सामरिक व औद्योगिक रूप से महत्वपूर्ण होने के कारण ब्रिटिश शासन काल से ही अंग्रेजों ने कानपुर में संचार साधनों की प्रमुखता पर जोर दिया। इनमें डाक सेवायें सर्वप्रमुख थीं। कानपुर में सर्वप्रथम डाकघर की स्थापना कैण्ट स्थित नहरिया पर 1840 में हुई। 6 मई 1840 को ब्रिटेन में विश्व के प्रथम डाक टिकट जारी होने के अगले वर्ष 1841 मंे इलाहाबाद और कानपुर के मध्य घोड़ा गाड़ी द्वारा डाक सेवा आरम्भ की गई। इलाहाबाद के एक धनी व्यापारी लाला ठंठीमल, जिनका व्यवसाय कानपुर तक विस्तृत था को इस घोड़ा गाड़ी डाक सेवा को आरम्भ करने का श्रेय दिया जाता है, जिन पर अंग्रेजों ने भी अपना भरोसा दिखाया। जी0टी रोड बनने के बाद उसके रास्ते भी पालकी और घोड़ा गाड़ी से डाक आती थी, जिसमें एक घोड़ा 7 किलोमीटर का सफर तय करता था। आधा तोला वजन का एक पैसा किराया तुरन्त भुगतान करना होता था। इलाहाबाद से बिठूर तक डाक का आवागमन गंगा नदी के रास्ते से होता था। सन् 1850 में लाला ठंठीमल ने कुछ अंग्रेजों के साथ मिलकर ‘इनलैण्ड ट्रांजिट कम्पनी’ की स्थापना की और कलकत्ता से कानपुर के मध्य घोड़ा गाड़ी डाक व्यवस्थित रूप से आरम्भ किया। अगले वर्षों में इसका विस्तार मेरठ, दिल्ली, आगरा, लखनऊ, बनारस इत्यादि प्रमुख शहरों में भी किया गया। कानपुर की अवस्थिति इन शहरों के मध्य में होने के कारण डाक सेवाओं के विस्तार के लिहाज से इसका महत्वपूर्ण स्थान था। इस प्रकार लाला ठंठीमल को भारत में डाक व्यवस्था में प्रथम कम्पनी स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है। 1854 में डाक सेवाओं के एकीकृत विभाग में तब्दील होने पर इनलैण्ड ट्रांजिट कम्पनी’ का विलय भी इसमें कर दिया गया।
6 comments:
बहुत महत्त्वपूर्ण जानकारी दी आपनें .
lala thanthimal ki photograph lagate to aur behtar post hoti.
डाक-सेवाओं के अतीत के बारे में पढ़कर अच्छा लगा.
लाला thanthimal के बारे में भी कुछ विस्तृत जानकारी दें.
touching.........
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