बिहार की राजधानी पटना. स्मार्ट सिटी की दौर में शामिल होने को बेताब. कॉलेज कैंपस से लेकर रेलवे स्टेशन तक वाई-फाई कनेक्टिव. मैं कंकड़बाग स्थित अशोक नगर में शनिवार को अपने आवास पर फेसबुक व टविटर पर अंगुलियां चला रहा था. तभी अचानक कॉल बेल की आवाज गूंजी. छोटे ठाकुर मतलब अपने बेटे आयुष को को कहा- देखो कौन है...? बाहर डाक बाबू खड़े थे. स्पीड पोस्ट से लेटर आया था. बड़ी दीदी ने राखी भेजी थी. साधारण लिफाफे के अंदर अमूल्य प्रेम बंद था. कूरियर वालों पर दीदी को भरोसा नहीं था. उन्होंने फोन कर एड्रेस लिया और महज दो दिनों में राखी वाला लिफाफ मेरे हाथ में था. सच में आज भी डाक बाबू के भरोसे रहती हैं देश की करोड़ों बहनें और भाई घरों व कार्यालयों में डाक बाबू के आने के इंतजार में पलक पावड़े बिछाये रहते हैं. यूं कहें डाक विभाग भाई-बहन के प्यार को सदियों से संजो कर रखा है और आज भी वह अपनी जिम्मेवारी में रत्ती भर भी पीछे नहीं हटा है. बखूबी उसे निभा भी रहा है.
खुशी से लेकर गम तक की जिम्मेवारी
डाकिया डाक लाया... डाक लाया... डाकिया डाक लाया... खुशी का पयाम कहीं, कहीं दर्दनाक लाया.. डाकिया डाक लाया... जी हां, भले ही पलकों की छांव में का यह गाना 70 के दशक का हो, लेकिन यह आज भी प्रासंगिक है. पाती में छिपे खुशी, गम, शहनाई की गूंज, गुजरने का दर्द से लेकर बंधु-बांधवों के कुशलक्षेम का सबों का इंतजार रहता है. इसी में भाई-बहन का प्यार व रेशम की डोर का बंधन भी छिपा है. जमाना इंटरनेट व वाइ-फाइ का हो गया है. ऑनलाइन शॉपिंग हो रही है. ब्रांडेड कंपनियां सामान की होम डिलिवरी करा रही हैं. बड़ी-बड़ी कूरियर कंपनियां दौड़ में शामिल हैं. लेकिन यह सब है मुट्ठी भर लोगों के लिए, वह भी बस शहरी क्षेत्र वालों के लिए. गांवों के करोड़ों-भाई बहनों के प्यार को संजोने वाला डाक विभाग ही है. यही वजह है कि सावन के आते ही डाकघरों में रक्षाबंधन पर्व को लेकर राखी भेजने वालों की भीड़ बढ़ जाती है. आज भी गांवों में डाक विभाग का जो क्रेज है, उसके सामने ऑनलाइन मार्केटिंग, होम डिलिवरी से लेकर कूरियर कंपनी तक फेल है.
बहन की यही चाहत.. बस समय पर राखी पहुंचे
हमें याद है कि जब हम छोटे थे, तब मुंगेर जिले के हवेली खड़गपुर जैसे छोटे से कसबे में रहते थे. हालांकि वह धरती विश्वप्रसिद्ध चित्रकार आचार्य नंदलाल बसु और राष्ट्रीय कवि रामधारी सिंह दिनकर के काव्य गुरु रामप्रसाद साधक जी की जन्मभूमि रही है. बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्रीबाबू की कर्मभूमि रही थी. सावन आते ही मां राखी भेजने की रट लगा देती थी. समय पर डाक घर जाकर राखी पोस्ट करने की हिदायत देती रहती थी. साथ ही यह कहना नहीं भूलती थी कि डाक बाबू से यह भी पता लगा लेना कि हमारी भी राखी भी आयी है क्या? आज भी गांव से फोन आता है. मां कहती हैं, मामा को राखी जरूर पोस्ट करना देना. उन्हें बहुत अब भी नहीं पता है कि जमाना बदल गया है, उन्हें तो अभी भी वही डाकघर पर भरोसा है और जब से जाना है कि अब वहां से गंगाजल भी मिलने लगा है, तो खुशी से झूम ही उठी थीं.
बुआ को फोन कर दो.. राखी आ गयी..
सच भी है कि समय के साथ पोस्टल डिपार्टमेंट ने भी समय के साथ खुद में काफी बदलाव किया है. बहनों को दिक्कत नहीं हो, राखी समय पर पहुंचे, इसके लिए डाक विभाग ने राखी स्पेशल लिफाफ भी उतारे हैं. लेकिन, आज भी जितनी राखियां साधारण लिफाफों में जाती हैं, शायद ही उतनी बिक्री स्पेशल लिफाफों की होती हो. बहनों को तो बस इससे ही मतलब रहता है कि राखी समय पर अपने भाई के पास पहुंच जाये और उनकी कलाइयों पर जगमगाये. अचानक मेरी तंद्रा टूटी, छोटे ठाकुर लिफाफे को फाड़ कर शोर मचा रहा था- बड़ी बुआ ने राखी भेजी है, वह घर के लोगों को घूम-घूम कर देखा रहा था. बीच-बीच चिल्ला भी रहा था कि राखी आ गयी.. राखी आ गयी.. बुआ को फोन कर दो पापा... राखी आ गयी...!!!
- राजेश ठाकुर, प्रभात खबर, पटना
No comments:
Post a Comment