Tuesday, December 22, 2009

सहनशक्ति की चरम सीमा [डाकिया डाक लाया - 5]

वेनिस का मार्कोपोलो करीब सात सदी पहले कुबलाई खान का दरबारी था और उसके नोट्स के आधार पर मॉरिस कॉलिस ने मौले और पैलियट नामक पुस्तक लिखी। इस पुस्तक का हिन्दी अनुवाद श्री उदयकांत पाठक ने किया है। पेश है पोलो का दिलचस्प वृतांत- सन १२७१ के दौर में चीन के शासक कुबलाई खान की डाक व्यवस्था की अंतिम कड़ी।

संदेशवाहकों के पास सरकार की ओर से दी गई विशेष तख्तियां होती थीं इनके जोर पर वह रास्ते में खाकान के नाम पर जो चाहे पा सकता था। मसलन अगर उसका घोड़ा गिर पड़ता तो वह राह में मिलने वाले किसी भी व्यक्ति से यहां तक कि बड़े भारी सरदार से भी उसका घोड़ा ले लेता। यह था संदेशवाहकों का रुतबा और संदेश के महत्वपूर्ण होने का असर।इन संदेशवाहकों की सहनशक्ति की तुलना किसी भी सर्वाधिक शक्तिशाली आधुनिक मानक तोड़नेवाले से नहीं की जा सकती। जिस किसी को भी गुड़सवारी का अनुभव हो , वह बता सकता है कि पच्चीस मील घोड़े की सवारी कितनी थका देने वाली होती है । पूर्व में साधारण यात्री के लिए यह फासला एक दिन की मंजिल माना जाता है। पचास मील चल लेना बड़ी बात होती है और बार बार सवारी बदलकर भी सौ मील कर लेना औसत सवार की शक्ति से बाहर की चीज़ है । तब एक रात और दिन में चार सौ मील कैसे तय किया जा सकता है? इसका रहस्य स्टेपी मैदान के मंगोल सवार की थाती है। यह कभी नहीं कहा गया कि रोमन लोगों ने अपनी स़कों और चौकियों को इतनी अच्छी तरह संगठित कर रखा था कि वे अपने पररवाने इतनी जल्दी भेज सकते हों मानों उन्हें ले जाने के लिए उनके पास मोटरकार हो। फिर भी यह असादारण बात है कि मशीनी सवारियों के आविष्कार से पहले, ज़रूरत पड़ने पर आदमी इतनी ही तेजी से ले जाने वाली प्रणाली ढूंढ लेता था। आगे के वर्णन से यह पता चलता है कि किस तरह से अरब लोगों को दसवीं सदी में हवाई जहाज का पूर्वाभास हो गया था। फातिमा सम्प्रदाय के खलीफा अजीज ने जो काहिरा में रहता था , बालबेक से ताजी चेरियों की इच्छा व्यक्त की । बालबेक रेगिस्तान के पार चार सौ मील उत्तर में था । वहा के वजीर को जब इसकी खबर मिली तो उसने छह सौ पत्रवाहक कबूतर जमा किये और हर एक के पैर में एक चेरी रखकर थैली बंध दी। चेरियां काहिरा में बिल्कुल अच्छी हालत में उसी दिन खलीफा के भोज के वक्त पर पहुंच गईं।
साभार : शब्दों का सफर

6 comments:

Dr. Brajesh Swaroop said...

उसने छह सौ पत्रवाहक कबूतर जमा किये और हर एक के पैर में एक चेरी रखकर थैली बंध दी...Kabutar ja-ja-ja.

Unknown said...

Kabutar se lekar computer tak safar....Thanks Dakiya babu.

S R Bharti said...

सुन्दर और दिलचस्प जानकारी.

Ram Shiv Murti Yadav said...

डाक व्यवस्था पर यह सीरिज जबरदस्त है. इस प्रयास के लिए अजित जी व आपको साधुवाद.

Bradpetehoops said...

Have a nice day! Mabuhay!

संजय भास्‍कर said...

सुन्दर और दिलचस्प जानकारी.