इलाहाबाद के रहने वाले कृष्ण कुमार यादव करीब महीने भर पहले ही यहाँ राजस्थान पश्चिमी क्षेत्र, जोधपुर में डाक सेवाओं के निदेशक पद पर स्थानांतरित होकर आए हैं। भारतीय डाक सेवा (आईपीएस) के अधिकारी यादव ने आते ही सुकन्या समृद्धि योजना सहित डाक विभाग की विभिन्न योजनाओं को लोगों तक पहुँचाने के लिए मेले और डाकघरों में कई कार्यक्रम आयोजित किए। उनके महीने भर के कार्यकाल में ही जोधपुर में सुकन्या समृद्धि योजना के तहत करीब 20 हजार बेटियों ने खाते खुलवाए जो बेटियों की शादी व कॅरियर के लिए मील का पत्थर साबित होंगे। डाक विभाग के बारे में उनकी योजनाओं व उनके व्यक्तित्व की जानकारी के लिए राजस्थान पत्रिका के संवाददाता गजेंद्र सिंह दहिया बुधवार दोपहर उनके दफ्तर पहुँचे। पेश है बातचीत के कुछ अंश -
प्रश्न : आपको नहीं लगता कि डाक विभाग का महत्व दिन प्रतिदिन कम होता जा रहा है?
उत्तर : डाक विभाग ने 1854 में अपनी स्थापना से अब तक डेढ़ युग से अधिक का सफर तय किया है। आर्टिकल डिलीवरी के लिए प्रसिद्ध इस विभाग की चिट्ठियों, पोस्टकार्ड और अंतरर्देषीय पत्र ने एक लम्बा दौर जिया है। पेजर आया खत्म हो गया। लैण्डलाईन फोन केवल सरकारी दफ्तरों में बचे हैं। सोषल मीडिया आने के बाद मोबाइल की एसएमएस सेवा खत्म होने के कगार पर है, लेकिन चिट्ठियाँ आज भी आ रही हैं और जा रही हैं, बस स्वरूप व जरुरत थोड़ी बदल गई।
प्रश्न : अन्य देशों की तुलना में भारतीय डाक में क्या अंतर है?
उत्तर : मैं भारतीय डाक अकादमी की ओर से दक्षिण कोरिया गया। वहाँ डाकघर माॅल की तरह हैं जहाँ ग्राहकों को डाकघर में हर सुविधा दी जा रही है, यानी वे कामर्शियल हो गया है, लेकिन भारतीय डाक ने अभी तक अपने आपको सामाजिक सरोकार से जोड़ रखा है।
प्रश्न : डाक विभाग के पास देश में 1.50 लाख डाकघरों का नेटवर्क है वो भी प्राइम लोकेशन पर, वो इसका रिटेलिंग व मार्केटिंग के लिए इस्तेमाल क्यों नहीं करते ?
उत्तर : देश के 70 फीसदी लोग गाँवों में रहते हैं। उनको आधारभूत सुविधाएँ उपलब्ध करवाना विभाग का पहला काम है। वैसे डाक विभाग धीरे-धीरे आईटी माॅर्डनाइजेशन की ओर बढ़ रहा है।
प्रश्न : अपने बारे में बताइए?
उत्तर : मेरा जन्म 10 अगस्त,1977 को उत्तर प्रदेश प्रदेश के आजमगढ़ में हुआ। शिक्षा इलाहाबाद में हुई। एमए (राजनीति शास्त्र) फाईनल ईयर के दौरान ही 2001 में मेरा यूपीएससी में आईपीएस में चयन हो गया। पिता श्री राम शिव मूर्ति यादव जी स्वास्थ्य अधिकारी रहे हैं और माता श्रीमती विमला गृहिणी हैं। तीन भाई-बहिनों में सबसे बड़ा हूँ। छोटी बहन उत्तर प्रदेश में शिक्षक है और भाई सिविल सेवा की तैयारी कर रहा है। शादी 2004 में काॅलेज में लेक्चरर आकांक्षा से हुई जो वर्तमान में फ्री लांसिंग करती हैं। मेरी दो बेटियाँ हैं।
प्रश्न : आप सिविल सेवा में ही आना चाहते थे?
उत्तर : नहीं, मैं डाॅक्टर बनना चाहता था, लेकिन पापा ने सिविल सर्विसेज़ में आने को कहा। मैंने उनसे कहा कि यह परीक्षा कठिन है तो उनका जवाब था कि इस दुनिया में जो भी कुछ बनता है, करता है, वह मनुष्य ही है।
प्रश्न : आप एक कवि व साहित्यकार भी हैं और आपकी पत्नी भी?
उत्तर : जी हाँ, मेरी अब तक सात पुस्तकें और आकांक्षा की दो पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। कविता, कहानी, लघुकथा व बाल कविताओं के लिए कई सम्मान भी मिले हैं। मैं और आकांक्षा ब्लाॅग भी लिखते हैं। साहित्य लेखन इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन के समय परवान चढ़ा था।
( साभार : 'राजस्थान पत्रिका' (24 अप्रैल, 2015), जोधपुर में प्रकाशित कृष्ण कुमार यादव, निदेशक डाक सेवाएँ, राजस्थान पश्चिमी क्षेत्र, जोधपुर का साक्षात्कार : चिट्ठियों ने जिया लम्बा दौर.
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