it under the category of 'looking forward to it'," Siddeeq told the Pittsburgh Tribune-Review.

The letter, bearing four one-cent stamps postmarked February 1958 and addressed to Clark C. Moore, arrived in the mailroom at California University of Pennsylvania last week. School officials checked their files but could not figure out who Clark Moore was.

But his friends and family still lived in the area and saw media reports about the letter. They called Siddeeq, now 74 and living in Indianapolis, who had changed his name after converting to Islam.

"I never dreamed of anything like this," Siddeeq told the Washington Observer-Reporter. The letter, its stamps turned upside down as sign of love, arrived at California University of Pennsylvania on July 8, tucked inside some magazines.
Courtesy : www.telegraphindia.com – Sat, Jul 16, 2011

Monday, June 27, 2011

भारतीय डाक सेवा का बदलता स्वरूप


संदेशो के आदान प्रदान के लिए कपोत अर्थात कबूतर के प्रयोग के दिन लद चुके हैं। उस वक्त प्रशिक्षित कबूतरों के पैरों पर संदेश लिखकर बांध दिया जाता था। फिर वह गंतव्य तक पहुंचकर उसका जवाब लेकर आता था। कालांतर में कबूतरों का काम डाक विभाग ने आरंभ किया। परिवर्तन के दौर में राजनेताओं की निहित स्वार्थों की भूख से डाक विभाग को पटरी पर से उतार दिया कोरियर कंपनी वालों ने।

अब लोग डाकिये का इंतजार नहीं किया करते, अब तो जमाना इंटर नेट का है। इसलिए जन्मदिन, शादी विवाह, परीक्षा में सफलता आदि पर ग्रीटिंग कार्डस, तार, पत्र आदि का जमाना लद गया है, अब तो बस एक क्लिक पर ही आपका संदेश मोबाईल से एसएमएस तो नेट पर ईकार्ड या मेल के जरिए पहुंच जाता है। यह सब होता तो है पर पत्र वाकई आनंद की अनुभूति कराया करते थे, इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है। देश के डाकघरों में जान फूंकने की गरज से ‘परियोजना एरो‘ का आगाज किया है भारत सरकार ने, जो समय के साथ परवान चढ़ती जा रही है। देश के अनेक डाकघर जहां की अव्यवस्था, गंदगी, उलझाऊ कार्यप्रणाली, कर्मचारियों के आलसी व्यवहार के चलते लोग जाने से कतराते थे, वहां जाकर तो देखिए, डाकघर आपको थ्री स्टार जगहों से कम नजर नहीं आएंगे। पोस्ट आफिस का कायाकल्प हो गया है। अब वे देखने में भी सुंदर लगने लगे हैं, कर्मचारियों के व्यवहार में भी खासा अंतर परिलक्षित होने लगा है। बस कमी एक ही रह गई है, डाकियों की भर्ति नहीं होने से चिट्ठियों का वितरण करीने से नहीं हो पा रहा है। सबसे अधिक दिक्कत परीक्षा में बैठने वालों को हो रही है, क्योंकि नए डाकियों को ठीक से पता न होने के कारण उनके वे प्रवेश पत्र से वंचित रह जाते हैं। वैसे प्रोजेक्ट एरो में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को आधार बनाया जा सकता है, जिसमें डाकघर को ग्रामीण क्षेत्र में वित्तीय और आर्थिक क्रांति का जरिया बनाया जा सकता है। वैसे भी डाकघर में जमा निकासी पर ग्रामीणों का विश्वास आज भी कायम है। बदलते जमाने की रफ्तार के बावजूद भी डाकघर बैंकिग प्रणाली में आम आदमी तक पहुंचने की क्षमता रखते हैं। अभी ज्यादा दिन नहीं बीते जबकि आयकर में छूट पाने के लिए लोग डाकघर के नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट पर टूट पड़ते थे। बाद में वित्त मंत्रालय की नीतियों ने डाकघरों की सांसें फुला दीं और लोग इससे विमुख होने लगे, अन्यथा मार्च माह में डाकघर में बाबुओं को खाना खाने की फुर्सत नहीं होती थी। देश में वर्तमान में छोटे, मंझोले, बड़े डाकघर मिलाकर एक लाख पचपन हजार प्रंद्रह केंद्र संचालित हैं, इनमें निजी तौर पर दी गई फै्रंचाईजी शामिल नहीं है। इनमें से साढ़े बारह से अधिक डाकघरों को कंप्यूटरीकृत कर दिया गया है।

केंद्र सरकार का लक्ष्य है कि सभी डाकघरों को वर्ष 2012 के साथ ही कंप्यूटरीकृत कर दिया जाए। डाक तार विभाग में एक हजार करोड़ रुपयों के बजट के साथ छह कंपनियां डाकघरों के अपग्रेडेशन के काम को अंजाम दे रही हैं। देश के सबसे पुराने विभागों की फेहरिस्त में शामिल डाक विभाग वर्तमान में सामान्य पोस्ट, मनी आर्डर के अलावा स्पीड पोस्ट, इंटरनेशनल रजिस्टर्ड पोस्ट, लॉजिस्टिक पोस्ट, पार्सल, बिजनेस पोस्ट, मीडिया पोस्ट, डायरेक्ट पोस्ट आदि की सेवाएं दे रहा है। इसके साथ ही साथ ग्रामीण इलाकों में आर्थिक सेवाओं में पीपीएफ, एनएससी, किसान विकास पत्र, सेविंग एकाउंट, सावधिक जमा खाता आदि की सुविधाएं मुहैया करवा रहा है। गैर पोस्टल सेवाओं में पोस्टल लाईफ इंश्योरेंस, ई पेमेंट, इंस्टेंट मनी आर्डर सर्विस और इंटरनेशनल मनी ट्रांसफर की सेवाएं भी दे रहा है। भारत में डाक सेवा की नींच 19वीं शताब्दी में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा की गई थी। 1 जुलाई 1852 को सिंध प्रांत में ‘सिंध डाक’ का आगाज डाक सेवा के तौर पर किया गया था, इस दिन पहला वेक्स से बना डाक टिकिट जारी किया गया था। यह हिन्दुस्तान ही नहीं वरन् एशिया का पहला डाक टिकिट था।

देश में आधा आना, एक, दो और चार आने का डाक टिकिट सबसे पहले प्रयोग में लाया गया था। दुनिया का सबसे उंचाई वाला डाकघर हिन्दुस्तान में ही है। समुद्रतल से 15,500 फुट (लगभग 4700 मीटर) के साथ सिक्किम में 172114 पिन नंबर के साथ यह दुनिया का सबसे ऊंचा डाकघर है। 1962 तक डाक टिकिटों पर इंडिया पोस्टेज लिखा होता था, इसके बाद 1962 से ही इसे हटाकर इसके स्थान पर भारत लिखा जाने लगा। इस साल फरवरी माह में भारत के डाक विभाग द्वारा बापू के प्रिय खादी के कपड़े पर बापू की तस्वीर वाली टिकिटों को बाजार में सीमित मात्रा में उतारा था। लोगों ने यादगार के तौर पर खरीदा और उसे सहेज कर रख लिया है। इसके अलावा डाक विभाग को पुन: लोकप्रिय बनाने की गरज से विभाग ने लोगों को खास मित्र या रिश्तेदार अथवा स्वयं के चित्रों वाला डाक टिकिट देने की स्कीम भी लांच की, जिसमें निर्धारित शुल्क अदा करने पर कोई भी किसी खास चित्र को बनवाकर उसका डाक टिकट बनवा सकता है। कोरियर कंपनियों के बढ़ते वर्चस्व और सूचना एवं संचार क्रांति ने डाक विभाग के चिट्ठी पत्री बांटने के काम को भी सीमित ही कर दिया। कम ही लोग हैं जो आज पत्रों का उपयोग करते हैं। लोगों का विश्वास डाक विभाग से उठ चुका है। उन्हें खतरा रहता है कि डाक विभाग उनके पत्र को गंतव्य तक पहुंचा भी देगा अथवा नहीं लोगों का मानना है कि कोरियर सेवा से उनका संदेश चौबीस से अड़तालीस घंटे में पहुंच ही जाएगा। डाक विभाग के एकाधिकार को कोरियर कंपनियों ने तोड़ दिया है। अब स्पीड पोस्ट सेवा से पुन: लोगों का विश्वास डाक विभाग की ओर लौटने लगा है किन्तु यह सेवा कुछ तक मंहगी होने के कारण वांछित लोकप्रियता नहीं प्राप्त कर पाई है।

अब ऐसे लोग गिनती के ही बचे होंगे जो नियमित तौर पर पत्रों का आदान प्रदान किया करते हैं। दमोह मूल के शिक्षा विभाग से सेवानिवृत सहायक संचालक एवं रुड़की विश्वविद्यालय में व्याख्याता डॉ. दीपक के लगभग अस्सी वर्षीय पिता डीडी खरे रोजाना अपने दो परिचितों को नियमित तौर पर पोस्ट कार्ड भेजते हैं। उनका मानना है कि पत्र के माध्यम से आपकी व्यक्तिगत उपस्थिति का आभास होता है, यही कारण है कि वे सालों साल से निर्बाध तौर पर पोस्ट कार्ड लिखकर प्रेषित करते हैं, उनके परिचित भी उनके पत्रों का जवाब देकर इस उम्र में उन्हें नई उर्जा प्रदान किया करते हैं। भारतीय डाक विभाग का नेटवर्क देश की अमूल्य धरोहर है।
-लिमटी खरे

Friday, June 24, 2011

ख़त

बहुत दिनों बाद खतों को लेकर संजीदगी से लिखी कोई कविता पढ़ी. मन में उतर सी गई 'दीपिका रानी' की 'आउटलुक' में छपी यह कविता, सो अब आप से भी शेयर कर रहा हूँ-


एक दिन अचानक एक खत मिला
लिफाफे में थी
थोड़ी खुशबू
कुछ ताजी हवा
और पहली बारिश का सौंधापन

माँ के हाथों की बनी
रोटियों की गर्माहट थी उसमें
पिता की थपकियों सा सुकून
और एक शरारती सा बच्चा
झांक रहा था बार-बार

खत में थे दो हाथ
जो उठे थे दुआओं में
दो आँखें जिनमें दर्द था
जो मेरा था.
मुस्कराहट के पीछे
मेरी आँखों की उदासी को
वो आँखें समझती थीं

खत ने वो असर किया
कि मेरा दर्द
मुस्कराहट में बदल दिया
उसमें थी वो संजीवनी
जो मेरी डूबती सांसों में
जिन्दगी भर गई
और मेरे जीने का सामान कर गई

मैने सोचा, लिखूँ जवाबी खत
वही खुशबू वही गर्माहट
वही सुकून ,वही मुस्कराहट
बंद की लिफाफे में
मगर अब तक वो यहीं पड़ा है
क्या फरिश्तों का कोई पता होता है ?

-दीपिका रानी
(साभार : आउटलुक, मई 2011)

Monday, June 20, 2011

भोपाल से प्रकाशित LN STAR में 'डाकिया डाक लाया' की चर्चा


भोपाल से प्रकाशित साप्ताहिक पत्र LN STAR के 26 फरवरी-4 मार्च, 2011 अंक में 'डाकिया डाक लाया' ब्लॉग की चर्चा की गई है. इसमें ब्लॉग की कई प्रविष्टियों को मिलाकर एक समग्र रूप दिया गया है. मसलन, सोने के डाक टिकट, डाक टिकटों में कबूतर और गौरैया, विश्व डाक दिवस, डाक विभाग के चर्चित व्यक्ति, दुनिया का सबसे महंगा डाक-टिकट, डाकिया पर सोहन लाल दिवेधी की कविता जैसी तमाम पोस्टों को एकाकार कर इसे खूबसूरती से प्रस्तुत किया गया है. इससे पहले 'डाकिया डाक लाया' ब्लॉग और इसकी प्रविष्टियों की चर्चा दैनिक हिंदुस्तान, राष्ट्रीय सहारा, राजस्थान पत्रिका, उदंती जैसे प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में हो चुकी है.

गौरतलब है कि "डाकिया डाक लाया" ब्लॉग की चर्चा सबसे पहले 8 अप्रैल, 2009 को दैनिक हिंदुस्तान अख़बार में ब्लॉग वार्ता के अंतर्गत की गई थी। रवीश कुमार जी ने इसे बेहद रोचक रूप में प्रस्तुत किया था. इसके बाद इसकी चर्चा 29 अप्रैल 2009 के दैनिक 'राष्ट्रीय सहारा' पत्र के परिशिष्ट 'आधी दुनिया' में 'बिन्दास ब्लाग' के तहत की गई. "प्रिंट मीडिया पर ब्लॉग चर्चा" के अनुसार इस ब्लॉग की 22 अक्तूबर की पोस्ट "2009 ईसा पूर्व में लिखा गया दुनिया का पहला पत्र'' की चर्चा 11 नवम्बर 2009 को राजस्थान पत्रिका, जयपुर संस्करण के नियमित स्तंभ 'ब्लॉग चंक' में की गई।




....ऐसे में यह जानकर अच्छा लगता है कि इस ब्लॉग को आप सभी का भरपूर प्यार व सहयोग मिल रहा है. आप सभी शुभेच्छुओं का आभार !!

Friday, June 17, 2011

करोड़ों की उम्मीद बनी डाकघर बीमा योजना



विशेषज्ञों का मानना है कि ग्रामीण जनता के बीच वित्तीय सेवाओं को पहुंचाना जरूरी है। वंचितों तक वित्तीय सुविधा पहुंचाने का असर व्यक्ति, समूह और समाज सब पर पड़ता है। वित्तीय सेवाओं को सुलभ कराने के नतीजे सकारात्मक रहेंगे। वर्ल्ड बैंक की क्रिस्टिन कियांग का कहना है कि मोबाइल टेलीफोनी में दस फीसदी की बढ़ोतरी के साथ ही सकल राष्ट्रीय घरेलू उत्पादन में 0.8फीसदी की बढ़ोतरी हो जाती है। इस तरह माइक्रोफाइनेंस जैसी वित्तीय सेवाओं का उन लोगों की जिंदगी पर व्यापक असर पड़ रहा है, जिन्हें बैंकिंग सुविधा हासिल नहीं है।

वित्तीय समावेश का आखिर अर्थ क्या है? वित्तीय समावेश का मतलब है लोगों को उन लागतों पर वित्तीय सेवा मुहैया कराना, जिन्हें वे वहन कर सकें। इसके लिए सार्वजनिक और निजी बैंक दोनों कोशिश कर रहे हैं, लेकिन समाज का एक बड़े वर्ग तक बैंकिंग सेवाओं की पहुंच नहीं बन पाई है। वर्ष, 2004 के एक सर्वे के मुताबिक निम्न आय वर्ग में 100 लोगों में से सिर्फ 59 लोगों के पास बैंक खाता है। इसमें क्षेत्रीय विषमता भी है। मणिपुर में 100 में सिर्फ 17 लोगों के पास बैंक खाता है।

ज्यादातर नीति-निर्माता अनुदान, पेंशन, सब्सिडी जैसे तरीकों पर विश्वास करते हैं। नरेगा इसका सबसे बढ़िया उदाहरण है, जिसमें गरीब मजदूरों को 100 दिन रोजगार की गारंटी है। लेकिन ये योजनाएं लीकेज से आक्रांत हैं। दरअसल सब्सिडी लंबे समय तक चलने वाले उपाय नहीं हैं। ये समस्या के फौरी इलाज हैं। सब्सिडी से समस्या का समाधान नहीं होता। इसके अलावा सार्वजनिक क्षेत्र अलग से ढीले रवैये से ग्रस्त हैं। इसलिए इस बात पर आश्चर्य होता है कि सार्वजनिक क्षेत्र की अनोखी पहल का व्यापक असर क्यों हो रहा है। इंडिया पोस्ट बोर्ड के सदस्य डॉ. उदय बालकृष्णन से बात करने पर दो चीजों का पता चला। पहली यह कि सार्वजनिक क्षेत्र में खुद को एक नए रूप में ढालने की क्षमता है और दूसरी गरीबों की इच्छा हो तो उन्हें छोटी बचत योजनाओं की ओर आकर्षित कर वित्तीय बाजार से जोड़ा जा सकता है।

दरअसल वित्तीय समावेश के लिए अभी भारतीय डाक विभाग का पूरा इस्तेमाल नहीं हुआ है। डाक विभाग की विश्वसनीयता और पहुंच जबरदस्त है। देश के 1,55,000 डाकघरों में 50000 कर्मचारी नियुक्त हैं। एक वितरण चैनल के तौर पर इनका काफी अच्छा इस्तेमाल हो सकता है। नरेगा में शामिल पांच करोड़ लोगों के भुगतान का भी यह विश्वसनीय माध्यम है। लोगों का डाकघर पर भरोसा है इसलिए वे अपनी वित्तीय प्लानिंग में इसकी भूमिका को शामिल कर लेते हैं। लगभग 20 करोड़ लोगों के पास डाकघर का बचत खाता है।

भारतीय डाक विभाग ने 1995 से ग्रामीण बीमा योजना शुरू की थी। लेकिन एक मुख्य कारोबार के तौर पर शायद ही इस पर जोर दिया हो। लेकिन हाल में जब इसने इस पर जोर देना शुरू किया तो नतीजे काफी उत्साहजनक निकले। ग्रामीण बीमा योजना पर जोर दिए जाने से कर्मचारी इससे जुड़ने लगे और कामकाज में दिलचस्पी लेने लगे। कुछ ही महीनों में ग्रामीण इलाकों में रहने वाले एक करोड़ बीस लाख लोगों ने डाकघर बीमा योजना की पॉलिसी खरीदी। दस हजार रुपये तक बीमित राशि के लिए एक रुपये प्रति दिन के प्रीमियम के हिसाब से पॉलिसी बेची गई। यानी एक बीड़ी के बंडल की कीमत (छह रुपये) के बराबर प्रीमियम (प्रतिदिन) पर इससे बड़ी पॉलिसियां बेची गईं। इस तरह डाक विभाग बीमा क्षेत्र का एक बड़ा खिलाड़ी बन गया है। डाक विभाग दूसरी सारी बीमा कंपनियों की तुलना में दोगुना पॉलिसी बेच रहा है। हर महीने यह दस लाख पॉलिसीधारकों को जोड़ रहा है।

आखिर ग्रामीण जनता की इतनी बड़ी आबादी इस तरह की इंश्योरेंस पॉलिसी क्यों खरीद रही हैं? ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों को अपने बच्चों के लिए पैदा होने वाले अवसरों के बारे में पता चल रहा है। उनकी आकांक्षाएं बढ़ रही हैं। उनका मानना है कि अगर उन्होंने अपने बच्चों को सही शिक्षा दिलाई तभी इन अवसरों का लाभ उठा सकेंगे। माता-पिता अपने बच्चों के लिए बलिदान करने के लिए तैयार हैं और वह बच्चों के भविष्य के लिए रकम जोड़ने लगे हैं।

डाकघर बीमा योजना की सफलता के पीछे यह एक बड़ी वजह है। सबसे अहम वजह यह है लोग सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी स्कीमें खरीदने के लिए अपनी बचत का एक हिस्सा खर्च कर रहे हैं। एक बड़ी आबादी इसलिए निवेश कर रही है कि परिवार में किसी की मृत्यु की स्थिति में बच्चों की शिक्षा-दीक्षा बाधित न हो। इस तरह लोग सरकार के अनुदान,पेंशन और सब्सिडी नीति पर मोहताज न रह कर खुद ही वित्तीय समावेश की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। अगर आज सी के प्रह्लाद जिंदा होते तो उन्हें इस पर गर्व होता। आखिर उनके बॉटम ऑफ पिरामिड में मौजूद 30 करोड़ गरीबी से बाहर निकलने की ओर जो बढ़ रहे हैं।

साभार : बिजनेस भास्कर

Tuesday, June 14, 2011

डाक विभाग करेगा फैब इंडिया के उत्पादों की बिक्री

फैब इंडिया के अपने मुख्य स्टोर पर भारतीय डाक का एक अलग काउंटर खोला है जहां से ग्राहक देश ही नहीं, विदेश तक में स्टोर से खरीदा गया माल भेज सकते हैं। यह भारतीय डाक और फैब इंडिया के बीच पहली पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप की शुरूआत की है। 14 जून, 2011, मंगलावर को नई दिल्ली में ग्रेटर कैलाश स्थित स्टोर पर इस काउंटर का संयुक्त रूप से उद्घाटन केंद्र सरकार में डाक विभाग की राधिका दुरईस्वामी और फेबइंडिया ओवरसीज़ प्रा. लिमिटेड के प्रबंध निदेशक विलियम बिसेल ने किया।
 
संयुक्त उद्यम के रूप में खोले गए इस काउंटर के माध्यम से भारतीय डाक ग्राहकों को फैब इंडिया के उत्पाद आसानी से खरीदने, पैक करने और भारत व विदेश में कहीं भी भेजने की सुविधा उपलब्ध कराएगा। डाक सर्कल कर्मचारी इस काउंटर पर उपलब्ध रहेंगे ताकि ग्राहकों को अपना कन्साइनमेंट बुक करने में सुविधा हो।
 
बता दें कि भारत के 58 शहरों में 140 और चार अंतरराष्ट्रीय स्टोरों के साथ फैब इंडिया ओवरसीज़ प्राइवेट लिमिटेड भारत का अकेला ऐसा रिटेल प्लेटफॉर्म है, जो ग्रामीण इलाकों में रहने वाले दस्तकारों द्वारा तैयार की गई सामग्री उपलब्ध कराता है।

Monday, June 13, 2011

अंडमान में उत्कृष्ट डाक कर्मियों का सम्मान


अंडमान निकोबार द्वीप समूह में डाक विभाग द्वारा 09 जून 2011 को पोर्टब्लेयर के मेगापोस्ट नेस्ट रिसोर्ट में वित्तीय वर्ष 2010-11 में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए डाक-कर्मियों और अधिक राजस्व देने हेतु महत्वपूर्ण संस्थानों के प्रमुखों को सम्मानित किया गया. इस समारोह के मुख्य अतिथि अंडमान-निकोबार के प्रधान वन सचिव श्री एस.एस. चौधरी तथा अध्यक्षता अंडमान निकोबार द्वीप समूह के डाक निदेशक श्री कृष्ण कुमार यादव द्वारा किया गया। विशिष्ट अतिथि के रूप में इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय निदेशक, डाॅ. एस. श्रीनिवास उपस्थित थे। इस अवसर पर 25 डाक कर्मचारियों को उत्कृष्टता सम्मान तथा चार संस्थानों को स्मृति चिन्हों से नवाजा गया।

डाक-कर्मियों को सम्मानित करते हुए मुख्य अतिथि प्रधान वन सचिव श्री एस.एस. चौधरी ने दूरदराज के द्वीपों तक विस्तृत डाक-सेवाओं की सराहना करते हुए डाक कर्मियों के समर्पित कार्यो की सराहना की और द्वीपों के लोगों की सेवा के प्रति प्रतिबद्धता के साथ निरंतर कार्य करते रहने के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया । इस अवसर पर प्रतिष्ठित संस्थनों तथा व्यापारोन्मुख ग्राहकों को भी सम्मानित किया गया, जिनमें भारतीय स्टेट बैक, पोर्टब्लेयर के उप प्रबंधक तनमोय मंडल, वेतन एंव लेखा कार्यालय के निदेशक राजेश पूरी एवं एक्सिस बैक के प्रबंधक प्रकाश कुमार तथा डिगनाबाद निवासी रुबिन फर्नाडो शामिल थे ।


समारोह की अध्यक्षता करते हुए डाक सेवा निदेशक श्री कृष्ण कुमार यादव ने रोजमर्रा के जीवन में लोगों और व्यापार में डाक क्षेत्र की भूमिका तथा सामाजिक एंव अर्थिक विकास में इसके योगदान का उल्लेख किया। श्री यादव ने द्वीप-समूहों में संचालित तमाम डाक सेवाओं के बारे में भी बताया और बदलते दौर में डाक सेवाओं की बदलती भूमिका को रेखांकित किया.

विशिष्ट अतिथि के रूप में पधारे इग्नू के क्षेत्रीय निदेशक डाॅ एस श्रीनिवास ने अपने संबोधन में द्वीपों के अलग-अलग क्षेत्रों में स्थित डाक घरों द्वारा प्रदान की जा रही सेवाओं की गुणवता की चर्चां की और विभिन्न क्षेत्रों में अनुकरणीय सेवाओं के लिए पुरस्कार प्राप्त करने वाले डाक विभाग के सदस्यों को बधाई दी ।

इस अवसर पर डाक जीवन बीमा के क्षेत्र में मलाकोंडैया, स्टीफन फर्नाडीज, एम आर सरकार तो ग्रामीण डाक जीवन बीमा में उत्कृष्ट प्रदर्शन हेतु दुलाल बिश्वास, श्रीमती इन्दिरा देवी, प्रदीप पाॅल को सम्मानित किया गया. स्पीड पोस्ट में अधिकतम कारोबार के लिए कमल बिश्वास, श्रीमती गोरेती लकडा, श्रीमती लता को सम्मानित किया गया। सर्वाधिक बचत बैक खाते खोलने में योगदान देने के लिए एस. वेंकटस्वामी, सी एच यारन्ना तथा वी सी जाॅनी को पुरस्कृत किया गया। डाकघरों में टेक्नालाजी के सम्यक क्रियान्वयन के लिए वी वी एस सत्यानारायण, किशोर वर्मा तथा मिहिर कुमार पाॅल सम्मानित हुए. इसी प्रकार विभिन्न कैडरों के तहत भी पुरस्कार प्रदान किया गया। सुपरवाइजर वर्ग में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए पी नीलाचलम तथा श्रीमती एस जयरानी, डाक सहायक संवर्ग में के. एस. एन. मूर्ति, शंकर हालदार, श्रीमती शांता देब, डाकिया कैडर में ए. के. मंडल, एन करुणाकरण तथा ग्रुप-दी संवर्ग में श्रीमती रत्ना कुमारी, ग्रामीण डाक सेवक संवर्ग में साहुल हमीद तथा आर. एम. दास को पुरस्कृत किया गया. सर्वश्रेष्ठ बचत बैंक एजेंट के लिए डाक एजेंट श्रीमती कृष्णा जाना को भी सम्मानित किया गया।

इस अवसर पर डाक परिवार के सदस्यों के अलावा तमाम गणमान्य नागरिक, मीडिया-प्रतिनिधि भी उपस्थित थे. सहायक डाक अधीक्षक ड़ी. मुर्मू ने उपस्थित जनों का का स्वागत किया, जबकि सहायक पोस्टमास्टर एम. गणपति ने आभार-ज्ञापन दिया !!
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The Department of Posts felicitated Postal Employees as well as Important Business Customers at a function organized at Megapode Nest , Port Blair on 9.6.2011. Mr. S.S Choudhury, Pr. Chief Conservator of Forests , A&N Islands was the Chief Guest on this auspicious occasion. Mr. Krishna Kumar Yadav, Director Postal Services, A&N Islands has presided over the function and Dr. S.Srinivas, Regional Director , IGNOU was the Guest of Honour.

Addressing the gathering on the occasion, Mr. S.S Choudhury , Pr. Chief Conservator of Forests , A&N Islands appreciated the dedication of the postal staff working in remote islands and encouraged them to work with even greater commitment towards serving the people of this Islands.

Mr. Krishna Kumar Yadav, Director Postal Services in his address described the role of the postal sector in peoples and businesses every day lives and its contribution to the social and economic development . He further said that emphasis will be given for creating more awareness among general public about the benefits of postal services. He urged the employees to be prepared to meet the challenges ahead due to the technology changes taking place every now and them. He also focused on some of the important achievements of the Department.

Dr. S. Srinivas, Regional Director, IGNOU also spoke about quality of services provided by the Post offices to the remotest corner of this Islands. and congratulated all for achieving the awards for showing exemplary services in various fields .

The Chief Guest, Mr. S.S Choudhury gave away prizes with the appreciation certificate to the Postal Employees & Postal Agents who achieved the maximum business during the year 2010-11 .On this occasion, the reputed Institutions / business oriented customers which had provided more business were also honored. Shri. Shantanu Gupta, Chief Manager SBI, Port Blair, Shri. Rajesh Puri , Director , Pay & Account Office, Shri. Prakash Kumar , Manager ,Axis Bank , Shri. Rubin Fernando R/o Dignabad were amongst them.

S/Shri. Malakondaiah, Stephen Fernandez, M.R Sarkar were awarded Ist, 2nd & 3rd prizes for procurement of Postal Life Insurance Business whereas Shri. Dulal Biswas, Smt. Indira Devi, Shri. Pradip Paul were awarded Ist, 2nd & 3rd prizes for procurement of Rural postal life insurance business on this occasion. For giving maximum business in Speed Post., Shri. Kamal Biswas, Smt. Goreti Lakra , Smt. Eswari Latha were felicitated whereas S/Shri. S. Venkataswamy, C.H Yarrana, V.C Johney were awarded for their contribution in opening of Saving Bank accounts. In technology field, Shri VVS Satyanarayana, Shri Kishore Verma and Shri Mihir Kr. Paul were also felicitated ,

Similarly, prizes were also given in various Cadres such as for best performances in Supervisory Category, Shri. P. Neelachalam & Smt. S Jayarani were selected. For PA Cadre , Shri K. S.N Murthy, Shri. Shankar Halder, Smt. Shanta Deb have got prizes whereas for Postman and Gr.D Cadre , Shri. A.K Mandal ,Shri. N. Karunakaran & Smt. Ratna Kumari were awarded . In GDS Category, S/Shri. Shahul Hameed & R.M Das were selected.. Smt. Krishna Jana , Postal Agent was also awarded for best Saving Bank agent.

Earlier Shri. D. Murmu, Asstt. Supdt ,Port Blair HO welcomed the gathering while the programme concluded with the vote of thanks by Shri.M.Ganapathy, Asstt. Postmaster ,Port Blair HO.


अब मोबाइल से जायेगा मनीआर्डर

भारतीय डाक वक़्त के साथ कदमताल की प्रक्रिया में नित नई-नई योजनायें आरंभ कर रहा है. टेक्नालाजी का बढ़ता प्रयोग डाक विभाग को और असरदार बना रहा है. इसी क्रम में 1 जून को डाक विभाग ने मोबाइल फोन पर एसएमएस के माध्यम से मनीआर्डर भेजने की योजना चंडीगढ़ में आरंभ की । इसका शुभारम्भ केंद्रीय गृह राज्य राज्य एवं सूचना प्रोद्योगिकी मंत्री गुरुदास कामत ने किया. योजना के तहत देश भर में मोबाइल से मनीआर्डर भेजे जा सकेंगे। फिलहाल यह योजना पंजाब-बिहार के 20 डाक घरों में शुरू की गई है।

गौरतलब है कि भारतीय डाक दुनिया का सबसे बड़ा डाक-नेटवर्क है। इसके तहत 9 करोड़ मनीआर्डर हर साल डाक द्वारा देशभर में भेजे जाते हैं। अभी तक ई-पोस्ट द्वारा पत्रों को पंख लग गए थे, अब मोबाइल फोन पर एसएमएस के माध्यम से मनीआर्डर भेजने से काफी सहूलियत हो जाएगी. इससे पहले डाक विभाग ने इंस्टेंट मनीआर्डर और इलेक्ट्रानिक मनीआर्डर सेवा भी आरंभ की है.

वाकई, डाक विभाग ने इस योजना से मनीआर्डर से पैसा पहुँचाने को गति दी है। भविष्य में इसे उन राज्यों में शुरु किया जाएगा, जहाँ से बड़ी संख्या में मनीआर्डर भेजे जाते हैं।

मोबाइल मनीआर्डर से जिस व्यक्ति को पैसा भेजना है उसका नाम-पता व मोबाइल नंबर डाकखाने में देना होगा। इसके बाद धनराशि का भुगतान करते ही यह सूचना एसएमएस के माध्यम से मनीआर्डर पाने वाले व संबंधित क्षेत्र के डाकघर को चली जाएगी। मनीआर्डर लेने वाला व्यक्ति उस डाकघर में जाकर या अपने घर पर धनराशि हासिल कर सकेगा। इससे 50 हजार तक राशि भेजी जा सकती है।

Friday, June 10, 2011

राष्ट्रीय लघु बचत निधि की व्यापक समीक्षा रिपोर्ट


राष्ट्रीय लघु बचत निधि (एनएसएसएफ) की व्यापक समीक्षा के लिए भारतीय रिजर्व बैंक की डिप्टी गवर्नर श्यामला गोपीनाथ के नेतृत्व में गठित समिति ने अपनी रिपोर्ट केंद्रीय वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी को 7 जून 2011 को सौंप दी. समिति ने अपनी रिपोर्ट में निम्नलिखित सिफारिशें की.

• समिति ने सभी लघु बचत योजनाओं, उन पर देय ब्याज, उनकी परिपक्वता अवधि एवं अन्य पहलुओं की जांच की.
• किसान विकास पत्र को रोकने एवं अन्य योजनाओं में से कुछ में उचित संशोधन करके उन्हें जारी रखना.
• मासिक आय योजना एवं राष्ट्रीय बचत प्रमाण-पत्र की परिपक्वता अवधि 6 वर्ष से घटाकर 5 वर्ष करना.
• 10 वर्ष की एनएससी योजना शुरू करने और डाकघर बचत खाते पर ब्याज दरें 3.5 प्रतिशत से बढ़कर 4 प्रतिशत करना.
• केन्द्र सरकार की प्रतिभूतियों में लघु बचत वसूली के आवश्यक घटक 80 प्रतिशत को घटाकर 50 प्रतिशत करने और आवश्यकतानुसार अन्य राज्यों को दिए गए ऋण की वर्तमान अवधि 25 वर्ष को घटाकर 10 वर्ष करना.

विदित हो कि इस समिति का गठन योजनाओं में पारदर्शिता बाजार से जुड़ी दरें एवं बहुत आवश्यक सुधारों को लाने के उद्देश्य से एनएसएसएफ की रूपरेखा एवं प्रशासन के सभी पहलुओं की जांच के संबंध में 13वें वित्त आयोग की सिफारिशों को सिद्धांत रूप में स्वीकार करने के बाद किया गया था.

समिति का कार्य एनएसएसएफ से केन्द्र एवं राज्यों को दिए गए ऋणों की वर्तमान शर्तों के मूल्यांकन, लघु बचत की कुल वसूली को केन्द्र एवं राज्यों को उधार देने की व्यवस्था में अपेक्षित परिवर्तनों की सिफारिश करना, लघु बचत से प्राप्त कुल राशि के निवेश के अन्य संभावित अवसरों की समीक्षा, राज्यों एवं केन्द्र को दिए एनएसएसएफ ऋणों के पुनर्भुगतान की प्रक्रियाओं और राज्यों द्वारा लघु बचतों के निवेशों पर दिए गए प्रोत्साहनों की समीक्षा करनी थी. समिति के अन्य सदस्य आर श्रीधरन प्रबंध निदेशक भारतीय स्टेट बैंक, शक्तिकांत दास अपर सचिव (बजट) वित्त मंत्रालय, डॉ. राजीव कुमार पूर्व निदेशक एवं मुख्य कार्यकारी अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संबंधों पर भारतीय अनुसंधान परिषद जो वर्तमान में महानिदेशक फिक्की है, अनिल बिसन आर्थिक सलाहकार (वित्त मंत्रालय) हैं.

Courtesy : Jagran Josh

Tuesday, June 7, 2011

डाक घरों की लघु बचत योजनाएं होंगी अधिक फायदेमंद


लघु बचत योजनाओं को और प्रभावी बनाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक की डिप्टी गवर्नर श्यामला गोपीनाथ की अध्यक्षता वाली कमेटी ने सरकार को 7 जून, 2011 को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में कुछेक प्रभावी सुझाव दिए हैं. इनमें से तमाम सुझाव डाक-घरों में बचत बैंक की स्थिति को सुदृढ़ करते हैं-

-लघु बचत योजनाओं पर मिलने वाले रिटर्न को सरकारी प्रतिभूतियों पर मिल रही ब्याज दरों से जोड़ दिया जाए.

-पोस्ट ऑफिस बचत योजना पर भी 4%ब्याज दिया जाए.

-एनएससी की परिपक्वता अवधि मौजूदा 6 वर्ष से घटाकर 5 वर्ष कर दी जाए.

-किसान विकास पत्र (केवीपी) को बंद कर इसकी जगह 10 वर्ष अवधि वाला एनएससी जारी किया जाए.

-पीपीएफ में निवेश की मौजूदा सीमा 70,000 रुपये से बढ़ाकर एक लाख रुपये कर दी जाए.

-सिफारिश के लागू होने के बाद एक साल की जमा योजना पर ब्याज दर मौजूदा 6.25% से बढ़कर 6.8% हो जाए.

-पीपीएफ पर रिटर्न मौजूदा 8% से बढ़कर 8.2% हो जाए.

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सरकार इस कमेटी के सुझावों पर अमल करती है तो जल्द ही छोटे निवेशकों को काफी फायदा मिल सकता है। कमेटी ने जो सुझाव दिए हैं उनका मुख्य उद्देश्य बढ़ती महंगाई के इस दौर में लघु बचत योजनाओं की ब्याज दरों को मार्केट से जोडऩा है, जिससे निवेशकों को ज्यादा फायदा हो। इसके अलावा किसान विकास पत्र (केवीपी) के स्थान पर जो 10 साल अवधि के राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र (एनएससी) लाने की बात कही गई है, इससे लंबी अवधि के लिए निवेश करने वाले निवेशकों को भी फायदा होगा।

इसी प्रकार ,लघु बचत योजनाओं की तुलना में बैंक ज्यादा ब्याज दे रहे हैं, इससे इनकी ओर लोगों का रुझान कम हो रहा है। ऐसे में यदि सरकार पोस्ट ऑफिस बचत पर चार प्रतिशत ब्याज के प्रस्ताव को मान लेती है तो इससे छोटे निवेशकों को तो फायदा होगा ही साथ ही सरकार के खजाने में भी वृद्धि होगी। पब्लिक प्रोविडेंट फंड, जो बचत के साथ ही आयकर में छूट पाने का सबसे बेहतर जरिया है, में निवेश की सीमा भी अगर 70,000 रुपये से बढ़ कर एक लाख रुपये हो जाती है तो लंबी अवधि में यह बहुत ही सकारात्मक कदम साबित होगा।

..फ़िलहाल कमेटी की रिपोर्ट चर्चा में है और लोगों के इसके फलीभूत होने का इंतजार है !!