सीधा-साधा डाकिया जादू करे महान, एक ही थैले में भरे आँसू और मुस्कान। निदा फ़ाज़ली का यह शेर आज भी उतना ही प्रासंगिक लगता है। देश पर जब भी कोई विपदा आई तो डाकिया बाबू अपनी जान हथेली पर लेकर सामने खड़े नजर आये। पहाड़ों से लेकर नदियों की लहरों तक, समुद्र के बीच द्वीपों से लेकर रेगिस्तान तक, हर जगह डाक विभाग की उपस्थिति दिखेगी। डाक सेवाएँ अनवरत चलती रहती हैं। तभी तो कोरोना से जंग में डाकिया और ग्रामीण डाक सेवक हर दरवाजे पर दस्तक लगा रहा है। वास्तव में देखें तो ग्रामीण क्षेत्रों में डाकिया भारत सरकार का नुमाइंदा भी है। उसकी सक्रियता लोगों को आश्वस्त करती है कि सरकार अपना कार्य ठीक से कर रही है। एक तरफ कोरोना से संक्रमण का डर दूसरी तरफ परिवार वालों द्वारा घर से बाहर निकलने पर रोक ...... पर इसके बावजूद अपनी जान हथेली पर लेकर ये 'कोरोना वॉरियर्स' लोगों को राशन, दवाएँ पहुँचाने से लेकर डोर-स्टेप पर बैंक खातों से डीबीटी व नकद निकासी की सुविधा दे रहे हैं।
उत्तर प्रदेश परिमंडल के चीफ पोस्टमास्टर जनरल कौशलेन्द्र कुमार सिन्हा कहते हैं कि, "कोरोना विपदा के इस समय में सरकार ने डाक सेवाओं को आवश्यक सेवाओं में रखा है। हर दरवाजे तक डाकिया व ग्रामीण डाक सेवक पहुँचकर लोगों को सेवा दे रहे हैं। घर-घर, खेत-खलिहान, अस्पताल, जंगल तथा नदी में नाव पर जाकर लोगों को धन निकासी की सुविधा, दवा व मेडिकल उपकरण पहुंचाने जैसे कार्यों से इन्होंने अपनी पहचान जनता के दिलों में 'कोरोना योद्धा' के रूप में बना ली है। हम उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए उन्हें प्रोत्साहन दे रहे हैं। उत्तर प्रदेश में लॉकडाउन आरम्भ होने से अब तक 35 लाख से अधिक लोगों को घर बैठे एईपीएस के माध्यम से 5 अरब 85 करोड़ रुपये की राशि उनके बैंक खातों से निकालकर दी गई। डाककर्मियों ने आपसी सहयोग से राशि एकत्र कर लोगों को राशन, सब्जियाँ व फूड पैकेट भी उपलब्ध कराये हैं। "
ऐसा नहीं है कि ऐसी आपदा पहली बार आई है। डाक विभाग इससे पूर्व भी ऐसे समय पर संकटमोचक बनकर उभरा है। लखनऊ मुख्यालय परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएँ कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि, "इससे पहले भी जब देश में मलेरिया महामारी का प्रकोप फैला था तो डाक विभाग ने घर-घर जाकर कुनैन दवाएँ बाँटी थीं। डाक विभाग सदैव 'अहर्निशं सेवामहे' भाव से कार्य करता रहा है। अब कोरोना संकट की इस घड़ी में भी लोगों को दवा पहुंचाने से लेकर घर बैठे नकद उपलब्ध कराने में डाककर्मी अपने अदम्य कर्तव्यनिष्ठा व साहस का परिचय दे रहे हैं। डाकघरों के माध्यम से पीपीई किट्स, मास्क, वेंटिलेटर, कोविड 19 टेस्टिंग किट्स तक पहुँचाई जा रही हैं। डाक विभाग सदैव से ही लोगों के सुख-दुःख का साथी रहा है और संकट की इस घड़ी ने एक बार फिर से इसे सिद्ध कर दिया है। हम सब अपने कर्तव्यों के निर्वहन के साथ मानवीय सेवा भी कर रहे हैं। निश्चित रूप से कोरोना हारेगा और देश जीतेगा।"
कोरोना ने दूरदराज के इलाकों में कार्य करने वाले डाकियों और ग्रामीण डाक सेवकों को एक नई पहचान भी दी है। अयोध्या में धनैचा गाँव के शाखा डाकपाल राजेन्द्र यादव को लोग देखते ही 'डाकिया बैंक लाया' कहकर स्वागत करते हैं और फिर वे उसी उत्साह से कभी खेतों में, कभी कुएँ की जगत पर, कभी दरवाजे पर अपने माइक्रो एटीएम से उनके बैंक खातों से राशि निकालकर देते हैं। केंद्रीय संचार मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने भी कुएँ की जगत पर भुगतान करते उनकी एक फोटो ट्विटर पर शेयर की तो वे और भी प्रोत्साहित हुए। अयोध्या में तो सरयू नदी में नाव पर भुगतान काफी चर्चित रहा।
सीतापुर जिले में इटिया गाँव के शाखा डाकपाल चन्द्र भूषण शुक्ल कहते हैं कि, लॉकडाउन और कोरोना ने हम सभी को यह मौका दिया कि समाज के लिए कुछ कर सकें। सीतापुर में कई बार तो हमारे विभागीय साथी अपनी जान हथेली पर लेकर हॉटस्पॉट इलाके में भी लोगों को आधार इनेबल्ड पेमेंट सिस्टम के माध्यम से पैसे निकालने की सुविधा देने के लिए गए। कोरोना से बचाव के लिए हम लोग सोशल डिस्टेंसिंग के साथ मास्क, ग्लव्ज, सेनिटाइजर का भरपूर इस्तेमाल करते हैं। सभी तरह की सावधानियां बरतने के बाद भी कई बार डर लगता है, पर विपत्ति की इस घड़ी में लोग हमें देवदूत की तरह देखते हैं।
लॉकडाउन के बीच में ही रमज़ान का महीना भी आया। लखनऊ में लौलाई गाँव के शाखा डाकपाल ताहिर रज़ा तो रोजे के साथ-साथ लोगों के दरवाजे पर पहुँचकर उन्हें दवा वितरित करना, जरूरतमंद लोगों के बैंक खातों से नकद निकालकर तुरन्त उन्हें देना जैसी जिम्मेदारियाँ भी निभाते चले गए। जिन लोगों ने लम्बे समय से सुध नहीं ली, वे भी उन्हें फोन करके अपने घर आने का लगातार अनुरोध करते हैं। कुर्सी रोड स्थित एक अस्पताल में एक बुजुर्ग मरीज के पास इलाज हेतु पैसे खत्म हो गए तो उनके परिजनों ने फोन किया और फिर वहीं पर जाकर उनके बैंक खाते से नकद निकालकर दिया।
रायबरेली में छटोह गाँव के शाखा डाकपाल गिरीश श्रीवास्तव ने बताया कि, लोगों को घर पर पैसे देने के साथ-साथ हम लोग उन्हें कोविड 19 से लड़ने हेतु जागरूक भी कर रहे हैं। सरकार लोगों के बैंक खातों में डीबीटी राशि ट्रांसफर कर रही है, पर बैंकों पर बढ़ती भीड़ और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन न हो पाने के चलते कई बार लोग उदास लौट आते हैं। ऐसे में डाक विभाग की 'इण्डिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक' की 'आधार इनेबल्ड पेमेंट सिस्टम' सुविधा लोगों के लिए वरदान साबित हुई है। कई बार किसानों को उनके खेत में ही जाकर भुगतान किया।
अम्बेडकरनगर जिले में नागपुर जलालपुर के शाखा डाकपाल मृत्युंजय उपाध्याय कहते हैं कि, डाकघर ' दुनिया का एक ऐसा विभाग है जिसमें 'घर' शब्द का प्रयोग होता है। इसीलिए लोगों का डाकघरों से आत्मीय रिश्ता होता है। गाँवों में लोग हमारी तरफ आशा भरी निगाहों से देखते हैं। कई बार अपने पैसों से भी जरूरतमंदों को राशन व फूड पैकेट उपलब्ध कराया है। एक दिव्यांग को पैसों की जरूरत पड़ी तो उसके घर पर जाकर भुगतान किया। लोगों को बैंकों तक जाकर न भटकना पड़े, इसलिए उनके दरवाजे पर ही पैसे निकालकर देते हैं। बुजुर्गों, महिलाओं, मरीजों व दिव्यांगों को इससे काफी सहूलियत हो गई है। कोरोना संक्रमण के दौरान बाहर निकलने पर परिवार वाले घबराते हैं, लेकिन लोगों की सेवा करने के लिए हौसला भी बढाते हैं।
संकट की इस घड़ी में महिला डाककर्मी भी पीछे नहीं हैं। बाराबंकी जिले में मोहम्मदपुर गाँव की शाखा डाकपाल अन्नपूर्णा सिंह कहती हैं कि, कोरोना के बीच आरम्भ में कार्य करने में बहुत डर लगता था। परिवार वालों को भी संक्रमण की बड़ी चिंता रहती थी। पर यह भी लगा कि यह गाँव भी तो अपना परिवार है। यदि आज विपदा में हम अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं करेंगे तो अंतरात्मा हमेशा कचोटेगी। बस इसी भावना से लोगों को माइक्रो एटीएम द्वारा घर-घर जाकर उनके बैंक खातों से पैसे निकालकर देना आरम्भ किया। गाँव की तमाम महिलाओं के इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक में खाते खुलवाकर उन्हें डिजिटल बैंकिंग भी सिखाई। अब तो लोगों के चेहरे की खुशी देखकर अपना डर भूल गई हूँ।
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