आज के इस संचार युग में पत्रों का वर्चस्व मोबाइलों के धुआंधार प्रवेश ने कुछ कम कर दिया है, चारों तरफ हर हाथ में मोबाइल ही मोबाइल नजर आते हैं। ऐसी ही भीड़ में एक बार पत्र की मुलाकात मोबाइल से होती है दोनों में अभिवादन के पश्चात इस तरह साक्षात्कारिक वार्तालाप होता है।
पत्र- कहो भाई क्या हाल है, आजकल हर जगह नजर आ रहे हो।
मोबाइल- ये मेरा अहो भाग्य है कि मुझे हर कोई पसन्द कर रहा है, लोग चाहे जहाँ भी रहें मुझे साथ अवश्य रखते है।
पत्र- हाँ भाई तुमने कुछ हद तक मेरी जगह भी ले ली है, अब तो प्रेमी लोग मुझे लिखने की बजाय तुम्हारा ही इस्तेमाल करते है।
मोबाइल- बोरियत यार, ये प्रेमी-प्रेमिका घंटों एक ही विषय पर बातें करते रहते है जैसे आमने-सामने बातें कर रहें हों, समय की महत्ता का ध्यान ही नही रखते.
पत्र- मुझे तो आज भी वो दिन याद है जब लोग हमेशा पहला प्यार नजरों से और उसका इजहार मुझे लिखकर किया करते थे. कुछ लोग तो आज भी यह तरीका बद्स्तूर जारी रखे हुए है।
मोबाइल- ठीक कहते हो भाई मेरा जो भी अस्तित्व हो, पर इतिहास के पन्नों में मेरा नाम कहीं नहीं मिलता है। तुम्हारा नाम तो वहाँ स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है।
पत्र- बहुत गर्व होता है खुद पर जब जानी-मानी हस्तियाँ मुझे लिखकर अपनी प्रसन्नता या आभार व्यक्त करती है और मेरे अंश को पत्रिकाओं/समाचार पत्रों में सजाकर-सवारकर छापा जाता है।
मोबाइल- अरे भाई तुम्हारा वितरण तो डाकिया भी मुझे इस्तेमाल करके करता है।
पत्र- तो इसमे आश्चर्य की क्या बात है. वह प्यार व सम्मान सहित मेरे गंतव्य तक तो मुझे पहुँचाता है। मेरी प्रतीक्षा में आज भी लोग बेचैन रहते हैं मुझे पाकर उन्हे अजीब सुख भरा अहसास होता है तुम्हारे अनावश्यक एवं असमय आने पर तो लोगों का मूड़ भी खराब हो जाता है।
मोबाइल- अरे भाई मुझे तो फिल्मों में भी लिया गया है।
पत्र- बिल्कुल फूहड गानों की तरह लिया गया है जैसे ‘‘हृवाट इज मोबाइल नम्बर करूं क्या डाइल नम्बर’’ या ‘‘मेरे पिया गये रंगून वहाँ से किया है टेलीफून’’ आदि . मुझे देखो कई फिल्मों में मैं फिल्माया गया हूँ .मैने अपनी अभिव्यक्ति से लोगों के दिलों पर अमिट छाप छोड़ी है जहाँ ‘नाम’ नामक फिल्म में पंकज जी ने इस खूबसूरती से मेरा बखान किया है ‘‘चिट्ठी आई है आई है, चिट्ठी आई है’’, वहीं प्रेमी अपनी प्रेमिका को पत्र भेजकर अपनी भावनाओं का इजहार करता है कि ‘‘मेरा प्रेम पत्र पढ़कर कहीं नाराज न होना‘‘। सरकारी महकमों में आज भी मेरा पूर्णतयः अस्तित्व है. बिना मेरे वहाँ आज भी पूर्ण कार्य सम्भव नहीं है। कोई भी वैधानिक प्रक्रिया मेरे बिना सम्भव नहीं है और तुम कुछ जगहों पर ही अपनी पैठ बना पाये हो
मोबाइल- कुछ भी कहो भाई तुम्हारा जमाना जानेवाला है।
पत्र- नहीं मोबाइल भाई तुम दूध की तरह कुछ दिन और उबल लो, तुम्हारा अस्तित्व शीघ्र ही कम पड़ने वाला है क्योंकि आये दिन मुझे लिखने वाले, पढ़ने वाले यह वार्ता करते रहते है कि जब कभी तुम्हारे माध्यम से बात करना चाहते है तो उन्हें इस प्रकार के स्वर सुनाई देते है।
- इस रूट की सभी लाइने व्यस्त हैं, कृपया थोड़ी देर बात डायल करें।
- जिस नम्बर पर आप सम्पर्क करना चाहते है, वह अभी पहुँच से बाहर है।
- जो नम्बर आपने डायल किया है उसका उत्तर नहीं मिल रहा है।
- यह नम्बर अभी व्यस्त है कृपया प्रतीक्षा करें।
या कभी-कभी डायल करने पर बिना किसी संदेश/वार्ता के ही सम्पर्क टूट जाता है। सम्पर्क टूटने के साथ ही बार-बार प्रयास कर रहे तुम्हारे धारकों के दिल के अरमान भी टुकड़ों में विखर जाते है और वह बेचारा अन्ततः कागज कलम लेकर मेरा ही रूप तैयार करके अपने प्रिय के पास मुझे भेजकर अपना संदेश प्रेषित कर देता है। तुम्हारे ऐसे रूख को देखते हुए लोग फिर मुझे सराहने लगे हें मुझे ही प्रयोग करने लगे है अतः हे मोबाइल भाई अब अपना अलाप बन्द करो।
मोबाइल बेचारा मायूस होकर ‘‘निराशा की घण्टी’’ बजाता हुआ चला जाता है।
एस0 आर0 भारती
10 comments:
मान गये कि बड़ा सकारात्मक रवैया है डाकिया बाबू का अपने पत्रों के प्रति!! :)
बहुत सुन्दर ...........पत्रों की सार्थकता आज भी और कल भी रहेगी चाहे जितने मोबाईल आ जाएँ .
Ha..ha.ha...Majedar.
Sundar Vyangya-varta !!
बहुत बढ़िया लिखा है आपनें, एकदम सजीवता लिए हुए.
हुत सुन्दर ...........पत्रों की सार्थकता आज भी और कल भी रहेगी चाहे जितने मोबाईल आ जाएँ .
दिलचस्प संवाद...जारी रहे तो उत्तम.
सुन्दर सोच..अद्भुत कल्पनाशीलता.
...Interesting !!
...दिलचस्प
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