छोड़ दिया है उसने
लोगों के जज्बातों को सुनना
लम्बी-लम्बी सीढियाँ चढ़ने के बाद
पत्र लेकर
झट से बंद कर
दिए गए
दरवाजों की आवाज
चोट करती है उसके दिल पर !
चाहता तो है वह भी
कोई खुशी के दो पल उससे बाँटे
किसी का सुख-दुःख वो बाँटे
पर उन्हें अपने से ही फुर्सत कहाँ?
समझ रखा है उन्होंने
उसे
डाक ढोने वाला हरकारा
नहीं चाहते वे उसे बताना
चिट्ठियों में छुपे गम
और खुशियों के राज !
फिर वो परवाह क्यों करे?
वह भी उन्हें कागज समझ
बिखेर आता है सीढ़ियों पर
इन कागजी जज्बातों में से
अब लोग उतरकर चुनते हैं
अपनी-अपनी खुशियों
और गम के हिस्से
और कैद हो जाते हैं अपने में !!
8 comments:
Nice Poem...Congts.
छोड़ दिया है उसने
लोगों के जज्बातों को सुनना
लम्बी-लम्बी सीढियाँ चढ़ने के बाद
पत्र लेकर
झट से बंद कर
दिए गए
दरवाजों की आवाज
चोट करती है उसके दिल पर
सचमुच दिल को चोट तो पहुँचती ही होगी...सुंदर भाव....
achchhi dak laye hain aap dakiya babu....abhaar.
डाकिया बाबू जी,
सच्चाई बयाँ करती अत्यन्त भावपूर्ण कविता
लेख और कविता दोनो मे आपका जवाब नही..
Satik chitran...badhai.
सचमुच दिल को चोट तो पहुँचती ही होगी...सुंदर भाव....
veeeeeeeery nnnice
superb
Post a Comment